कभी नहीं सोचा था कि मैं कुछ लिखुंगा। एक दिन मुझे अपनी मौसी के घर रुकना पडा। वहां मुझे बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही थी। बेहतरीन सुसज्जित कमरा । साफ सुथरा बिस्तर। अर्दली, काम करने वाले सरकारी और निजि नौकर -चाकर। मौसा जी पुलिस में सी०ओ०थे । सब सुविधाऐं थीं। लेकिन मुझे एक दिन - एक रात काटने में ही परेशानी हो रही थी।
नहाने-धोने व खाने-पीने से लेकर पूरा दिन औपचारिकता में बीता । मौसा-मौसी से थोडी बात ड्राईंग रुम में बैठ कर और थोडा खाने की टेबिल पर हुई। मौसी खुद तो किसी काम में ब्यस्त नहीं थी प्ररन्तु पूरा दिन नौकरों को काम बताने ,उनसे मन-माफिक काम कराने में लगीं रहतीं।घर की चमचमाती साफ सफाई से ही लग रहा था कि वह साफ-सफाई के प्रति कितनी गंभीर व चिंतित रहती हैं। यह सब देख मेरी मनोदशा ही बदल गई। यहां तो चुपचाप पडे रहना ही बेहतर है। पानी का गिलास ,चाय का कप आदि उठाने से लेकर मुंह लगाने और फिर सम्हाल कर रखने तक बडे सलीके व जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड रहा था।
एक तो पुलिस वालों का घर फिर तेजतर्रार मौसी जी बस यह समझो कि उस कोठी की दीवालें,छतें,फर्श,आंगन व गार्डन के फूल-पौधे, घास आदि सब सख्त अनुशासन में थे। अगर थोड़ा बहुत अनुशासनहीन कोई था तो वह 'डिबलू' था। 'डिबलू' मौसा मौसी का प्यारा डोगी था।आदतन भोंकना,लिपटना,चिपटना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था। मौसी शाकाहारी थी प्ररन्तु डिबलू के लिए हर दूसरे दिन नान वेज दिया जाता था।
रात बहुत हो गई थी। अर्ध रात्री में मौसा जी की गाड़ी आती है। मौसा जी घर में प्रवेश करते ही अभी उन्होंने अपनी बर्दी उतारी ही थी कि बाहर से सिपाही हेण्ड सेट लेकर आता है और मौसा जी की बात कराता है। किसी थाने के इंस्पेक्टर का संदेश था । कार और बस में आमने सामने टक्कर में कार सवार सभी चार सवारियों की मृत्यु हो चुकी थी। बस क्या था फिर तो तुरंत उतरी हुई वर्दी मौसा जी के बदन पर आ गई और आनन-फानन में गाडी में बैठ चले गये।
पुलिस के लिए आकस्मिक दुर्घटनाऐं ही उनकी सेवा काल की परीक्षा होती है। अपनी सरकारी सेवा की जिम्मेदारियों को निभाने मैं अपनी दिन-रात की नींद,आराम व चैन को तिलांजली दे देना, यह सब मेंने आज अपनी आंखों से देखा है। भला ऐसे में किसी को नींद कैसे आ सकती है । मैं पहले ही बिस्तर पर पडे पडे करवटें ले रहा था । अब नींद भी गायब हो चुकी थी । मैं अब मेज कुर्सी पर आ धमका था । इस घर में मुझे अनायास मिली बैचेनी व मानसिक उथल पुथल के चलते कागज व पैन लेकर लिखने लगा था। करीब तीन घंटे बाद प्रात: लगभग 3 बजे मौसा जी आ गये। मौसी ने बाहर ही मौसा जी कोअग्नि छूने को दी और उन पर गंगाजल की छींटें डाली क्यों कि वह मृतकों के शवों के पास से आये थे। उन्हें सीधे बाथरुम में नहाने भेज दिया था। नहा-धोकर वह अपने कमरे में लेट गये।
आज अपने एक दिन के प्रवास में अनुशासन और जिम्मेदारियों के बीच पारिवारिक व धार्मिक परम्परा के निर्वाह ने मुझे झकझोर कर रख दिया।
मैं इस एक रात में टुकडों में जिया। किसी के लिये सो रहा था। अपने लिये जाग रहा था। मैं पूरी रात जाग कर यहां ' एक रात की कहानी ' पूरी कर चुका था।
✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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