सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 20 फरवरी 2022 को साहित्य समागम ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । आयोजन की अध्यक्षता अशोक विश्नोई की तथा मुख्य अतिथि डॉ पूनम बंसल रहीं। विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी एवं योगेन्द्र वर्मा व्योम थे। संचालन राजीव प्रखर ने किया। प्रस्तुत हैं कवि गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, डॉ पूनम बंसल, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ अर्चना गुप्ता, शशि त्यागी, बाबा संजीव आकांक्षी, राजीव 'प्रखर', मनोज वर्मा 'मनु', हेमा तिवारी भट्ट, डाॅ ममता सिंह , डॉ. रीता सिंह, कादम्बिनी वर्मा, निवेदिता सक्सेना, प्रशान्त मिश्र, ईशान्त शर्मा "ईशु", शुभम कश्यप 'शुभम' और आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ' की रचनाएं -----


अरे

तुम फिर आ गये

गये नहीं अभी तक

मैं,

कहाँ जाऊँगा मालिक ?

मैं यहीं जन्मा हूँ

यहीं पला हूँज


यहीं आपकी छत्रछाया में

बड़ा हुआ हूँ।

तभी से यहीं खड़ा हुआ हूँ।।

मैं तो,

नीचे से, उपर से

दायें से, बायें से

हर दिशाओं से

हर परिस्थितियों में

उपस्थित रहता हूँ मालिक

आपके आशीष से

समय पर काम करता हूँ

मैं कहाँ जाऊँगा ?

यहीं जन्मा

यहीं मर जाऊँगा,

फिर

मेरी औलाद काम करेगी।

जन्मों जन्मों तक 

आपकी सेवा करेगी।।

मैं तो

आपके आस - पास

ही रहता हूँ।

सत्य को भी

झूँठ में बदलता हूँ।।

आप चाहें या न चाहें

मैं,

हर पल सेवा करुंगा।

जब पुकारोगे

हाज़िर रहूँगा।

मैं,

हर आदेश का पालन 

करता हूँ।

यही तो मेरा श्रेष्ठ शिष्टाचार है ।

मेरा नाम भ्रष्टाचार है ।।


✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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जिधर देखो यही चर्चा चुनावी पर्व आया है।

लिए ढपली खड़े नेता पुराना राग गाया है।।


बरस जब पांच हैं बीते तभी वो नींद से जागे ।

दुहाई दे रहे हैं अब बंधाते प्रेम के धागे ।

समझती है यहां जनता सभी ने तो बनाया है।।


नए वादे नई कसमें चले हैं जीत पाने को ।

खड़े हैं हाथ अब जोड़े यहां वोटर मनाने को ।

किया वादा कभी था जो नहीं वो तो निभाया है।।


कहीं रैली कहीं उत्सव विपक्षी को करें राजी ।

मिलेगी अब किसे कुर्सी लगी है जीत की बाजी ।

नियम इनपर नहीं कोई करोना का  न साया है।।


✍️ डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में 

हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में             


खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी 

गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                 


बढ़ रही है हैवानियत किस तरह

 इंसानियत  हो रही शर्मसार देश में


 'एक्शन' के साबुन से हो जाएगी ये साफ 

वर्दी  जो  हो  गई है दागदार देश में 


चीखने का कोई होगा नहीं असर

 हो गई है बहरी अब सरकार देश में 

 

टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'

जमकर  बिक  रहे  अखबार देश में


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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काश पुनः वापस आ जाये

स्वर्णिम वही अतीत


कभी अपरिचित से रस्ते में

राम-राम करना

और चचा-ताऊ कह मन में

अपनापन भरना

ज़िन्दा थी जो रग-रग में, फिर

बहे पुरानी प्रीत


मुखिया से ही हर घर की

पहचान बनी होना

उलट गया अब जैसे कोई

सपनों का दोना

पुनः दर्ज़ हो घर के नंबर पर

नामों की जीत


वही मुहल्लेदारी, बतियाना

मिलना-जुलना

एक दूसरे से आपस में

हर सुख-दुख खुलना

जीवित हों फिर से जीवन के

वो संबंध पुनीत


✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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यहाँ  सच बात कहने से कभी भी तुम नहीं  डरना।

