वाह !बीस साल पहला,
दमकता हुआ गुलाब,
क्या साफ था वह मैदान !
खड़ी थी सफेद गाड़ी,
गेंदा से दमकती एक बाड़ी,
देखा कि बाबूजी कुर्सी पर बैठे हैं,
कुछ कागज और रजिस्टर समेटे हैं,
मैंने पूछा - क्या यह पाठशाला है?
उत्तर मिला- जी नहीं।
और क्या धर्मशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
और क्या मधुशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
हारकर,जी मारकर,
मैं बोला-
बताओ साहब तो क्या है?
फिर वह धीमे स्वर में बोला-
भैया यह ना पाठशाला है,ना मधुशाला,
ना होटल है ना यह धर्मशाला।
मैंने सोचा-तो जरूर यह इमामबाड़ा है,
झट से वह बोला-यह तो कबाड़ा है।
वैसे इसे लोग अस्पताल कहते हैं,
डॉक्टर यहां से लापता रहते हैं।
कबाड़ा सुनकर,
मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई,
तभी एक ऐनकधारी वहां आई,
और अड़ गई।
शायद ये,उस बाबूजी की भी मालिक थी,
मैंने सोचा कि ये इस कबाड़े में क्यों आई?
क्या सचमुच इसे मरीजों की याद आई?
बस धीरे-धीरे मरीजों को देखा,
इधर बेटर ने उसकी तरफ देखा,
इशारा हुआ,
मैं ना समझा कि क्या हुआ?
चाय आई,
पी,
और कुल्हड़ पटका,
घड़ी देखी,
और साड़ी का पल्लू झटका।
रिक्शा खड़ा था,
बैग उनके गले में पड़ा था,
बैठीं और चल पड़ीं।
मरीज सब निराश लौट गए,
कुछ निजी अस्पतालों में गए।
बाकी इंतजार कल का करते रहे,
अपने दर्द को यूं ही सहते रहे।
उनमें शायद हिम्मत नहीं थी,
खिलाफत करने की,
और बगावत करने की।
यह दृश्य सरकारी अस्पताल का था,
जो ना धर्मशाला थी ना इमामबाड़ा था।
मुझे क्रोध उन दीन-दुखियों पर था,
और दुख तो देश की खामियों पर था।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा?
गरीब हाथों को मलता रहेगा।
जाने कब व्यवस्थाओं का रथ आगे बढ़ेगा?
और भारत महानता की सीढ़ियाँ चढ़ेगा?
✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9759285761
जबाब आपके पास है कि आज के समय में, सरकारी अस्पतालों की हालत कैसी हैं। अब व्यवस्थाओं में सुधार हुआ है या नहीं।
जवाब देंहटाएंजबाब आपके पास है कि आज के समय में, सरकारी अस्पतालों की हालत कैसी हैं। अब व्यवस्थाओं में सुधार हुआ है या नहीं।
जवाब देंहटाएं