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शुक्रवार, 26 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की कविता-शिक्षक भूखा है । यह प्रकाशित हुई थी मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 7, अंक 7 ,रविवार 12 जनवरी 1969 में .....
बुधवार, 24 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की कृति 'भाव तेरे शब्द मेरे' । यह कृति सन 1959 में व्यास बन्धु प्रकाशन, पचपेड़ा कटघर , मुरादाबाद से प्रकाशित हुई थी। इस की भूमिका प्रख्यात साहित्यकार डॉ हरिवंश राय बच्चन जी ने लिखी है। इस गीत संग्रह में उनके 21 गीत संगृहीत हैं । इसका मुद्रण प्रतिभा प्रेस मुरादाबाद ने किया था ------
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:::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
मंगलवार, 23 मार्च 2021
सोमवार, 22 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की आज 22 मार्च को पुण्यतिथि है । प्रस्तुत है उनका एक गीत ---अनजाने ज्ञान को सुरक्षित रखने में ही, पुरखों का आंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !! यह गीत हमें उपलब्ध कराया है उनके सुपुत्र अतुल मिश्र ने ....
जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही,
यदि स्वांसों का ऋण चुक जाये, तो क्षमा करना !!
आधा ही गायन रुक जाये, तो क्षमा करना !!!!
जीवन भर ये खारे आंसू ही बेचे हैं
सपन मोल लेने को,
कनक कन गला बेचे, मिट्टी के, पत्थर के
रतन मोल लेने को !!
नये पथ बनाने में सुनो, वंशधर मेरे,
कुटिया का तृण-तृण बिक जाये, तो क्षमा करना !!
जब-जब भी पीड़ा से प्राण कसमसाते हैं
गान जन्म लेता है,
जब अपने पथ के ही, पत्थर ठुकराते हैं
ज्ञान जन्म लेता है !!
अनजाने ज्ञान को सुरक्षित रखने में ही,
पुरखों का आंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!
जो कुछ भी गा गये, यहां अनेक चातकगण
मेरा ही क्रंदन था,
यों तो मैं चंदा का चंदन भी छू लेता,
धरती का बंधन का !!
मेरे जीवन भर के कर्ज़ को चुकाने में,
विधवा का कंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!!!
✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र.
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी की रचनाएं ---. ये प्रकाशित हुई थीं मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित प्रदेश पत्रिका के वर्ष 4,अंक 7, रविवार 17 अक्तूबर 1965 में....-
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डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ शिवनाथ अरोरा का गीत ---. यह गीत प्रकाशित हुआ था मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित प्रदेश पत्रिका के वर्ष 4,अंक 7, रविवार 17 अक्तूबर 1965 में....-
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुमन कुमार जैतली का गीत ---जीवन कलिके ..... यह गीत प्रकाशित हुआ था मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित प्रदेश पत्रिका के वर्ष 3,अंक 20,रविवार 25 अप्रैल 1965 में....-
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रविवार, 21 मार्च 2021
वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 21 मार्च 2021 को आयोजित 245 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों रामकिशोर वर्मा, रेखा रानी,डॉ शोभना कौशिक, दीपा पांडेय, राजीव प्रखर, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ पुनीत कुमार, अशोक विद्रोही, अखिलेश वर्मा, वैशाली रस्तोगी,चंद्रकला भागीरथी और सन्तोष कुमार शुक्ल की रचनाएं......
शनिवार, 20 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास का गीत । यह गीत प्रकाशित हुआ था मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 1, अंक 14 ,रविवार 27 जनवरी 1963 में .....
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डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से 20 मार्च 2021 को होली के उपलक्ष्य में ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ पूनम बंसल, श्रीकृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह विवेक, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, जिया जमीर, हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा मासूम, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, दुष्यन्त बाबा और निवेदिता सक्सेना द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ......