जिसे स्वीकार ले ये दिल वही बस बात तुम करना।

कभी इंसानियत के  पाठ को ही भूल मत जाना 

वतन के ही लिये जीना, वतन के ही लिये मरना 

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हमेशा वक़्त के सांचे में ढलना  चाहिये हमको।

नहीं दो नाव में रख पाँव चलना चाहिये हम को।

उड़ाने कितनी हो ऊँची, चलें भी तेज हम कितना,

अगर ठोकर मिले कोई सँभलना चाहिए हमको।


✍️डॉ अर्चना गुप्ता, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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सो  जा  मेरे  लाल ,  अंधेरा भागेगा,

नई किरण के साथ, उजाला जागेगा।


तुझे सुनाऊँ आज कथा रणवीरों की,

होती  थी  वर्षा  जहाँ  शमशीरों  की।

हुए  न  वे  भयभीत  कदापि  शत्रु से

सीने  पर  खाई  गोली  संगीनों  की।

उन्हें  याद कर  देश सदा गुण गाएगा

लेकर  माँ  से  रक्त सूर्य फिर आएगा।

सो  जा  मेरे  लाल  अंधेरा  जागेगा

नई  किरण  के साथ उजाला जागेगा।


राफेल और ब्रह्मोस अग्नि बरसाएंगे,

अब भारत राष्ट्र को विश्वगुरु बनाएंगे।

अग्नि  से  विमान  कमाल  दिखाएंगे,

अग्नि  पुरुष  भी  देख -देख हर्षाएंगे।

अब  न  कोई  लाल  मेरा  यूं  जाएगा

मानव रहित विमान ही लड़ने जाएगा।

सो  जा   मेरे   लाल  अंधेरा  भागेगा,

नई किरण के साथ उजाला जागेगा।


✍️शशि त्यागी, अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत

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बहुत चला चलकर थका  तो बस ये  कर लिया।

जहाँ रुके कदम उसी मंज़िल को घर किया।।


बर्दाश्त न हो रहीं हैं उनसे मेरी ऊँचाइयाँ।

उड़ान के लिए हाथों को मैंने जो पर (पंख) किया।।


यकीकन कुछ अपने पराये ज़रूर होंगे।

बेबसी में तकलीफों का ज़िक्र मैंने गर किया।।


कैसे बढ़ेंगे कदम शक है, कशमकश भी है।

उनकी आंखों के अंधेरों से जो मैं डर लिया।।


बड़ी मुश्किल से सम्हाल पाता हूँ दो-दो रिश्तों को।

एक कि खुशियों को जबसे अपना कर लिया।।


यकीनन बुलंदियां सियासत में भी हासिल होंगी।

कुचल जमीर को कदम जो आगे कर लिया।।


✍️ बाबा संजीव आकांक्षी, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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फिर विटप से गीत कोई अब सुनाओ कोकिला।

आस जीने की जगाकर कूक जाओ कोकिला।

हों तुम्हारे शब्द कितने ही भले हमसे अलग,

पर हमारे भी सुरों में सुर मिलाओ कोकिला।

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दोहे

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बैर-भाव-विद्वेष का, कर भी डालो अंत।

