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रविवार, 28 मार्च 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता --------होली की घर-घर सजावट है, संस्कारों में आई खूब गिरावट है


आज शुद्ध विचारों का अभाव है,

लेकिन प्रदर्शन का अजीब चाव है,

होली की हमने भी दी हैं बधाईयां,

मगर सोचो! कैसा मन का भाव है?


होली की घर-घर सजावट है,

संस्कारों में आई खूब गिरावट है,

चोरों की मंडी में आई है बहार,

मावे में भी मैदा की मिलावट है।


फिर भी हमने गुजिया खाई है,

पुरखों की परम्परा निभाई है,

आज घर-घर में बैठी है होलिका,

फिर भी गोबर की होली जलाई है।


टेसू-गुलाल की केवल यादें रह गईं,

खीर-पूड़ी की फरियादें रह गईंं,

नहीं मिलते,अब भाई भी दिल से,

जलती होली की सूनी राते रह गईंं।

✍️ अतुल कुमार शर्मा, संभल

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का गीत ----- लिखे काली करतूतों की गाथा,ऐसी लेखनी चाहिए, व्यवस्थाओं को जो बदल डाले,ऐसी जवानी चाहिए....


 विश्व में लहराए पताका, ऐसी राजधानी चाहिए,

व्यवस्थाओं को जो बदल डाले, ऐसी जवानी चाहिए।

सत्य हराने को रिश्वत में जो नोट होता है, हर नोट पर ''सत्यमेव-जयते'' लिखा होता है।

''सत्यमेव-जयते'' का अपमान अब बंद हो,

हर भ्रष्टाचारी के मुंह पर, घोर प्रतिबंध हो।

लिखे काली करतूतों की गाथा,ऐसी लेखनी चाहिए,

व्यवस्थाओं को जो बदल डाले,ऐसी जवानी चाहिए।।


पवित्र गंगाजल भी जब गंदा होने लगे, जोरों पर गौकशी का धंधा होने लगे।

युवा रोजगार को त्रस्त हो, 

फिर भी बुक छोड़, फेसबुक पर मस्त हो।

लिखे जो प्रेमिका के किस्से केवल,ना ऐसी कहानी चाहिए,

व्यवस्थाओं को जो बदल डाले,ऐसी जवानी चाहिए।।


वृद्ध जब अनाथालय में सिसकने लगे,

सत्य जब न्यायालय में तड़फने लगे।

तब हमारी गीता भी ,आंसू छलकाएगी,

कलिकाल की मूरत भी, जोरों से खिलखिलाएगी।

ऐसे में युवाओं के, रुधिर की रवानी चाहिए,

व्यवस्थाओं को जो बदल डाले,ऐसी जवानी चाहिए।।

✍️ अतुल कुमार शर्मा, निकट प्रेमशंकर वाटिका,

संभल, मो०9759285761, 8273011742


मंगलवार, 12 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता ---हिन्दी मेरी शान है, मान है, पहचान है , हर भारतवासी हो हिंदीभाषी, यही मेरा अरमान है


हिंदी मेरी शान है, मान है, पहचान है ,

हर भारतवासी हो हिंदीभाषी, यही मेरा अरमान है।

इस धरा का कण-कण बोले, मेरी प्यारी भाषा को,

अखिल विश्व में मान पाए यह, पंख लगें इस आशा को।

अमृतपान किया मानो, हिंदी ने पाई अमरता है,

करता प्रेम हिंदी से जो, सूर्य समान चमकता है।

हिंदी-प्रेमी तारे-सितारे, मरकर अमर हो गए जो,

मातृभाषा की सेवा में, गगन छू गए सेवक वो।

लो उदाहरण कुछ सूर-तुलसी-बिहारी और मीरा का,

कबीर ,जायसी ,दिनकर और,भूषण जैसे हीरा का।

हिंदी की सेवा में ,जीवन अर्पित कर गए जो ,

पाया यश और मान इन्होंने,साहित्य समर्पित कर गए वो।

कंठ में धारै जो इस भाषा को, पाए मान वह हिंदी से,

ज्यों मान बढ़ाए सधवा का, भाल सजै ज्यों बिंदी से।

सरलता,सरसता है श्रृंगार, सादगी जिसका ताज है,

रस ,अलंकार ,आभूषण प्यारे,

मधुर वाणी जिसका राज है ।

ऐसी प्यारी हिंदी को गर, मान न हम दे पाएंगे,

तो विश्व में अपने आप को ,खुद ही ढूंढते रह जाएंगे ।


🎤✍️ अतुल कुमार शर्मा, संभल

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी --------समझदारी के लपेटे में कोरोना

