गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की लघुकथा ------ मजदूर


आज बहुत दिन बाद बुधिया को जाम का नशा चढ़ा मन ही मन सोच कर परेशान "आखिर महामारी के चलते इस लॉक डाउन मा जब सब कुछ बन्द हुई गवा तो फिर ई ससुरा मदिरालय खुल कइसे गवा... खैर कउनो बात नाही कुछ तो खुला "। आनन्दsss
         सुबह नशा उतरा और बुधिया फिर परेशान," जब कंस्ट्रक्शन का काम चल ही नही रहा तो हम का करेंगे यहां भिखारी की तरह पड़े पड़े। ना ढंग का भर पेट खाना न रहना ऊपर से शहर का अइसन बुरा व्यवहार हमको निकाल दिया खोली से.... का ऊ मकान मालकिन अनपढ़ है,मालूम नही का लॉक डाउन चल रहा। कैसे अब हम घर वालों को पैसा भेजेंगे कैसे मुनवा की पढ़ाई हुई है। काहें नाही समझत ई लोग काहे नाही समझत ई सरकार। नाही-नाही अब हमका जाई के पड़ी हम ना इहां रहिबै "।
ठीक तभी अपने मन की उधेड़ बुन मे बुधिया को पता चला कि जो मजदूर परिवार उनके साथ लाचारी मे फसा हुआ था उस पर एक और मुसीबत गिर पड़ी। वो मजदूर जो भोजन की व्यवस्था करने खाने का सामान जुटाने गया था। देश मे आपातकालीन स्थिती के चलते मृत लौटा उस मजदूर परिवार की औरत रोए जा रही थी दोनों बच्चो को सुबह से कुछ भी खाने नही मिला था। उसके मजदूर आदमी का अब कैसे अंतिम संस्कार किया जाए ये भी समझ नही आ रहा था। बुधिया ने जैसे तैसे पैसे मांग कर जुटाए और अंतिम संस्कार कर भोजन सामग्री उस परिवार तक ला कर दी। और फैसला किया चाहे भले गाँव मे ही कम खा-पहन जी लेंगे पर शहर के इस अमानवीय वातावरण मे नही लौटेंगे। बेशक कम मे रहेंगे पर अपने परिवार वालों को ऐसे हाल में नही छोड़ेंगे।
अब विभिन्न तरीकों से मजदूरों द्वारा सरकार से गुहार लगाई जा रही थी कि उन्हें उनके घर भिजवा दिया जाए उनकी यह गुहार सरकार तक पहुँची और उन सबको उनके गांव तक पहुँचाने के लिए ट्रेन भी चली पर यहां भी बुधिया परेशान उसे जाने के लिए स्पेशल चार्ज देना था जो के उसके पास नही था तभी उसकी मदद संग के सभी मजदूरों ने मिल कर की और वह अपने स्टेशन पर पहुँचा पर अफसोस वहां भी किस्मत का मारा बुधिया धक्के ही खाने मजबूर। गाँव वालों ने पूरा गाँव घेर कर बन्द कर डाला ताकी कोई बाहर का गाँव मे न आए और गाँव महामारी से सुरक्षित रहे। बुधिया को फिर परिवार से दूर वहां के सेनेटाइज किये हुए स्थान पर क्वारन्टाईन हो कर रहना पड़ा और अब तक बुधिया महामारी से संक्रमित हो चला था जिसको प्रशासन की गाड़ी ले जा चुकी थी और इलाज हेतु जिला अस्पताल  में रखा गया जहां उसकी हालत बिगड़ती गई अंततः उसे अब छूना परिवार से मिलना सब मना हो गया और परिवार से मिलने कुछ कहने की सारी तंमन्नाए उसके साथ स्वाहा हो लीं।
रहा तो सिर्फ बुधिया का परिवार जो उस के सहारे ही पल रहा था....

✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद

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