मंगलवार, 15 जून 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार आठ जून 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विद्रोही, वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", दीपक गोस्वामी 'चिराग', प्रीति चौधरी, रेखा रानी, डॉ रीता सिंह, डॉ पुनीत कुमार, मीनाक्षी ठाकुर, मीनाक्षी वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, विवेक आहूजा,चन्द्रकला भागीरथी, सुदेश आर्या, राजीव प्रखर और कंचन खन्ना की कविताएं ----


सपनों वाली  रात  में,

         कुछ परियां थीं साथ में।
सुंदर महफ़िल सजी हुई थी
      गुड़िया दुल्हिन बनी हुई थी।
बहुत नजारे प्यारे प्यारे,
       नगरी नगरी द्वारे द्वारे।
मद्धिम सा संगीत बजा था,
    फूलों से कुल नगर सजा था।
चंदा की किरनें थीं फैली ,
    महकी थी वह रात रुपहली।
छूट रहीं थीं जब फुलझड़ियां,
    सजी हुई बिटिया की गुड़िया।।
देते थे सब लोग बधाई,
      होनी थी उसकी कुड़माई ।।
सज कर दूल्हे राजा आये,
     सखियों ने शुभ मंगल गाये।
ढोल नगाड़े बाज रहे थे,
       खूब बराती नाच रहे थे ।।
किन्तु बग्घी संग न आई,।।
      तब जादू की छड़ी घुमाई।
एक सुंदर बग्घी प्रकटाई,
      गूंज उठी फिर से शहनाई।।
तभी पुलिस ने ज्ञान सुनाया,
      राजा का फरमान सुनाया।
राजाजी का है ये कहना,
       इक दूजे से दूर ही रहना।।
देखो बिल्कुल भूल न जाना,
   मुंह पर सब ही मास्क लगाना ।
नहीं सुना तो फिर मत रोना,
    फैल रहा है बहुत कोरोना।।
लोगों ने आवाज लगाई,
   खा मत लेना कोई मिठाई।।
यह सुन घोर उदासी छाई,
       हलवाई को खांसी आई।
शक है उसको है कोरोना,
        बंद हुआ संगीत सलोना।
भागे सारे लोग ये सुन कर,
  जिसको मिला स्थान जहां पर।
ऐसी भगदड़ मची  वहां पर,
    लोग उड़नछू हुए कहां पर।
फिर क्या बहुत हुई बर्बादी,
     पर गुड़िया की हो गयी शादी।
✍️ अशोक विद्रोही , 412 प्रकाशनगर, मुरादाबाद, मोबाइल 8218825541
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चींटा  बोला  बड़े  प्यार  से,
सुन    लो     चींटी     रानी,
हम  बबलू  के  घर  खाएंगे,
घी,     शक्कर     मनमानी।

आने  वाला  है  बारिश  का,
मौसम    तनिक     विचारो,
करें   इकट्ठा   खाना - दाना,
भरकर    रख    लें    पानी।

मरे हुए  कीटों  को भी  हम,
अपने    बिल    में      लाएं,
कल के  लिए इकट्ठा  करके,
रख    लें    दिलवर   जानी।

चूक  गए  अवसर तो  बच्चे,
भूखे          मर        जाएंगे,
आलस कभी न अच्छाहोता,
कहते      ज्ञानी   -    ध्यानी।

मैं  भी   कैसे   कर   पाऊंगा,
सारा        काम       बताओ,
तुम   अंडों   पर    बैठी-बैठी,
बनती        रहो       सयानी।

चीटीं     बोली    चींटे   राजा,
मुझे       यही      चिंता     है,
लक्ष्मण  रेखा पार   करी  तो,
होगी         जान       गवानी।

लालच   बुरी  बला  है  बच्चो,
इसमें     कभी     न     आना,
लालच  के   फंदे   में   पड़ना,
होती           है         नादानी।
        
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल 9719275453
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बच्चों के मन भाता संडे ।
सबको बहुत लुभाता संडे ।

होमवर्क से छुट्टी मिलती।
कितना रेस्ट कराता संडे।

सिर्फ एक दिन मुख दिखलाता।
फिर छ: दिन छुप जाता संडे।

बच्चों को पिकनिक ले जाकर।
खुद 'फन-डे' बन जाता संडे।

घर में बनते कितने व्यंजन ।
नए-नए स्वाद चखाता  संडे ।

लेकिन प्यारी मम्मी जी का।
काम बहुत बढ़वाता संडे ।

मुन्नी यों मम्मी से बोली।
रोज नहीं क्यों आता संडे।

✍️ -दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई-244410 (सम्भल)
मो. 9548812618
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सब मिल हम सखियाँ बचपन की
चल करते बतियाँ बचपन की
   
बागों में चलकर फिर खाते
वो खट्टी अमियाँ बचपन की

छत पर सो तारों को  गिनकर
बीते फिर रतियाँ बचपन की

  शादी हम जिसकी करवाते
  चल ढूँढे  गुड़िया बचपन की

  कच्चे उस आगंन में अब भी
  फुदके हैं चिड़ियाँ बचपन की

   नव जीवन के सपने देखें
   चमके हैं अँखियाँ बचपन की
      
✍️ प्रीति चौधरी,गजरौला , अमरोहा
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मीठा मीठा बोल कर,
मुंह में मिश्री घोल कर   ,
  बातें बोलो  तौलकर,
मन में स्नेह घोलकर।
जिस दिन तुम अपना लोगे,
प्यारे बच्चों सचमुच में तुम
सब के प्यारे बन जाओगे।
सूर्योदय से पहले जागो,
आलस को तुम दूर भगा दो।
धरती मां को शीश झुका दो,
नमन करो थोड़ा मुस्कुरा दो,
जिस दिन तुम अपना लोगे।
प्यारे बच्चों सचमुच में तुम
  सबके प्यारे बन जाओगे।
  मन से तुम स्वाध्याय करोगे,
     नित उठ योगा आप करोगे,
     मन में जो विश्वास भरोगे।
     लक्ष्य को अपने पूर्ण करोगे,
    जब रेखा तुम लक्ष्य पा लोगे,
    प्यारे बच्चों सचमुच में तुम,
    सबके प्यारे बन जाओगे।

✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला, जनपद अमरोहा
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मेरा भारत कितना प्यारा
सारी दुनिया में है न्यारा ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सारे धर्मों को है प्यारा ।

एक अनोखी बगिया जैसा
रंग अनेक सजा है सारा ।

अनगिन जाति महक बिखराती
प्रेम सभी ने इस पर वारा ।

विपदा में सब एक हुए हैं
मिलकर इनसे हर दुख हारा ।

✍️ डॉ रीता सिंह, आशियाना ,मुरादाबाद
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पलकों के झूले में
झूल री निंदिया

राह देखें तेरी
कितने सपनें
चांद सितारे
सब हैं अपने

तू भी अब
बेगानी न रह
गुस्सा अपना
भूल री निंदिया

गा रही लोरी
हवा पुरवइया
नाच रहीं परियां
थाम के बैयां

तू ही क्यों
बैठी है गुमसुम
तू सजा दे
फूल री निंदिया

पलकों के झूले में
झूल री निंदिया

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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        (1)
सरपट- झटपट
घर-चल नटखट
अब पढ़ असगर
मत कर,खटपट।।
        (2)
डगमग- डगमग
धर मत अब पग,
अटल अचल बन
जगमग कर 'जग'।।
        (3)
सरर -सरर सर
झरर -झरर झर
जल भर ,मन भर
बरस बरस कर।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
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(1)
आसमान में सतरंगी देखो
इंद्रधनुष चमक रहा है
कितना सुंदर कितना उजला
पाने को दिल मचल रहा है

लाल नारंगी पीला हरा
आसमानी नीला और बैंगनी
विशाल वृत्ताकार वक्र सा
देखो कितना दमक रहा है

वर्षा बाद नजर आता इंद्रधनुष
आखिर कैसे बनता है
कुछ तो बात है प्यारे इसमें
जो इतना मनोहर दिखता है

वर्षा या बादल में जब भी
जल के सूक्ष्म-सूक्ष्म कणों पर
सूर्य की किरणों से जब विक्षेपण होता है
इन्द्रधनुष बनता देखो कितना अद्भुत लगता है।
(2)
आओ बच्चों एक बात बताएं
तुमको खुशियों का राज बताएं
सुबह सवेरे जो उठते हैं
उठ कर नित्य कर्म करते हैं
कुल्ला मंजन योगा करते
स्नान करके खुद को स्वच्छ रखते
  सुबह सवेरे सरस्वती मां का ध्यान लगाते
   प्यारे बच्चे आगे ही बढ़ते जाते
नाश्ता कर स्कूल को जाते
गुरुजनों को फिर शीश नवाते
मन लगाकर विद्या पाते
शाम को फिर घर आ जाते
शाम को खेलने बगीचे में जाते
मां के हाथ का खाना खाते
अपनी सेहत खूब बनाते
अध्ययन कर फिर सो जाते
सपनों की दुनिया में खो जाते
प्यारे बच्चे हैं कहलाते
सबकी आंखों के तारे बन जाते
✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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भैया की मैं बड़ी दुलारी
मम्मी कहती रानी ।
दादी बोलें बड़काबोलन
सब बच्चों की नानी ।
सोनपरी मुझे बाबा बोलें
नाना कहते हैं बातून
मामा जी नाम दिया है
प्यारा -प्यारा मून ।
पापा मुझको भोला कहते
बुआ लालपरी
चटर पटर मैं खूब बोलती
बातें खरी -खरी।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार. मुरादाबाद
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ओ मेरी लाडली , घर के बाहर तुम जाना नहीं ,
बाहर गर जाओ ,तो लेकर कुछ खाना नहीं ।
बड़ी हो गई हो तुम , ज्यादा पड़ेगा तुम्हें समझाना नहीं , वक्त है खराब ,भलाई का जमाना नहीं ।
अच्छे से समझ लो तुम ,गर तुमने मेरा कहा माना नहीं ,
जमाने का क्या भरोसा, बाद में पछताना नहीं ।।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद
@9410416986
vivekahuja288@gmail.com
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मुन्नू आंगन में रोटी खाता
एक कौआ उसके पास आ जाता
कभी इधर घुमता कभी उधार घुमता।
रोटी का टुकड़ा पाना चाहता
कभी पंख फड फडात
कभी मुंह इधर-उधर घुमाता
मुन्नू उसे रोटी दिखाता
और खूब खिलखिलाता
तभी मां ने आवाज लगाई
मुन्नू तुम किधर हो भाई
मुन्नू बोला मां मैं बाहर हूं
मां ने कहा तुम बाहर न जाओ
रोटी तुम बेटा अंदर खाओ
मौका पाकर कौआ रोटी ले उडा
मुन्नू खड़ा खड़ा रोता रहा

✍️ चन्द्रकला भागीरथी,धामपुर, जिला बिजनौर
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पढ़ाई करते रहते हम,फिर भी नंबर आते कम ,
प्रभु हम क्या करें जी-बताओ क्या करें जी।
सुबह शाम पढ़ते हम,फिर भी नंबर आते कम,
प्रभु हम क्या करें जी-बताओ क्या करें जी

यह हिस्ट्री किसने बनाई ,
करनी है उसकी पिटाई,
कौन था राजा, कौन थी रानी,
दोनों मर गए, खत्म कहानी
अब करें क्यों -इसकी पढ़ाई 
पढ़ाई करते----------

पोलिटिक साइंस क्यों हैं पढ़ाते
नेतागिरी करना कराना सिखाते
हमको इससे क्या, लेना- देना
क्या है हमें, लेना देना
पढ़ाई करते..........

