मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता


सुनो!
ओ मेरे जन्मों के साथी ,
मैंने बड़े जतन से
 सुमिरन की थपकी से थपक,
फोड़कर राग द्वेष के ढेले,
इकसार करके
मन का बंजर खेत
बो दिया था प्रेम।

पर अश्रु जल से सिंचित
इस मन के खेत में
प्रेम के संग
उगने लगी है
कामनाओं की विषैली
खरपतवार ।

सुनो!
तुम आ जाओ
विश्वास की खुरपी ले
दोनों करेंगे निराई मिलकर,
और फिर,
खेत की डोल पर
वैराग्य वृक्ष के तले
दोनों बैठ कर,
देखेंगे प्रेम की बेलि को
विस्तृत नभ को छूते हुए ।

मैं प्रतीक्षा में हूं
चले आओ
चले भी आओ
आ भी जाओ न .....।

  ✍️ रचना शास्त्री

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें