नाम : रामावतार त्यागी, जन्म : 1935, स्थान : कुरकावली, तहसील संभल, जिला तत्कालीन मुरादाबाद, देहावसान : 12 अप्रैल 1985 नई दिल्ली, शिक्षा: स्नातकोत्तर हिंदी ,दिल्ली विश्वविद्यालय
नया खून, मैं दिल्ली हूं, आठवां स्वर, गुलाब और बबूल वन, महाकवि कालिदास रचित मेघदूत का काव्य अनुवाद करने वाले, समाधान, चरित्रहीन के पत्र , दिल्ली जो एक शहर था, राम झरोखा ,व्यंग्य स्तंभ और गद्य रचनाएं रचने वाले, समाज, समाज कल्याण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स में संपादन कार्य करने वाले, अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ पढ़ाई जाने वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, बलवीर सिंह, देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र की कवि कुल पीढ़ी के ज्वालयमान नक्षत्र।
खड़ी है बांह फैलाए हुए हर और चट्टानें / गुजरती बिजलियां अपनी कमानें हाथ में ताने/ गजब का एक सन्नाटा कहीं पत्ता नहीं हिलता / किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता । हो, या जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है अथवा विचारक है ना पंडित हैं ना हम धर्मात्मा कोई, बड़ा कमजोर जो होता वही बस आदमी हैं हम। जैसे सैकड़ों अमर गीतों के रचयिता गीत कवि रामावतार त्यागी के साहित्यिक अवदान के बारे में तो पूरा काव्य जगत मुझसे कहीं बहुत अधिक....बहुत अधिक ही जानता है, पहचानता है और मानता है। संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत ने उनके गीतों की विशेष रूप से सराहना करते हुए उनकी प्रतिभा का लोहा भी माना है, किंतु रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी में ना जाने क्या-क्या तलाशने में लगे रहे काव्य जगत से जुड़े लोग उनके व्यापक और विराट व्यक्तित्व के बारे में शायद दो चार पायदान ही चल पाए हो।
मैं जो उसी कुल गांव और गोत्र और कुरकावली के उसी खानदान में जन्मा जिसमें रामावतार त्यागी (ताऊ जी) का अवतरण हुआ। मेरी आयु लगभग 9-10 वर्ष की रही होगी। सन 70 और 80 के दशक में तब ताऊ जी का किसी शादी - विवाह के अवसर पर गांव में आना-जाना हुआ करता था अथवा वह किसी साहित्यिक यात्रा पर जब इधर से निकलते थे चाहे वह मुरादाबाद हो, बदायूं हो, चंदौसी हो, बरेली या शाहजहांपुर जाते थे तो निश्चित रूप से कुरकावली अवश्य आया करते थे। उनको अपनी जन्मभूमि किसी तीर्थ स्थान की तरह लगती थी। उनके समय के अनेक ख्याति प्राप्त सुकवि उनके साथ कुरकावली आकर दालान पर रात्रि प्रवास कर चुके थे । जाने कितने छपने और छापने वाले महान संपादक और कवि उनके घर की बनी बाजरे की रोटी, देसी घी पड़े साग से खाकर धन्य हो गए । पता नहीं, क्यों मुझे बचपन से ही उनके कवि होने से बेहद लगाव था। उनके अस्तित्व से मैं कुछ ज्यादा ही प्रभावित था । वह जब गांव आकर उठने बैठते, मेरे दादाजी बाबूराम त्यागी जो उन्हीं की उम्र के थे उनके पास आया करते थे तब उनके सभी खानदानी भाई चारों ओर खाटें बिछा कर बैठ जाया करते थे। उनको देखा करते और सुना करते थे। मैं जो बहुत अधिक गाने- बजाने में रुचि रखता था, पिताजी से डरकर किसी कोने में खड़ा होकर उनकी बातें सुना करता था। मुझे याद है कि उस समय 'जिंदगी और तूफान', महावीर अधिकारी जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म आ चुकी थी और उसमें उनके गीत का तहलका पूरे विश्व में मच चुका था तब गांव आने पर उन्होंने सभी को अपने अन्य गीत सुनाने के बाद 'जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है' बहुत मन के साथ सुनाया था। मेरी स्मृतियों में सुरक्षित है जब बहन शारदा की बारात हापुड़ के चमरी गांव से आई थी तो विदाई के समय बारातियों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने यूं ही खड़े होकर अपने कुछ गीत सुनाए थे , जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे----
