मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के साहित्यकार डॉ फहीम अहमद की पांच बाल कविताएं । इन्हीं कविताओं पर उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया था

 


(1) खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !

खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !

टॉफी केक जलेबी छोड़ी,

डलिया में थी मिर्च निगोड़ी,

सोचा लाओ चख लूँ थोड़ी।

मुझसे तीखी भूल हुई ,माँ!

खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !


चखी मिर्च मै लगा उछलने ,

जीभ लगी उफ़ मेरी जलने,

आंसू फ़ौरन लगे निकलने।

कान गरम हैं नाक चुई ,माँ!

खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !


तोता खाए टें -टें बोले,

नहीं मिठाई को मुंह खोले ,

बिना मिर्च पिंजड़े में डोले,

कैसी उसकी जीभ मुई ,माँ !

खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !


गई नहीं अब तक कड़वाहट,

अम्मा दे दो मुझे अमावट,

कान पकड़ता हूँ मै झटपट।

फिर जो मैंने मिर्च छुई,माँ!

खा ली मैंने मिर्च ,उई माँ !


(2) बात करो न मुझसे टैडी!

जब तक आयें मम्मी-डैडी

बात करो न मुझसे टैडी!

अभी  नहीं आईं  हैं मम्मी

कौन गाल पे लेगा चुम्मी।

डैडी देर रात को आते

और सुबह जल्दी हैं जाते।

खाना लगा गई है आया

लेकिन अभी न मैंने खाया।

बैठा यहाँ अकेला गुमसुम

टैडी, सच्चे साथी हो तुम।

तुमको दिल का हाल सुनाऊँ

बीत रही क्या तुम्हें बताऊँ।

अच्छा लगता नहीं अकेले

कोई  साथ  हमारे  खेले।

करे प्यार से मुझसे बातें

खट्टी -मीठी दे सौगातें। 

नहीं चाहिए बिस्कुट-टॉफी

केवल प्यार मुझे है काफी।

मुझे चाहिए वे पल प्यारे

हों माँ -डैडी साथ हमारे।


(3) बरगद बाबा की चिट्ठी

अम्मा आज गाँव से आई

बरगद बाबा की चिट्ठी।

अभी कबूतर लेकर आया

दर्द भरा उनका संदेश।

रो -रो उनकी आँखें भीगी

साँसें चंद बची हैं शेष।

लिख भेजा चिट्ठी पाते ही

जल्दी आना ले छुट्टी।


आँगन वाला नीम कट गया

नही रहा पिछवाड़े बेर।

मुझे काटने में अब वे सब

नही करेंगे बिल्कुल देर।

नही रहा वह पेड़ यहाँ ,थी

जिसकी इमली खटमिट्ठी।


आकर हमे बचा लो विनती

तुमसे करूँ जोड़कर हाथ।

मुश्किल घड़ी आज आई है

आकर तुम दो मेरा साथ।

खेलकूद कर जहां बढ़े हो

तुम्हे बुलाती वह मिट्टी। 


(4) मंकी मियाँ

लो, आ गए मंकी मियाँ,

मत खोलना ये खिड़कियाँ।

अंदर अगर आया अभी

तो डर के भागेंगे सभी।

कोई अगर भागा नही

खों -खों करेगा वह तभी।

बैठा हुआ खिड़की पे ही

देता रहेगा घुड़कियाँ।


आया वह रोशनदान से

बैठा हुआ है शान से।

केले सभी करके हजम

चश्मा उठाया लॉन से।

चश्मा न दे ,खाता रहा

दादा से सौ सौ झिड़कियाँ।


वह दौड़ कर फिर आ गया

चुन्नू की चिज्जी खा गया।

मुन्नू की निक्कर नोच दी

चिंकी की गुड़िया पा गया।

बच्चे सभी नीचे खड़े

अब ले रहे है सिसकियाँ।


(5) डांट-डपट

मुझे नहीं अच्छी लगती है

गुस्से वाली डांट-डपट।

पापा अक्सर बेमतलब ही

कान खींचते मेरे।

उठने में जो देर हुई तो

आंखें रहें तरेरे।

किस थाने में होती गुस्से

की मैं कर दूँ जहाँ रपट।


मम्मी कहतीं शोर करो मत

वरना दूंगी चांटे।

टूट-टूट जाता नन्हा दिल

जब भी दीदी डांटे।

नन्हे मन में नहीं किसी के

लिए ज़रा भी रहे कपट।


लिखने में हो ग़लती टीचर 

जी हो जाते गुस्सा। 

डांट पिलाते सभी मुझी को

यही रोज़ का क़िस्सा।

कोई परी सभी का ग़ुस्सा

ले उड़ जाए छीन -झपट।  


✍️ डॉ फ़हीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी

महात्मा गांधी मेमोरियल पी. जी.कॉलेज

संभल 244302

उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल :8896340824

ईमेल: drfaheem807@gmail.com

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया और प्रशंसनीय बाल रचनाएं... हार्दिक बधाई
    डॉ अशोक रस्तोगी अग्रवाल हाइट्स राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद

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