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सोमवार, 20 अप्रैल 2020
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में रचनाएं प्रस्तुत करते हैं । रविवार 19 अप्रैल 2020 को आयोजित 198 वें वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में 26 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रूहेला, ओंकार सिंह विवेक ,नवाज अनवर खान,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राजीव प्रखर, प्रीति चौधरी, जितेंद्र कमल आनंद, अशोक विश्नोई, मीनाक्षी ठाकुर, रवि प्रकाश, मुजाहिद चौधरी, अशोक विद्रोही, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल, डॉ अशोक रस्तोगी, अनुराग रुहेला, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ पुनीत कुमार, इंदु रानी, डॉ.प्रीति सक्सेना हुंकार, डॉ.मुजाहिद फ़राज़, प्रवीण राही, प्रीति अग्रवाल, अमितोष शर्मा, डॉ अलका अग्रवाल और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचना प्रस्तुत की ।
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता --कबाड़
वाह !बीस साल पहला,
दमकता हुआ गुलाब,
क्या साफ था वह मैदान !
खड़ी थी सफेद गाड़ी,
गेंदा से दमकती एक बाड़ी,
देखा कि बाबूजी कुर्सी पर बैठे हैं,
कुछ कागज और रजिस्टर समेटे हैं,
मैंने पूछा - क्या यह पाठशाला है?
उत्तर मिला- जी नहीं।
और क्या धर्मशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
और क्या मधुशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
हारकर,जी मारकर,
मैं बोला-
बताओ साहब तो क्या है?
फिर वह धीमे स्वर में बोला-
भैया यह ना पाठशाला है,ना मधुशाला,
ना होटल है ना यह धर्मशाला।
मैंने सोचा-तो जरूर यह इमामबाड़ा है,
झट से वह बोला-यह तो कबाड़ा है।
वैसे इसे लोग अस्पताल कहते हैं,
डॉक्टर यहां से लापता रहते हैं।
कबाड़ा सुनकर,
मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई,
तभी एक ऐनकधारी वहां आई,
और अड़ गई।
शायद ये,उस बाबूजी की भी मालिक थी,
मैंने सोचा कि ये इस कबाड़े में क्यों आई?
क्या सचमुच इसे मरीजों की याद आई?
बस धीरे-धीरे मरीजों को देखा,
इधर बेटर ने उसकी तरफ देखा,
इशारा हुआ,
मैं ना समझा कि क्या हुआ?
चाय आई,
पी,
और कुल्हड़ पटका,
घड़ी देखी,
और साड़ी का पल्लू झटका।
रिक्शा खड़ा था,
बैग उनके गले में पड़ा था,
बैठीं और चल पड़ीं।
मरीज सब निराश लौट गए,
कुछ निजी अस्पतालों में गए।
बाकी इंतजार कल का करते रहे,
अपने दर्द को यूं ही सहते रहे।
उनमें शायद हिम्मत नहीं थी,
खिलाफत करने की,
और बगावत करने की।
यह दृश्य सरकारी अस्पताल का था,
जो ना धर्मशाला थी ना इमामबाड़ा था।
मुझे क्रोध उन दीन-दुखियों पर था,
और दुख तो देश की खामियों पर था।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा?
गरीब हाथों को मलता रहेगा।
जाने कब व्यवस्थाओं का रथ आगे बढ़ेगा?
और भारत महानता की सीढ़ियाँ चढ़ेगा?
✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9759285761
रविवार, 19 अप्रैल 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता ---
इस पीड़ा के पीछे
भी कई पीड़ाएँ हैं
हटाकर परदा देख
कितनी शिलाएं हैं।।
अनगिन आवरण
अनगिन आहरण
अनगिन आचरण
ज्यूँ किसी वृक्ष में
पंछी का पदार्पण।।
खो गई एक शिला
राम के इंतज़ार में
तैर गई दूजी शिला
राम के ही प्यार में।।
तन लपेटे भागीरथी
मन समेटे मृगतृष्णा
भोर में लो कैद हुई
पग-पग-पग ये तृष्णा।।
शबरी के जूठे बेर
केवट सम वो भाव
चलो लक्ष्मण चलें
देखें सीता के पाँव।।
किंचित इस घड़ी में
हैं अपावन कुछ दृश्य
किन्तु कुंती कौन यहाँ
मांगे दुःख जो अदृश्य।।
अनजान साया स्याह
तन और मन भेद का
अत्र कुशलम तत्रास्तु
आरोग्य मंत्र वेद का।।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत --- न तुमने देखा ,न हमने देखा कहाँ है ईश्वर,कहाँ खुदा है जो सच है उसको नहीं देखते है प्यार ईश्वर वही खुदा है।
न तुमने देखा ,न हमने देखा
कहाँ है ईश्वर,कहाँ खुदा है
जो सच है उसको नहीं देखते
है प्यार ईश्वर वही खुदा है।
------------------
यही सिखातीं हैं आयतें भी
यही सिखातीं हैं सब ऋचाएं
इसी में रमती है सृष्टि सारी
इसी से महकी हैं सब दिशाएं
सही ठिकाना तुम्हें बताने
कहाँ है ईश्वर , कहाँ खुदा है।
न तुमने देखा----------------
अगर विधाता पिता है सबका
फिरभेद करने का अर्थ क्या है?
