दीपक राह निहारते, है अँधियारी रात।
सबसे पहले सुमर लें,गणपति जी की बात।।1।।
अंतर्मन गणपति बसा, जीमे छप्पन भोग।
मोदक सोहे हाथ में, कैसा शुभ संयोग।।2।।
राम चरित मानस भला,सु रचित तुलसी संत।
जन -मन की पीड़ा हरे, करें कष्ट का अंत।।3।।
इस अंधेरी रात में, दीप दिखाता राह।
सुमिरन हो श्री राम का, कष्टों का हो दाह।।4।।
श्वास -श्वास में राम हैं, तन में मन में राम।
हर पल मन यह गा रहा,राम नाम अविराम।।5।।
राम नाम विश्वास है, सुमिरन का आधार।
राम नाम की नाव से, भव सागर हो पार।।6।।
दीप कहो दीपक कहो, या कहो शुभ चिराग।
उर सदा उल्लसित रहे, गूंँजे जीवन राग।।7।।
सूनि देहरी साजते, जलते बाती तेल।
जलते दीपक कह रहे,बिछड़ों का हो मेल।।8।।
पिता तुल्य इह लोक में, अन्य नहीं इनसान।
हर बालक के मन बसा, यथा होत भगवान।।9।।
सारी धरती गेह है, अंबर तक फैलाव।
मानवता अपनाइए, तब ही होत लगाव।।10।।
✍️शशि त्यागी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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