मंगलवार, 30 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना ---- -पत्थर का योगदान


        अरे पत्थर! तुम कठोर होकर भी बहुत ही सह्रदय हो,जो किसी विचलित मन वाले इंसानी हाथों से छूट कर,एक देवता के सिर पर जा लगे,जिससे एक डॉक्टर रूपी देवता की तकदीर तो फूटी लेकिन तुम्हारी तकदीर बदल गई,तुमने अपने त्याग,बलिदान और देशप्रेम की मिसाल पेश कर दी।तुमने एक सिर को चोट तो जरूर पहुंचाई,लेकिन कई दुष्ट पात्रों को,जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।तुम्हारी यह देश-भक्ति हमेशा याद रखी जाएगी।
      हालांकि प्राचीन काल से अब तक,पत्थरों का बहुत बड़ा योगदान रहा है,चक्की के रूप में प्रकट होकर,पूरे संसार का पेट पालन किया है,शिवलिंग रूप में स्थापित होकर,जगत का कल्याण किया है,अपना विस्तार करते हुए हिमालय पर्वत बनकर,तुम सीना ताने खड़े हो और प्रहरी बनकर युवाओं को ऊंचा बनने की प्रेरणा देते रहे हो।
     पत्थर और परम पिता परमेश्वर का परस्पर प्रेम भी,चौंकाने वाला है,गौतम ऋषि की पत्नी,देवी अहिल्या के रूप में,तुमने काफी कष्ट उठाए,लेकिन तुम्हारा,स्वयं प्रभु श्रीराम ने आकर उद्धार किया।रावण तक पहुंचने के लिए, श्री राम को रास्ता देने वाले तुम ही तो थे जो सागर के जल में तैरने लगे,पुरुषोत्तम श्रीराम की मदद के लिए,पानी में सदा डूब जाने वाले अपने जन्मजात गुण से भी,तुम पथभ्रष्ट हो गए।आखिर विश्व के कल्याण को,तुम बारम्बार पथभ्रष्ट होते रहना,अपना धर्म भूलते रहना,क्योंकि सृष्टि को तुम्हारी बहुत जरूरत है,तुम्हारे कंधों पर बहुत जिम्मेदारियां हैं,अलग-अलग रूपों में रहकर तुम हमेशा कल्याणकारी ही बने रहना।
       हे पत्थर!तुम इसी तरह,जगत का हमेशा उद्धार करते रहोगे,उधर जगतपिता तुम्हारा उद्धार करते रहेंगे।भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत भी पूरे अध्यात्म जगत में चर्चित हैं,वह पत्थर भी कितने भाग्यशाली रहे होंगे जिन्होंने माखन भरी मटकियां फोड़ीं।एक वो पत्थर,जो केदारनाथ घाटी में आई बाढ़ के प्रकोप को रोकने के लिए,मंदिर के ठीक पीछे आकर टिक गया,जिसने सनातन धर्म के मुख्य स्तंभ यानि केदारनाथ मंदिर को,ध्वस्त होने से बचा लिया। कुछ तो है,वरना रसखान अगले जन्म में खुद को पत्थर बनने की अभिलाषा मन में लाते ही क्यों?             तुम्हारी शक्ति और भक्ति को जो जानता है,वह हमेशा पत्थर बनने को तैयार रहता है लेकिन अब कलयुगी संसार में,कोई पत्थर नहीं बनना चाहता और ना ही उसके महत्व को पहचानता है। इतना जरूर है कि पत्थरदिल इंसानों की संख्या में,बढ़ोतरी जरूर हुई है,लेकिन तुम उदास मत होना।इन पत्थरदिल लोगों की वजह से पाप बढ़ेगा, धर्म का विनाश होगा, फिर शीघ्र ही भगवान को अवतरित होना पड़ेगा।इस तरह,दुष्टों के दिलों में बैठे हुए पत्थर की भूमिका भी कम नहीं है,मैं तुमको नमन करता हूं,वंदन करता हूं,अभिनंदन करता हूं।
         इसलिए हे पत्थर! तुम अपने कार्यक्रम और पराक्रम का क्रम जारी रखो,तुम खुश रहो,कभी देवों पर, तो कभी दुष्टों पर,उछलते रहो, इतिहास में तुम हमेशा पूजे ही जाओगे।
         हालांकि मैं तो कबीर की कल्पनाओं वाले पत्थर को ढूंढने निकला था,जाने कहां-कहां भटकने लगा ?देखना यह होगा कि अगला आने वाला पत्थर, किसी आधुनिक भगवान के मस्तक पर पड़ेगा या दुष्टों की मत पर।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
मो०9759285761, 8273011742

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