 


कोरोना का नाम सुनते-सुनते कान भी अभ्यस्त होने लगे, जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया, और आदमी ही आदमी से डरने लगा। एक दिन  अर्चना ने अपनी बूढ़ी दादी से पूछा कि अम्मा!  क्या है कोरोना की असली कहानी ? दादी ने कहा -ना बेटी ना!नाम भी मत ले ,इस मनहूस बीमारी का। इसने मेरे परिवार को परेशान करके रख दिया ,तेरा बापू बैंक से सारे पैसे निकाल लाया और तेरी मम्मी के जुड़े-जुड़ाये पैसे भी घर के सामान लाने में खर्च हो गए,रोजमर्रा का खर्च मजदूरी करके निकल रहा है। हर बार दीवाली पर ,मैं बच्चों को नए कपड़े दिलाती थी लेकिन इस बार,एक रुमाल भी नहीं खरीदा,क्योंकि पेट के लिए रोटी और बालकों की पढ़ाई-लिखाई सबसे पहले है। भगवान अपनी कृपा बरसाएं !सब कुछ ठीक-ठाक हो जाए,इस बीमारी का जड़ से नाश हो जाए। आज हिंदुस्तान में ही क्या, पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, कई लाख लोग, इस बीमारी से चल बसे।तेरा बापू भी टेलीविजन पर सुनकर आया था कि अपनी सुरक्षा अपने हाथों में ही है, कह रहा था कि थोड़ी-थोड़ी देर पर हाथों को साबुन से धोते रहो, शारीरिक दूरी बना कर रखो, किसी अनजान आदमी से मत मिलो ,मुंह पर मास्क लगाकर रहो। अर्चना ने मुस्कुराकर कहा- अम्मा यह सब बातें तो हमारे स्कूल वाले सर जी ने पहले से ही बता रखी हैं। पूरे गांव में घूमकर भी उन्होंने कोरोना से बचने के उपाय बताए थे, इसलिए ही बाजार भी बंद हुए थे, ताकि भीड़-भाड़ ना हो, लोग एक दूसरे के संपर्क में कम से कम आएं।

दादी बोली- हां सब मालूम है मुझे ,ज्यादा वकील मत बन। तू पढ़ाई पर ध्यान दे, सबक भूल गई तो अच्छी तरह खबर लेंगे तेरे मास्टर और मास्टरनी । पड़ोस के चौधरी साहब कह रहे थे कि शहर वाले कॉन्वेन्ट स्कूल से मोबाइल पर पढ़ाई आ रही है और साथ में फीस की खबर भी। क्यों बेटी! तेरी पढ़ाई कैसे पूरी होगी?

अर्चना ने कहा- दादी,मेरा स्कूल सरकारी जरूर है लेकिन प्राइवेट से किसी बात में कम नहीं है मेरे स्कूल का भी व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें रोजाना काम आता है और मैं होमवर्क करके भेजती भी हूं।सभी बच्चे इसी तरह काम पूरा करते हैं। जिन बच्चों पर बड़ा(एन्ड्राॅइड) मोबाइल नहीं है वे पड़ोस के बच्चों से काॅपी लेकर पूरा करते हैं ।रही बात फीस की, तो हमारे सरकारी स्कूल में फीस तो कोई है ही नहीं, बल्कि स्कूल से यूनिफॉर्म, किताबें ,जूता-मोजा,स्वेटर और मिड-डे-मील (खाना) भी मिलता है। मेरे पिताजी को,फीस की कोई टेंशन नहीं है , उन्होंने सही किया जो कि मेरा एडमिशन सरकारी स्कूल में करा दिया वरना प्राइवेट स्कूल में तो बिल्डिंग फीस, एग्जाम फीस,कंप्यूटर फीस जैसी बहुत सारी फीस देते-देते परेशान हो जाते।

अर्चना आत्मविश्वास से लबरेज होकर बोली-आज मेरे परिवार पर भले ही अतिरिक्त खर्च को पैसे ना हो लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए कोई परेशानी नहीं है, मेरा परिवार कोरोना संकट में भी अपनी सूझबूझ से प्रसन्न है।