अंग्रेजी यह विदेशी भाषा,
समझ आये न, इसकी परिभाषा,
पी-यू-टी-पुट है,बी-यू-टी-बट है,
कभी है लंबा वाक्य,कभी शॉर्टकट है
झंझट है यह अच्छा खासा-
बहुत ही झंझट है
पढ़ाई करते.............

विषय सब सारे ही कोई हटादो,
पढ़ने के झगड़े मिटा दो,
न पढेंगे न लिखेंगे,
बस हृदय पुष्प खिलेंगे
सफलता का फंडा बतादो-
या पढ़ने का मन बनादो
पढ़ाई करते .............
✍️ सुदेश आर्य, मुरादाबाद
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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत ---आस है विश्वास है ये अब न दुख की रात हो .....


 

सोमवार, 14 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की 14 जून 2021 को आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की 14 जून 2021 को  मासिक काव्य गोष्ठी लाइनपार स्थित श्री जंभेश्वर धर्मशाला में संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता योगेंद्र पाल विश्नोई ने की मुख्य अतिथि रमेश चंद्र गुप्त, विशिष्ट अतिथि  रघुराज सिंह निश्चल रहे। संचालनअशोक विद्रोही* ने किया । सरस्वती वंदना  रामसिंह निशंक ने की। 

काव्य गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने पढ़ा-

दया इतनी करना विधाता, दुख दूर हो ,सुख पास रहे 

तेरा गुण गाने वाला ,यह भक्त कभी ना उदास रहे।

अशोक विद्रोही ने कहा- 

"तेरी हस्ती को मिटा दे ,

ऐसी कोई शह नहीं।

रब की इस दुनिया में ,

कोई तेरे जैसा है नहीं।"

बाद जाने के भी बन के 

गीत तुम गुंजा करो।।

बढ़ रहा बेशक कोरोना 

पर न तुम इस से डरो।

रघुराज सिंह निश्चल ने पढ़ा-

रक्त से दीजिए ,

जीवन का उपहार।

कितनों की मुस्कान है,

 दिया रक्त एक बार।।

राम सिंह निशंक ने कहा 

आई ऋतु पावस की 

छाए हैं काले धन ।

वर्षा की फुहार में,

 प्रमुदित हैं सबके मन।

प्रशांत मिश्र ने कहा-

 जिंदगी एक शाम बनती जा रही है ।

जो सवेरा होने के इंतजार में ढलती जाती है।

इंदु रानी ने कहा-

देखो जरा आंखों से यह चश्मा उतार के 

हालात देश के दिखेंगे आर पार के।

मनोज वर्मा मनु ने पढ़ा-

सिर पर छांव पिता की ,

कच्ची दीवारों पर छप्पर।

कृपाल सिंह धीमान ने पढ़ा-

वायु जीवन जल आज मेरे हाथ में है।

मैं प्रदूषण हूं क्या कर लोगे मेरा।

काव्य गोष्ठी में श्रीमती इंदुबाला विश्नोई को उनके सामाजिक कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।

योगेंद्र पाल विश्नोई एवं रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने आभार अभिव्यक्त किया ।










✍️ अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद

साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन



 मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर  वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 11 एवं 12 जून 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। चर्चा के दौरान साहित्यकारों ने कहा कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी दयानन्द गुप्त का मुरादाबाद के हिन्दी कहानी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा । उनकी कहानियां जहां सामाजिक व राजनीतिक विसंगतियों पर पैने प्रहार करती हैं वहीं नैतिक मूल्यों के पतन, दोहरे चरित्र और मानवीय सम्वेदनाओं को भी बखूबी अभिव्यक्त किया है ।


मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तंभ के तहत संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने  स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त का परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 12 दिसम्बर 1912 को जन्में दयानन्द गुप्त की कहानियों का पहला संग्रह 'कारवां ' वर्ष 1941 में प्रकाशित हुआ । इस संग्रह की भूमिका सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने लिखी थी।  सन 1943 में उनके 52 गीतों का संग्रह 'नैवेद्य' नाम से प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष उनका दूसरा कहानी संग्रह 'श्रंखलाएं' प्रकाशित हुआ। वर्ष 1956 में 'मंजिल' कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ । वर्ष 1946 में आपका एक नाटक 'यात्रा का अन्त कहाँ' प्रकाशित हुआ। 'माधुरी', 'सरस्वती', 'वीणा', 'अरुण' आदि उच्च कोटि की मासिकों में आपकी रचनाएँ विशेष सम्मान के साथ छपती रहीं । दयानन्द गुप्त की रूझान पत्रकारिता की ओर भी था। वर्ष 1952 में उन्होंने 'अभ्युदय' साप्ताहिक का प्रकाशन व संपादन भी किया । 25 मार्च 1982 की अपराह्न वह इस संसार से महाप्रयाण कर गये।

   

