शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ.मक्खन मुरादाबादी के आठ दोहे ....


सत्ता में जब तक रहे,लगा सभी कुछ ठीक।

अब सत्ता को कोसते,स्वयं भटककर लीक।। 1।।


सत्ता जब-जब पास थी,जिनके भी थे ठाठ।

खिसकी तो भाए उन्हें, मन्दिर पूजा पाठ।। 2।।


लंका जैसे जो हुए,कवि चिंतक विद्वान।

लंका होता दीखता,उनको हिन्दुस्तान।। 3।।


खेलों और चुनाव में,जीत मिले या हार।

नहीं हारना चाहिए,खेल भाव संसार।। 4।।


रह सत्ता में यदि किया,लूटपाट का भोग।

मन में उठता देखिए,रोज़ नया फिर सोग।। 5।


पान फूल जो भी चढ़े,जब थे सत्ताधीश।

बच्चों को भी थे मिले,कहाँ गए आशीष।। 6।।


कुर्सी जब थी पास में,बने बहुत तब फैंस।

चश्में का पर आपके,धुंधल गया था लैंस।। 7।


पहले तो लगता रहा,पानी है सब रेत।

मन मसोसना व्यर्थ है,बचा नहीं जब खेत।। 8।।


✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी

      झ-28, नवीन नगर

      काँठ रोड, मुरादाबाद -244001

      उत्तर प्रदेश, भारत

      मोबाइल:9319086769

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-07-2022) को   "काव्य का आधारभूत नियम छन्द"    (चर्चा अंक--4506)  पर भी होगी।
    --
    कृपया अपनी पोस्ट का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. एक से बढ़कर एक दोहा। आपका हार्दिक अभिनंदन।

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  3. बहुत अच्छे, समसामयिक और सटीक दोहे! साधुवाद!
    कृपया इस लिन्क पर जाकर मेरी रचना मेरी आवाज़ में सुने और चैनल को सब्सक्राइब करें, कमेंट बॉक्स में अपने विचार भी लिखें. सादर! -- ब्रजेन्द्र नाथ
    https://youtu.be/PkgIw7YRzyw

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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