आखिर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि हमें जरूरत के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए, छोटी-छोटी बचत करनी चाहिए, जो बुरे वक्त में काम आती है। सीमित संसाधनों में अपना जीवन व्यतीत करने की आदत डालनी चाहिए, और सदैव घर के सदस्यों के बीच एक-दूसरे का हाथ बंटाकर,प्रेम से रहना चाहिए ।

यही कारण है कि मैं और मेरा परिवार कोरोना-संकट में तंग हालातों के चलते भी, अपने आपको खुश महसूस कर रहा है। हमें चाहिए कि हम घरों में रहें और सुरक्षित रहें, अपनी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करें ,मास्क लगाकर ही घर से निकले, और भीड़ भाड़ में तो बिल्कुल भी ना जाए ,इसी तरह हम कोरोना को हराकर अपनी जिंदगी पर जीत हासिल कर सकते हैं।

अर्चना की ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर, सब हतप्रभ रह गए और पूरा परिवार ऐसी योग्य बेटी पाकर , अपने जीवन को धन्य समझने लगा।

✍️ अतुल कुमार शर्मा,सम्भल

मोबाइल-8273011742,9759285761

मंगलवार, 30 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना ---- -पत्थर का योगदान


        अरे पत्थर! तुम कठोर होकर भी बहुत ही सह्रदय हो,जो किसी विचलित मन वाले इंसानी हाथों से छूट कर,एक देवता के सिर पर जा लगे,जिससे एक डॉक्टर रूपी देवता की तकदीर तो फूटी लेकिन तुम्हारी तकदीर बदल गई,तुमने अपने त्याग,बलिदान और देशप्रेम की मिसाल पेश कर दी।तुमने एक सिर को चोट तो जरूर पहुंचाई,लेकिन कई दुष्ट पात्रों को,जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।तुम्हारी यह देश-भक्ति हमेशा याद रखी जाएगी।
      हालांकि प्राचीन काल से अब तक,पत्थरों का बहुत बड़ा योगदान रहा है,चक्की के रूप में प्रकट होकर,पूरे संसार का पेट पालन किया है,शिवलिंग रूप में स्थापित होकर,जगत का कल्याण किया है,अपना विस्तार करते हुए हिमालय पर्वत बनकर,तुम सीना ताने खड़े हो और प्रहरी बनकर युवाओं को ऊंचा बनने की प्रेरणा देते रहे हो।
     पत्थर और परम पिता परमेश्वर का परस्पर प्रेम भी,चौंकाने वाला है,गौतम ऋषि की पत्नी,देवी अहिल्या के रूप में,तुमने काफी कष्ट उठाए,लेकिन तुम्हारा,स्वयं प्रभु श्रीराम ने आकर उद्धार किया।रावण तक पहुंचने के लिए, श्री राम को रास्ता देने वाले तुम ही तो थे जो सागर के जल में तैरने लगे,पुरुषोत्तम श्रीराम की मदद के लिए,पानी में सदा डूब जाने वाले अपने जन्मजात गुण से भी,तुम पथभ्रष्ट हो गए।आखिर विश्व के कल्याण को,तुम बारम्बार पथभ्रष्ट होते रहना,अपना धर्म भूलते रहना,क्योंकि सृष्टि को तुम्हारी बहुत जरूरत है,तुम्हारे कंधों पर बहुत जिम्मेदारियां हैं,अलग-अलग रूपों में रहकर तुम हमेशा कल्याणकारी ही बने रहना।
       हे पत्थर!तुम इसी तरह,जगत का हमेशा उद्धार करते रहोगे,उधर जगतपिता तुम्हारा उद्धार करते रहेंगे।भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत भी पूरे अध्यात्म जगत में चर्चित हैं,वह पत्थर भी कितने भाग्यशाली रहे होंगे जिन्होंने माखन भरी मटकियां फोड़ीं।एक वो पत्थर,जो केदारनाथ घाटी में आई बाढ़ के प्रकोप को रोकने के लिए,मंदिर के ठीक पीछे आकर टिक गया,जिसने सनातन धर्म के मुख्य स्तंभ यानि केदारनाथ मंदिर को,ध्वस्त होने से बचा लिया। कुछ तो है,वरना रसखान अगले जन्म में खुद को पत्थर बनने की अभिलाषा मन में लाते ही क्यों?             तुम्हारी शक्ति और भक्ति को जो जानता है,वह हमेशा पत्थर बनने को तैयार रहता है लेकिन अब कलयुगी संसार में,कोई पत्थर नहीं बनना चाहता और ना ही उसके महत्व को पहचानता है। इतना जरूर है कि पत्थरदिल इंसानों की संख्या में,बढ़ोतरी जरूर हुई है,लेकिन तुम उदास मत होना।इन पत्थरदिल लोगों की वजह से पाप बढ़ेगा, धर्म का विनाश होगा, फिर शीघ्र ही भगवान को अवतरित होना पड़ेगा।इस तरह,दुष्टों के दिलों में बैठे हुए पत्थर की भूमिका भी कम नहीं है,मैं तुमको नमन करता हूं,वंदन करता हूं,अभिनंदन करता हूं।
         इसलिए हे पत्थर! तुम अपने कार्यक्रम और पराक्रम का क्रम जारी रखो,तुम खुश रहो,कभी देवों पर, तो कभी दुष्टों पर,उछलते रहो, इतिहास में तुम हमेशा पूजे ही जाओगे।
         हालांकि मैं तो कबीर की कल्पनाओं वाले पत्थर को ढूंढने निकला था,जाने कहां-कहां भटकने लगा ?देखना यह होगा कि अगला आने वाला पत्थर, किसी आधुनिक भगवान के मस्तक पर पड़ेगा या दुष्टों की मत पर।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
मो०9759285761, 8273011742

