एक छोटे कस्बे में स्वाभिमानी परिवार रहता था जिसमें पति पत्नी और उसके दो बच्चे मीना और कृष्णा जोकि क्रमशः कक्षा पांच और कक्षा तीन में पढ़ते थे,कम संसाधनों में ही जीवनयापन कर रहे थे।दोनों बच्चों का मजबूर पिता,मुरारी टिक्की का ठेला लगाकर,अपने परिवार का पालन-पोषण करता था।यह अलग बात है कि वह केवल अपने कर्तव्य का ही पालन कर रहा था,अल्प आय के कारण,पोषण तो दूर की बात थी।बच्चों को पोषक तत्वों की जानकारी तो थी क्योंकि स्कूल में शिक्षक ने उनको पाठ पढ़ाया था लेकिन फलों,दालों और हरी सब्जियों का स्वाद,उन बच्चों को कम ही मिल पाता था।खैर यह परिवार,संतोष धारण करके,कम इच्छाओं का बोझ लेकर,चिंताओं से मुक्त होकर जी रहा था,लेकिन ईश्वर भी अपने भक्तों की परीक्षा समय-समय पर लेते ही रहते हैं,भले ही दुष्टों को दुष्टता करने का पूरा मौका देते रहें।
एक बार,जानलेवा महामारी से शहर कर्फ्यू ग्रस्त हो गया,लोग घरों में कैद हो गये,बाहर निकलने पर पुलिस का खौफ और आवारा घूमते पशु भी,अपनी रोटी का इंतजार करने लगे।मुरारी का ठेला भी घर में कैद हो गया और ठेले के साथ ही,उनका खाना-दाना और रोजमर्रा की चीजें भी अप्राप्त हो गईं,जैसे-तैसे 4 दिन कटने के बाद,स्टोर हुआ राशन भी जवाब दे गया और साथ ही परिवार के सदस्यों का धैर्य भी। मुरारी और उसकी पत्नी जयंती इस मुसीबत पर गहन चिंतन करने लगे,इतने में बच्ची मीना ने अपनी गुल्लक,(जिसमें सुबह की पूजा के बाद धर्मार्थ ₹1 रोजाना डाला जाता था)को तोड़ दिया।
सिक्कों की खनक के साथ ही,सबके चेहरों पर खुशी झलकने लगी। जयंती,सिक्कों की पोटली बनाकर,आटा-चावल आदि लेने को बाजार गई। लाला रूपकिशोर को पैसे गिनवाए तथा उतनी ही कीमत का राशन मांगा।लाला को पूरा किस्सा समझते देर न लगी,लाला ने पूरे 1 महीने का राशन उसको बांध दिया। पैसे ना लेने की बात कहते हुए,लाला ने कहा कि इस समय आपके घर पर पैसों का अभाव होगा इसलिए मैं उधार कर लेता हूं,यह पैसे फिर दे देना।लेकिन स्वाभिमानी जयंती ने लाला की बात नहीं मानी,उसने सिक्के की पोटली थमा दी और फिर लाला ने बिना झिझक,सिक्कों की पोटली ले ली। जैसे ही जयंती गई,तुरंत लाला ने, वो पोटली,अपने आसन के ऊपर बने भगवान के मंदिर में,भगवान से क्षमा मांगते हुए रख दी।कुछ दिनों के झंझावात के बाद, कर्फ्यू के बादल छटे, महामारी शांत हुई और चहल-पहल शुरू हुई।
लाला रूपकिशोर,मुरारी के घर गया और सिक्कों की पोटली देकर कहा- ''मुझे माफ कर देना, मेरे अंदर का इंसान अभी जिंदा है,ईश्वर ने मुझे,दूसरों के काम में आने लायक बनाया है तो फिर मैं ईश्वर से धोखा क्यों करूं?मेरे ईश्वर,आपकी पत्नी,जयंती के रूप में,मेरी परीक्षा लेने पहुंचे थे,और मैं नहीं चाहता कि मैं उनकी परीक्षा में असफल हो जाऊं इसलिए तुम यह सिक्के,भगवान के मंदिर में रख दो, किसी अन्य जरूरतमंद के काम आऐंगे।''
मुरारी और जयंती के आंखों में आंसू आ गए,रोते हुए भारी आवाज में,मुरारी ने कहा - ''सचमुच ईश्वर जिंदा है,जिस दिन लोगों के आंखों की शर्म,ह्रदय में दया-करुणा और दिलों में सहानुभूति मर जाएगी,मैं समझूंगा कि ईश्वर मर गया।''
***अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761
सार्थक संदेश
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंVery very nice .bhut acchi preda Jamey mile
जवाब देंहटाएंThank you Atul Sharma ji
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंInspiration story
जवाब देंहटाएंThanks very much, Ji
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThanks so much
हटाएंमार्मिक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका
हटाएंI became very impressed to read it. thank you.Aqueel Ahmad s
जवाब देंहटाएंमित्र का बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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