सर सर बहती हवा कह रही
मत काटो मनुज पँख हमारे ,
स्वस्थ साँस का स्रोत यही हैं
समझो सच जीवन का प्यारे ।
नहीं रहेंगे विपिन अगर तो
कैसे बदरा मोहित होंगे ,
बरखा रानी के दर्शन को
तरस रहे भू अंबर होंगे ।
तेज ताप का होगा नर्तन
बवंडर मृदंग बजायेंगे
तृप्त न होंगे कंठ जीव के
सब हा हा कार मचायेंगे।
विज्ञान लाचार सा दिखेगा
सुख सँसाधन मुँह चिड़ायेंगे ,
मनमाने कोप प्रकृति के
सब मिलकर बहुत रुलायेंगे ।
जागो मानव अब भी जागो
नहीं भोग के पीछे भागो ,
श्वास महकती यदि लेनी है
लोभ ऊँचे भवन का त्यागो ।
वृक्ष रोपण और जल संरक्षण
फ़र्ज़ ये निभाने ही होंगे ,
चूक यदि हो गयी इनमें तो
मंजर बहुत भयावह होंगे ।
✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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