उनके सुपुत्र एवं दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकान्त गुप्त ने उनके अनेक संस्मरण, चित्र  तथा रचनाएं प्रस्तुत कीं । उन्होंने कहा कि दयानन्द गुप्त एक साहित्यकार होने के साथ-साथ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी थे ।अपनी किशोरावस्था में आपने महात्मा गाँधी के आह्वान पर हाई स्कूल पास करने के उपरान्त वर्ष 1930 में आन्दोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया था। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल रहे। सन 1945 में मजदूर आंदोलन में भाग लिया। अनेक श्रमिक संगठनों से आप जुड़े रहे। सन् 1951 में जिनेवा में हुए अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। वर्ष 1972 से 1980 तक मुरादाबाद नगर की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर भी रहे।

     

 दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या डॉ स्वीटी तलवाड़ ने उनके गीत संग्रह नैवेद्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि गुप्त जी छायावादी कवियों की ही तरह व्यक्तिवादी कवि हैं, जिन्होंने भाव, कला और कल्पना के माध्यम से अपने सुख-दुःख की अभिव्यक्ति इन गीतों में की है। “तुम क्या”, “स्मृति”, “प्रेयसी” जैसी रचनाओं में गुप्त जी के प्रेमी का उसकी प्रियतमा के प्रति  प्रेम स्थूल नहीं, बल्कि सूक्ष्म है, इनमें बाह्य  सौंदर्य की नहीं बल्कि सूक्ष्म से सूक्ष्मतर भावनाओं की अभिव्यक्ति की गयी है। गुप्त जी के प्रकृति चित्रण पर भी छायावाद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है, चाहे प्रकृति का मानवीकरण हो या कोमलकान्त पदावली का प्रयोग या ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग या सूक्ष्म के लिए स्थूल उपमान या स्थूल के लिए सूक्ष्म उपमान। वह प्रकृति में नारी रूप देखते हैं और उसमें सम्भवतः प्रेयसी के रूप-सौंदर्य का भी अनुभव करते हैं। प्रकृति के विभिन्न क्रियाकलापों में उन्हें किसी नवयौवना की विभिन्न चेष्टायें दृष्टिगत होती हैं।     

दयानंद आर्य कन्या डिग्री कॉलेज की प्राचार्या डॉ० अनुपमा मेहरोत्रा ने कहा कि दयानन्द गुप्त  बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उनका जीवन संघर्ष ही इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। समाजसेवी व साहित्यकार के रूप में उन्होंने समाज का मार्गदर्शन किया है। शिक्षा जगत में गुप्त जी का योगदान अविस्मरणीय है। खासकर स्त्रियों के लिए विद्यालय, महाविद्यालय की स्थापना करना, स्त्री शिक्षा की ओर बढ़ाया गया चुनौतीपूर्ण कदम है जो उनके प्रगतिशील व्यक्तित्त्व को इंगित करता है। साहित्य उनके अंतर्मन में रचा-बसा था। 

केजीके महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा कि हिंदी साहित्य की दृष्टि से देखा जाय तो गुप्त जी का लेखन काल छायावाद ,प्रगतिवाद से गुजरते हुए प्रयोगवाद के समानांतर चलता रहा है जबकि उनका स्पष्ट मानना था कि मुझे किसी वाद में न बाँधा जाये ,परन्तु इन सभी रूपों का प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । ' नेता' कहानी राजनीतिक परिपेक्ष्य को लेकर लिखी गयी कहानी है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि राजनीति के पंकिल जीवन में व्यक्ति देश सेवा के नाम पर कितना स्वार्थी हो सकता है, वह राष्ट्र ,समाज और यहां तक कि परिवार के साथ भी छल करता रहता है।  , ' विद्रोही ' कहानी में  गुप्त जी ने एक कलाकार की सौंदर्यात्मक दृष्टि पर प्रकाश डाला है।'नया अनुभव ' कहानी लेखक के गांधीवादी विचारधारा को स्पष्ट करती है , 'न मंदिर न मस्जिद ' कहानी  के माध्यम से गुप्त जी के विचार हिंदू-मुस्लिम एकता के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए देखे जा सकते हैं,वर्तमान में इस कहानी की प्रासंगिकता सिद्ध होती दिखती है, क्योंकि आज धर्म के नाम पर ओछी राजनीति समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है ।' परीक्षा ' कहानी भावनात्मक व मनोवैज्ञानिक छाप छोड़ती है।

   

दयानंद आर्य कन्या डिग्री कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कंचन सिंह ने कहा कि श्री दयानंद गुप्त जी की कहानियां मानव मूल्य, संघर्ष और चेतना के विविध स्तरों से पाठक को परिचित कराती है। उनके लेखन का वैशिष्ट्य है कि वह समाज केंद्रित है इसीलिए ये हमारा आज भी मार्ग दर्शन करने में समर्थ हैं। इनकी प्रासंगिकता इतने वर्षों के अंतराल के बाद भी आज भी वैसी ही हैं जैसी तत्कालीन समय में थीं। ये कहानियां लेखक के आधुनिक प्रगतिशील सोच एवं प्रबुद्ध व्यक्तित्व को पाठक के समक्ष विभिन्न स्तरों पर प्रतिबिंबित करती हैं।

वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने कहा दयानन्द गुप्त के लेखन में जहाँ मानवीय संवेदनाएं झंकृत होती हैं वहीं सामाजिक विसंगतियों पर भी तीखा व्यंग और प्रहार परिलक्षित है। धार्मिक मान्यताओं को पीछे छोड़ते हुए वो जहाँ एक समाज सुधारक की भूमिका निभाते हैं तो वहीं धीरे धीरे आध्यात्मिक यात्रा की राह पर चलते हुए एक दर्शानिक के रूप में नज़र आते हैं। उनका समृद्ध साहित्य समाज को दिशा देने वाली एक अमूल्य धरोहर है। इस अवसर पर उन्होंने श्री गुप्त को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा----