अलगअलग मज़हबोंके हक में
किताबें लिखने का फर्ज क्याहै?
तुम्हारे कर्मों का साथ देने
कहाँ है ईश्वर, कहाँ खुदा है।
न तुमने देखा------------------
रचे हैं यदि उसने ग्रंथ सारे
तो दिल से किसने उन्हें पढ़ा है
बताओ हर पंक्तिका अर्थ किसने
समाज हित में स्वयं गढ़ा है
तुम्हारे लालच का भाव पढ़ने
कहाँ है ईश्वर कहाँ खुदा है।
न तुमने देखा--------------------
जिसे चढ़ाते हो सोना - चांदी
क्या उसने आकर कहा किसी से
तुम्हारे पापों का अंत होगा
बताओ उसने कहा सभी से
तुम्हारी जड़ता को दूर करने
कहाँ है ईश्वर, कहाँ खुदा है।
न तुमने देखा--------------------
प्यार सभी के लिए दुआ है
सभी दुखों की यही दवा है
बेमतलब मत लड़ो किसी से
जन्म प्यार के लिए हुआ है
पाखंडों से दूर हटाने
कहाँ है ईश्वर कहाँ खुदा है।
न तुमने देखा--------------------
***********
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन ननंबर 9719275453
शनिवार, 18 अप्रैल 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल ---- गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं । इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।
आखिर कब तक ऐसे मंज़र सहने को मजबूर हैं हम।
कब तक यूं खामोश रहें अब कहने को मजबूर हैं हम ।।
गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं ।
इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।
तुम को जब अपने ही घर में दुश्मन बनकर रहना है।
तर्के ताल्लुक करने को फिर तुमसे अब मजबूर हैं हम ।।
तुमसे खफा होकर ही अपने रिश्ते नाते तोड़ेंगे ।
दुनिया के ताने सुनने को बेबस और मजबूर हैं हम ।।
रिश्ता तोड़ें, मिलना छोड़ें सब करना मजबूरी है।
दूर तुम्हारे साए से भी रहने को मजबूर हैं हम ।।
क्यों करते हो नादानी,ये कौन तुम्हें सिखलाता है ।
राह दिखाने सबक सिखाने तुम को अब मजबूर हैं हम ।।
हम भी सलामत कौम सलामत मुल्क सलामत रखना है ।
अपने ईमां की खातिर मर जाने को मजबूर हैं हम ।
हम हैं मुजाहिद मुल्क से नफ़रत हमको तो मंजूर नहीं ।
मुल्क पे जान लुटाने को ही फिर सारे मजबूर हैं हम ।।
✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर ,अमरोहा
मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी का गीत---- घरवाली का रौब दिखाना जाने क्या क्या कहना । अब आगे क्या होगा भैया पूछ रही है बहना।। छज्जा सूना सूना लगता पड़ोसन के बिन । याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन
घर में रहकर घरवालों से कटे कटे यह दिन
घरवाली का रौब दिखाना जाने क्या क्या कहना
अब आगे क्या होगा भैया पूछ रही है बहना
चौबीस घंटे खबर एक ही और लाशों की गिनती
सड़कों पर सन्नाटा गूंजे करे पुलिस से विनती
छज्जा सूना सूना लगता पड़ोसन के बिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
बार-बार चेहरे को ढकना और हाथों को धोना
सारी दुनिया कोस रही है कैसा भला कोरोना
कोस रहे थे सभी चीन को कैसी करी शरारत
रामायण से शुरू हुआ दिन और रात महाभारत
दिन तो गुजरा इधर-उधर में राते तारे गिन गिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
जो जैसा था वहीं रुका, रुका ना वक्त का पहिया अपनी-अपनी जान बचाते क्या मैया क्या भैया
बुझे- बुझे से चेहरे दिखे चौपट हुए सब धंधे
जगह जगह पर पिटते दिखे आंखों वाले अंधे
दहशत में हर कोई घिरा था खुशहाली गई छिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
जितने विकासशील देश थे देख रहे शमशान
खाली जगह नहीं दिखती ऐसे कब्रिस्तान
लाशों पर लाशें गिरती थी ऐसा हुआ धमाका
बड़े-बड़े दौलत वाले भी करते दिखे फांका
सारी दुनिया विस्मित हो गई देखकर ऐसा जिन्न