मंगलवार, 5 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता -----अर्थव्यवस्था का पहिया मदिरा पर टिका है6


सुना था बचपन में अपने गुरुजनों से,
माता-पिता,रिश्तेदारों और वृद्धजनों से।
कि यह संसार नश्वर है,सब कुछ सपना है,
राम नाम जपते रहो,यही बस अपना है।
ऐसा मानकर,मैं भी राम नाम जपने लगा,
इसे सुन मेरे पड़ोसी में,ईर्ष्या भाव पनपने लगा।
उन्होंने बड़े प्यार से,अपना बनाकर मुझे समझाया,
धर्म को धता बताकर,नया पाठ पढ़ाया।
परिभाषाएं बदल गई हैं,अब राम नाम भूल जाओ,
छीना झपटी में विश्वास रखो,जिंदगी के मजे उड़ाओ।
अब द्वापर,त्रेता और सतयुग बीत चुका है,
बुराइयों का ताज बांधकर,कलियुग जीत चुका है।
घर से बाहर निकलो और सच्चाई को जानो,
रामनामी दुपट्टा फेंको और समय को पहचानो।
देवालय में बंद भगवान,खुद जान बचाने लगे हैं,
भक्तों की भीड़ से अब,छुटकारा पाने लगे हैं।
प्यासे नशाप्रेमी सूखे गले से,बुरी तरह मचल रहे हैं,
संस्कारों के सारे पैमाने,पैरों तले कुचल रहे हैं।
उधर ठेकों पर लंबी लाइन लगने लगी है,
आर्थिक विकास की आस,सबको जगने लगी है।
इसके सेवन के कई दृष्टि से फायदे ही फायदे हैं,
कच्ची और पक्की पीने के,अलग-अलग कायदे हैं।
हालांकि इसका कोई लिखित संविधान नहीं होता,
इसकी शुरुआत का भी,कोई विधि-विधान नहीं होता।
ऐसे देशभक्तों का,राष्ट्रोत्थान में बड़ा बलिदान है,
जिन्हें हम शराबी समझते हैं,उनका भारी योगदान है।
घर की अर्थव्यवस्था और इज्जत
चाहे तार-तार हो जाए,
शराबी हर कीमत पर चाहता है
देश का उद्धार हो जाए।
वो जिंदादिल शख्स,जो कभी हिम्मत नहीं हारता।
गरीबी काटता है खुशी से,दीवारों में सिर नहीं मारता।
क्योंकि उसका सरकारी योजनाओं से
अच्छा तालमेल है
सस्ते में मिलता गेहूं,और चावल भी रेलमपेल है।
इसलिए इन दोनों की समझदारी से देश चल रहा है,
अर्थव्यवस्था पटरी पर आकर,सेंसेक्स उछल रहा है।
बैसे गरीबी का नाश,दारू ही कर सकती है,
सरकारी खजाना भी रातों रात भर सकती है।
मंदिरों से मुँह मोड़ जो,मयखाने की चौखट चूम रहे हैं,
देश के उद्धार को,कोरी मस्ती में झूम रहे हैं।
उनमें कलियुग के दर्शन साक्षात हो रहे हैं,
गरीबी खोने के लिए वो,खुद को ही खो रहे हैं।
देखो!समस्याओं का उन्मूलन
अब,नए अंदाज में दिखा है,
मानना पड़ेगा!
अर्थव्यवस्था का पहिया मदिरा पर टिका है।