मन में थी उठती रही,
रह रह कर जो हूक।
हुरियारे मन सोचते,
अबकी रहे न चूक।।
मन में उठती हूक की
पिय तक गई तरंग।
मुखड़े से पहले खिला
नयनों-नयनों रंग।।
सूखे मौसम को मिली
सरस रंग सौगात।
बूढ़ी बूढ़ी कनखियां
बातों की बरसात।।
रंगों से ठंडी करें,
मद्धम मद्धम आग।
जो सबको निर्मल करे,
आओ खेलें फाग।।
✍️ डॉ. अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
---------------------------------
होली मन से खेल ली
खिलकर आया खेल।
ऊपर हैं सकुचाहटें,
भीतर चलती रेल।।1।।
तन-मन होली खेलते,
निकले इतनी दूर।
वापस मन लौटा नहीं,
कोशिश की भरपूर।।2।।
खेल-खेल सब लौटते,
अपने-अपने द्वार।
सोचें तो, है दीखता,
हुआ प्रेम विस्तार।।3।।
मठरी,बर्फी,सेब की,
रही न तब औकात।
गुझिया जब करने लगी,
मथे दही से बात।।4।।
होली रस्ता प्रेम का,
रखता नहीं विभेद।
इसपर चल होता नहीं,
कभी किसी को खेद।।5।।
होली है त्योहार भी,
जीने का भी मंत्र।
बचे नहीं यदि प्रेम तो,
भटका सारा तंत्र।।6।।
मन से सबने रंग लिए,
हुए उमंगित गात।
तुम भीतर भुनते रहे,
दिन से बोली रात।।7।।
रंगों से तर हो लिए,
लगे पुलकने गात।
कौन कुलांचे मारता,
करने को दो बात।।8।।
हाथों के सौभाग्य ने,
मसले रंग-गुलाल।
अधर फड़कते रह गए,
लगी न उनकी ताल।।9।।
रंग चढ़ों के सामने,
फीके सब पकवान।
रिश्तों की सब गालियां,
होली का मिष्ठान।।10।।
होली की ये मस्तियां,
अद्भुत इनके सीन।
मीठी-मीठी भाभियां,
दीख रहीं नमकीन।।11।।
भाभी के हों भाव या,
फिर देवर के राग।
होली रंग पवित्र हैं,
नहीं छोड़ते दाग।।12।।
सब कुछ जग में प्रेम है,
होली का संदेश।
छोड़ो इसमें देखना,
जाति,धर्म, परिवेश।।13।।
होली पर यूं बोलता,
पानी पीकर रेत।
पकने को गेहूं चले,
हुए सुनहरे खेत।।14।।
होली ने मन कर दिया,
फुलवारी से बाग।
जमकर भीगे तर हुए,
बुझी न मन की आग।।15।।
ब्याहे गये अनेक थे,
क्वारे भी कुछ रंग।
सबमें उठे तरंग थी,
बिना पिये ही भंग।।16।।
प्रदूषण भी आये ले,
औने-पौने रंग।
बैठी मिली पवित्रता,
मचा नहीं हुड़दंग।।17।।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी, मुरादाबाद
---------------------------------------
कान्हा बरसाने मति अइयो,
ऐसी लठामार होरी में,
ऐसी लठामार होरी में,
जा ब्रज की बरजोरी में।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे संग खेलिबे होरी,
बरसाने के छोरा - छोरी,
लै-लै लट्ठ खड़ी सजधज के,
बन हुरियारिन ब्रजकी गोरी,
मेरौ कह्यौ मानि मतिबनियो,
कलाकार होरी में।
रंगै न कोरी चटक चुनरिया,
कंगन झूमर लहंगा फरिया,
हाथ न आवै हुरियारे के,
काहू की चोली घांघरिया,
रह-रह लट्ठ चलावें गोरी,
लगातार होरी में।
टूटै ढाल फूटि जाए हड़िया,
परै लट्ठ ग्वारिन कौ बढ़िया,
भाजें छोड़ि छोड़ि हुरियारे,
रंग भरी मटुकी गागरिया ,
पीपी भंग भूलि जाएं सगरौ,
सदाचार होरी में।
तेरे बिना रंग नाहि भावै,
पर कान्हा तू इत मति आवै,
लै-लै लट्ठ कहें सब ग्वारिन,
घेर लेउ जब कान्हा आवै,
मेरौ मन घवरावै कान्हा,
बार - बार होरी में।
तेरे बिना कौन है मेरौ,
फीकौ - फीकौ लगै सवेरौ,
कोटिक रंग निछावर तोपै,
मैं राधा तू कान्हा मेरौ,
कहूँ न घायल होय हमारौ,
महा प्यार होरी में।
कान्हा बरसाने मति,,,,,,,,
✍️ वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद,उ,प्रदेश
मोबाइल फोन 09719275453
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रंग उड़ाती स्वप्न सजाती लो फिर आई है होली।
छिटक रही चहुँ ओर चाँदनी पूनम जाई है होली।।
फागुन का त्यौहार प्रेम का मन में है विश्वास लिए।
रूठों को हम आज मनाएं एक मिलन की आस लिए।
यादों में भी खूब भिगोती ये हरजाई है होली।।
गोरी की गालों पर लगकर रंग बड़े इतराते हैं।
नीला पीला हरा हुआ है मिल जुल कर बतियाते हैं।।
दिल से दिल की बात कराती अवसर लाई है होली।।
भीग रही है चूनर चोली बुरा न मानो होली है।
देवर भाभी जीजा साली सबने करी ठिठोली है।
रिश्तों की इस बरजोरी से लो शरमाई है होली।।
फूल खिले हैं टेसू के ये सरसों पीली फूल रही।
गन्ने पर गेहूं की बाली इठलाती सी झूल रही।
नफ़रत की जब जले होलिका तब मुस्काई है होली।।
✍️ डॉ पूनम बंसल , मुरादाबाद ,मोबाइल 9412143525
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घनाक्षरी:
बरसाने की ये होली, करें जी कैसे ठिठोली, सभी दिखें एक से ही, करें बरजोरी है।
