ख़ुद को ढूँढ़ के लाने में यार! ज़माना लगता है
यूँ पागल हो जाने में यार ! ज़माना लगता है
मेरी हँसती आँखों में आँसू ठहरे पाओगे
रोके अश्क बहाने में यार ! ज़माना लगता है
हमको उनसे इश्क़ हुआ जाने कब कह पाएँगे
दिल की बात बताने में यार! ज़माना लगता है
कितनी रातों की नींदें लूटीं उला-सानी ने
मिसरों को बैठाने में यार! जमाना लगता है
'रूपा' आख़िर कब तक तू उनका रस्ता देखेगी
जाकर वापस आने में यार! ज़माना लगता है
✍️ रूपा राजपूत
गाजियाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें