सुना था बचपन में अपने गुरुजनों से,
माता-पिता,रिश्तेदारों और वृद्धजनों से।
कि यह संसार नश्वर है,सब कुछ सपना है,
राम नाम जपते रहो,यही बस अपना है।
ऐसा मानकर,मैं भी राम नाम जपने लगा,
इसे सुन मेरे पड़ोसी में,ईर्ष्या भाव पनपने लगा।
उन्होंने बड़े प्यार से,अपना बनाकर मुझे समझाया,
धर्म को धता बताकर,नया पाठ पढ़ाया।
परिभाषाएं बदल गई हैं,अब राम नाम भूल जाओ,
छीना झपटी में विश्वास रखो,जिंदगी के मजे उड़ाओ।
अब द्वापर,त्रेता और सतयुग बीत चुका है,
बुराइयों का ताज बांधकर,कलियुग जीत चुका है।
घर से बाहर निकलो और सच्चाई को जानो,
रामनामी दुपट्टा फेंको और समय को पहचानो।
देवालय में बंद भगवान,खुद जान बचाने लगे हैं,
भक्तों की भीड़ से अब,छुटकारा पाने लगे हैं।
प्यासे नशाप्रेमी सूखे गले से,बुरी तरह मचल रहे हैं,
संस्कारों के सारे पैमाने,पैरों तले कुचल रहे हैं।
उधर ठेकों पर लंबी लाइन लगने लगी है,
आर्थिक विकास की आस,सबको जगने लगी है।
इसके सेवन के कई दृष्टि से फायदे ही फायदे हैं,
कच्ची और पक्की पीने के,अलग-अलग कायदे हैं।
हालांकि इसका कोई लिखित संविधान नहीं होता,
इसकी शुरुआत का भी,कोई विधि-विधान नहीं होता।
ऐसे देशभक्तों का,राष्ट्रोत्थान में बड़ा बलिदान है,
जिन्हें हम शराबी समझते हैं,उनका भारी योगदान है।
घर की अर्थव्यवस्था और इज्जत
चाहे तार-तार हो जाए,
शराबी हर कीमत पर चाहता है
देश का उद्धार हो जाए।
वो जिंदादिल शख्स,जो कभी हिम्मत नहीं हारता।
गरीबी काटता है खुशी से,दीवारों में सिर नहीं मारता।
क्योंकि उसका सरकारी योजनाओं से
अच्छा तालमेल है
सस्ते में मिलता गेहूं,और चावल भी रेलमपेल है।
इसलिए इन दोनों की समझदारी से देश चल रहा है,
अर्थव्यवस्था पटरी पर आकर,सेंसेक्स उछल रहा है।
बैसे गरीबी का नाश,दारू ही कर सकती है,
सरकारी खजाना भी रातों रात भर सकती है।
मंदिरों से मुँह मोड़ जो,मयखाने की चौखट चूम रहे हैं,
देश के उद्धार को,कोरी मस्ती में झूम रहे हैं।
उनमें कलियुग के दर्शन साक्षात हो रहे हैं,
गरीबी खोने के लिए वो,खुद को ही खो रहे हैं।
देखो!समस्याओं का उन्मूलन
अब,नए अंदाज में दिखा है,
मानना पड़ेगा!
अर्थव्यवस्था का पहिया मदिरा पर टिका है।
✍️अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
बरेली सराय
सम्भल
मोबाइल नंबर 8273011742, 9759285761