केश कटी नारियां हैं, नर मूंछ मुंडे हुए,
कैसे जानें लट्ठ लिये, खड़ी कहाँ गोरी है।
जींस टाप धारे हुए, लिपे पुते मुख लिये, ये भी तो पता न चले, छोरा है या छोरी है।
कृष्ण ढूँढते ही रहे, गोपियों ने रंग दिये, मल मल गाल कहें, होरी है जी होरी है।।
हैप्पी होली
गीतिका: बरसाने की होली
बरसाने में गए देखने, होली का हुड़दंग।
जम कर झूमे नाचे, गाये हुरियारों के संग।।
मादकता सी आज भर रहा, होली का ये रंग।
पाँव स्वतः ही लगे थिरकने, मानो पी हो भंग।।
रहे बजाते खूब साथ में, ढोलक और मृदंग।
कृष्ण बने बच्चों में बच्चे, किया खूब हुड़दंग।
छोरा समझ लगाया हमने, कस के जिसको रंग।
जींस टॉप में रही पड़ोसन, हुआ रंग में भंग।।
हुरियारिन के बीच दिखी जब बीबी थामे लट्ठ।
झटपट भगे छोड़कर चप्पल उतर गई सब भंग।।
जोगीया सा रा रा रा रा।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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दीवाली के दीप हों , या होली के रंग,
इनका आकर्षण तभी ,जब हों प्रियतम संग।
रस्म निभाने को गले , मिलते थे जो यार,
अपनेपन से वे मिले , होली अबकी बार।
होली का त्योहार है , हो कुछ तो हुड़दंग,
हमसे यह कहने लगे , नीले - पीले रंग।
महँगाई ने जेब को ,जब से किया उदास,
गुझिया की जाती रही,तब से सखे मिठास।
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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आओ मिल सब गीत गाएं।
भेदभाव छुआछूत भूलकर,
एक सूत्र में सब बंध जाएं ।
प्रेम भाव से सब होली खेलें,
रंग अबीर गुलाल बरसाएं ।
आपस के सब झगड़े भूल,
आज गले से सब लग जाएं।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नंबर 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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मनके सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद ।
पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद ।।
रिश्तो की शालीनता, के टूटे तटबंध ।
फागुन ने जब जब लिखा, मस्ती भरा निबंध ।।
गुझिया से कचरी लड़े, होगी किसकी जीत ।
एक कह रही है ग़ज़ल, एक लिख रही गीत ।।
सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम ।
अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम ।।
तन मन में उल्लास के, फूटे अंकुर देख ।
सबने पढ़े गुलाल के, गंध पगे आलेख ।।
हर चेहरे से हो गई, सभी उदासी दूर ।
मन के भीतर जब बजा, फागुन का संतूर ।।
मस्ती और उमंग वो, आई जब जब याद ।
रंग सारे करने लगे, होली का अनुवाद ।।
फिर से भरने के लिए, रिश्तो में एहसास ।
रंगो की अठखेलियां, जगा रही विश्वास ।।
✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
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मुक्तक
--------
स्नेह-प्रेम-सद्भाव के, सीख सुहाने ढंग।
सच्चे मन से फिर लगा, वही पुराने रंग।
दूर हटा त्योहार से, सभी बैर-विद्वेष,
मर्यादित रहकर मचा, होली का हुड़दंग।।
------------
दोहे
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आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।
गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।
ऐसी भटकी राह से, रंगों की बौछार।
लुकता-छिपता फिर रहा, अब है शिष्टाचार।।
फागुन लेकर आ गया, फिर अपना मृदुगान।
बैर-भाव अब बाँध ले, तू अपना सामान।।
बदल गई संवेदना, बदल गए सब ढंग।
पहले जैसे अब कहाँ, होली के हुड़दंग।।
गुझिया-पारे-पापड़ी, बड़े-समोसे-भात।
सबने जाकर पेट में, मचा दिया उत्पात।।
अपने फ़न में आज भी, प्यारे इतनी धार।
चुपके-चुपके जेब से, कर दें गुझिया पार।।
मरते-मरते भी रहे, मुख पर तेरा नाम।
ऐसी होली खेल जा, मुझसे ओ घन-श्याम।।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
मो. 8941912642
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क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है
अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है
वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में
उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है
अपनी छज्जे से पलट रंग का पानी उस पर
तेरा दीवाना है, दहलीज़ पे आया हुआ है
अगली होली पे तुझे रंग लगाएंगे ज़रूर
पिछली होली से यही ख़्वाब दिखाया हुआ है
