बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर
झूमें राधा नंदकिशोर
आनंदित है सकल ब्रजमंडल
रास रचायें सब चित्तचोर ।
गोपी ग्वाले रस रंग डूबें
धुन वंशी की करे विभोर
सुर छिड़े हैं जब प्रेम राग के
नाचे सबके ही मन मोर ।
चन्द्र किरणें खेल जल थल में
लुभा रही हैं वे बहु जोर
श्वेत रूप में सजी वसुंधरा
मनहु चाँद से मिली चकोर ।
✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
Very nice ma'am
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंहार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
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