पात्र-
1-सुरेश उम्र 16/17 वर्ष
2-महेश उम्र 15 वर्ष
3-गणेश उम्र 14/15 वर्ष
4-शंकर उम्र 14 वर्ष
5- भोला उम्र 12 वर्ष
6- मुरारी गौशाला का सेवक उम्र 40/45 साल
दृश्य 1
( शाम का समय है गाँव से बाहर गोशाला का दृश्य है।शाम के झुकमुके में कुछ बच्चे गौशाला के अंदर आते दिखाई देते हैं। अंदर चार लोग आकर ईंट और पत्थर के टुकड़ों पर बैठे हुए हैं इनकी उम्र 12 से 16 वर्ष के बीच है। इनके बदन पर हाथ के सिले चाक वाले बनियान और कमर में फ़टी पुरानी आधी धोती बंधी हुई है। एक लड़का जो उम्र में 16/17 वर्ष का दिखाई दे रहा है पतला दुबला इकहरा बदन। चेहरे पर बहुत गम्भीरता। चाक का कुर्ता और धोती पहने हुए एक ऊँचे मिट्टी के ढेर पर बोरी बिछा कर उनके मुखिया की तरह बैठा हुआ है। उसके सामने चार लड़के बैठे बहुत गम्भीरता से उसके कुछ बोलने का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी की भावभंगिमा इतनी दृढ़ है कि ये सभी बहुत परिपक्व नज़र आ रहे हैं।)
सुरेश- साथियों, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि नेता जी आजकल हमारे देश को इन गोरों से आज़ाद करवाने के लिए एक सेना बना रहे हैं और उन्होंने उसका नाम रखा है 'आज़ाद हिंद फौज'।कल शाम को मैंने रेडियो पर उनका संदेश सुना जिसमें वे कह रहे थे 'प्यारे देशवासियों आज़ादी दी नहीं जाती बल्कि ली जाती है। कोई भी अपने गुलाम को स्वेच्छा से कभी मुक्त नहीं करना चाहता। किन्तु परिस्थितियों का निर्माण करके उसे मुक्त करने पर विवश किया जा सकता है। आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।
" तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा"
मेरे प्यारे युवाओं, ये आज़ादी एक महायज्ञ है और इसमें सभी को यथासंभव आहूति देनी ही होगी। तो आओ, आगे बढ़ो और हमारे साथ इस महायज्ञ में जुड़ों।
भोला- लेकिन हम तो अभी बच्चे हैं! हमारे अंदर कितना खून होगा? क्यों महेश होगा मेरे अंदर एक सेर खून? हाँ इतना तो ज़रूर होगा…! तो तय रहा सुरेश भैया मैं अपना पाव सेर खून देने के लिए तैयार हूँ। लो निकाल लो (मुट्ठी बाँध कर हाथ आगे बढ़ाते हुए) लेकिन सुई आराम से घुसाना, वैसे तो मैं बहुत बहादुर हूँ। बस, इस दवा वाली सुई से डर लगता है।
(उसकी बात सुनकर सारे जोर से हँसते हैं और भोला और ज्यादा भोला चेहरा बनाकर उनको देखता है।)
महेश- बुद्धू, ये खून निकालकर देने की बात नहीं हो रही। तूने वह कहावत नहीं सुनी 'खून पसीने की कमाई' बस ऐसे ही ये आज़ादी भी हमें खून पसीने से कमानी होगी। इसका अर्थ ये है कि हमें मरने मारने के लिए तैयार रहना होगा। तभी तो ये गोरे लोग डरकर हमारे देश से भागेंगे।
शंकर - हाँ, यही बात है और पसीना तो गांधी जी और उनके साथी कांग्रेसी बहा ही रहे हैं। हमें तो क्रांतिकारियों की राह पर चलकर अपने प्राण रूपी लहू की आहुति देनी है।
(भोला पूरी गम्भीरता से उनकी बात सुनता है और समझ जाने के अंदाज़ में सिर हिलाता है।)
गणेश- हमारे गाँव और आसपास के क्षेत्र में भी कुछ लोग हैं जो नेताजी के विचारों से सहमत हैं और अपनी-अपनी तरह से अंग्रेजों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम लोगों को उनसे संपर्क करके उनके दिशानिर्देशों में काम करना चाहिए या फिर किसी तरह सम्पर्क जुटाकर आज़ाद हिन्द फौज से जुड़ना चाहिए तभी हमारा आज़ादी की लड़ाई का संकल्प साकार रूप ले पायेगा और लोग हमें जानेंगे।
भोला- बात ठीक है गणेश भाई की, ऐसे भी हम तो बच्चे हैं। हमें अपने साथ एक मार्गदर्शन करने वाला बड़ा आदमी भी चाहिए जो हमें सही और गलत की सलाह दे सके।
