सोमवार, 6 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता ---कोरोना से शिक्षक की मुलाकात

             
       
अजीबोगरीब आकृति देखकर,
मैं भीतर तक हिल गया,
यूँ ही चलते-फिरते मुझे,
कोरोना वायरस मिल गया।
औपचारिकतावश,
मैंने अपना परिचय,एक शिक्षक के रूप में दिया,
उसने मुझे तिरछी नजरों से देखा और मुंह टेढ़ा किया।
मैंने डरने का ढोंग किया और बनावटी हंसी हंसने लगा।
अब उल्टे कोरोना ही,मेरे जाल में फंसने लगा।
मुझसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा,
मेरे सामने बुरी तरह,अपना सिर पटकने लगा।
प्रदर्शन अपनी शक्ति का,मुझे दिखाने लगा,
खांसी जुकाम करने का जोर आजमाने लगा।
रह रहकर वो वार पर वार करने पर अड़ा था,
और मैं शक्तिमान-सा,सीना ताने खड़ा था।
मैंने शिक्षक प्रजाति की शक्तियों को जताया,
लड़े गए युद्धों का वर्णन,सूक्ष्म रूप में बताया।
कहा-हम योद्धा बन समरक्षेत्र में,
वर्षों से लड़ते आए हैं,
पत्थर की मूर्ति बनकर,
ताउम्र पत्थर खाए हैं।
कोरोना धैर्य से तू,
हमारी शक्तियों का वृतांत सुनना,
तब कहीं जाकर अपना,
एकांत में सिर धुनना।
मिड डे मील बनाते-बनाते,
हम बावर्ची बन जाते हैं।
छुट्टी होने तक तो,
आधी सांसो से काम चलाते हैं।
कलम का सच्चा सिपाही,
शिक्षक ही अकेला है।
देशहित के खातिर ही,
हर संकट को झेला है।
हम बुराइयों के चक्र को,
यूं ही तोड़ देते हैं,
बच्चों के तूफानी रुख को,
सत्मार्ग पर मोड़ देते हैं।
इसलिए  घमंड अपना,
तू चकनाचूर कर।
अपनी सारी गलतफहमियां,
झटपट दूर कर।
जल्द ही अपनी हार को,
तुझे स्वीकारना होगा।
मेरे समूचे देश से,
दुम दबाकर भागना होगा।
वरना तू पछताएगा,
बुरी तरह पछताएगा।
मेरा हर देशवासी,
तुझ पर पत्थर बरसाएगा।
कोरोना डरा,सहमा,और खामोश हो गया,
ठंडा उसकी तीरंदाजी का,सारा जोश हो गया।
घुटनों के बल आकर,
गिड़गिड़ाने लगा कोरोना,
मैंने कहा,जा निकल चुपचाप,
बंद कर अब रोना-धोना।
और सुन!
एक शिक्षक के सामने,
कभी तू टिक नहीं पाएगा,
हमारे तूफानी कदमों को भी,
तू रोक नहीं पाएगा।
अपनी इज्जत को अब,और तार-तार मत कर,
विनाश का रास्ता छोड़ दे,समय वर्वाद मत कर।

*** अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761

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