सारंगों का साथ ले ,आया सावन मास
झूम उठे तरुवर हरे, करते पल्लव रास ।
हरी भरी धरती सजी, नीर बना उपहार
बूंदें रिमझिम गा रही ,मनहु राग मल्हार ।
दादर धुन में हैं कहें, करो न घन विश्राम ।
जब तक भरें न पोखरे, बरसो तुम अविराम ।
सखी सब हैं झूल रहीं , भाभी गायें गीत ।
मोहे मन बूँदें बड़ी,आ जाओ मनमीत ।
अमुआ डाली पर सजी, सुन्दर रेशम डोर
झूला झूलें बेटियाँ , लुभा रहीं मन मोर ।
✍️ डा. रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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