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बुधवार, 28 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री का गीत ----मन भर मुझको प्यार करो तुम....


अब तक सबने ठुकराया 

आओ!मुझ पर अधिकार करो तुम।

तोड़ो जग-बंधन कह रहा मन,

मन भर मुझको प्यार करो तुम।


एक सहरा रहा ठहरा मुझमें,

सजल सागर से नैन रहे।

एक दूजे से मिलने की खातिर, 

हम नदिया के तट से बेचैन रहे।

एक अमावस है ठहरी मुझमें,

दीपक बन उजियार करो तुम।

मन भर मुझको प्यार करो तुम।


जीर्ण पांडुलिपि सी पड़ी इधर उधर,

मन का भोजपत्र नही किसी ने बाँचा।

कितने मेह आकर बरसे अब तक,

पर मेरे मन का मयूरा नहीं नाचा।

एक उमस आषाढ़ की रहती मुझमें,

सावन की जलधार भरो तुम।

मन भर मुझको प्यार करो तुम।


देह की देहरी लीप के मैंने, 

मानस हवन आज रचाया है।

विधि विधान से आहुति तुम देना,

बना के पुरोहित तुम्हें बुलाया है।

यज्ञ-धूम सी महक जायें साँसें मेरी,

ऐसा मंत्रोच्चार करो तुम 

मन भर मुझको प्यार करो तुम।

हाँ प्यार करो तुम ....

✍️ रचना शास्त्री, बिजनौर, उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 24 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता ----पाँचों बेटे आये थे पिता के मरने में, और निपटा गये तीन दिन में ही पिता के बरस भर के सारे क्रिया कर्म


कल चाचा के जाने के महीना भर बाद 

घर आई थी पड़ोसिन चाची, 

आँखें नम थी बताते हुए कि, 

पाँचों बेटे आये थे पिता के मरने में, 

और निपटा गये तीन दिन में ही 

पिता के बरस भर के सारे क्रिया कर्म ।

तेरहवीं से लेकर अंत्येष्टि तक के ,

बाँट गये आपस में सारी जायदाद और चाचा का बैंक बैलेन्स भी ।

अलग शहरों में बड़ी नौकरियों पर हैं पाँचों 

फिर नहीं मिलती जल्दी से छुट्टी इसीलिए ..।

        सामने वाली ताई भी

बताती है कि, 

आठ घंटे की ड्यूटी के साथ 

चार घंटे ओवर टाइम करता है बेटा, 

ताकि माँग सके बाॅस से छुट्टी

दीवाली पर घर आने के लिए।

बेटियाँ भी तीज पर न आ सकेंगी, 

दामादों के संग ऊँची नौकरियों पर हैं 

दोनों, जाते हैं अलग- अलग गाड़ियों में, 

अलग-अलग शहरों के, 

अलग-अलग दफ्तरों में ।

        दोनों मिल कभी बैठती हैं तो 

सुनाती हैं मुझे, 

बैटरी से चलने वाले 

बेजान खिलौनों से खेलते हैं नाती पोते,

कार्टून चैनल देखते हैं 

नहीं सुनते उनकी कहानियाँ। 

आया दूध पिलाती है उन्हें 

मैले लगते हैं 

दादी के झुर्री भरे हाथ,

छू लेने पर धोते हैं डिटाॅल से।

सुनाते वक्त उभरता है 

एक स्थायी खालीपन दोनों की धुँधलाती आँखों में,

जिसके बोझ तले 

दब सा जाता है मेरा वजूद, 

मैं  दोनों हाथों से थाम लेती हूँ दरकता हिया, 

और लगा लेती हूँ

दोनों बेटों को कलेजे से 

एक हूक सी उठती है...


मेरे बच्चों! 

