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पात्र परिचय
1.भगतसिंह -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 23 वर्ष
2.सुखदेव -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 24 वर्ष
3.राजगुरु -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 23 वर्ष
4.जेलर
5.अंग्रेज अफसर
6.छतरसिंह-कारिंदा
7.सरदार किशन सिंह-भगत सिंह के पिता
8.विद्यावती कौर-भगत सिंह की मां
9.कुलतार-भगत सिंह का छोटा भाई
सूत्रधार - सांडर्स की हत्या एवं असेंबली में बम विस्फोट के अपराध में दफा 121,दफा 302 के तहत फांसी की सजा! सजायाफ्ता कैदी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु लाहौर की जेल में बंद हैं । पूरे देश में इन को दी जाने वाली फांसी की सज़ा के विरोध में कोहराम मचा हुआ है जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ी हुई है।
दृश्य-1-
(लाहौर जेल का गेट जहां पर भगत सिंह के माता-पिता और छोटा भाई मिलाई करने आते हैं)
कुलतार सिंह- सतश्रीअकाल! प्राह जी
(भगत सिंह कुलतार सिंह के सर पर हाथ फेरता है)
भगत सिंह- बाबूजी आपकी बहुत याद आ रही थी!
सरदार किशन सिंह- क्यों? क्या हुआ पुत्तर?
भगत सिंह-मैंने जो ढेर सारी चिट्टियां आपको लिखीं उनमें से कुछ ने आपका दिल दुखाया होगा!मुझे माफ़ कर देना!
सरदार किशन सिंह- ओए ऐसा मत कह पुत्तर तेरे जाने के बाद वो चिट्ठियां तो मेरे पास कीमती खजाने की तरह हैं तेरे जाने के बाद उन्हीं के सहारे तो जिऊंगा मैं ।
(यह सुनकर छोटा भाई कुलतार रोने लगता है!)
भगत सिंह- ओए कुलतार तू रो रहा है देख मैं तो बेटे का फर्ज निभा नहीं पाया ,मेरे जाने के बाद तूने ही तो बेटे का फर्ज निभाना है मां बाबूजी की सेवा करनी है तुझे हौसला रखना है। मुसीबतों से घबराना मत!
कुलतार सिंह- जी प्राह जी।
भगत सिंह- मां नहीं आई?
सरदार किशन सिंह- वह बाहर खड़ी है मैं जाऊंगा तो आएगी पर अभी तो मेरा ही मन नहीं भरा...
(दोनों चले जाते हैं मां मिलाई करने आती है)
विद्यावती कौर -क्या हुआ बेटा ?आज तू बड़ा उदास लग रहा है ?.
भगत सिंह- कुलतार की आंखों में आसूं देख कर बड़ा दुख हुआ मां एक कसक रह गयी!
विद्यावती कौर -छोटा है समझता नहीं कि उसका वीर जी कितने ऊंचे मकसद के लिए कुर्बानी दे रहा है!(निस्वास छोड़कर )बेटा मरना तो एक दिन हम सबको ही है लेकिन मौत ऐसी हो जिसे सब याद रखें!
भगत सिंह- लेकिन मां, एक कसक रह गयी! दिल में जो जज्वात थे उसका हजारवां हिस्सा भी मैं देश और इंसानियत के लिए पूरा नहीं कर पाया!
विद्यावती कौर -सब कह रहें कि ये हमारी आखिरी मुलाकात है, ...पर आज तो ३ मार्चं ही है अभी तो बहुत दिन पड़े हैं।....आज के बाद मैं तुझे कभी नहीं देखूंगी?
भगत सिंह- मैं दुबारा जनम लूंगा मां! अंग्रेजों के बाद जो उनकी कुर्सियों पर बैठेंगे वह भी हमारे मुल्क को बहुत तकलीफ़ पहुंचायेंगे मैं दुबारा जन्म लूंगा मां ! मैं वापस आऊंगा!
विद्यावती कौर- लेकिन, मैं तुझे पहचांनुगी कैसे?
भगत सिंह- तेरे बेटे के गले पर एक निशान होगा मां तू पहचान लेगी!
विद्यावती कौर -जाने से पहले मैं कुछ सुनना चाहती हूं! ... भगत सिंह : इंकलाब जिंदाबाद! इंकलाब जिंदाबाद!!... इंकलाब जिंदाबाद!!!
(भगतसिंह की मां चली जाती है
दृश्य-2
(लाहौर जेल की कालकोठरी, जहां भगत सिंह,सुखदेव, और राजगुरु एक साथ बैठे हुए हैं।)
राजगुरु-यार भगत ! मां मिलकर गई थी बहुत रो रही थी मैंने कहा शहीद की मां को रोना नहीं चाहिए पर मां का कलेजा कब मानता है!....