 ✍️अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
बरेली सराय
सम्भल
मोबाइल नंबर 8273011742,  9759285761

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी---- क्षत-विक्षत मैं धरती मां हूँ


जिस मोहल्ले में मैंने अपना मकान बनाया था,पहले यहां आंडू और पपीते के बाग हुआ करते थे।लहलहाते पालक और मूली के खेत,मुझे आज भी अच्छे से याद हैं,लेकिन खेत-स्वामी मुरारी ने,ऊंचा लाभ कमाने और शायद बड़ा आदमी बनने की कोशिश में,महंगे दामों में,इन भूमि खंडों को बेच दिया था।वह अपनी भूमि के टुकड़े-टुकड़े करके,लगभग बड़ा आदमी तो बन गया लेकिन वह भी एक छोटे से भूखंड में ही सिमट कर रह गया।अब उसका खेत न होकर,सौ गज जगह में ही एक मकान था हालांकि उसमें सारी सुख सुविधाएं थीं, टी०वी०, फ्रिज से लेकर ए०सी०,कूलर तक, और ऊपर से ऐसा जाल,कि कोई परिंदा भी पर न मार सके।खैर,इतना सब कुछ खोकर, उसने समाज में थोड़ा सम्मान जरूर प्राप्त किया था,ठेले पर सब्जी बेचने वाला भी,डोरबेल बजाकर पूछता कि कौन-कौन सी सब्जियां चाहिए साहब?
घर में ऊंचे कद का एक झबरीला कुत्ता भी दूध-ब्रेड खाता और पिंजरे में बैठकर एक तोता भी मिट्ठू-मिट्ठू चिल्लाता।अपने खेत के पेड़ों को काटने के प्रायश्चित में,उसने घर की छत पर गमलों में,मनीप्लांट,तुलसी,एलोवेरा,सदाबहार आदि के पौधे जरूर लगा लिए थे।लेकिन उसकी यह शानो-शौकत,ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई,क्योंकि अपने खेतों को महंगे दामों में बेचकर,जो धन कमाया, वो शायद शाही खर्चों को झेल नहीं पाया।रोजगार या नौकरी में शर्म आती थी क्योंकि अब वह किसान न रहकर,मन से ही,एक पूंजीपति बन चुका था। खेती-किसानी की तो,उसके पूरे घर में,कोई निशानी भी न बची थी।
बुजुर्गों की कहावत याद आती है कि समय बहुत बलशाली होता है,पलक झपकते ही कुछ से कुछ कर जाता है। आखिर हुआ वही, जिसका अंदेशा था। उसके रहन-सहन का स्तर डगमगाने लगा,समय-समय पर अपनी खोई हुई भूमि को,याद करके,आंखें नम करने का समय आ गया जिससे उसे खाने लायक मिल जाता था और कम संसाधनों में उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती थी।
उस मुरारी के दुख से दुखी होकर,भगवान को कोसता हुआ, मैं अपने उस मकान की छत को निहार रहा था,जिस मकान को मैंने भी,उन खेतों में बनाया था, जिन खेतों से,कुछ लोगों को फल और सब्जियां मिलती थीं।इस चिंतन-मनन में ही,न जाने कब निंदिया रानी ने,मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया?और फिर धरती मां ने मुझे अपने दर्शन दिए।मुझे लगा कि कुआं ही प्यासे के पास चल कर आ गया है,अब मैं सारे प्रश्नों को पूंछ कर,धरती मां को निरुत्तर करके मुरारी की समस्या का समाधान करा ही दूंगा।
   मैं तुरन्त,धरती मां पर धृष्टता से अकड़ पड़ा,कहा -'' तुम कैसी मां हो तुम्हारा एक पुत्र भुखमरी की कगार पर है उस पर तरस खाओ, उसका कल्याण करो।''
धरती मां बोलीं - '' शांत हो जाओ वत्स! मेरी करोड़ों-अरबों सन्तानें हैं,मैं तो सबका कल्याण ही चाहती हूँ,कभी मन में भी बदले की भावना नहीं लाती,लेकिन मेरी ही सन्तानें,मुझे सम्मान नहीं दे पातीं, और मैं क्षत-विक्षत होकर,निरंतर कष्टों से व्यथित हूं।मेरी नदियां प्रदूषण की मार झेल रहीं हैं,मेरे वक्ष पर सुसज्जित वृक्षों को काटा जा रहा है,मेरे वन्य जीव,घुट-घुटकर जीने को मजबूर हैं,अपनी संतानों को कष्टदायी दशा में देखकर,भला मैं कैसे प्रसन्न हो सकती हूं? मेरी सन्तानें,जिस दिन मुझे सम्मान देना सीख जाएंगी,ढेर सारे सुखों से लाभान्वित होने लगेंगी,और फिर मेरा जीवन भी कई गुना बढ़ जाएगा।''
इतने में ही,मुरारी ने मेरे घर पर आवाज लगाई - आओ!चलते हैं,पार्क में कुछ पौधे लगाते हैं,और फोटो तथा खबर,अखबारों में देते हैं, जो कई शहरों तक जाएगा।
मैंने चिल्लाकर कहा कि बिना पंखों के आकाश में उड़ोगे,तो औंधे मुंह गिरने के अलावा कोई चारा नहीं है।इसलिए अपनी धरा को पहचानो,धरती पर चलना सीखो,इतना सब कुछ पाकर, कुछ देना भी सीखो। आओ!पार्क में हम सभी मिलकर,ज्यादा से ज्यादा पौधे रोपते हैं, ताकि अपने और अपनी धरती माता के लिए कुछ अच्छा कर सकें।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०-9759285761,8273011742