अब के होली पे लगा रंग उतरता ही नहीं
किस ने इस बार हमें रंग लगाया हुआ है
यह करिश्मा भी तो होली ने दिखाया है हमें
वो जो रुठा था गले मिलने को आया हुआ है
✍️ ज़िया ज़मीर, मुरादाबाद
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सभी आओ,चलो गाएँ,सुअवसर आज होली है।
छबीली है,रसीली है,असरकर आज होली है।
कहीं भीगी,कहीं सूखी,सजे रंगीन होकर के।
किशोरी हों कि वृद्धा हों, हुईं तर आज होली है।
"अरे जीजा,बुझे लट्टू",सलज ने जाके छेड़ा है।
चिढ़े जीजा,रंगें साली,रगड़कर आज होली है।
खड़े देवर रचे तिगड़म,लगाना रंग भाभी पर,
मगर भाभी,सयानी है,'नहीं घर' आज होली है।
बड़े दिन बाद आयें हैं,पिया जिसके विलायत से,
बहक चलती,मटक हंसती,संवरकर आज होली है
रहे क्यों कैद कमरों में,खिले सब रंग हैं बाहर।
चलो देखो,मशीनों से निकलकर आज होली है
न कोई हो,अलग मुझ से,अलग मैं क्यों दिखाई दूँ।
खिले सब रंग रंगोली,निखरकर आज होली है।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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फाल्गुन पर ऐसा चढ़ा, रंग सियासी यार
सत्ता को लेकर हुई, फूलों में तकरार
लगाने रंग दुनिया को , है निकला चांद पूनम का
नहाकर दूध से निखरा ये उजला चांद पूनम का
किये शिंगार सोलह चांदनी ने दिल लुभाने को
कि बैरी चांदनी के दिल से खेला चांद पूनम का
✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद
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आँखों में गुलाबी डोर,गाल लाल -लाल भए,
होलिया में गोरी देखो,भंग पिलाय रही।
दीखै नाहिं मोहे कछु,जबसे है आयी होली।
भर पिचकारी मोहे,रंग वो लगाय रही ,
नैनन में डूब तेरे ,भीग गये अंग-अंग
फिर काहे डार रंग,तन को भिगोय रही।
होली का खुमार छाया,लाल पीला रंग भाया
देख-देख मुखड़े को ,गोरी शर्माय रही।
खड़ा रह दूर -दूर, पास नहीं आना मेरे
दूँगी तुझे गारी आज ,यही बतलाय रही।
बरसाने की मैं नार,अजब ही चाल मेरी
रंगने से पहले ही, लट्ठ भी बजाय रही।
बरसाय भर -भर ,कोई पिचकारी रंग
भीग गयी चूनर तो ,काहे भन्नाय रही।
फाग में मचल जाये ,मन का मयूर देखो
होलिया में गोरिया ,जिया भरमाय रही।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद ,
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होली आयी होली आयी
गुझिया पापड़ कचरी लायी
आलू चिप्स व मूँग बरी की
देखो घर - घर में है छायी ।
होली आयी......
गरम- कचौड़ी और पकौड़ी
सबने बहुत चाव से खायी
दही बड़े में चटनी मीठी
मुन्नी - मुन्ना को भी भायी ।
होली आयी.....
हरा - गुलाबी नीला - पीला
भर पिचकारी खूब चलायी
पास - पड़ोसी जो रूठे थे
हुई सभी की मेल मिलायी ।
होली आयी.....
✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
-------------------------------------
इस होली साजन आ जाते,
दिल के मैल मिटा लेती मैं।।
उनको अपने रंग रंग लेती ,
या उनके रंग में रंग जाती मैं।।
कैसे विरह की रतिया कटती,
पिया बिना न सुहागिन लगती।
अरे! सखी मांग में सिंदूर लगाते,
उम्र भरको उनकी हो जाती मैं।।
उनके नाम का सुमरिन करती,
मीरा सी गलियों में मारी फिरती।।
अरे! सखी विष प्याला दे जाते,
अमृत समझ उसे पी जाती मैं।।
मैं नलिनी हिम पात की मारी,
विरह अग्नि जल हो गई कारी।
अरे! सखी सिर आंचल दे जाते,
फिर कली बन खिल जाती मैं।।
हीरे-मोती मैं कभी नही माँगी,
कभी न महल-दुमहला चाही।
अरे! सखी कुछ मांग तो करते
जान न्योछावर कर जाती मैं।।
✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद
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✍️निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ ज्ञान प्रकाश सोती की रचना । वह 'ठुंठ' उपनाम से कविताएं लिखा करते थे । प्रस्तुत रचना मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका'के प्रवेशांक रविवार 19 अगस्त 1962 में प्रकाशित हुई थी ।
:::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
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शुक्रवार, 19 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत ---- । यह गीत प्रकाशित हुआ था लगभग 58 साल पहले मुरादाबाद से राज नारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 1, अंक 7, रविवार 30 सितंबर 1962 में .....
