बना लिया जिनको यहाँ, निर्धनता ने दास।
धनतेरस पर हो भला, उनमें क्या उल्लास।।1।।
खील-बताशे-फुलझड़ी, दीपों सजी क़तार।
ले आई दीपावली, कितने ही उपहार।।2।।
हो जाये संसार में, निर्धन भी धनवान।
लक्ष्मी माता दीजिए, कुछ ऐसा वरदान।। 3।।
हो जाये संसार में, अँधियारे की हार।
भर दे यह दीपावली, हर मन में उजियार।। 4।।
निर्धन को देें वस्त्र-धन, खील और मिष्ठान।
उसके मुख पर भी सजे, दीपों सी मुस्कान।। 5।।
दीवाली के दीप हों, या होली के रंग।
इनका आकर्षण तभी, जब हों प्रियतम संग।।6।।
✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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