पीली चुनरी ओढ़ कर, कहता यही वसंत।।

**

रचने बैठा गीत मैं, लेकर नव उल्लास।

कोकिल आकर घोल दो, इसमें और मिठास।।

**

छेड़े सम्मुख माघ के, कोकिल मीठी तान।

सरसों भी कुछ कम नहीं, फेंक रही मुस्कान।।

***

प्रश्न पुराना कर रही, झोपड़पट्टी आज।

आते मुझ तक क्यों नहीं, आकर भी ऋतुराज।।

**

दफ़्तर अपना धूप ने, पुनः दिया जब खोल।

चंट कुहासा हो गया, आँख बचाकर गोल।।

**

चाहे हम हों ऐ सनम, चाहे राजा आम।

बौराना मधुमास में, दोनों का ही काम।।


✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल,

हम पतंगे  हर  तरफ़  झूठा उजाला आजकल,,


हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी,

किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल,,


कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी,

कौन रोता है बजाहिर.. बात वाला आजकल,,


हादसों  में जिंदगी  घुटनों तलक तो आ गई ,

और  इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल,,


झूठ  बिक जाता है  हाथों हाथ अच्छे दाम में ,

और सच्चाई का मुंह होता ये काला आजकल,,


हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है,

दें  रही  हैं  खुशबुएँ   तेरा  हवाला  आजकल,,


✍️ मनोज वर्मा 'मनु', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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सहजता पर हावी हैं,

औपचारिकताएं

पता नहीं क्यों

सहजता

सहज नहीं हैं अब

और औपचारिकताओं का

सहजता से

कब रहा है तालमेल

है दुनिया के मंच पर

कैसा ये घालमेल

सूरज....

रोज निकलता है

सहजता से

कोई औपचारिकता नहीं।

चांद और तारे

सहजता से

संभालते हैं

अपनी नाइट शिफ्ट

कोई टकराव नहीं

दंभ का

अहम का

वहम का‌

मंचासीन है

गुलाब भी

गुड़हल भी

बसंत की सभा में

अपनी अपनी खुशबुओं को

बिखेरते हुए

बिना मुंँह फुलाये

पर मनुष्यों में

औपचारिकताएं 

चढ़ती जा रही हैं

और मुँह फुलाने की

घटनाएँ

बढ़ती जा रही हैं।


✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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रही पहले सी उनमें  चाहत कहाँ है। 

करें बात हम से जो फ़ुर्सत कहाँ है।। 


हुये पास होकर भी हम दूर उनसे, 

न जाने ख़ुदा की इनायात कहाँ है।।


सुने दिल की धडकन वो नज़दीक आकर, 

मिली हम को ऐसी भी क़िस्मत कहाँ है।। 


करे प्यार कोई दिलो जाँ लुटा कर, 

ज़माने में मिलती वो दौलत कहाँ है।। 


दिलों में मुहब्बत जहाँ बस हो ममता,

कोई तो बताये वो जन्नत कहाँ है।।


✍️ डाॅ ममता सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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कोयल कूक रही है डाली

भोर बनी उसकी है आली 

नींद विदा अब तुम हो जाओ

बीत गयी रैना है काली । 


सूरज झाँक रहा पेड़ों से

पत्ते खेल रहे किरणों से

देख घड़ी यह बड़ी सुहानी

पंछी निकल पड़े नीड़ों से । 


नील गगन में छायी लाली 

ठंडी हवा चली मतवाली

समय सुनहरा बीत न जाये

उठ जाओ अब मेरी लाली । 


✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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"जैसा कि

शब्द मानसते हैं।

कि

हम पूर्ण हो गए 

अक्षर -मात्राओं को पाकर।

वैसे ही 

महसूस होने लगा है

अक्षरों को,

कि

वे भी सक्षम हैं

 सब कुछ कर पाने में....

पर

भूलने लगे हैं अक्षर 

कि

नही है 

उनका कोई अस्तित्व..

कोई पहचान ..

 कोई विस्तार ..

शब्दों से जुड़े बिना......

ठीक ऐसे ही तो 

शब्द भी 

दे पाते हैं

अपना महत्व

वाक्य में जुड़कर ही......

तभी..

जोड़कर रखना होगा 

वर्तमान में...

अक्षर,शब्द,वाक्य, 

सभी को..

बनाकर भाषा,

प्रीत की.....

जिससे बना रहे सामञ्जस्य..

पीढ़ी-दर-पीढ़ी.......