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सोमवार, 15 मार्च 2021
रविवार, 14 मार्च 2021
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से रविवार 14 मार्च 2021 को काव्य गोष्ठी का आयोजन
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से रविवार 14 मार्च 2021 को काव्य गोष्ठी का आयोजन जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में किया गया । अध्यक्षता रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार और विशिष्ट अतिथि योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई रहे। संचालन अशोक विद्रोही ने किया।
काव्य गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-
जो बात सुनने में है सुनाने में कहां
जो बात खिलाने में है खाने में कहां।
यूं तो सुख अपने अपने मन का है मगर ,
जो सुख अपने घर में है वह जमाने में कहां।
रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा-
दीप के अभिसार दीपदान वाले
मुझे निम्न स्थानों पर रख दे
मुंडेर ,दहलीज ,देवालय घर की खनोची
जहां की कर्मभूमि हो।।
अशोक विद्रोही ने कहा-
बेटों से बढ़के आज हमारी हैं बेटियां,
हो कोई इम्तिहान न हारी हैं बेटियां।
देता विदा के वक्त कलेजा निकाल के,
बाबुल को अपनी जान से प्यारी हैं बेटियां।।
राम सिंह निशंक ने कहा-
होली तो सब की होली है,
सब खुशी मनाओ होली में।
आओ रूठो को प्यार करें,
फिर गले लगाएं होली में।।
के पी सिंह सरल ने कहा-
बल न गए रस्सी जली, रही ऐंठ भरपूर।
शिथिल अंग तन के हुए,फिर भी है मग़रूर।।
रघुराज सिंह निश्चल ने कहा-
जिंदगी का सफर है बड़ा ही कठिन,
क्यों न ,निश्चल, जियें हम इसे प्यार से।
अशोक विश्नोई ने कहा--
दावत नामें में नहीं वह आदमी !
जो बैठा है भूखा प्यासा
देख रहा है रोटी के टुकड़े पर
लड़ते हुए कुत्तों को!!
ओंकार सिंह ओंकार ने कहा--
ग़मो के बीच में आओ खुशी तलाश करें,
अंधेरे चीरकर हम रोशनी तलाश करें।।
शायर मुरादाबादी ने कहा
उल्टी-सीधी मैं लकीरें खींच रहा हूं,
मैं अपने कल की तस्वीरें खींच रहा हूं।।
सरफराज़ हुसैन फराज़ ने कहा-
किसी की खूबियों पर कब नज़र है।
वह अपनी बस सताइस कर रहे हैं।।
राजीव प्रखर ने कहा-
आहत बरसों से पड़ा रंगों में अनुराग,
आओ टेसू लौटकर बुला रहा है फाग।।
शबाब मैनाठेरी ने कहा--
जाम हाथ आते ही जो उछलने लगते हैं।
ज़र्फ़ उनका नाफिस है मैकसी अधूरी है।।
ताज भोजपुरी ने कहा-
जब कोई अपना दूर होता है
दर्द दिल में जरूर होता है।।
डा एम पी बादल जायसी ने कहा--
न आना है न जाना है ,यह हिला है बहाना है।
हंसते थे कभी हमभी बादल,अब अश्क बहाना है।।
काव्य गोष्ठी में शिवओम वर्मा, रमेश चंद्र गुप्ता, चिंतामणि जी, चौधरी हरपाल सिंह,एवं अन्य कवियों ने भाग लिया। रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ अध्यक्ष राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति ने आभार अभिव्यक्त किया।
:::::::::प्रस्तुति::::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत 12 व 13 मार्च 2021 को दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन
कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कैलाश चन्द्र अग्रवाल के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 8 दिसम्बर 1927 को मुरादाबाद में जन्में कैलाश चन्द्र अग्रवाल के प्रारम्भिक गीतों का प्रतिनिधि संकलन वर्ष 1965 में "सुधियों की रिमझिम में" स्थानीय आलोक प्रकाशन मंडी बांस के माध्यम से पाठकों को प्राप्त हुआ, जिसमें उनकी 1947 ई. से 1965 ई. तक की काव्य यात्रा के विभिन्न पड़ाव समाहित है। चौसठ गीतों के इस संकलन के पश्चात कवि की यात्रा वर्ष 1981 में 'प्यार की देहरी' पर पहुंची। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनके सन 1965 के पश्चात रचे गए 81 गीत संगृहीत हैं । वर्ष 1982 में उनका मुक्तक संग्रह 'अनुभूति' प्रकाशित हुआ, जिसमें वर्ष 1971 से 1981 तक लिखे गए 351 मुक्तक संगृहीत हैं। यह यात्रा आगे बढ़ी और वर्ष 1984 में 'आस्था के झरोखों' से होती हुई वर्ष 1985 में "तुम्हारे गीत -तुम्ही को" गीत संग्रह के माध्यम से हिन्दी साहित्य की गीत विधा के भंडार को भरने तथा छन्दोबद्ध काव्य रचना करने की प्रेरणा देती रही ।वर्ष 1989 में गीत संग्रह "तुम्हारी पूजा के स्वर" पाठकों के सम्मुख प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा आया । इसमें आपके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 तक रचे गये 71 गीत संगृहीत है। अंतिम सातवीं कृति के रूप उनका गीत संग्रह 'मैं तुम्हारा ही रहूंगा' पाठकों के समक्ष आया। इसका प्रकाशन सन 1993 में हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ।इसमें उनके अप्रैल सन 1989 से मार्च 1992 के मध्य रचे 71 गीत संगृहीत हैं। कुल मिलाकर 441 गीतों और 351 मुक्तको के माध्यम से हिन्दी काव्य के भंडार में अपना योगदान दिया है । इसके अतिरिक्त डॉ रामानन्द शर्मा और डॉ महेश दिवाकर के सम्पादन में रीति शोधपीठ द्वारा 'कैलाश चन्द्र अग्रवाल : जीवन और काव्यसृष्टि' पुस्तक प्रकाशित हुई । उन्होंने बताया कि कैलाश चंद अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य भी हो चुके हैं। वर्ष 1992 में कंचन प्रभाती ने कैलाश चंद अग्रवाल के काव्य में प्रणय तत्व शीर्षक से डॉ सरोज मार्कंडेय के निर्देशन में लघु शोध कार्य किया ।तत्पश्चात वर्ष 1995 में उन्होंने डॉ रामानंद शर्मा के निर्देशन में रुहेलखंड के प्रमुख छायावादोत्तर गीतिकार एवं श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीति काव्य का अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण कर पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2002 में गरिमा शर्मा ने डॉ मीना कौल के निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चंद अग्रवाल (जीवन सृजन और मूल्यांकन )शीर्षक से लघु शोध कार्य किया। वर्ष 2008 में श्रीमती मीनाक्षी वर्मा ने डॉ मीना कौल के ही निर्देशन में स्वर्गीय श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीतों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण किया। उनका निधन 31 जनवरी 1996 को हुआ ।।
महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य एवं साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय की अभिव्यक्ति के अपने ढंग के अनूठे रचनाकार हैं ,उनके गीतों की रचनाभूमि उनकी निजी और मौलिक भूमि है ठीक उसी तरह जैसे उनके मुक्तकों की रचना दृष्टि और भावभूमि अपनी है किसी ख़य्याम की रूबाइयों की छाया से मुक्त हिंदी के मात्रा या छान्दस विधान में बंधी रची । उनके गीत लक्षणा या व्यंजना की जगह अभिधामूलक हैं ।सहज संप्रेषणीय ।
हिन्दू महाविद्यालय, मुरादाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानन्द शर्मा ने कहा कि कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने अपनी गीतों की रचना में अपने अनुभूत सुख दुख को ही वाणी दी है यद्यपि इनमें प्रणयानुभूति प्रमुख है, जो जीवन और परिस्थितियों के अनुरूप निरंतर और भव्य स्वरूप प्राप्त करती रही है। उनके गीत उदात्त और मंगलमय हैं। प्रख्यात साहित्यकार डॉ महेश दिवाकर ने कहा - कैलाश जी प्रणय के उन्मुक्त गायक हैं।उनकी प्रणय-भावना मार्मिक और विशुद्ध अनुभूति पर आधारित है। प्रणय-भावना के साक्षात्कार उन्होंने अपने जीवन से बटोरे हैं। वस्तुतः उनकी प्रणय-भावना उनके मानस-मन्थन की उपज है उनकी प्रणय-भावना प्रणय की साहसिक अभिव्यक्ति है, उसमें पौरुष का सशक्त स्वर है तथा वह निराडम्बर और सपाट-बयानी में विश्वास रखती है । केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार कैलाश चन्द्र अग्रवाल अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है । उनका कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है । वह जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं । उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने का मार्ग भी है। आर्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय ,पानीपत में हिन्दी प्राध्यापिका डॉ कंचन प्रभाती ने कहा कि कैलाश जी के गीतों में प्रीति के गंगाजल का सा भाव है। 'कविता' सीधे उनके जीवन से फूटकर आयी है। यह उनके जीवन की अनिवार्यता थी, विवशता थी, यानी उनके जीने की शर्त, जो प्रीति का रूप धारण करके विविध रूपों में फूट पड़ी। वे वास्तव में वे जन-मन को सुरभित करने वाले तथा जीवन-संघर्ष में आस्था वाले कवि थे। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि कैलाश जी के मुक्तक परिवार, व्यक्ति और समाज की मर्यादा के लिए मानक है। छन्द, भाषा, भाव, गति, यति, का दोष कैलाश जी की रचनाओं में नहीं है।