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
चौदह दिन तक रहे अकेले नहीं काटते मच्छर
ऐसा रोग लगा मानव को भाग रहे सब डरकर
चमगादड़ भी नहीं दिखती, रहे जानवर भूखे
पीने वाले भी सच मानो फिरते सूखे-सूखे
देख रहे थे सभी जानवर हुआ आदमी भिन्न
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
पति बेचारा वक्त का मारा मन ही मन झुंझलाता
और बच्चों का रौब दिखाना उसे तनिक ना भाता लॉकडाउन में हुआ लॉक था आपस में थी दूरी
दिल के अरमां दिल में घुट गए ऐसी थी मजबूरी
हाथों को साबुन से धोते क्या लक्स क्या रिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...
✍️ फक्कड़ मुरादाबादी
मोबाइल फोन नंबर - 94102-38638
दुर्लभ चित्र : रामपुर के साहित्यकार जितेंद्र कमल आनन्द द्वारा सम्पादित काव्य संकलन "गुंजन की गुंजार " (1993) का लोकार्पण करते हुए साहित्यकार एवं पूर्व जिला सूचना अधिकारी रामपुर स्मृति शेष दिवाकर राही जी । लोकार्पण समारोह महल सराय , किला रामपुर में हुआ था। माइक पर हैं श्री जितेंद्र कमल आनन्द जी । यह चित्र हमें श्री आनन्द जी द्वारा उपलब्ध हुआ है ।
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
वाट्सएप समूह 'जागरूकता गोष्ठी' की ओर से मुरादाबाद में रविवार 12 अप्रैल 2020 को कोरोना जागरूकता पर ऑन लाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसमें मुरादाबाद के 17 साहित्यकारों सर्वश्री अंकित गुप्ता अंक, मोनिका मासूम , मनोज मनु , मयंक शर्मा, हेमा तिवारी भट्ट , राजीव प्रखर, डॉ अर्चना गुप्ता, जिया जमीर, योगेंद्र वर्मा व्योम , डॉ पूनम बंसल, शिशुपाल सिंह मधुकर, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ मीना नकवी, डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, मंसूर उस्मानी और यश भारती माहेश्वर तिवारी ने रचनाओं के माध्यम से कोरोना महामारी के प्रति जागरूकता का संदेश देते हुए सभी से आवश्यक निर्देशों के पालन करने की अपील की। अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि प्रख्यात शायर मंसूर उस्मानी रहे । कार्यक्रम का संचालन ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर द्वारा किया गया। प्रस्तुत हैं सभी साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत रचनाएं ------
हरेक सम्त ये कैसा अज़ाब तारी है
सभो के चेहरे पे' दहशत का रक़्स जारी है
कभी ये शह्र इक बच्चे-सा खिलखिलाता था
ये क़हक़हों के उजालों से जगमगाता था
और अब ये हाल है सन्नाटे शोर करते हैं
कभी जो भीड़ थे वो भीड़ से ही डरते हैं
खड़े हैं दूर सभी, ख़ामशी को टाँगे हुए
है एहतियात कि साया भी न साये को छुए
हवा के हाथ में पोशीदा एक ख़ंजर है
नए बदन को तरसती वबा का मंज़र है
हरेक साँस ठिठकती हुई-सी चलती है
क़ज़ा हवा का बदन ओढ़कर निकलती है
बुना है जाल ये किसने समझ नहीं आता
अब और क़ैद घरों में रहा नहीं जाता
किसी को अपनी बलन्दी पे' कुछ समझते न थे
हम अपने सामने क़ुदरत का मोल रखते न थे
पर अब यही है मुनासिब कि हम घरों में रहें
किसी शरीर की नादानियों का दर्द सहें
वैसे इस दर्द में पिन्हां हैं सबक़ जीवन का
यही है वक़्त कि सब रक्खें ध्यान प्रियजन का
✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
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हमने सीखा है मुश्क़िल हालातों में खुश होना
बंद करो यह बात-बात पर कोरोना का.. रोना
छोटा-सा यह एक वायरस
पिस्सु जैसा प्यारे
इस को मूँह लगाकर कचरा
इज्जत का कर... ना रे
मुंह पर मास्क लगाकर निकलो
जब भी निकलो बाहर
हाथों को हर बीस मिनट में रगड़ रगड़ कर धोना
सीखा..….....
मेहनत से यह घर जोड़ा
अब कुछ दिन घर में रह लो
कर लो मात पिता की सेवा
बच्चों के संग खेलो
मन को शांत रखो , तन कस
लो ..कर लो थोड़ी कसरत
साफ-सफाई करके घर का स्वच्छ रखो हर कोना
हम ही नहीं अकेले
सारी दुनिया पर संकट है
इतना रखो यकीन समस्या
का समाधान निकट है
लो संकल्प ,करो सहयोग,
धरो धर्य और संयम
जीतेंगे हम एक दिन हमसे हारेगा कोरोना
✍️ मोनिका मासूम
मुरादाबाद 244001
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क्यों न ऐसे भी बुरी साअतें टाली जाएं,
अब दुआओं से भी तरतीब निकली जाएं,,
लाख रुपयों की दवाएं जहां न काम करें,
ग़ैर मुमकिन है दुआएं वहां खाली जाएं,,
----------------------------------
सोचो फिर क्या होगा भाई?
अगर जान पे खुद बन आई?
फिर इसका उपचार नहीं है,
बचें रहे बस यही भलाई ,,
कोरोना से दम घुटता है ,
इससे मौत बड़ी दुखदाई,,
एक तरीका इसे मात का,
बस बचाव में रखो सफाई,
बहुत ज़रूरी अगर निकलना,
फॉलो रूल करो सब भाई,,
जात पात ये नहीं देखता,
थोड़ी भी मत करो ढिलाई ,,
घर के लोग भी साथ न होंगे,
हालत गर संदिग्ध बताई ,,
घर से बाहर मत ही निकलो,
जिससे खानी पड़े पिटाई,,
✍️ मनोज 'मनु'
मुरादाबाद 244001
-----------------------------------------------------------
देखकर अपनी उड़ानें और सुख से प्रीत,
लांघकर भी रेख को हम थे नहीं भयभीत।अंध मद में दौड़ते थे त्यागकर सब धीर,
सामने था, न दिखा प्रकृति के नयन का नीर।
वेदना होती मुखर तो गूंजता है नाद,
संकटों में हैं घिरे तब कर्म आये याद।
रोग ने हमको दिया है संतुलन का मंत्र,
बाह्य जीवन देखते वे और हम परतंत्र।
स्वच्छ नभ में हो रही अब लालिमा सी प्रात,
हैं विचरते मग्न होकर जीव औ जलजात।
साफ है वातावरण कोई नहीं है शोर,
कूजती कोयल बताती है कि आई भोर।
पुष्प के अधरों पर खिली मंद सी मुस्कान,
और भ्रमरा छेड़ता है प्रीत की रस तान।
नीर नदियों का हुआ है आज ऐसा शुद्ध,
देख छवियां चाँद, तारे हो रहे हैं मुग्ध।
अब बताओ कि ये विपदा, या कि है वरदान?
