शनिवार, 6 मई 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी.....अपराजिता


..... जल्दी करो डॉक्टर!.....खून बहुत बह गया है....ये आईपीएस अधिकारी बिजेत्री हैं इनको पांच गोलियां लगी हैं ....20 लाख के इनामी दुर्दांत डाकू गुलाब सिंह के पूरे गिरोह का सफाया कर दिया इन्होंने   ..... 15 लोग मारे गये एक दरोगा और सिपाही की भी मौत हो चुकी है.......! 

.........आंखें खुली..चेतना शून्य कौमा में पहुँच चुकी हैं....... बचने की बहुत कम संभावना है.....! परन्तु आई पी एस विजेत्री की चेतना अवचेतन मस्तिष्क में कुछ और ही दौर से गुजर रही थी......! 

..... मैं विजेत्री ! मेरी कहानी तो मेरे जन्म से पहले ही शुरू हो चुकी थी जब मैं 4 महीने के भ्रूण अवस्था में थी तभी मेरे दादा दादी ने मां को हुक्म सुनाया.."तैयार हो जाओ तुम्हें हमारे साथ नर्सिंग होम चलना है, पता लगाना है लड़का है या लड़की!....हमें लड़का ही चाहिए कोई लड़की नहीं चाहिए! "    "समाज में   कोई बेइज्जती नहीं चाहिए" ....उनकी बातें सुनकर मेरा दिल दहल गया क्योंकि मुझे तो पता था कि मैं लड़की हूं जबकि मेरे पापा ने मां से कह रखा था "पहला बच्चा है  हमें न तो भ्रूण परीक्षण कराना है और न एवोर्शन!लड़की हो या लड़का......लड़की भी हमारे लिए  उतनी ही प्रिय होगी जितना कि लड़का इसलिए अम्मा बापू के कहने में मतआजाना!.........मेरी छुट्टी खत्म हो रही हैं मैं जा रहा हूँ........!"

     परन्तु मम्मी ठहरी गाँव की भीरू स्त्री.... बड़ों का कहना सिर झुका कर स्वीकार करना उनकी नियति बन चुका था...मन मार कर उन्हें दादा दादी के साथ नर्सिंग होम जाना ही पड़ा !

    वैसे मां खूब तंदुरुस्त थीं ....प्रेगनेंसी में लड़का मोटा तगड़ा हो उनके घर की एक लाठी जो तैयार होने जा रही थी...इसलिए माँ की खुराक बढ़ा दी गयी थी विशेष आवभगत की जाती थी.......! 

    अल्ट्रासाउंड हुआ और मेरे अस्तित्व की पोल खुल गई ..... दादा दादी पुराने खयालात के लोग थे तुरंत मेरे कत्ल का आदेश जारी हो गया .....हमें लड़की नहीं चाहिए......डाक्टर ! तुरंत अवोर्शन कर दीजिये!..........मैं स्तब्ध भय से थर थर कांप रही थी.....माँ भी बहुत डर रही थी..... ! 

       4 महीने का भ्रूण नन्ही सी जान.......बड़े-बड़े औजार मुझे खत्म करने के लिए आगे बढ़े परन्तु मै शुरू से चालाक थी  बिल्कुल दीवारों से चिपक गई और उनके हथियारों  के हाथ नहीं आई डॉक्टर बहुत हैरान थी  डॉक्टर ने कहा अगले हफ्ते आना सब ठीक से हो जाएगा मैं उस रात बिल्कुल नहीं सोई....आतंक से थरथर कांप रही थी लगातार रोये जा रही थी ....मन में कह रही थी पापा जल्दी आ जाओ अपनी बिटिया को बचा लो!....पापा आपके घर के एक कोने में पड़ी रहूंगी!....किसी चीज की जिद नहीं करूंगी सब कुछ भैया को दे देना..... मै रूखा सूखा खा कर रह लूंगी .....अच्छे कपड़ों की जिद भी नहीं करूंगी.....चाहे मुझे स्कूल भी मत भेजना.,.पापा आपके घर भैया तो आ जायेगा पर जरा सोचो उसकी कलाई पर राखी कौन बांधेगा ?...भैया दूज कौन करेगा.?..भैया जब दूल्हा बनेगा देहली घेर कर हक कौन मांगेगा.?...बहन वाली शादी की रस्में कौन पूरी करेगा.? फिर सोचो कहते हैं कन्या दान के बिना मुक्ति नही मिलती...!....लौट आओ पापा !.....आप कहाँ हो यहाँ आपकी अजन्मी बेटी की हत्या की योजना बन रही है .....! मेरे मन की बात शायद भगवान ने पापा तक पहुंचा दी  पापा को खबर लगी वे लौट आए....घर में बहुत हंगामा हुआ......मै सुबक पडी़......मेरे प्यारे पापा! मुझे बचा लेंगे !....