भगत सिंह-
दीदार करने को,
ये दिल बेकरार है"
"ऐ मौत जल्दी आ! ,
हमें तेरा इन्तजार है।
हमारा निर्णय सही है हमें अंग्रजों से फांसी से माफी नहीं चाहिए हमारा देश तभी जागेगा जब हम हंसते हंसते फांसी पर झूल जाएंगे!
सुखदेव--सही कहा भाई फांसी से स्वतंत्रता के लिए देश में बड़ा संग्राम छिड़ जाएगा और इस प्रकार हमारी भारत माता को इन फिरंगियों से आजादी मिल जाएगी।
(तीनों मिलकर गाते हैं--)
"वक्त आने दे बता देंगे ,
तुझे ए आसमां !
हम अभी से क्या बताएं
क्या हमारे दिल में है!
सरफ़रोशी की तमन्ना ,
अब हमारे दिल में है।......"
दृश्य 3
23 मार्च शाम का समय
(तभी छतर सिंह आता है और गीता का गुटका भगत सिंह को देता है )
छतर सिंह--लो सरदार जी इसे पढ़ लो! परमात्मा को याद करो!
भगत सिंह---अरे छतरसिंह जी परमात्मा तो हमारे दिल में है अब इसे लेकर क्या करेंगे जब वह हमारे अंदर है तो उसे क्या याद करना"? "आज क्या तारीख है?"
छतर सिंह--"23 मार्च!"
भगत सिंह--"कल क्या तारीख है?"
छतर सिंह-"अरे बेटा ! कल तो बहुत दूर है,पर तू घबरा मत सब ठीक हो जायेगा,।
भगत सिंह -फिर छतर सिंह जी आप तो इतने सालों से जेल में हो आपने तो न जाने कितने लोगों को फांसी चढ़ते हुए देखा है, आप क्यों घबरा रहे हो ? आपके सामने मेरे जैसे जाने कितने आए कितने गए?
छतर सिंह - "नहीं बेटा ! तेरे जैसा न कोई आया न कोई आएगा !"
(तभी जेल में अंग्रेज ऑफिसर का प्रवेश होता है...)
अंग्रेज अफसर -(जेलर से) "भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की आज ही फांसी होनी है। फांसी की तैयारी करो! अंग्रेजी सरकार का हुक्म है!"
जेलर--"मगर सर फांसी तो कल 24 मार्च को होनी थी ऐसा क्यों किया जा रहा है?"
अंग्रेज अफसर-"आज पूरे देश के लोग रात को सोएंगे नहीं सुबह होते होते जेल के फाटक के बाहर इकट्ठे हो जाएंगे आन्दोलन करेंगे और भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव की अर्थी के साथ जुलूस निकालेंगे अंग्रेजी गोरमेंट इस बात के लिए तैयार नहीं है! इससे सिक्योरिटी को बहुत बड़ा खतरा हो सकता है! इसलिए फांसी आज ही दी जानी है!"
जेलर-"सर क्या मतलब ? भगत सिंह मरने के बाद भी सिक्योरिटी के लिए खतरा हो सकता है!परंतु यह तो सरासर अन्याय है सर! ऐसा नहीं होना चाहिए सर यह तो गैरकानूनी होगा..! हिस्ट्री में कभी ऐसा नहीं हुआ!"
आपको पता है गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हुए समझौते के अनुसार तो भगत सिंह को रिहा कर देना चाहिए था परंतु ऐसा हुआ नहीं..... यह अन्याय है आप लोगों ने कभी चाहा ही नहीं कि भगत सिंह को रिहा कर दिया जाए नहीं तो आप लोग भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु को बचा सकते थे!
अंग्रेज अफसर- "यह हमारा कानून है जब चाहे तोड़ मरोड़ सकते हैं तुम कौन होते हो? तुम अंग्रेजी सरकार के नौकर हो जो कहा जाए वही करो!"
जेलर- "बिल्कुल सही कहा सर आपने ठीक है सर मैं नौकर हूं!" "छतर सिंह ! भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव के अंतिम स्नान की तैयारी करो! उनको आज ही फांसी होनी है!"
छतर सिंह- "अरे सरकार क्या? क्या कह रहे हो? फांसी 24 मार्च की शाम को दी जानी थी !एक दिन पहले 23 मार्च को ही आखरी दिन तो मां-बाप का दिन होता रिश्तेदारों के मिलने दिन होता है!"