जीवन में जो दे गए, नये नये प्रतिमान।

समय करे चर्चा यही, उन पर है अभिमान।।


दयानन्द था नाम सरीखा। पूत पाँव पलने में दीखा।।

माता ने थी नज़र उतारी। दादा दादी सब बलिहारी।।


बचपन बीता खाते पीते। खेल खेल में हँसते जीते।।

शिक्षा को झोली में भरकर। नहीं रहे विघ्नों से डरकर।।


मेहनत ने था रंग दिखाया। धीरे धीरे सब कुछ पाया।।

दिनकर से ये ओज मिला था। सपनों का फिर सुमन खिला था।।


आकर्षक व्यक्तित्व धनी थे। अधिवक्ता वे सुधी जनी थे।।

पौरुष हर दम साथ हुआ था। अभिलाषा ने गगन छुआ था।।


इंसा को मिलता सदा, यश वैभव सम्मान।

पर सेवा का साथ में, जब चले अभियान।।

ईश्वर से जो कुछ मिला, समझा उसे उधार।

वापस किया समाज को, बहा प्रेम रस धार।।


राजनीति को भी अजमाया। उसमे भी था नाम कमाया।।

न्याय प्रक्रिया के थे ज्ञाता। देख देख हर्षित थीं माता।।


शिक्षा की थी अलख जगाई। करी समाज की देख भलाई।।

नारि शक्ति को और बढ़ाया। स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया।।


सदभावों की राह दिखाई। लेखन में भी कलम चलाई।।

जीवन का दर्शन करवाते। पद्य, गद्य में थे समझाते।।


नाटक, कथा कहानी कविता। प्रखर बही भावों की सविता।।

शारद का वरदान अपारा। नाम ईश का एक अधारा।।

महक रहा है देखिये, शिक्षा का संसार।

संवर रही हैं बेटियां, है अनुपम उपहार।।

साँसों का दर्शन लिखा, लिखा हास परिहास।

जीत लिया मानव हृदय, मिला अटल विश्वास।।


कुशल प्रबंधक प्रखर विचारक, राजनीति प्रतिमान।

सामाजिक समरसता लेकर, शिक्षा का अभियान।

अति कानूनी ज्ञान साहित था, वाणी पर अधिकार

सजा हुआ साहित्य सृजन से, जीवन था गतिमान।।


उमाकांत से पुत्र मिले, पुण्य किये हज़ार।

पिता विरासत सींच रहे, फर्ज करें साकार।।

दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय में अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ रीना मित्तल ने कहा उनकी साहित्यिक रचनाओं का अगर हम अवलोकन करें तो साफ पता चलता है कि उनका कविता संग्रह नैवेद्य, कहानी संग्रह 'मंजिल' की रचनाऐं उनको एक मानव से ऊपर का दर्जा देती है। सभी साहित्यिक रचनाऐं धर्म, कर्म, जाति व रंगभेद से ऊपर उठकर समाज के उत्थान का सन्देश देती हैं। उन्होंने उनकी कहानी 'परीक्षा' का अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत किया।

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कविताओं को दयानंद गुप्त  अपने हृदय के उद्गारों को अभिव्यक्त करने का माध्यम मानते थे । वह न छायावाद के फेर में पड़े ,न प्रगतिवाद के बंधन में बंधना उन्हें स्वीकार था । वह स्वतंत्र थे।कहानीकार के रूप में उन्होंने जहां विभिन्न समस्याओं की ओर  समाज का ध्यान आकृष्ट किया वहीं जीवन की जटिलताओं को भी उजागर किया।

हिंदू कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी विभाग, डॉ. उन्मेष कुमार सिन्हा ने दयानंद गुप्त की कहानी नेता की समीक्षा करते हुए कहा कि कहानी के नायक सेठ दामोदर दास के माध्यम से कहानीकार ने नेताओं के पाखंड पूर्ण व्यक्तित्व  को उजागर किया है । 

कवयित्री
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि उनकी कहानियाँ निरे उपदेश या निरी मनोरंजन या कला के लिए कला जैसे किसी एक उद्देश्य के सांचे में नहीं ढलती बल्कि उनकी कहानियाँ विविध विषयों,विविध सरोकारों या उद्देश्यों का एक बुके हैं,जहाँ कई रंग हमें नजर आते हैं।उनकी कहानियों में जहाँ संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली का बाहुल्य है तो वहीं आम जन जीवन की भाषा और पात्र के अनुरूप उर्दू शब्दों का प्रयोग भी उन्होंने किया है। चित्रकारिता,संगीत,राजनीति अथवा किसी भी विषय पर उनकी गहरी समझ व पकड़ उनकी कहानियों को जीवन्त बना देती है।

दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शोभा गुप्ता ने कहा श्रद्धेय श्री दयानंद गुप्त जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।आपकी रचनाएं पढ़कर मुझे लगा कि आप ने उस समय की सामाजिक समस्याओं को अपनी रचनाओं में भली भांति उकेरा  तथा समाज में व्याप्त समस्याओं का समाधान भी समाज के समक्ष रखा। आपकी रचनाएं आज भी हमारा मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं।