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता --कबाड़


वाह !बीस साल पहला,
दमकता हुआ गुलाब,
क्या साफ था वह मैदान !
खड़ी थी सफेद गाड़ी,
गेंदा से दमकती एक बाड़ी,
देखा कि बाबूजी कुर्सी पर बैठे हैं,
कुछ कागज और रजिस्टर समेटे हैं,
मैंने पूछा - क्या यह पाठशाला है?
उत्तर मिला- जी नहीं।
और क्या धर्मशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
और क्या मधुशाला है?
उत्तर मिला -  जी नहीं।
हारकर,जी मारकर,
मैं बोला-
बताओ साहब तो क्या है?
फिर वह धीमे स्वर में बोला-
भैया यह ना पाठशाला है,ना मधुशाला,
ना होटल है ना यह धर्मशाला।
मैंने सोचा-तो जरूर यह इमामबाड़ा है,
झट से वह बोला-यह तो कबाड़ा है।
वैसे इसे लोग अस्पताल कहते हैं,
डॉक्टर यहां से लापता रहते हैं।
कबाड़ा सुनकर,
मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई,
तभी एक ऐनकधारी वहां आई,
और अड़ गई।
शायद ये,उस बाबूजी की भी मालिक थी,
मैंने सोचा कि ये इस कबाड़े में क्यों आई?
क्या सचमुच इसे मरीजों की याद आई?
बस धीरे-धीरे मरीजों को देखा,
इधर बेटर ने उसकी तरफ देखा,
इशारा हुआ,
मैं ना समझा कि क्या हुआ?
चाय आई,
पी,
और कुल्हड़ पटका,
घड़ी देखी,
और साड़ी का पल्लू झटका।
रिक्शा खड़ा था,
बैग उनके गले में पड़ा था,
बैठीं और चल पड़ीं।
मरीज सब निराश लौट गए,
कुछ निजी अस्पतालों में गए।
बाकी इंतजार कल का करते रहे,
अपने दर्द को यूं ही सहते रहे।
उनमें शायद हिम्मत नहीं थी,
खिलाफत करने की,
और बगावत करने की।
यह दृश्य सरकारी अस्पताल का था,
जो ना धर्मशाला थी ना इमामबाड़ा था।
मुझे क्रोध उन दीन-दुखियों पर था,
और दुख तो देश की खामियों पर था।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा?
गरीब हाथों को मलता रहेगा।
जाने कब व्यवस्थाओं का रथ आगे बढ़ेगा?
और भारत महानता की सीढ़ियाँ चढ़ेगा?