किसी गुमनाम से गांव में पैदा हुए थे हम
नहीं है याद पर कोई अशुभ शाही महीना था
रजाई की जगह ओढी पुआलो की भवक हमने
विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था
रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।
रामावतार त्यागी के खरेरे खरे और खुरदरी व्यक्तित्व में यदि सच और कृतज्ञ भाव न होता तो वह एक अहंकारी व्यक्ति के रूप में जाने और पहचाने जाते । उनका अकड़पन उनका खरेरा पन ही उनके व्यक्तित्व को अनेक लोगों से कोसों दूर.... बहुत दूर ऊपर की ओर ले जाता है। मुझे भली-भांति याद है कि जब कभी भी उनका गांव आना होता था तो वह गांव के अपने सभी पुराने यार- दोस्तों से बिल्कुल गंवई अंदाज में मिलाजुला करते थे। कोई बनावट नहीं, कोई बड़प्पन का दिखावा भी नहीं। तहमद अर्थात लुंगी बांधे हुए गांव के बीचो-बीच कुंए की मन पर बैठकर घंटों हास परिहास करना वह भी ठेठ ग्रामीण भाषा और शैली में मजाक करना, जस्सू बाबा की चौपाल पर बैठकर घंटों हुक्का ताजी करवा कर पीने वाला व्यक्ति गणमान्य होते हुए कितना सामान्य है। यह आंखों पर मोटा चश्मा लगाए और हवाई चप्पल पहने हुए हाफ शर्ट पहने हुए गांव की शैली में हंसने हंसाने और प्यार में गरियाने वाला व्यक्ति देश का जाना माना स्थापित गीतों का शहंशाह रामावतार त्यागी है ।
यह था उनका विराट व्यक्तित्व जिसमें गांव जीवन उफान मारता था । भले ही देश की राजधानी के विशाल सभागारों और ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं में उनके गीत गूंजते थे लेकिन उनके भीतर पूरा एक गांव जिंदा था जिसमें खेत थे, खलिहान थे, बाग थे, दालान थे, कहकहो का एक पूरा संसार था तभी तो प्यार, तकरार, झूठ , मनुहार वाले उनके तेवर थे। तभी तो वह कह भी दिया करते थे
मैं तो छोड़ मोह के बंधन अपने गांव चला जाऊंगा
तुम प्यारे मेरे गीतों का गुंजन करते रह जाओगे
उनकी हठ में प्रेम था और प्रेम में हठ... इस हद तक कि वह जिसको अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करते थे उसी से संबंध विच्छेद कर देने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ लेकिन पश्चाताप में उन्होंने ऐसे हृदय विदारक विच्छेदनों को किसी उपासना से कम, किसी तीर्थ से कम अपने जीवनपर्यंत नहीं माना लोगों ने रामावतार त्यागी के दूसरे विवाह के बारे में तो सुना ही होगा और साथ में उनसे जुड़ी अथवा जोड़ी गई बहुत सी बातें भी सुनी होंगी पर यह कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने प्रथम विवाह का सम्मान जीवन पर्यंत पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। मेरा आशय उनकी पहली पत्नी और हमारी ताई जी कांति त्यागी से है, जब तक वह जीवित रही रामावतार त्यागी जी ने कुरकावली के अपने घर ,जमीन, गांव एवं उनसे जुड़े रिश्तो के ऐश्वर्य से कभी भी छेड़छाड़ नहीं की। घर की संपूर्ण संपत्ति, यश और कीर्ति पर क्रांति ताई जी का ही हक जीवन पर्यंत रहा।
