आत्म मार्ग ही श्रेष्ठ है, सहज मार्ग हर्षाय
भक्ति दिखाता रास्ता, भक्ति पार लगाय ।
समय करे सो ठीक है, सहले देर अबेर
साधो साधो समय को, समय समय का फेर ।
काल चक्र तो चल रहा, कछुए वाली चाल
तू बुद्ध था बुद्ध बन, तोड़ जाल जंजाल ।
राजकमल संसार में, कर ले खुद से युद्ध
शर्त एक ही है मेरी, रहे आत्मा शुद्ध ।
सिर्फ सत्य ही सत्य है, सत्य ओम का सार
जीवन एक सराय है, रहना है दिन चार ।
बहुत सफलता बुरी है, भेजा करे खराब
जो कांटों में खिला है, असली वही गुलाव |
देरी कर दो क्रोध में, टल जाता है क्रोध
खुद अपनी ही आग में, जल जाता है क्रोध ।
बात बात में बात से, जग जाता है क्रोध
मन बैरागी मौन हो, भग जाता है क्रोध ।
राम राज स्वीकार है, सत्य राज मंजूर
कर्म किये जा कृष्ण सा, बन अशोक सा शूर ।
शब्द स्वर्ण है शब्द ही, हीरा पन्ना लाल
शब्द कोयला खान है, और शब्द है काल ।
शतरंजी चौपड़ नहीं, खेल जान का खेल
जीत गये तो विक्रमी, हार गये तो खेल ।
सौ बातों की बात सुन, एक अरब की ऐक
आनंदित मन पा गया, जिसने रखा विवेक ।
शक संशय को पालकर, व्यर्थ जलाये हाड़
भ्रम के मृत चूहे मिले, खोदे बहुत पहाड़
मिटते संशय आत्मा, फलदायक, विश्वाश
कैसी भी हो स्थिति, होना नहीं निराश ।
जो रावण है मरेगा, राम हृदय पुलकाय
हिरणाकश्यप शकुनि मामा, अपनी करनी पाय ।
तुलना मत कर किसी से, तुलना करना पाप
संस्कार सबके अलग अलग सत्य का जाप ।
अति कल्पना रोग है, कह लो इसे बुखार
अति भावुकता साथ हो. पागल पन साकार ।
कवि संवेदन शील है, कवि में दया अपार
कवियों ने ही किया है, अश्रु कणों से प्यार |
जब तक मन में अहम है, गायब है भगवान
जिसने जाना स्वयं को वह खुद है भगवान ।
दोष तो होगा किसी का, कौन यहाँ निरदोष
जगा रहा था जगत को, खुद ग़म से बेहोश ।
घुटन, दुःख वा वेदना, आँसू के त्यौहार
गंगा, जमना के बिना आंखें हैं बेकार ।
वर्तमान में जी मना, सच है केवल आज
जो जीते हैं आज में, उनके सर पर ताज ।
बिना पीड़ा के छन्द क्यों, लिखते हो बेकार
पहले भोगो फिर लिखो, काव्य कर्म साकार ।
हर मानव अर्जुन यहाँ, और आत्मा कृष्ण
आत्म ज्ञान से हल हुए मन के सारे प्रश्न ।
मुख्य चीज है आत्मा, उसके बाद शरीर
केवल सुख पर मर मिटे, वो नर बड़े शरीर ।
भाई भी भंगी भये, साफ किया आकाश
ऐसी झाड़ू मार दी. मुझको मिला प्रकाश ।
दानवता के नयन ने, अश्रु किये आबाद
मां आंचल से पोंछकर, देती आशिरवाद ।
बिना नाम ओ अर्थ के, रचना भी है व्यर्थ
यश आदर बिन धन स्वयं, खो देता है अर्थ ।
जनम-जनम से चल रही, लीला तेरी अनन्त
तू ही बनता इन्दिरा, तू ही है बेअन्त ।
छली प्रपंची कौन था, कौन राम का दास
समय स्वयं निर्णय करे, तू क्यों होत उदास ।
ज्योतिष भी विद्या बड़ी, मत कहना बकवास
जो अच्छा है ग्रहण कर मत करना विश्वास ।
शनि का नीलम रत्न हैं, माणिक सूरज रत्न
मूंगा मंगल के लिये, पन्ना है बुध रत्न |
जिसको जो सुखकर लगे, और संवारे काज
रत्नों में सबसे बड़ा, रत्न कहो पुखराज़ |
रत्नों में पुखराज ही, नहीं करे नुकसान
कम हो चाहे अधिक हो, निश्चित है कल्यान ।
हीरे में भी गुण बहुत, अगर रहे अनुकूल
रत्न परख कर पहनिये, ना हो उसमें भूल ।
रत्न पहनने से अगर, बढ़ता दुख का भार
तुरत उतारो रत्न को, छोड़ो सोच विचार ।
कलाकार हो जायेगा, बली शुक्र के साथ
ले ले करुणा शनि से बने हृदय का नाथ ।
उच्च गुरू हो, शुक्र भी, और केन्द्र में बुद्ध
विश्व प्रसिद्धि के लिये, सूर्य उच्च का शुद्ध
कुजवत केतू जान ले, शनि राहू हैं ऐक
सूर्य मेष का लग्न में, करवाता अभिषेक |
वृहस्पति भी मुख्य है, सूर्य बुद्ध भी खास
अगर कलंकित भावना, फिर क्या रहता पास ।
यदि उच्च का गुरू हो, मंगल चंदर साथ
बुध दसवें हो मेष का, बने विश्व का नाथ ।
राहू केतू पूँछ हैं, मंगल है सरदार
कर छाया से दोस्ती, होगा बेड़ा पार ।
सूर्य मेष में उच्च का, शुक्र कुम्भ में होय
यदि कन्या का बुद्ध हो, कवि रवि, चिन्तक होय |
::::::प्रस्तुति:::::;;
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822