भाषा की प्रांजलता आकर्षण भरी है। वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि प्रेम को स्वर देने वाले कवि थे श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल। उनकी अधिकांश रचनाएं विभिन्न परिस्थितियों में प्रेम की व्याख्या करती हुई दृष्टिगोचर होती हैं। उनका प्रेम वासना से बिल्कुल अलग है। वह कोई प्रतिदान नहीं मांगता है। उन्होंने प्रेम के शाश्वत स्वरूप को भी उद्धृत करते हुए प्रेम को भक्ति के साथ जोड़ते हुए प्रेम के आध्यात्मिक पक्ष को भी दर्शाया है। उनकी रचनाओं में कथ्य बिल्कुल स्पष्ट है, भाषा अत्यंत सरल व सुग्राह्य है, शब्दों का चयन, शिल्प व छंदबद्धता के दृष्टिकोण से परिपूर्ण हैं। वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि कीर्तिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रेम और समर्पण के शाश्वत स्वर थे। जितना अच्छा उनका छंद प्रबन्ध है उतना मधुर कंठ के स्वामी भी थे भाषा का प्रयोग सहज सुगमबोधजन्य था । वे प्रणय पुजारी के रूप में एकनिष्ठ व्यक्तित्व थे उनकी रचनाएं मानवीय प्रेम से ईश्वरीय प्रेम की अलौकिक भाव सम्वेदनाओं का मर्म आभासित कराती हैं ।गीतों में करुण वेदना की रागात्मकता का अक्षुण्य दर्शन सर्वत्र व्याप्त है।वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रणय गीतों के संवाहक थे ।वह बहुत ही मृदुभाषी सादगी पसन्द रचनाकार थे।मेरा उनसे परिचय स्मृति शेष श्री दिग्गज मुरादाबादी के माध्यम से हुआ था।फिर कटघर में उनकी अध्यक्षता में मुझे रचना पाठ करने का अवसर मिला , तब मैनें जाना कि अधीर जी के गीतों का कितना बड़ा फ़लक है ।वरिष्ठ कवि आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा कि कैलाश चन्द्र अग्रवाल के गीतों मे जो घनीभूत वेदना परिलक्षित होती है वह वैसी ही है जैसी मीरा के मन में श्रीकृष्ण के प्रेम की थी। उनकी रचनाओं से स्पष्ट है कि उनके लिए प्रेम वही है जो सामान्य जन के दुख की चिन्ता करता हो। रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि उनकी काव्य साधना में वियोग की पीड़ा और कर्तव्य की अभिलाषा के संवेदनशील स्वर हैं। श्रंगार का वियोग पक्ष आपने जिस मार्मिकता के साथ लिखा है ,वह हृदय की वास्तविक वेदना को प्रकट करता है । प्रेम के संबंध में आपका एक-एक मुक्तक सचमुच प्रेम को समर्पण की ऊँचाइयों तक ले जाता है । उनके गीतों में सामाजिक चेतना का स्वर भी मिलता है । चर्चित साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - कीर्तिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल प्रेम और भक्ति के गीतों के समृद्ध रचनाकार थे। कविता को केवल लिखना और कविता को अपने भीतर जीकर लिखना, दो अलग-अलग बातें हैं। उनके गीतों और मुक्तकों से गुज़रते हुए यह कहा जा सकता है कि कैलाश जी कविता को अपने भीतर जीकर लिखने वाले बड़े रचनाकार थे। अफजलगढ़ (बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कैलाश चंद अग्रवाल की कृति 'प्यार की देहरी पर ' के संदर्भ में कहा कि प्यार एक रुमानी, पवित्र. कोमल. करुण भावना है, ..इन्हीं भावों को दृष्टिगत करते हुए यह गीत संग्रह रचा गया है । उन्होंने प्यार को साधना से युग्म करते हुए भक्ति मार्ग का उत्प्रेरक प्रदर्शित किया है। प्यार एक ऐसी भावना है जिसे मौन रहकर ही महसूस किया जा सकता है।प्यार परवशता का पर्याय है। उनकी प्यार जनित काव्य रचनाएँ हृदय तल को स्पर्श करती चलती हैं, मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती चलती हैं, और जीवन के प्रीत पूर्ण अनेक आयामों का दिग्दर्शन कराती चलती हैं। साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि कीर्ति शेष श्री अग्रवाल जी विशुद्ध प्रेम के कवि हैं,वह प्रेम प्रेयसी के प्रति हो,देश के प्रति हो अथवा ईश्वर के प्रति।उनके गीतों में समर्पण,निष्ठा व पवित्रता का भाव है। उनके गीत प्रणय गीतों में एक अलग छाप पाठक के मन में छोड़ते है और एक दृश्यचित्र सा आंँखों के सामने उत्पन्न होता है।रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि उनके गीतों और मुक्तकों में मर्यादापूर्ण प्रेम की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति नई पीढ़ी के रचनाकारों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करती है ।अपने कालजयी गीतों और मुक्तकों के द्वारा स्मृतिशेष कैलाश चंद्र जी युगों- युगों तक हम सबके प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष कैलाश चंद्र अग्रवाल जी, प्रेम को साकार, मनोहारी व बहुकोणीय अभिव्यक्ति देने वाले सशक्त रचनाकार हैं। उनका प्रेम मात्र प्रेमी-प्रेमिका के चारों ओर विचरने वाला तत्व नहीं अपितु, इस शाश्वत सत्य को जीवन की अन्य संवेदनाओं से भी सीधे-सीधे जोड़ता है। उसमें प्रेम का श्रंगारिक स्वरूप मुखर है तो आध्यात्म, देशभक्ति, सामाजिक चेतना जैसे विषय भी इस केन्द्र के विभिन्न कोणों से मुखरित हुए हैं।