रामावतार त्यागी बहुत संकोची एवं शर्मीले व्यक्ति भी थे। उस समय घर की आर्थिक परिस्थितियां उच्च शिक्षा के पक्ष में नहीं थी। जमीदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे किंतु वह पढ़ना चाहते थे। पिताजी का अध्यादेश यह था कि अब घर का अपने हिस्से का काम रामावतार तुझे भी करना है, इसका वह स्वयं विरोध नहीं कर पाए किंतु अपने चाचा जी भीमसेन त्यागी जी के द्वारा रोने धोने का कारण पूछने पर उनको ही अपनी व्यथा कथा सुनाई। चाचा जी भीमसेन जी के द्वारा पिताजी के समक्ष यह आश्वासन देने के उपरांत ही कि रामावतार के हिस्से का काम मैं कर लूंगा, के उपरांत ही गीतों की सुपरफास्ट राजधानी एक्सप्रेस को आगे बढ़ने की हरी झंडी मिल पाई । वह रिश्तो में बहुत ईमानदार और वफादार थे। बात उन दिनों की है जब उनका मुंबई आना- जाना हुआ करता था। वह मुंबई में थे अपने गीतों के सिलसिले में और चाचा भीमसेन जी का कुरकावली में घोड़े तांगे से गिरकर एक्सीडेंट हो गया था। दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में छोटे चचेरे भाई ओमवीर के हाथों में चाचा जी ने अपनी अंतिम सांस ले ली थी और ओमबीर सिंह को पिताजी का शव अस्पताल प्रशासन ने किसी कारण से देने से मना कर दिया था तब वह जैसे ही दिल्ली पहुंचे अपना आपा खो बैठे। इससे पहले शायद किसी ने उनका यह रूप पहले नहीं देखा था। उन्होंने अस्पताल के प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई और वहीं जमीन पर बैठ गए और तब तक नहीं उठे जब तक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, ललित माकन आदि जैसे लगभग आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री मौके पर नहीं आ गए । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विशेष सम्मान के साथ उनके चाचा जी की अंत्येष्टि संपन्न हुई और उसमें पूरे समय तक सभी उपस्थित रहे मंत्रीगण । ऐसे अड़ियल व्यक्तित्व के स्वामी भी थे रामावतार त्यागी।
रामावतार त्यागी को विसंगतियों और विरोधाभासो से युक्त व्यक्तित्व यूं ही नहीं कहा क्षेमचंद सुमन जी ने। उसके पीछे एक बहुत बड़ा और मजबूत आधार है। एक ओर जहां साहित्य जगत में उनके अकड़पन तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैए को लेकर जीवन पर्यंत विवादों और चर्चाओं का बाजार गर्म रहा वहीं दूसरी ओर उनके भीतर बैठा एक प्रेम करने वाला गीतकार अपने गीत रचता दिखाई देता रहा। कुछ इस प्रकार----
आंख दो टकरा गई हो
जब किसी के लोचनो से
हो गया हो मुग्ध जो भी
रूप के कुछ कम्पन्नो से
मौन जीवन वाटिका में प्यार के तर्वर तले
मिल गए हो प्राण जिसको राह में आते वनों से
उन मिलन के दोस्तों का नाम केवल जिंदगी
रात की तड़पनो का नाम केवल जिंदगी
इसी के साथ प्रेम की प्रेम की प्राणघातक पीड़ा जिस हृदय मे अपना विजय ध्वज शान से फैला रही हो उसी ह्रदय के रोशनदानो से आम जनों शोषितो वंचितों के लिए कितना गहरा दर्द था-----
सौगंध हिमालय की तुमको
योग का इतिहास बदल दो
यह भूखे कंगाल सिकुड़ते रातों में
दिया गया नूतन विधान जिनके हाथों में
इससे तो पतझड़ अच्छा
ऐसा मधुमास बदल दो
सौगंध हिमालय की तुमको
युग का इतिहास बदल दो
..कहने को और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, सुना जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है रामावतार त्यागी के विराट और अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में । मैं उन जैसे महान रचनाकार के बारे में क्या कह सकता हूं केवल बालस्वरूप राही के शब्दों के साथ अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझता हूं। उन्होंने शायद ठीक ही कहा था कि आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता ।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्कुरकावली ,जनपद संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
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