.............दादा दादी से गरज कर बोले "ऐसा कुछ भी नहीं होगा!" दादा दादी से उनकी बोलचाल भी बंद हो गई ....बहुत कहासुनी हुई....डाक्टर को जेल कराने की धमकी दे कर पापा वापस चले गये..... सो डॉक्टर ने दादी से साफ मना कर दिया........ गर्भ पात अपराध है.... ! 

   अब अचानक माँ के खान पान पर ध्यान देना बन्द कर दिया गया

इधर माँ को सफेद मिट्टी खाने की प्रबल इच्छा होने लगी वे मिट्टी खाने लगीं....! उस सबका मेरे स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा जैसे तैसे मुझे दुनिया में लाया गया परंतु कमजोर होने के कारण माँ को बचाना भारी पड गया आपरेशन से इंफेक्शन हटाने में गर्भाशय ही निकालना पडा़ वे अब पुनः और बच्चे को जन्म नहीं दे सकती थी...कमजोरी की वजह से मुझे भी विशेष निगरानी में अलग मशीनों में रखा गया जैसे तैसे मैं बड़ी हुई और मैंने अपने कार्यों से लोगों को चमत्कृत करना शुरू कर दिया हर जगह हर काम में मैं प्रथम रहती....दादा दादी की मानसिकता में परिवर्तन हो इसलिए मैंने लड़को जैसे बाल, लड़कों के खेलों में भाग लेना शुरू किया धीरे-धीरे मैं बड़ी हो गई और मेरा सलेक्शन आईपीएस में हो गया मेरे पिता मुझसे बहुत खुश रहा करते  थे परंतु दादा दादी का दिल मैं कभी नहीं जीत सकी ! बोले...".भला अब इस लड़की से शादी कौन करेगा"....? 

.....इन दिनों मुझे एक गंभीर मिशन  सौंपा गया....खूंखार डाकू गुलाबसिंह का गिरोह सहित खात्मा!.....जो न जाने कितने कत्ल और डकैतियां कर चुका था....लंबी  7 फुट ऊंची चौडी़ कद काठी....,चौडी़ छाती  बड़ी-बड़ी जलती हुई आंखें लम्बी मूछें मेरा सामना मानो नर पिशाच से हुआ था उसका गिरोह उस समय का सबसे खतरनाक गिरोह था एक पुराना खंडहर इस गिरोह का ठिकाना था  रात को मुंह पर  नकाब लगाकर गांव में निकल पड़ता था जनता और पुलिस सभी इससे आतंकित थे......मैंने भी ठान लिया था इसके गिरोह का सफाया मेरे ही हाथ से होगा......रात में जैसे ही मैं उसके गढ़ में पहुंची है वहाँ गोलियों की बौछार होने लगी एनकाउंटर शुरू हो गया थोडी़ ही देर में एक सब इंसपेक्टर और एक सिपाही को गोली लगी....यह देख कर मेरे सभी साथी छोड़ भागे पर मैंने साहस नहीं छोड़ा और एक-एक कर 15 डाकुओं को मौत के घाट उतार दिया अंत में बचा खुद गुलाब सिंह उसमें बहुत बल था लात घूँसों  से उसने मुझे अधमरा कर दिया.....मेरे शरीर के अंदर पांच गोलियां लगी थीं फिर भी मैंने अंतिम क्षण तक साहस नहीं छोड़ा मैंने छुपे हुए खंजर से उसके सीने पर बार किया उसने हाथ से बड़ी मजबूती से मेरा गला पकड़ रखा था जिसका दबाव लगातार मेरे गले पर बढ़ता जा रहा था ,  मेरी सांस उखड़ रही थी जिंदगी और मौत के बीच एक बारीक सी लाइन बची थी....फिर मैंने खंजर से कई बार उसके ऊपर किये...अज्ञात शक्ति मेरा साथ दे रही थी ....मरने से पहले  मैंने एक गोली उसके सर पर दागी जिससे उसके हाथ का दबाव मेरे गले पर अचानक कम हुआ और गुलाब सिंह जमीन पर गिर कर ढेर हो गया, मेरी चेतना मुझसे कह रही थी जब मैं पहले न  मरी तो अब क्या मरूंगी.........