सुरेश- लोग हमें जाने या ना जाने गणेश किन्तु हमने अब आज़ादी के ये अपनी आहुति देने का संकल्प ले लिया है। अब हमने अपने तरीके से काम करना शुरू भी कर दिया है। और जहाँ तक किसी बड़े का सवाल है तो मुरारी काका तो हैं ही हमारे साथ। उनके कुछ क्रांतिकारियों से भी सम्पर्क हैं। वे बता रहे थे की कई बार क्रांतिकारी लोग अंग्रेजों से छिपने के लिए इस गौशाला का सहारा लेते हैं। मुरारी काका अपनी सेवा इसी रूप में दे रहे हैं कि वे क्रांतिकारियों को यहाँ सुरक्षित शरण देते हैं और उनके भोजनादि की व्यवस्था करते हैं। उन्होंने मुझे कहा था कि आज कुछ क्रांतिकारी लोग यहाँ आने वाले हैं। मैंने आज तुम सभी को इसीलिए यहाँ बुलाया है ताकि तुम लोग भी उनसे मिल सको और आज मैं उनसे हम लोगों को भी उनके साथ शामिल करने की प्रार्थना करने वाला हूँ। तुम लोग भी इसमें मेरा साथ देना, उन्हें पूरा भरोसा होना चाहिए कि हम लोग पूरे मन से इसके लिए तैयार हैं।
(सभी एक स्वर में बोलते हैं।)" हम सभी तैयार हैं, हम देश की आज़ादी के महायज्ञ में अपने खून की आखिरी बून्द तक की आहुति देने को तत्पर रहेंगे।"
(तभी किसी के कदमों की तेज आवाज आती है मानो कोई तेज़ी से दौड़कर आ रहा हो। सभी बच्चे झपटकर चारा पानी और सफाई में लग जाते हैं मानो सभी गौशाला में काम करने वाले सेवक हों। मुरारी बदहवास दौड़ता हुआ इनके पास पहुँचता है।मुरारी एक कमज़ोर शरीर वाला छोटे कद का काला से व्यक्ति है उसने आधी धोती को कमर में बांध रखा है, ऊपर नङ्गे बदन है। उसके सिर पर एक अंगोछा बंधा हुआ है और हाथ में लाठी पकड़ी हुई है।)
सुरेश- क्या हुआ काका आप इतने परेशान क्यों दिख रहे हो? सब ठीक तो है?
मुरारी- गज़ब हो गया बच्चो, हमारे क्रांतिकारियों की किसी ने मुखबिरी कर दी। तीन लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया और अब बाकियों की तलाश में जगह-जगह छापेमारी हो रही है।
महेश- क्या, मुखबिर का पता लगा?
मुरारी- पता तो नहीं लेकिन लोगों को सुबहा है कि रायबहादुर ही इस मुखबिरी के लिए जिम्मेदार है। पर किसी के पास भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रायबहादुर ही मुखबिर है।
गणेश- बात ठीक ही है सुरेश भाई, क्योंकि रायबहादुर अंग्रेजों का खास आदमी है। वह उनका नमक खाता है तो उनकी वफादारी तो ज़रूर निभाता होगा।
सुरेश- ठीक है काका आप जाओ और आसपास नज़र रखो, अगर कुछ भी असुरक्षित लगे तो कोयल की आवाज करके हमें सचेत कर देना।
मुरारी- ठीक है बच्चों लेकिन जो भी करना पूरी सावधानी से करना क्योंकि अब अंग्रेजों की सतर्कता इस क्षेत्र में बढ़ गयी है।
महेश - आप चिंता ना करें काका जी हम सावधान रहेंगे।
(मुरारी धीरे-धीरे चला जाता है। बच्चे फिर अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं।)
शंकर- भाई सुरेश, अगर ये मुखबिर ना होते तो हम लोग कबके इन गोरों का मुँह काला करके भारत से बाहर भगा चुके होते। लेकिन, क्या करें इस मुखबिरी के चक्कर में कितने ही क्रांतिकारी पकड़े जाते हैं और फाँसी चढ़ा दिए जाते हैं। ये मुखबिरी करने वाले बिके हुए लोग चन्द सिक्कों के बदले अपनी माँ का आँचल बेचने में भी परहेज नहीं करेंगे। उसपर ये दुःख की लोग केवल इनपर सन्देह ही करते हैं। कोई भी पक्के विश्वास से किसी भी मुखबिर को पकड़कर कभी उसे सजा नहीं देता।
भोला- (जो बहुत देर से शान्त बैठा सारी बात सुन रहा था-) ये मुखबिर कौन होता है भाई?
महेश- मुखबिर वो मुआ होता है जो किसी की चुगली करके उसकी खबर उसके दुश्मनों को देता है। जैसे कि किसी मुखबिर ने हमारे छिपे हुए क्रांतिकारी साथियों की खबर हमारे शत्रु अंग्रेजों को दे दी और अब अंग्रेज हमारे देश के उन सेवकों को पकड़कर ले गए। अब उनपर मुकदमा होगा और उन्हें फाँसी पर लटकाकर मार दिया जाएगा।
भोला- भाई सुरेश अभी आप बता रहे थे ना कि आजादी के लिए हमें खून देना होगा?