तुम शहर तो जाना, 

पर वहाँ रहना मत 

पढ़ कर लौट आना अपने गाँव। 

तुम सूरज के संग जगना 

तुम चंदा के संग सोना, 

तुम खेलने देना अपने बच्चों को 

धूप,धूल और ओस के संग

दौड़ने देना उन्हें गायों के बच्चों के संग, 

तुम इतने संवेदनशील होना, 

कि कहीं से आने पर 

तुम्हारी आवाज सुनकर 

रँभाने लगे आँगन की गैया,

उछलने लगे बछड़ा 

हरिया उठे सारा घर।


हाँ मेरे बच्चों! 

तुम मत बनना 

किसी करोड़पति के 

लखपति नौकर, 

तुम मालिक बनना 

अपने खेत खलिहान का 

हाँ मालिक बनना तुम .....।

✍️ रचना शास्त्री,  बिजनौर


बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की कहानी ----जीवन नैया


"ये नदी कितनी गहरी होगी"नाव में बैठी प्रियतमा ने प्रियतम से पूछा।

"तुम्हारे हृदय से अधिक गहरी नहीं"प्रियतम ने उत्तर दिया। 

प्रियतमा हॅस पड़ी,उस शान्त रात्रि में प्रियतम ने भी उसका साथ दिया दोनों के हॅसी के स्वर मिलकर एक हो गये थे।

हॅसते हॅसते नाव पार जा लगी प्रियतम ने नाव की पतवार सॅभाल कर एक ओर रख दी हाथ पकड़कर प्रियतमा को उतारा 

"कल फिर आओगी" प्रियतम ने पूछा 

"हाँ आऊंगी, नहीं आयी तो खो नहीं जाऊँगी"कहीं दूर क्षितिज की अनन्त गहराईयो मे देखती हुई प्रियतमा ने कहा और चली गई।प्रियतम देखता रहा उसे जाते हुए और फिर वह भी लौट गया पुनः शाम की प्रतीक्षा में 

यही क्रम चलता रहा प्रियतमा आती प्रियतम के संग नौका विहार करती और सवेरा होते ही दोनों लौट जाते अपने अपने मार्ग पर ।

'संध्या का समय था प्रियतम नौका लेकर तैयार खड़ा था विहार के लिए कि प्रियतमा आती दिखाई दी,उसका मन प्रसन्नता से भर गया।

'आओ चले' पास आने पर उसने प्रियतमा से पूछा।

'हाँ चलो' प्रियतमा ने कहा, मुझे जीवन की उस अनन्त यात्रा पर ले चलो जहाँ से मैं फिर लौट न सकूँ। 

"प्रियतम क्या तुम मुझे वहाँ ले चलोगे" प्रियतमा ने उसके कान के पास मुँह लाकर धीरे से पूछा।

"मेरी जीवन-यात्रा तुम्हारे संग पूर्ण हो यह मैं भी चाहता हूँ पर तुम एक ब्राह्मण -कुमारी हो और मैं साधारण माँझी, हमारा संग समाज को कभी स्वीकार्य नहीं होगा"प्रियतम ने निगाहें झुकाकर उत्तर दिया।

प्रियतमा ने उसका हाथ पकड़ लिया नदी की शान्त धारा मे पड़ते तारों की छाया शत-शत दीपो के समान झिलमिला उठी चाँद भी लहरों के साथ खेलने लगा,नाव धीरे-धीरे बीच में पहुँच गयी।

   "प्रियतम आओ जीवन-यात्रा पूर्ण करें"कहते हुए प्रियतमा ने प्रियतम का हाथ पकड़कर नदी में छलाँग लगा प्रियतम कुछ समझ न पाया और दोनों नदी की अनन्त गहराईयो मे विलीन हो गये और उनकी जीवन-नौका आज भी इस समाज रूपी नदी में बहती जा रही है अनन्त की ओर  हौले -हौले -हौले -हौले।

✍️रचना शास्त्री 

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की लघुकथा ------ ---- तमसो मा ज्योतिर्गमय

 


दिन‌ ढल रहा था सूरज को चिंता होने लगी अब कुछ देर में ही उसे अस्त हो जाना है, उसके बाद कौन होगा जो #तमसो_मा_ज्योतिर्गमय का भार वहन करेगा।कौन जो होगा उसके प्रबल शत्रु अंधकार का उसके पुनः लौट आने तक सामना करेगा।

सूरज को चिंतित देखकर चांँद ने कहा आप चिंता न करें जरा सी रोशनी मुझे दे जाइए मैं आपके स्थान पर रहकर अपनी तारक सेना के साथ अंधकार का सामना करुँगा।

सूरज निश्चिंत भाव से चंद्रमा को अपना प्रकाश सौंप अस्त हो गया।चंद्रमा उसके स्थान पर सैन्य सहित आ डटा।

सूरज को गया देख अंधेरे की प्रसन्नता का पारावार न रहा ,उसने जोर की अंगड़ाई ली और चारों ओर से गहरे काले बादलों ने चंद्रमा को सैन्य सहित घेर लिया, बादलों को आता देख चाँद ने पराभव निश्चित जान मंदिर में जलते दिये को पुकारा दिये ने कहा वह अंदर अंदर चुपके से जलकर अपना दायित्व निभायेगा।अब तक चाँद सैन्य सहित बादलों ‌में समा चुका था। समस्त मार्गों पर अपनी विजय पताका लहराते अंधकार ने मंदिर में ‌जलते उस नन्हें दिये को देखा तो भयानक अट्टाहस किया जिससे तेज आँधी आई और दिये की लौ फड़फड़ाकर बुझ गई।अंधकार प्रसन्न‌ था, उसने अपने सहयोगियों ‌को उत्सव मनाने का आदेश दिया चारों ओर गरज के साथ पानी बरसने लगा,तेज हवाएं चलने लगीं, चारों ओर अपना साम्राज्य पा अंधकार अत्यंत प्रसन्न‌ हुआ।

      रात ढलने लगी प्राची में भोर का आगमन हुआ,भोर ने देखा पानी पर तैरते दो पत्तों‌के बीच एक नन्हा जुगनू मरणासन्न पड़ा है पर उसके पंख अब भी चमक रहे हैं,भोर ने उसका माथा चूम लिया और कहा मेरे बच्चे! तुम्हारी ये हालत कैसे हुई?

क्षीण मुस्कुराहट के साथ जुगनू ने कहा माँ‌ मैं नन्हा होने के कारण अंधकार को पराभूत न कर सका पर मैंने उसे जीतने भी न दिया,कहकर उसने माँ की गोद में पलकें मूँद लीं।भोर रो उठी, उसके अश्रुकण ओसकणों‌ के रूप में यत्र तत्र झिलमिलाने लगे।

सूरज ने ‌भोर की उदासी का कारण जानना चाहा तो उसने जुगनू का मृत शरीर सम्मुख रख दिया,सूर्यदेव‌ सब समझ गये। उन्होंने अपने सुनहरे उत्तरीय से भोर के आँसू पोंछे, तभी मंदिर में घंटाध्वनि हुई, पुजारी ने देवता की आराधना में ऋचापाठ करते हुए गाया--

#तमसो_मा_ज्योतिर्गमय....।

✍️रचना शास्त्री

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता


सुनो!
ओ मेरे जन्मों के साथी ,
मैंने बड़े जतन से
 सुमिरन की थपकी से थपक,
फोड़कर राग द्वेष के ढेले,
इकसार करके
मन का बंजर खेत
बो दिया था प्रेम।

पर अश्रु जल से सिंचित
इस मन के खेत में
प्रेम के संग
उगने लगी है
कामनाओं की विषैली
खरपतवार ।

सुनो!
तुम आ जाओ
विश्वास की खुरपी ले
दोनों करेंगे निराई मिलकर,
और फिर,
खेत की डोल पर
वैराग्य वृक्ष के तले
दोनों बैठ कर,
देखेंगे प्रेम की बेलि को
विस्तृत नभ को छूते हुए ।

मैं प्रतीक्षा में हूं
चले आओ
चले भी आओ
आ भी जाओ न .....।

  ✍️ रचना शास्त्री