✍️ कादम्बिनी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आखरी सांस लव पे ठहरी है ,तुमसे मिलना बहुत जरूरी है  ।


इसी वहम ने उम्र काटी है, तुमसे बस दो कदम की दूरी है ।


तुमसे मिलना बहुत जरूरी है ।


हमने सूरज से यह हुनर सीखा डूबते वक्त भी सिंदूरी है ।


तुमसे मिलना बहुत जरूरी है ।


तेरे आने के लिए वादाशिकन ।

शाम होना बहुत जरूरी है।

 तुमसे मिलना बहुत जरूरी है।


चलते रहना समय की फितरत है।

साथ चलना भी तो मज़बूरी है 

तुमसे मिलने बहुत ज़रूरी है 

आख़िरी सांस लव पे ठहरी है 

तुमसे मिलना ,,,,,,,


 ✍️ निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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पांच साल की कुर्सी को 

सुनों! कुछ दिन लगा दो जोर,

फिर मैं नेता कहलाऊंगा  

और तुम बन जाना चोर,

 

मेरे सारे वादे पक्के हैं

हम ईमान के सच्चे हैं,

सड़क नाली बनवाऊंगा 

घर-घर पैसा पहुँचाउंगा  

यही मचे... अब शोर... 

पांच साल की सत्ता को 

दोस्तों! कुछ दिन लगा दो जोर

 

गाड़ी होगी, पैसा होगा 

तुम जो चाहो वैसा होगा 

अपनी धूम मचेगी चारों ओर... 

पांच साल की गद्दी को 

भाइयों! कुछ दिन लगा दो जोर

 

घर घर जा कर वोट निकालों 

फिर मेरी कुर्सी सम्भालों 

मैं विधायक बन जाउँगा... 

तुम बनोंगे मेरे घर के ढोर 

पांच साल के ठाठ को 

मित्रों! कुछ दिन लगा दो जोर,


 ✍️ प्रशान्त मिश्र, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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केवल पा लेना ही प्रेम नहीं

किसी को बिना पाए भी,

उसी का होकर रहना

प्रेम है 


जो समझाया ना जा सके,

वो प्रेम है जो महसूस हो बस,

रुह की गहराईयों तक 

वो प्रेम है 


शब्दों से परे बंद आँखों से जो 

महसूस हो,

वो सबसे सुन्दर अहसास

प्रेम है


हर आहट में जिसके आने का विश्वास शामिल हो,

वो हर पल का इंतजार

प्रेम है,


✍️ ईशान्त शर्मा "ईशु", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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आपस में नफ़रतें है फज़ा में तनाव है ।

फिर से हमारे मुल्क में आया चुनाव है।

शतरंज बिछ रही है सियासत की चार सू,

लोगों मे ख्वाहिशों का सुलगता अलाव है ।

ज़िल्लत है ठोकरें हैं मसाईल हैं किस कदर,

दुनिया के चक्रव्यूह में अजब सा घुमाव है ।

दुनिया सफर है दोस्तो मंज़िल नही है ये,

दो दिन की ज़िंदगी से हमे क्यो लगाव है ।

कैसा सिला मिला है ये चाहत के खेल में,

माथे पे उसके हाथ के पत्थर का घाव है ।

अशआर कह रहे हो 'शुभम' नाप तौल के,

 शेरों में आपके तभी इतना कसाव है।

✍️ शुभम कश्यप 'शुभम', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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देश जला है जलने दो

रोग पला है पलने दो

हम रोगों को पालेंगे

देश जला हम डालेंगे

हम गांधी के बंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है।

देश लुटा है लूटने दो

देश बटा है बटने दो

हम देशो को बाटेंगे

अपनो को ही डांटेंगे

हम ही बड़े कलंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है

सत्य घटा है घटने दो

झूठ डटा है डटने दो

जो खाई को  पाटेंगे

तलवो को भी चाटेंगे

वो ही बड़े धुरंदर है

सबसे बड़े सिकन्दर हैं।

 ✍️आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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