युवा साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि यहाँ पेश किए गए गीतों को पढ़ कर लगता है कि कैलाश जी ने अपने गीतों में श्रृंगार रस को ख़ास जगह दी है और ये काम उन्हों ने बा-ख़ूबी अंजाम दिया है। प्रेम के अलावा इन गीतों में करुणा, भक्ति, देश-प्रेम के फ़लसफ़े का भी अच्छा-ख़ासा दख़्ल है। कई जगह फ़लसफ़े में बहुत गहराई है, कहीं-कहीं कुछ कम भी। भाषा में रवानी है, भाषा-धन की कहीं भी कमी नज़र नहीं आती, लफ़्ज़ कहीं अटकते नहीं। इस तरह पाठक इन गीतों की धारा में बहता चला जाता है। इस बिना पर ये कहा जा सकता है कि कैलाश जी मुरादाबाद के गीतकारों की जमात में पहली सफ़ के गीतकार हैं। कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि उनकी रचनाओं में प्रेम का मर्यादित रूप देखने को मिलता है । भावनाओं को जिस कुशलता के साथ अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया है ,वह आने वाली पीढ़ियों के लिये मार्गदर्शक सिद्ध होगीं ।उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेम के श्रगांर एवं विरह पक्ष का सामंजस्य जिस अलौकिक रूप से प्रस्तुत किया है ,वह पाठक के ह्रदय तल को स्पर्श करने में समर्थ है ।युवा रचनाकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि उन्होंने साहित्य का केवल सृजन ही नही किया अपितु अपनी रचनाओं को जीवन में आत्मार्पित और अंगीकृत किया है। वह विशुद्ध प्रेम के पुजारी रहे है जिनके गीत और कविताओं को श्लेष मात्र की वासना छू तक नही पायी है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सभी अलंकारों का प्रयोग बहुत ही कुशलता पूर्वक किया है ।डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जी से मेरा परिचय कीर्ति शेष श्रद्धेय महेंद्र प्रताप जी के निवास पर आयोजित होने वाली 'अंतरा' काव्य गोष्ठी में हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि उनके श्रीमुख से उनके मधुर गीत सुनने का अवसर अनेक बार मिला. श्री मदन मोहन व्यास जी के साहित्यिक हास्य से पूर्ण संवाद, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी के ठहाकों और प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी की सारगर्भित टिप्पणियों से वातावरण अति सुन्दर और ज्ञानवर्धक बन जाता था. सौभाग्य से उस गोष्ठी में मुझे भी काव्य पाठ करने का अनेक बार अवसर मिला. अब यादें ही शेष हैं. नजीब सुल्ताना ने कहा कि आदरणीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जैसी महान हस्ती का परिचय इस साहित्यिक पटल के माध्यम से हम नए रचनाकारों को कराने के लिए बहुत-बहुत आभार। यह हमारा सौभाग्य है कि हम मुरादाबाद की महान विभूतियों के बारे में इस मंच के जरिए जान रहे हैं। अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि मुरादाबाद की सांस्कृतिक साहित्यिक धरोहर के बारे में हम जान पा रहें हैं साहित्यिक मुरादाबाद का यह सर्वोत्तम प्रयास शत प्रतिशत सार्थक और सराहनीय है। इस माध्यम से हम इस वैचारिक गोष्ठी के सहभागीदार और साक्षी बने हुए हैं । जकार्ता (इंडोनेशिया) की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा कि 'साहित्यिक मुरादाबाद' अथाह ज्ञान और प्रेम का सागर है। मेरी जन्मभूमि, जिसके बारे में मैं खुद अनजान थी .. इतने बड़े-बड़े रचनाकार वहाँ हुए हैं, उनसे अवगत कराया जा रहा है। बहुत आभार। जितना मैंने पढ़ा और जाना उससे इस विषय पर यही कह सकती हूँ कि स्मृति शेष कविवर कैलाश चंद्र अग्रवाल जी बहुत उच्चतम कोटि के कवि ,रचनाकार, साहित्यकार थे। कवि अशोक विद्रोही ने कहा कि उनका रचनाकर्म हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उनका प्रत्येक गीत मन को स्पर्श करता है। मनोज अग्रवाल ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा स्मृति शेष श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल (जो कि मेरे ताऊ जी थे)के विषय में दो दिवसीय परिचर्चा का सफल आयोजन किया गया।उनकी रचनाओं एवम् व्यक्तित्व के विषय में अनेक साहित्यकारों के विचार जानने का अवसर मिला!इस आयोजन की सफलता का श्रेय डॉ मनोज रस्तौगी के अथक परिश्रम एवम् प्रयास को ही जाता है,इसके लिए उन्हें साधुवाद। अंत में स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के सुपुत्र अतुल चन्द्र अग्रवाल द्वारा आभार अभिव्यक्ति से कार्यक्रम का समापन हुआ ।