शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी --------समझदारी के लपेटे में कोरोना

 


कोरोना का नाम सुनते-सुनते कान भी अभ्यस्त होने लगे, जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया, और आदमी ही आदमी से डरने लगा। एक दिन  अर्चना ने अपनी बूढ़ी दादी से पूछा कि अम्मा!  क्या है कोरोना की असली कहानी ? दादी ने कहा -ना बेटी ना!नाम भी मत ले ,इस मनहूस बीमारी का। इसने मेरे परिवार को परेशान करके रख दिया ,तेरा बापू बैंक से सारे पैसे निकाल लाया और तेरी मम्मी के जुड़े-जुड़ाये पैसे भी घर के सामान लाने में खर्च हो गए,रोजमर्रा का खर्च मजदूरी करके निकल रहा है। हर बार दीवाली पर ,मैं बच्चों को नए कपड़े दिलाती थी लेकिन इस बार,एक रुमाल भी नहीं खरीदा,क्योंकि पेट के लिए रोटी और बालकों की पढ़ाई-लिखाई सबसे पहले है। भगवान अपनी कृपा बरसाएं !सब कुछ ठीक-ठाक हो जाए,इस बीमारी का जड़ से नाश हो जाए। आज हिंदुस्तान में ही क्या, पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, कई लाख लोग, इस बीमारी से चल बसे।तेरा बापू भी टेलीविजन पर सुनकर आया था कि अपनी सुरक्षा अपने हाथों में ही है, कह रहा था कि थोड़ी-थोड़ी देर पर हाथों को साबुन से धोते रहो, शारीरिक दूरी बना कर रखो, किसी अनजान आदमी से मत मिलो ,मुंह पर मास्क लगाकर रहो। अर्चना ने मुस्कुराकर कहा- अम्मा यह सब बातें तो हमारे स्कूल वाले सर जी ने पहले से ही बता रखी हैं। पूरे गांव में घूमकर भी उन्होंने कोरोना से बचने के उपाय बताए थे, इसलिए ही बाजार भी बंद हुए थे, ताकि भीड़-भाड़ ना हो, लोग एक दूसरे के संपर्क में कम से कम आएं।

दादी बोली- हां सब मालूम है मुझे ,ज्यादा वकील मत बन। तू पढ़ाई पर ध्यान दे, सबक भूल गई तो अच्छी तरह खबर लेंगे तेरे मास्टर और मास्टरनी । पड़ोस के चौधरी साहब कह रहे थे कि शहर वाले कॉन्वेन्ट स्कूल से मोबाइल पर पढ़ाई आ रही है और साथ में फीस की खबर भी। क्यों बेटी! तेरी पढ़ाई कैसे पूरी होगी?

अर्चना ने कहा- दादी,मेरा स्कूल सरकारी जरूर है लेकिन प्राइवेट से किसी बात में कम नहीं है मेरे स्कूल का भी व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें रोजाना काम आता है और मैं होमवर्क करके भेजती भी हूं।सभी बच्चे इसी तरह काम पूरा करते हैं। जिन बच्चों पर बड़ा(एन्ड्राॅइड) मोबाइल नहीं है वे पड़ोस के बच्चों से काॅपी लेकर पूरा करते हैं ।रही बात फीस की, तो हमारे सरकारी स्कूल में फीस तो कोई है ही नहीं, बल्कि स्कूल से यूनिफॉर्म, किताबें ,जूता-मोजा,स्वेटर और मिड-डे-मील (खाना) भी मिलता है। मेरे पिताजी को,फीस की कोई टेंशन नहीं है , उन्होंने सही किया जो कि मेरा एडमिशन सरकारी स्कूल में करा दिया वरना प्राइवेट स्कूल में तो बिल्डिंग फीस, एग्जाम फीस,कंप्यूटर फीस जैसी बहुत सारी फीस देते-देते परेशान हो जाते।

अर्चना आत्मविश्वास से लबरेज होकर बोली-आज मेरे परिवार पर भले ही अतिरिक्त खर्च को पैसे ना हो लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए कोई परेशानी नहीं है, मेरा परिवार कोरोना संकट में भी अपनी सूझबूझ से प्रसन्न है।

आखिर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंची हूं कि हमें जरूरत के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए, छोटी-छोटी बचत करनी चाहिए, जो बुरे वक्त में काम आती है। सीमित संसाधनों में अपना जीवन व्यतीत करने की आदत डालनी चाहिए, और सदैव घर के सदस्यों के बीच एक-दूसरे का हाथ बंटाकर,प्रेम से रहना चाहिए ।

यही कारण है कि मैं और मेरा परिवार कोरोना-संकट में तंग हालातों के चलते भी, अपने आपको खुश महसूस कर रहा है। हमें चाहिए कि हम घरों में रहें और सुरक्षित रहें, अपनी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करें ,मास्क लगाकर ही घर से निकले, और भीड़ भाड़ में तो बिल्कुल भी ना जाए ,इसी तरह हम कोरोना को हराकर अपनी जिंदगी पर जीत हासिल कर सकते हैं।

अर्चना की ऐसी समझदारी भरी बातें सुनकर, सब हतप्रभ रह गए और पूरा परिवार ऐसी योग्य बेटी पाकर , अपने जीवन को धन्य समझने लगा।

✍️ अतुल कुमार शर्मा,सम्भल

मोबाइल-8273011742,9759285761

8 टिप्‍पणियां:

  1. Is khani ki Vishesh bat ye hai ki isme kuch choota nhi hai crona se bchav se lekr prhai tk
    Or ghr ka khrch kaise chlana chahiy bcht bi kren taki smy pr preshni nho.ek choti khani men sari bat aa gai. Jaise gagr men sagr sman jata hai.

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