सोमवार, 25 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी ज़ाकिर की कविता ---हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और


हम नींद में कविताएँ सुना रहे थे,

हमेशा की तरह औरतों की हंसी उड़ा रहे थे

कि भगवान जी ने कमरे में आकर हमें जगाया-

ऒर एक चांटा हमारे गाल पे लगाया 

बोले,"गधे ! मेरी बात ध्यान से सुन,

उसे अपने मन में बुन

औरत के बिना मर्द का जीवन अधूरा है,

और तू समझ रहा है कि जीवन आदमी से ही पूरा है

हर आदमी को चौबीसों घंटों

औरत की ज़रूरत होती है

सुबह सोकर उठने से लेकर सारे दिन, रात भर और फिर

सुबह औरत ही तेरे साथ होती है

तुझे औरतों का साथ और बात 

,लगता है बखेड़ा,

अबे ,तू सचमुच में है गधेड़ा !

तुझे विद्या,लक्ष्मी और शांति की कामना होती है,

उषा से संध्या तक फिर निशा

में सपना बनकर वो तेरे पास

होती है.

सुबह उठते ही तू कभी गायत्री, कभी गीता,कभी साधना करता है 

श्रद्धा, पूजा ,आरती और वन्दना के मंत्र जपता है

अपने कर्म के बदले में तू प्रतिष्ठा और कीर्ति चाहता है

और फिर भी  औरत को मज़ाक उड़ाने की चीज़ मानता है

अंधेरे में ज्योति, बुढ़ापे में प्रेम

और युद्धभूमि में वह विजया बनकर तेरे साथ होती है

इस तरह, हर समय, हर जगह, हर आयु में औरत तेरे

पास होती है

मां बेटी ,बहन, पत्नी, प्रेमिका बनकर वो तेरा साथ निभाती है

और अपने आप को देख नाशुक्रे,

वो तुझसे अपनी हंसी

उड़वाती है

हमने कहा,

ठीक है भगवन, पर आपसे एक सवाल है,

क्या आपके यहाँ देवलोक में भी यही हाल है ?

भगवान नेअपना मुकुट हटाकर सिर खुजाया,

और

फुसफुसा कर ये, सच बताया

भय्या ए.टी ज़ाकिर ,

देव लोक में भी हमारी बीबियों का यही हाल है

और मेरे जॆसे हर भगवान की

ज़िन्दगी मुहाल है

अब देख यार,आज सुबह ही

हमारी देवीजी ने बिना चाय- नाश्ते के हमें घर से निकाला हॆ,

और तुझे ठीक करके आने 

का फंदा हमारी गर्दन में डाला है

अब तेरी मरम्मत करके ही हमें देव लोक में वापिस जाना हॆ,

वरना बेटा ,आज चाय- नाश्ता, खाना कुछ नहीं पाना है

✍️ ए टी ज़ाकिर

आगरा

उत्तर प्रदेश, भारत


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