गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता --- प्यासी चिड़िया


मरी पड़ी थी चिड़िया एक, 

देखके बोला बच्चा  एक.. 


किसने इसे मारा है  मम्मी, 

पता चले वो कौन है पापी? 


मम्मी बोलीं - हम भी तुम भी, 

इसको मारने के हैं  दोषी। 


कितनी पड़ी हुई है गर्मी, 

यह चिड़ाया बेहद प्यासी थी। 


तरस न इस पर किसी को आया, 

किसी ने पानी नहीं पिलाया। 


छतों मुंडेरों पर भी आई, 

पानी की इक बूंद न पाई। 


बच्चे की आंखें भर आईं, 

मम्मी भी उसकी पछताईं। 


झट पट रक्खा छत पर पानी, 

साथ में रक्खा कुछ दाना भी। 

✍️ ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद

پیاسی چڑیا.... 


مری پڑی تھی چڑیا ایک، 

دیکھکے بولا بچہ ایک. 


کس نے اسے مارا ہے ممّی، 

پتا چلے وہ کون ہے پاپی؟ 


ممّی بولیں - ہم بھی تُم بھی، 

اسکو مارنے کے ہیں دوشی. 


کتنی پڑی ہوئی ہے گرمی، 

یہ چڑیا بےحد پیاسی تھی. 


ترس نہ اس پر کسی کو آیا، 

کسی نے پانی نہیں پلایا. 


چھتوں مُنڈیروں تک بھی آئی، 

پانی کی اک بوند نہ پائے! 


بچّے کی آنکھیں بھر آئیِں، 

ممّی بھی اسکی پچھتائیں. 


جھٹ پٹ رکھّا چھت پر پانی، 

ساتھ میں رکھّا کچھ دانہ بھی. 

(ضمیر درویش)

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