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर का कहना था दयानन्द गुप्त सच्चे अर्थों में माँ वीणापाणि के उपासक रहे हैं। आपकी कहानियों में अनेक विम्बों से अलंकृत वाक्य व भाषा शैली के धागों से , किसी सुघड़ बुनकर की तरह कथानक को बुनते हुए जब आप आगे बढ़ते हैं तो दृश्यों का सजीव ताना- बाना बनकर तैयार हो जाता है। वे समाज के  दोहरे आवरण की परत उधेड़ते  हैं। कल्पना और यथार्थ दोनो के चित्रण में आपको  महारथ हासिल थी।समाज में होती उथल पुथल व बदलाव भी आपकी कहानियों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं। आप समाज की संकीर्णता पर भी प्रहार करने से नहीं चूकते।

युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि उनके कहानी-संग्रह 'मंज़िल' में संगृहीत कहानियां  तत्कालीन परिस्थितियों के साथ-साथ वर्तमान एवं भविष्य की सुगबुगाहट को भी स्वयं में समेटे हुए है। सत्य-असत्य के संघर्ष को सार्थक अभिव्यक्ति देती 'वे पत्र', सहानुभूति  का आवरण ओढ़ कर एक आम व्यक्ति के साथ किये जाने वाले खिलवाड़ का चित्र 'पागल', राह भटकती राजनीति को दर्शाती 'नेता', मानवीय मूल्यों को विभिन्न कोणों से देखती 'तोला', सामाजिक एकता और सद्भाव को अभिव्यक्ति देती 'न मन्दिर न मस्ज़िद' एवं इसी क्रम में विभिन्न संवेदनाओं व परिस्थितियों के संघर्ष को साकार करती हुई 'नारी हॄदय', 'परीक्षा', 'अर्ध परिणीता', 'शोभा', 'दर्पण की कथा', 'विद्रोही' व 'तुम्हारा प्रेम' तक आते-आते यह अनमोल कहानी-संग्रह, वर्तमान समाज के सम्मुख अनेक प्रश्न छोड़ता हुआ उसे यह सोचने पर भी बाध्य कर देता है कि स्वयं में अपेक्षित सुधार न करने पर उसके भविष्य की तस्वीर क्या होगी। भले ही हम आधुनिक युग में जी रहे हो परन्तु यह कड़वा सत्य है कि आज भी सामाजिक असमानता, रसातल में जाती नैतिकता, वर्ग-संघर्ष जैसी अनेक समस्याएं नये स्वरूप में हमारे समाज के सम्मुख बनी हुई हैं। आज की तथाकथित प्रगतिशीलता के सामने इसी तथ्य को रखता यह कहानी-संग्रह 'मंज़िल' निश्चित रूप से प्रत्येक आयु वर्ग के पाठक को विचार शीलता के साथ सोचने पर विवश कर देने में सक्षम है।

     

दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर गृह विज्ञान विभाग, डॉ शुभा गोयल ने कहा कि दयानन्द गुप्त का पेशे से वकील होना तथा साहित्य में अभिरुचि होना एक अनूठा संगम था। उनकी रचनाओं में विविधता के दर्शन होते हैं। उनकी कहानियों में सामाजिक  विसंगति एवं विषमताओ  का चित्रण मिलता है।

     

उनकी पुत्रवधु सन्तोष रानी गुप्ता ने कहा वर्ष 1952 में आपने नगर में वर्षों से बन्द चली आ रही बल्देव आर्य संस्कृत पाठशाला को पुनः आरम्भ किया। जिसमें संस्कृत की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी। उसी वर्ष बल्देव आर्य कन्या विद्यालय की स्थापना की जो बाद में बल्देव आर्य कन्या इंटर कालेज हो गया। वर्ष 1960 में दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की स्थापना की। इसके अतिरिक्त आपने अपने पैतृक ग्राम सैदनगली में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की भी स्थापना की। उन्होंने उनका गीत भी प्रस्तुत किया।

दयानन्द आर्य कन्या डिग्री कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर स्नेहा कुमारी ने  उनकी कहानी तोला के संदर्भ में कहा कि इस कहानी के माध्यम से लेखक दयानंद गुप्त ने पारिवारिक संबंधों में व्याप्त आपसी प्रेम, सौहार्द, द्वेष, ईर्ष्या की ही बात नहीं की,अपितु सामंती समाज में पिस रहे समाज, कृषक जीवन में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, ऋण, गुलाम भारत में असमान, महंगी न्याय व्यवस्था का दारुण वर्णन किया है।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि  दयानन्द गुप्त की अनेक कहानियाँ  वर्तमान परिस्थितियों में भी प्रासंगिक है। विद्रोही का कथानक भी स्वयं में विशेषता रखता है और समाज के दोहरे मापदंड को दर्शाता है। 

साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि दयानंद गुप्त मुरादाबाद के श्रेष्ठ कहानीकार थे। इन की कहानियों में जुज़यात-निगारी(डिटेलिंग) बे-जोड़ है और सब से ज़्यादा आकर्षित करती है। संवाद सहजता के साथ आते हैं।  इस ख़ूबी से वातावरण की तस्वीर खींचते हैं, ऐसे ऐसे बिंब बनाते हैं कि पढ़ने वाला मुरीद हो जाए। भाषा संस्कृतनिष्ठ है, जो आम बोलचाल की भाषा से कुछ अलग होने की वजह से कहानी की पहुँच और मक़बूलियत को सीमित करती है। फिर भी ये कोई ख़ामी नहीं, हर लेखक की भाषा की अपनी विशिष्टता होती है। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा   गुप्त जी की कहानी 'न मन्दिर न मस्जिद' लिखे जाने के समय भी समकालीन थी और आज भी समकालीन है।इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है। आदरणीय श्री उमा कान्त गुप्त जी के पास मुरादाबाद के साहित्य की अमूल्य धरोहर संरक्षित है, आने वाला कल इसका मूल्यांकन करेगा।     