लुप्त होती प्रकृति को जिसने दिया सम्मान।
है समझ आया अभी तक रोग का जो सार,
चेतने से ही बचेगा यह सकल संसार।
✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
---------------------------------------------------
संकट की आये घड़ी,हो ना वक्त मुफीद
माँ बेटी के रूप में,नारी तब उम्मीद।।१।।
कब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।
होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।२।।
जब आहट हो मौत की,रही द्वार खटकाय।
भेदभाव हर भूल के,बढ़ें सभी समुदाय।।३।।
*कोरोना कुण्डलिया(हास्य)*
*कोरोना* ने देख लो,क्या कर दीन्हा हाल।
हुस्न छिपा है *मास्क* में,बन्दा छोंके दाल।।
बन्दा छोंके दाल,सीन बदला है भाई।
नार करे अपलोड,मियां की साफ *सफाई*
*घर* में गूँजे गान,'सनम जी' 'बाबू' 'शोना'
रार हुई घर बंद,कि जब आया *कोरोना*।।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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कोरोना से युद्ध में, यही प्रमुख हथियार।।
जब तक ढीली हो नहीं, कोरोना की पैठ।
सबसे अच्छा है यही, जमकर घर में बैठ।।
कोरोना से जंग में, एक बड़ी दरकार।
मास्क पहन कर ही करें, घर की हद को पार।।
प्राणों पर भी खेल कर, आयी सबके काम।
वर्दी तेरे शौर्य को, बारम्बार प्रणाम।।
-✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 24400
–--------------------------------------------------------
कोरोना का है कहर, जूझ रहा संसार
अनजाने में हो रहे, इसके लोग शिकार
रहो बनाकर दूरियाँ, मुँह पर पहनो मास्क
कोरोना का रोकना, ऐसे हमें प्रसार
सब खुद को कर लीजिये,अपने घर में बन्द
कोरोना का बस यही, रोकथाम उपचार
पानी को करना नहीं, है हमको बर्बाद
हाथों को ये ध्यान रख, धोना बारंबार
हाथों को बस जोड़कर, सबको करो प्रणाम
हाथ मिलाने के नहीं,अपने हैं संस्कार
करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान
आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार
इक दूजे से दूर रह, टूटेगी जब चेन
हो जाएगी पूर्णतः, कोरोना की हार
कोरोना ने दी दिखा, मानव की औकात
धरती नभ भी जीतकर, आज खड़ा लाचार
नीला नभ निर्मल नदी,खिली चाँदनी धूप
कोरोना का ये कहर , लाया नई बहार
कोरोना से लड़ रहे, जो भारत के वीर
साधारण मानव नहीं, ईश्वर के अवतार
कोरोना की मार ने, दिया ‘अर्चना’ वक़्त
चिंताओं को छोड़कर, खुद से कर लो प्यार
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------
'बाहर न निकलो' नारा लगाया भी जाएगा
और घर में रह के ख़ुद को बचाया भी जाएगा
हाथों को धोया जाएगा साबुन से बार-बार
'ऐसा सभी करें' ये बताया भी जाएगा
घर में ही क़ैद रह के कोरोना से होगी जंग
अपने वतन से इसको भगाया भी जाएगा
वैसे तो घर में रहना है लेकिन, ज़रूरतन
बाहर गए तो मास्क लगाया भी जाएगा
ख़ुद हल्का-फुल्का खा के गुज़र की भी जाएगी
थोड़ा सा मुफ़लिसों को खिलाया भी जाएगा
किस ने ये कह दिया कि ये लाज़िम है इन दिनों
फोटो मदद का सबको दिखाया भी जाएगा
जी भर के दोस्तों को लगाऐंगे भी गले
लोगों से फिर से हाथ मिलाया भी जाएगा
कट कर समाज से है बचाना समाज को
मुश्किल ये काम करके दिखाया भी जाएगा
मालिक ने कुछ दिनों को किया है जहां-बदर
लेकिन जहां में लौट के जाया भी जाएगा
हर रोज़ कुछ न कुछ लिखा जाएगा इन दिनों
यह वक़्त यादगार बनाया भी जाएगा
अब फोन पर ही शेर सुनाते हैं हम 'ज़िया'
महफ़िल का लुत्फ़ जल्द उठाया भी जाएगा
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
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एक अजब-सा डर लिखता है
रोज़ नया अध्याय
जग के सम्मुख खड़ा हुआ है
जीवन का संकट
जिसे देख विकराल हो रही
पल-पल घबराहट
कैसे सुलझे उलझी गुत्थी
सभी विवश असहाय
सड़कों पर, गलियों में, घर में
चुप्पी पसरी है
कौन करे महसूस, सभी की
पीड़ा गहरी है
सूझ रहा है नहीं किसी को
कुछ भी कहीं उपाय
आने वाले कल की चिन्ता
व्याकुल करती है
अनदेखी अनचाही दहशत
मन में भरती है
कौन भला छल भरे समय का
समझ सका अभिप्राय
-✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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भूल गया इंसान था कुदरत का उपकार
कुदरत ने कैसा किया देख पलट कर वार
आपदाएं न देखतीं कौन धर्म क्या जात
कोरोना ने दिखा दी मानव को औकात
समय बड़ा बलवान है गहरा इसमें राज
महाशक्ति को ला दिया घुटनों के बल आज
मानवता की त्रासदी ना समझो परिहास
जीवन टीला रेत का करा दिया एहसास
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आओ सब मिल कर करें कोरोना पर वार
जीवन जीने का मिला सबको है अधिकार
सबको है अधिकार रखनी है सावधानी
घर में ही बस रहो बाहर न निकलो जानी
सजग नागरिक बनो आज सबको समझाओ
दूर दूर से ही करें अब नमस्ते आओ
✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
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कोरोना ने कर दिया ऐसा तगड़ा वार
सारे जग में है मचा चहुं दिश हाहाकार
कोरोना के वार से हुए सभी लाचार
चौपट सब धंधे हुए चौपट सब व्यापार
दवा नहीं उपलब्ध है कोरोना की आज
स्वयं बचाव ही है यहां इसका एक इलाज
है सोशल डिस्टेंसिग करना बहुत जरूर
कोरोना मर जाएगा खुद होकर मजबूर
सेनीटाइजर मास्क का करिएगा उपयोग
पास नहीं फिर आएगा कोरोना का रोग
जाएं तो जाएं कहां दीन हीन लाचार
उधर कोरोना घूरता इधर भूख की मार
कुंडलियां
सारा जग अति त्रस्त है कोरोना से आज
राजा हो या रंक हो या हो आम समाज
या हो आम समाज करो ना तुम मनमानी
मानो वे निर्देश कहें जो इसके ज्ञानी
जीतेंगे यह युद्ध यही संकल्प हमारा
देखेगा प्रयास हमारे यह जग सारा
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कोरोना से है मचा चहुं दिश हाहाकार
मगर लोग कुछ देखते इसमें भी व्यापार
इसमें भी व्यापार नियंत्रण नहीं है कोई
बने हुए हैवान यहां मानवता सोई
खुद ही करो बचाव नहीं लापरवाह होना
कई सबक सिखलाएगा यह हमें कोरोना
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
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घर से बाहर न निकलिए साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।
अपना घर परिवार ही है जन्नत । कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।
यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को सिलिए साहिब ।।
कुछ गलती तेरी थी कुछ थी मेरी।
भुलाकर इसे अब चलिए साहिब।।
एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।
जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।
हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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कोरोना की यह महामारी बहुत गम्भीर है।
सारी दुनिया में यह व्याधि काल की तस्वीर है।।
चीन और इटली ने भेजा रोग यह संसार को।
किन्तु भारत फेंक देगा उसके इस उपहार को।।
ले के आये हैं विदेशों से इसे धनवान लोग।
निर्धनों और बेकसूरों को दिये हैं दान लोग।।
आ गया है देश में ,तो कीजिये इसका इलाज।
फ़ासला रखकर ही बच पायेगा यह सारा समाज।।
सेनिटेशन और सफाई का भी रखना ध्यान है।
घर में रहना ही इलाज इसका बडा़ आसान है।।
ये नमाज़े ,ये भजन, ये कीर्तन निज तक रखें।
हर इबादत ,और पूजा का चलन निज तक रखें।।
लाक डाउन का करें पालन कि जीवन है अमोल।
याद रखें लाक डाउन में न आये कोई झोल।।
तोड़नी ज़ंजीर इसकी हम को है हर हाल में।
वरना संभव है समायें काल के हम गाल मे।
इस तरह हो जायेगा इस रोग का निश्चित दमन।
लड़़ रहें हैं जो करोना युद्ध से उनको नमन।।
वक़्त है जिन पर कठिन उन कामगारों को सलाम।
डाक्टर , नर्सेज़, पुलिस और पत्रकारों को सलाम।।
✍️ डॉ मीना नकवी
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जो रोये वो रोये हमको
कैसा रोना
चुपके-चुपके बात फियांसी फै़न कर रहे
दिल मसोस घरवाले भी
हैं देखभर रहे
अनुपम है कोरोना की
वर्चुअल फै़न्सिंग
अच्छे दिन आयेंगे
रख सोशल डिस्टैंसिंग।
✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर -९७६१३०२५७७
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मुक्तक