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9759285761

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता ---कोरोना से शिक्षक की मुलाकात

             
       
अजीबोगरीब आकृति देखकर,
मैं भीतर तक हिल गया,
यूँ ही चलते-फिरते मुझे,
कोरोना वायरस मिल गया।
औपचारिकतावश,
मैंने अपना परिचय,एक शिक्षक के रूप में दिया,
उसने मुझे तिरछी नजरों से देखा और मुंह टेढ़ा किया।
मैंने डरने का ढोंग किया और बनावटी हंसी हंसने लगा।
अब उल्टे कोरोना ही,मेरे जाल में फंसने लगा।
मुझसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा,
मेरे सामने बुरी तरह,अपना सिर पटकने लगा।
प्रदर्शन अपनी शक्ति का,मुझे दिखाने लगा,
खांसी जुकाम करने का जोर आजमाने लगा।
रह रहकर वो वार पर वार करने पर अड़ा था,
और मैं शक्तिमान-सा,सीना ताने खड़ा था।
मैंने शिक्षक प्रजाति की शक्तियों को जताया,
लड़े गए युद्धों का वर्णन,सूक्ष्म रूप में बताया।
कहा-हम योद्धा बन समरक्षेत्र में,
वर्षों से लड़ते आए हैं,
पत्थर की मूर्ति बनकर,
ताउम्र पत्थर खाए हैं।
कोरोना धैर्य से तू,
हमारी शक्तियों का वृतांत सुनना,
तब कहीं जाकर अपना,
एकांत में सिर धुनना।
मिड डे मील बनाते-बनाते,
हम बावर्ची बन जाते हैं।
छुट्टी होने तक तो,
आधी सांसो से काम चलाते हैं।
कलम का सच्चा सिपाही,
शिक्षक ही अकेला है।
देशहित के खातिर ही,
हर संकट को झेला है।
हम बुराइयों के चक्र को,
यूं ही तोड़ देते हैं,
बच्चों के तूफानी रुख को,
सत्मार्ग पर मोड़ देते हैं।
इसलिए  घमंड अपना,
तू चकनाचूर कर।
अपनी सारी गलतफहमियां,
झटपट दूर कर।
जल्द ही अपनी हार को,
तुझे स्वीकारना होगा।
मेरे समूचे देश से,
दुम दबाकर भागना होगा।
वरना तू पछताएगा,
बुरी तरह पछताएगा।
मेरा हर देशवासी,
तुझ पर पत्थर बरसाएगा।
कोरोना डरा,सहमा,और खामोश हो गया,
ठंडा उसकी तीरंदाजी का,सारा जोश हो गया।
घुटनों के बल आकर,
गिड़गिड़ाने लगा कोरोना,
मैंने कहा,जा निकल चुपचाप,
बंद कर अब रोना-धोना।
और सुन!
एक शिक्षक के सामने,
कभी तू टिक नहीं पाएगा,
हमारे तूफानी कदमों को भी,
तू रोक नहीं पाएगा।
अपनी इज्जत को अब,और तार-तार मत कर,
विनाश का रास्ता छोड़ दे,समय वर्वाद मत कर।

*** अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी --ईश्वर जिंदा है



एक छोटे कस्बे में स्वाभिमानी परिवार रहता था जिसमें पति पत्नी और उसके दो बच्चे मीना और कृष्णा जोकि क्रमशः कक्षा पांच और कक्षा तीन में पढ़ते थे,कम संसाधनों में ही जीवनयापन कर रहे थे।दोनों बच्चों का मजबूर पिता,मुरारी टिक्की का ठेला लगाकर,अपने परिवार का पालन-पोषण करता था।यह अलग बात है कि वह केवल अपने कर्तव्य का ही पालन कर रहा था,अल्प आय के कारण,पोषण तो दूर की बात थी।बच्चों को पोषक तत्वों की जानकारी तो थी क्योंकि स्कूल में शिक्षक ने उनको पाठ पढ़ाया था लेकिन फलों,दालों और हरी सब्जियों का स्वाद,उन बच्चों को कम ही मिल पाता था।खैर यह परिवार,संतोष धारण करके,कम इच्छाओं का बोझ लेकर,चिंताओं से मुक्त होकर जी रहा था,लेकिन ईश्वर भी अपने भक्तों की परीक्षा समय-समय पर लेते ही रहते हैं,भले ही दुष्टों को दुष्टता करने का पूरा मौका देते रहें।
एक बार,जानलेवा महामारी से शहर कर्फ्यू ग्रस्त हो गया,लोग घरों में कैद हो गये,बाहर निकलने पर पुलिस का खौफ और आवारा घूमते पशु भी,अपनी रोटी का इंतजार करने लगे।मुरारी का ठेला भी घर में कैद हो गया और ठेले के साथ ही,उनका खाना-दाना और रोजमर्रा की चीजें भी अप्राप्त हो गईं,जैसे-तैसे 4 दिन कटने के बाद,स्टोर हुआ राशन भी जवाब दे गया और साथ ही परिवार के सदस्यों का धैर्य भी। मुरारी और उसकी पत्नी जयंती इस मुसीबत पर गहन चिंतन करने लगे,इतने में बच्ची मीना ने अपनी गुल्लक,(जिसमें सुबह की पूजा के बाद धर्मार्थ ₹1 रोजाना डाला जाता था)को तोड़ दिया।
 सिक्कों की खनक के साथ ही,सबके चेहरों पर खुशी झलकने लगी। जयंती,सिक्कों की पोटली बनाकर,आटा-चावल आदि लेने को बाजार गई। लाला रूपकिशोर को पैसे गिनवाए तथा उतनी ही कीमत का राशन मांगा।लाला को पूरा किस्सा समझते देर न लगी,लाला ने पूरे 1 महीने का राशन उसको बांध दिया। पैसे ना लेने की बात कहते हुए,लाला ने कहा कि इस समय आपके घर पर पैसों का अभाव होगा इसलिए मैं उधार कर लेता हूं,यह पैसे फिर दे देना।लेकिन स्वाभिमानी जयंती ने लाला की बात नहीं मानी,उसने सिक्के की पोटली थमा दी और फिर लाला ने बिना झिझक,सिक्कों की पोटली ले ली। जैसे ही जयंती गई,तुरंत लाला ने, वो पोटली,अपने आसन के ऊपर बने भगवान के मंदिर में,भगवान से क्षमा मांगते हुए रख दी।कुछ दिनों के झंझावात के बाद, कर्फ्यू के बादल छटे, महामारी शांत हुई और चहल-पहल शुरू हुई।
लाला रूपकिशोर,मुरारी के घर गया और सिक्कों की पोटली देकर कहा- ''मुझे माफ कर देना, मेरे अंदर का इंसान अभी जिंदा है,ईश्वर ने मुझे,दूसरों के काम में आने लायक बनाया है तो फिर मैं ईश्वर से धोखा क्यों करूं?मेरे ईश्वर,आपकी पत्नी,जयंती के रूप में,मेरी परीक्षा लेने पहुंचे थे,और मैं नहीं चाहता कि मैं उनकी परीक्षा में असफल हो जाऊं इसलिए तुम यह सिक्के,भगवान के मंदिर में रख दो, किसी अन्य जरूरतमंद के काम आऐंगे।''
मुरारी और जयंती के आंखों में आंसू आ गए,रोते हुए भारी आवाज में,मुरारी ने कहा - ''सचमुच ईश्वर जिंदा है,जिस दिन लोगों के आंखों की शर्म,ह्रदय में दया-करुणा और दिलों में सहानुभूति मर जाएगी,मैं समझूंगा कि ईश्वर मर गया।''

***अतुल कुमार शर्मा
संभल
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रविवार, 29 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का गीत --ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब, अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।



देखो कितना कोरोना ने,दुनिया को मजबूर किया,
अपनों को अपनों से इसने,कितना है अब दूर किया।

कौन कहे कि हमने अपने,पैर कुल्हाड़ी मारी है,
संस्कार सब भूल गए और निकट बुलाई बीमारी है।

इस संकट के कारणवश,व्यापार हमारे ध्वस्त हुए,
गुरुकुल शिक्षा बंद हुई,बच्चों के हौसले पस्त हुए।

पुलिस परेशां बहुत हुई,और डॉक्टर भी हैं डरे हुए,
कोरोना की जिद के आगे,भारी क्रोध से भरे हुए।

और परीक्षा लो ना इनकी,इनका अब सहयोग करो,
इस बीमारी से बचना है तो,घर में रहकर योग करो।

देश हमारा हमसे है अब इतना भर तो सोचो तुम,
अपने दम पर करो सुरक्षा,दूजे पर  न छोड़ो तुम।

सोच विचार का वक्त नहीं ये,घर में ही खुद कैद रहो,
समेट न ले कोरोना हमको,खुद इतना मुस्तैद रहो।

वर्ना अपने इन बच्चों को,कैसा भारत देंगे हम
श्मशान बना गर देश हमारा,क्या उत्तर फिर देंगे हम।

अभी समय को पहचानो तुम और गुरिल्ला युद्ध करो,
इकजुट होकर कोरोना की,हर राह अवरूद्ध करो।

ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब,
अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।

***अतुल कुमार शर्मा
प्रेमशंकर  वाटिका के सामने
बरेली सराय
सम्भल
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