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा भाई मनोज जी  को एक अच्छे कार्य हेतु बहुत बहुत साधुवाद। साहित्यिक मुरादाबाद के माध्यम से स्मृति शेष दयानंद गुप्ता जी के विषय में सारगर्भित जानकारी प्राप्त हुई है।जो मुझे ज्ञात नहीं थी। उनकी कहानी भी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त कर सका।

   

वरिष्ठ कवयित्री डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि स्मृति शेष श्रद्धेय श्री दयानंद गुप्त एक प्रतिष्ठित एडवोकेट होने के साथ-साथ वह साहित्यकार, शिक्षाविद और समाज सेवक थे. उनकी बहुमुखी प्रतिभा आश्चर्य जनक है। गुप्त जी के कहानी संग्रह 'कारवां' में संकलित कहानी 'विद्रोही' को पढ़ कर अंग्रेजी के रोमान्टिक कवि कीट्स की याद आ गयी। विद्रोही कहानी में भी कलाकार की सौंदर्य चेतना अद्भुत है।    

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा  गुप्त जी की रचनाओं में तत्कालीन समाज का स्पष्ट चित्रण दिखाई देता है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि श्रद्धेय दयानंद गुप्त जी के सुपुत्र आदरणीय श्री उमाकांत गुप्ता जी का स्नेह और आशीर्वाद मुझे निरंतर प्राप्त होता रहता है। 

   

वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि दयानन्द गुप्त बहुआयामी व्यक्तित्व और प्रतिभा के धनी थे। जाने-माने प्रतिष्ठित एडवोकेट तो थे ही, साथ ही साहित्यिक कर्म में भी निर्लिप्त थे। शिक्षा के क्षेत्र में कई संस्थाएं नगर-देहात को उन्होंने दी हैं। इसके इतर भी समाज को दिशा देने वाले उल्लेखनीय कार्य भी उन्होंने अपनी प्रतिबद्धताओं से आगे जाकर किए हैं।

साहित्यकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि  गुप्त जी स्त्री शिक्षा के प्रति उतने ही जागरूक और संवेदनशील थे जितने  अपने समय में श्री राजराम मोहनराय। आपने बालिकाओं के लिए बलदेव  आर्य कन्या इंटर कॉलेज तथा दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय की स्थापना का सराहनीय कार्य किया। साथ अमरोहा जनपद के सैदनगली में भी एक इंटर कॉलेज का निमार्ण कराया। 

   

वरिष्ठ अधिवक्ता मुहम्मद जुनैद एजाज ने कहा कि दयानंद गुप्त ने अपनी व्यावसायिक प्रतिबद्धता के बावजूद सामाजिक सरोकारों से अपना गहरा रिश्ता कायम किया। शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र में उनका गहरा योगदान है जब देश लंबी गुलामी के बाद गहरे अंधकार से प्रकाश के लिए  लालायित था तब उन्होंने शिक्षा की ज्योति से मुरादाबाद  को आलोकित किया। उनकी रचनाओं में मानवता के प्रति उनकी  संवेदना  गहराई से झलकती है ।

दयानंद आर्य कन्या डिग्री कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी डॉ छाया रानी ने कहा की मंजिल कहानी संग्रह में संग्रहित कहानी 'न मंदिर न मस्जिद' सर्व धर्म समन्वय की भावना को पोषित करने वाली है। यह कहानी एक विलक्षण कहानी है इस के लिखने के पीछे उनका  उद्देश्य  वसुधैव कुटुंबकम की भावना को लेकर था आज उसकी बहुत आवश्यकता है। यदि सब इसे समझ जाएं तो सब लड़ाई झगड़े छोड़ कर एक सूत्र में बंध कर सुखचैन से जीवन जी सकते हैं।

साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि  श्रद्धेय कीर्तिशेष श्री दयानंद गुप्त जी वे साहित्य जगत के ऐसे चमकते हुए सूर्य के समान थे ,जिसके प्रकाश से साहित्य जगत एक नई व अलौकिक रोशनी से प्रकाशित हुआ । उन्होंने हिंदी साहित्य का इतनी गहनता से अवलोकन किया ,कि उसकी हर दिशा को अपनी लेखनी का अंग बनाया ।चाहे मानवीय संवेदना हो या सामायिक विसंगतियाँ उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्कालीन समाज की बहुत ही स्पर्श तस्वीर उकेरी है । इसके साथ ही उन्होंने श्रृंगार ,वियोग एवं प्राकृतिक सौंदर्य को बड़ी दक्षता से अपनी रचनाओं में दर्शाया है ।यद्दपि वे पेशे से वकील थे ,तथा राजनीति बहुत निकटता से जानते थे ,परंतु उन्होंने अपनी अभिरुचि साहित्य की ओर ही रखी ,और यथार्थ का आँचल पकड़ समसामयिक स्थितियों ,परिस्थितियों का इतना विषद चित्रण किया है ,जो आज के समय में भी प्रासंगिक है ।

साहित्यकार एवं दयानन्द आर्य कन्या डिग्री महाविद्यालय की पूर्व छात्रा मीनाक्षी वर्मा ने काव्यमय श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा -------