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बहुत काम की बेहद सस्ती ,
भिजवा दो ये बस्ती- बस्ती ।
बाप भगेगा कोरोना का ,
एक डोज़ पी देखो मस्ती ।।
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पांच दोहे
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खालीपन शैतान घर,
रक्खें खुद को व्यस्त।
स्वस्थ रहें इसके लिए,
रहिए मन से मस्त।।
सावधानियां कुछ बरत,
घर में रहें सतर्क।
कोरोना का आप ही,
समझो बेड़ा ग़र्क।।
समझो लाॅकडाउन को
बढ़िया एक किताब।
हुए सभी नुकसान का,
पढ़ - पढ़ करो हिसाब।।
चेत - चेत चेताइये ,
जो जन मिले अचेत।
कोरोना से जंग में ,
चलो चलें समवेत।।
मास्क पहर कर राखिए,
खुद को गज भर दूर।
इतने से हो जाएगा ,
कोराना काफूर।।
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और अंत में--आज की बात
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घर सफाई कोरोना,
और साथ में मास्क।
आन लाइन पूरा हुआ
घर पर बैठे टास्क ।।
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
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बारूद के एक ढेर पे बैठी हुई दुनिया
शोलों से हिफाजत का हुनर पूछ रही है
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जिनका दस्तूर था हर रोज़ सफर में रहना
पड गया उन को भी ए दोस्तो घर में रहना
इस करोना के झमेले से निकल कर देखो
कितना दुशवार है दुनिया की नजर में रहना
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हर रोज़ नई तरह के गम टूट रहे हैं
महसूस ये होता है कि हम टूट रहे हैं। थी जिन के इशारों पे कभी गर्दिशे दुनिया। इस दौर में उनके भी भरम टूट रहे हैं
✍️ मंसूर उस्मानी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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कांपते हैं लोग
दहशत से
पास आती हुई
आहट से
एक ज़हरीली घुटन में
कैद चारों ओर
हो रहीं किलकारियां
सब आज आदमखोर
हर छुअन में दंश सर्पीला
है गुजरता सरसराहट से
थे अभी कल गीत के
जो छन्द सारे लोग
हैं धुएँ की मुट्ठियों में
बंद सारे लोग
अब तक हम सब चले आये
एक जिंदा खिलखिलाहट से
✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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🏵️ प्रस्तुति : डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001
मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर की गजल ---- जां बचाते हुए होते हैं फ़रिश्ते भी शिकार, उफ! ये मनहूस बिमारी नहीं देखी जाती ।
मेरे मौला तिरी मर्ज़ी नहीं देखी जाती
ये जो दुनिया है ये ऐसी नहीं देखी जाती
जां बचाने के लिए मास्क लगाए हुए हैं
लेकिन आँखो की ख़मोशी नहीं देखी जाती
हाथ धोने में कहां कोई क़बाहत है मगर
हाथ से हाथ की दूरी नहीं देखी जाती
सुनी जाती नहीं सड़कों की ये सांय - सायं
और ये सुनसान गली भी नहीं देखी जाती
ऐसा लगता है कि रहता नहीं कोई भी यहां
हम से वीरान ये बस्ती नहीं देखी जाती
पार्क को तकती इन आंखों पे तरस आता है
नन्हीं आंखों की उदासी नहीं देखी जाती
डस्टबिन में से जो चुपके से उठा लेता है
बूढ़े हाथों में वो रोटी नहीं देखी जाती
पिटते मज़दूरों के जत्थे नहीं देखे जाते
भूखे जिस्मों पे ये लाठी नहीं देखी जाती
देखा जाता नहीं मय्यत की ये तदफ़ीन का ढंग
बिना कांधे कोई अर्थी नहीं देखी जाती
है ये मालूम नहीं इसके सिवा कोई इलाज
फिर भी मख़लूक़ ये क़ैदी नहीं देखी जाती
जां बचाते हुए होते हैं फ़रिश्ते भी शिकार
उफ! ये मनहूस बिमारी नहीं देखी जाती
ये नहीं हों तो बपा हशर् कभी का हो जाए
फिर क्यूं ख़ुश हो के ये वर्दी नहीं देखी जाती!
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
बुधवार, 15 अप्रैल 2020
मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
सोमवार, 13 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष डॉ शिवनाथ अरोरा के दो गीत--- ये लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
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