    ......प्रशासन की ओर से मुझे देखने वालों का तांता लग गया, सभी लोग मेरे जीवन की सलामती की दुआ कर रहे थे परंतु कुछ लोग ऐसे भी थे जो कि सोच रहे थे  अब  बचेगी नहीं ...जाने कितने सीनियर अफसर मन ही मन खुश हो रहे थे क्योंकि उनकी महत्वाकांक्षा यह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि किसी महिला  आईपीएस को इतना मान सम्मान मिले देखिए क्या होता है,. ....मैं, अब होश खोती जा रही हूं ईश्वर मेरी रक्षा करें...... 

* 3 दिन बाद*

 ......कई बार सर्जरी हुई एक एक करके पांच गोलियां निकाली गयीं... ...  मेरे  घाव काफी भर चुके थे... 

...एक बड़े समारोह में पुलिस की ओर से मुझे बीस लाख का इनाम और मेडल मिलने वाला था....

मैं मंच से अपने दादाजी  सुल्तान सिंह को पुकारती हूँ मेरे दादाजी कृपया मंच पर आएं ..मैं उनके हाथ से ही ये सम्मान लेना चाहती हूं.......!

. ...... दादा दादी आज बहुत भावुक हो रहे थे.....अश्रुधारा कब से झुर्रियों को भिगोये जा रही थी.....किंकर्तव्यविमूढ़ से बस एक टक मुझे ही देखे जा रहे थे परन्तु आज ये आंसू पश्चाताप और खुशी के थे मानो कह रहे हों बेटी विजेत्री तूने हमारे सारे सपने साकार कर दिये......हमें इस बुढ़ापे में गौरव के पल देकर निहाल कर दिया ......

.....तेरे जैसी बिटिया पर  कितने ही बेटे कुर्बान!.....

  ... ...उन्हें पकड़ कर मंच पर लाया गया दादा जी ने कांपते हाथों से माइक पकड़ा बोलना शुरू किया बेटी विजेत्री! बेटी बिजेत्री! हमने कभी तुम्हारी कद्र नहीं की....!अरे हम तो तुझसे जीने का अधिकार ही छीने ले रहे थे भगवान हमें क्षमा करें..... ्..

.....आज तूने साबित कर दिया.हम गलत थे....... और हम गलत साबित होकर  बहुत खुश हैं... 

........बेटी विजेत्री हमें तुम पर गर्व है भगवान सब को तुम्हारे जैसी बेटी दे लोगों को बेटियों की रक्षा करनी चाहिए ,, बेटे बेटी में बिल्कुल भेद नहीं करना चाहिए......आज विजेत्री न होती तो क्या हमें यह गौरव प्राप्त हो सकता था....... ?... 

✍️ अशोक विद्रोही 

412, प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 8218825541

3 टिप्‍पणियां:

  1. Social issue per nice naajariya ,Ashok ji..best of luck..hopping more stories on such issues in future


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    1. हृदय तल से आभार आदरणीय 🙏🙏नमन अवश्य आगे भी आपको इस विषय पर पटल पर पढने को मिलेगा।

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