सुरेश- हाँ कहा था।
भोला- तो क्यों ना हम मुखबिर का खून आज़ादी की देवी को चढ़ा दें? क्यों न हम कोई ऐसा उपाय करें जिससे सही-सही पता लग जाये कि कौन मुखबिर है जिसने हमारे आज़ादी के सिपाहियों को अंग्रेजों के हाथ पकड़ा दिया। और फिर हम उसका खून चढाकर आज़ादी के सिपाहियों के रास्ता साफ कर दें?
(सुरेश, महेश, गणेश और शंकर एक स्वर में, "वाह भोला तेरे छोटे दिमाग ने तो बड़ी बात कर दी आज।)
सुरेश- साथियों, अब हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। अब हम एक युक्ति लगाएंगे और मुखबिर को पहचान कर उसे सजा देकर आज़ादी की इस लड़ाई में अपना योगदान सुनिश्चित करेंगे।
(बाकी लोग एक स्वर में) "ज़रूर करेंगे हम मां भारती की शपथ लेते हैं।
शंकर- लेकिन सुरेश भाई इसके लिए कोई सटीक योजना है आपके पास?
सुरेश- हाँ है, आओ बताता हूँ।
(सभी लोग सिर जोड़कर कुछ देर बात करते हैं और फिर मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिलाकर चले जाते हैं।)
दृश्य-2 समय दोपहर का
स्थान जँगल के बीच एक बड़े बरगद से कुछ दूर एक झाड़ी के झुरमुट में।
(सुरेश और महेश बरगद की ओर टकटकी लगाए बैठे हुए हैं तभी चार अंग्रेजी सिपाही कुदाल लिए आते दिखाई देते हैं और बरगद की ओर बढ़ रहे हैं।)
सुरेश- वो देखो गोरे, और हाथ में खोदने के औजार भी। इसका मतलब मुखबिर का संदेह सही था। रायबहादुर ही मुखबिर है। लेकिन, हम लोगों के जाल में पहले इन्हें फँसने दो।
महेश- सही कहते हो भाई, इस स्थान पर क्रांतिकारियों के गोला बारूद छिपे हैं इसकी खबर हम लोगों ने केवल रायबहादुर के ही कान तक पहुंचाई थी और ये गोरे उसे निकालने भी आ गए।
(अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे कि अंग्रेजी सिपाहियों की चीख गूंज उठी और वे चारों लहराते हुए घास-फूंस से ढके एक पुराने कुएं में गिर गए।)
सुरेश- इनकी बलि तो चढ़ गई, अब चलो रायबहादुर का इलाज सोचा जाए।
दृश्य-3
शाम का समय
स्थान गौशाला
(सारे बच्चे अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए हैं।)
गणेश- सुरेश भाई क्या ये स्पष्ट हो गया कि रायबहादुर ही मुखबिर है?
सुरेश- हाँ दोस्तों ये बात सच है कि रायबहादुर ही वह मुखबिर है जिसकी वजह से हमारे देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी पकड़े गए।हमने जँगल में बारूद छिपी होने की बात और जगह की खबर केवल रायबहादुर के कानों तक ही पहुँचायी थी और आज अंग्रेजों के सिपाही उसे खोजने भी पहुंच गए। इस बात से साफ हो गया कि वही इस मुखबिरी का एकमात्र अपराधी है।
महेश-( हँसते हुए) बेचारे अंग्रेजों के सिपाही…! चले थे बारूद खोजने लेकिन हमारे बिछाए जाल में फँसकर मौत के कुँए कर कैद हो गए हैं।
शंकर- लेकिन अब उस रायबहादुर का क्या करना है साथियों ?
सुरेश- (मुस्कुराते हुए) वही जो उसने किया था, उसने क्रांतिकारियों की खबर अंग्रेजों को दी थी और हमने उसकी खबर क्रांतिकारियों को दे दी। मुरारी काका बस आते ही होंगे।
(तभी कदमों की आवाज़ आती है, सभी लोग उठकर काम की और दौड़ने का उपक्रम करते हैं लेकिन सुरेश उन्हें हाथ से इशारा करके रोक लेता है।अभी ये लोग सुरेश की ओर देख ही रहे होते हैं तभी सामने से मुरारी और उनके पीछे 4 आदमी आते दिखाई देते हैं।)
आगन्तुक1- मुझे गर्व है भारत के बच्चों पर। आज आप लोगों ने सिद्ध कर दिया कि भारत का भविष्य सशक्त और बुद्धिमान है। चारों अंग्रेजी सिपाही अपने अंजाम तक पहुँच चुके हैं और आज ही की रात मुखबिर का खून भी आज़ादी पर चढ़ जाएगा।
सभी लोग एक साथ जयघोष करते हैं, "भारत माता की जय। आज़ादी लेकर रहेंगे।
वन्देमातरम।।
✍️ नृपेंद्र शर्मा सागर
ठाकुरद्वारा
जिला मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9045548008
बहुत बढ़िया क्रांति आधारित नाटक... प्रशंसनीय... हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंडॉ अशोक रस्तोगी अग्रवाल हाइट्स राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद
बहुत बहुत आभार
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