 नाम से ही परिलक्षित होते गुण अनंत,

दया के अवतार शिरोमणि श्री दयानन्द गुप्त, 

शिक्षा की ज्योति जलाकर किया सर्व उद्धार , 

जनमानस में किया प्रकाशित ज्ञान शक्ति का पुंज, 

श्री गुप्त जी की कृतियां बता रही मानवता का मर्म, 

सभी जाति,प्राणी समान,समान है सभी पंथ,

नैवेद्य, श्रृंखलाये,मंजिल संग्रह देती सीख अनन्त,

प्राणिमात्र से प्रेम करो मानवता का करो न अंत,

स्वतंत्रता के लिये भी किये कितने ही प्रयत्न,

 ऐसे थे महान श्री दयानंद गुप्त, 

श्रमिक वर्ग के मर्म को समझ किया उत्थान, 

हर क्षण जिनके बसा था दयासिन्धु कर्म प्रधान,

 दीप सा जीवन उत्तम मृत्यु जीवन का मेल,

तम हरण करते रहे सदा जला प्राणों का तेल,

 सामाजिक,प्राकृतिक रंग,श्रृंगार वियोग भाव उन्मुक्त,

जीवन के मूल्य व संवेदना की सरल भाषा में व्यक्त, 

आशीर्वाद रूपी अमृत सी कृतियां दे रही जीने का मर्म 

अक्षर अक्षर में है बसें चैतन्य श्री दयानंद चंदन

अर्णव के अद्भुत मोती, पारसमणि व्योम अनन्त,

दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अर्चना राठौर ने उनकी कहानी न मस्जिद न मंदिर का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया । उन्होंने कहा कि उनकी कहानियों में यह कहानी उन्हें सर्वाधिक प्रिय है।

साहित्यकार इंदु रानी ने स्मृति शेष दयानंद गुप्ता को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कविता प्रस्तुत की --------

 है धन्य भाग्य धरती पीतल की नगरी के

फिर गुप्त दयानंद जना क्यों नही देते


हम धन्य हुए जान के अमृत है ये शहर

इक बार हमे फिर से जता क्यों नही देते


श्री गुप्त दयानंद की जय बोलता जगत

शिक्षा की फिर से ज्योत जगा क्यों नही देते


ये भाग्य मेरा शिक्षा मिली आपकी शरण

भटकूं न फिर से राह दिखा क्यों नही देते


नारी की राहें रौशनी से सींचते हुए

एक बार फिर अलख को जगा क्यों नही देते


इतरा रहा मन सोच के सब आपकी उपज

ऐसे ही पौध और लगा क्यों नही देते


व्यक्तित्व-कृत्य आपका चमकेगा सूर्य सम

छाए हैं जो बादल वो हटा क्यों नही देते


सक्षम नही कलम जो करे आपका बखान

बाधाओं को फिर इसकी मिटा क्यों नही देते


दूषित हुई है राजनीती, विद्या नगरी भी

अच्छाइयों की धूप लगा क्यों नही देते

साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि  कीर्तिशेष परम श्रद्धेय दयानंद गुप्त जी के दर्शन करने का मुझे भी सौभाग्य 1970 में आर्यकन्या इंटर कॉलेज बुद्धबाजार में संभाषण करते हुए प्राप्त हुआ  तब मैं हाईस्कूल का छात्र था । अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी  डॉ मनोज रस्तोगी जी जिनके अथक प्रयासों से परम श्रद्धेय दयानंद गुप्त जी के विशाल और विराट व्यक्तित्व की जानकारी  साहित्यिक मुरादाबाद पटल के माध्यम से हम सभी को प्राप्त हुई है यही नही हमें वे कहानियां पढ़ने को मिली जो हमारे लिए दुर्लभ थीं । इसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।

गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि कीर्ति शेष आदरणीय दयानंद गुप्त जी  के साहित्य में जब डूबना प्रारम्भ किया तब मन डूबता ही गया और मन उनके प्रति श्रद्धा से भर गया।  आपके द्वारा नया अनुभव और  विद्रोही कहानी बहुत ही बेहतरीन हैं और स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि आप की कल्पना शक्ति गजब की है।

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के अंतर्गत स्मृतिशेष दयानन्द गुप्त जी व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित इस कार्यक्रम में सभी की प्रस्तुतियां सराहनीय हैं । इससे हमें बहुत कुछ जानकारी मिली ।

साहित्यकार विवेक आहूजा ने कहा कि दयानन्द जी के गीतों में  हमें जीवन दर्शन मिलता है। सुख दुःख, आशा निराशा , अपना पराया, छल ,उत्पीड़न ,धोखा  सभी भावो को वह अपने गीतों में अभिव्यक्त करते हैं । मै इस मंच के माध्यम से ऐसी महान विभूति श्रद्धेय  दयानंद गुप्त जी को नमन करता हूँ  ।

दयानन्द गुप्त की पुत्री अम्बाला निवासी श्रीमती इला गुप्ता ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद  पटल पर  आयोजित इस कार्यक्रम मेंमेरे पिता के बहु-आयामी व्यक्तित्व की झलक देखने को मिली, साथ ही उनकी कहानियों व कविताओं का सुन्दर विश्लेषण भी पढ़ने को मिला।  पिताजी की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ मेरे स्मृति पटल पर आज भी अंकित हैं:

शबनम से  कहो  धीरे से गिरे ,

कलियों की आंख न खुल जाये !


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन की कृति -मुरादाबाद में ग़ज़ल का सफ़र (नवल राय 'वफ़ा' से 'जिगर' तक । इस कृति का प्रकाशन वर्ष 2020 में गुंजन प्रकाशन मुरादाबाद से हुआ था । इस कृति की भूमिका डॉ रामानन्द शर्मा, डॉ अजय अनुपम, मंसूर उस्मानी और डॉ कृष्ण कुमार नाज ने लिखी है ।



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:::::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822