जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही,
यदि स्वांसों का ऋण चुक जाये, तो क्षमा करना !!
आधा ही गायन रुक जाये, तो क्षमा करना !!!!
जीवन भर ये खारे आंसू ही बेचे हैं
सपन मोल लेने को,
कनक कन गला बेचे, मिट्टी के, पत्थर के
रतन मोल लेने को !!
नये पथ बनाने में सुनो, वंशधर मेरे,
कुटिया का तृण-तृण बिक जाये, तो क्षमा करना !!
जब-जब भी पीड़ा से प्राण कसमसाते हैं
गान जन्म लेता है,
जब अपने पथ के ही, पत्थर ठुकराते हैं
ज्ञान जन्म लेता है !!
अनजाने ज्ञान को सुरक्षित रखने में ही,
पुरखों का आंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!
जो कुछ भी गा गये, यहां अनेक चातकगण
मेरा ही क्रंदन था,
यों तो मैं चंदा का चंदन भी छू लेता,
धरती का बंधन का !!
मेरे जीवन भर के कर्ज़ को चुकाने में,
विधवा का कंगन बिक जाये, तो क्षमा करना !!!!
✍️ सुरेंद्र मोहन मिश्र.
नमन
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