..... मिलने के लिए, कल वो लोग मिलने आएंगे तो क्या अपने अपने लोगों को आखिरी बार देख भी नहीं सकेंगे? क्या लाशों से मिलेंगे? ऐसा मत करो सरकार यह अन्याय है ऊपर वाले से डरो!.."..
अंग्रेज अफसर -"अरेस्ट हिम!"
(पुलिस वाले उसे पकड़ने लगते हैं)
छतरसिंह- (चीखता है... चिल्लाता है..... गालियां बकता है) तुम अंग्रेजो का सत्यानाश हो!.... फिरंगी गोरों तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा !.... सालो तुमने बहुत अन्याय किया है कमीनों तुम्हें हमारा भारत छोड़कर जाना होगा!.... कहीं ऐसा होता है जैसा तुमने किया?
(पुलिस वाले छतर सिंह को घसीटते हुए ले जाते हैं।)
जेलर- ( भगत सिंह से)- "तैयार हो जाओ फांसी का हुक्म हो गया है !"
भगत सिंह-(किताब के पन्ने पलटते हुए) एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो लेने दो! वह लेनिन की पुस्तक पढ़ रहे थे.... दो पन्ने शेष रह गए हैं पढ़ लूं...अच्छा चलो ! छोड़ो फिर कभी सही!...."
(भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तैयार होकर निकलते हैं !
फांसी के लिए गीत गाते झूमते हुए चलते हैं---)
अर्थी जब उठेगी शहीदों की ....ओ.....ओ
ऐ वतन वालों तुम सब्र खोना नहीं....
हंसते हंसते विदा हमको कर देना
आंसुओ से आंखें भिगोना नहीं....!
इतना वादा करो जब आजादी मिले
उस समय तुम हमें भूल जाना नहीं...
पार्श्व में रुदन का संगीत गूंजने लगता है...
नाचते गाते हुए फांसी के फंदे तक चले जाते हैं
" मेरा रंग दे बसंती चोला माय ए रंग दे बसंती चोला.... आगे बढ़ते हैं !...
आजादी को चली बिहाने,
हम मस्तों की टोलियां!....
( पुलिस वाले उनको आगे ले जाते हैं फांसी के फंदे तक जाते हुए गाने गाते चले जाते हैं अंत में गाते हैं सर सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!....)
जेलर- "भगत सिंह कोई आखिरी ख्वाहिश?"
भगत सिंह- "हमारी आखिरी ख्वाहिश तो आप पूरी कर नहीं सकते हमारे हाथ खोल दीजिए जिससे हम आपस में एक दूसरे से आखरी बार मिल सकें! फिर जाने कब मिलना हो!"
जेलर- "इनके हाथ खोल दो"!
(तीनों के हाथ खोल दिए जाते हैं, तीनों एक-दूसरे से गले मिलकर खूब लिपट लिपट चिपट कर मिलते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं....)
"इंकलाब जिंदाबाद!"
"इंकलाब जिंदाबाद!!"
"इंकलाब जिंदाबाद !!!"
"भारत माता की जय !"
"वंदे मातरम!"
(फिर उनको पकड़ कर पुलिस वाले बलपूर्वक अलग कर देते हैं। तीनों फांसी से पहले फांसी के फंदे को चूमते हैं।सभी के मुंह पर काला नकाब चढ़ा दिया जाता है ,वे ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं)
"इंकलाब जिंदाबाद !"
" इंकलाब जिंदाबाद !! "
( तीनों को फांसी का फंदा लगा दिया जाता है और जेलर के आदेश पर जल्लाद फांसी के तख्ते का खटका खींच देता है 7 बज कर 33 मिनट पर फांसी दे दी जाती है। तीनों की गर्दनें लटक जाती हैं।
नेपथ्य के पीछे से लोगों के चीखने, चिल्लाने रोने की आवाज़ें आने लगती हैं। रुदन का संगीत गूंजने लगता है.... उनका यह बलिदान पूरे देश में हाहाकार बनकर जन-जन को आंदोलित कर देता है।)
विद्यावती कौर: मेरा भगत चला गया... पर तुम ही में से मेरा भगत है कोई ? कौन है ? वह कौन है ? कौन है ?
✍️ अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 82 18825 541
बहुत बढ़िया और प्रशंसनीय क्रांति आधारित नाटक... हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं---डा अशोक रस्तोगी अग्रवाल हाइट्स राजनगर एक्सटेंशन गाजियाबाद
बहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंबहुत अच्छा कथानक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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