शनिवार, 24 जुलाई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता ----पाँचों बेटे आये थे पिता के मरने में, और निपटा गये तीन दिन में ही पिता के बरस भर के सारे क्रिया कर्म


कल चाचा के जाने के महीना भर बाद 

घर आई थी पड़ोसिन चाची, 

आँखें नम थी बताते हुए कि, 

पाँचों बेटे आये थे पिता के मरने में, 

और निपटा गये तीन दिन में ही 

पिता के बरस भर के सारे क्रिया कर्म ।

तेरहवीं से लेकर अंत्येष्टि तक के ,

बाँट गये आपस में सारी जायदाद और चाचा का बैंक बैलेन्स भी ।

अलग शहरों में बड़ी नौकरियों पर हैं पाँचों 

फिर नहीं मिलती जल्दी से छुट्टी इसीलिए ..।

        सामने वाली ताई भी

बताती है कि, 

आठ घंटे की ड्यूटी के साथ 

चार घंटे ओवर टाइम करता है बेटा, 

ताकि माँग सके बाॅस से छुट्टी

दीवाली पर घर आने के लिए।

बेटियाँ भी तीज पर न आ सकेंगी, 

दामादों के संग ऊँची नौकरियों पर हैं 

दोनों, जाते हैं अलग- अलग गाड़ियों में, 

अलग-अलग शहरों के, 

अलग-अलग दफ्तरों में ।

        दोनों मिल कभी बैठती हैं तो 

सुनाती हैं मुझे, 

बैटरी से चलने वाले 

बेजान खिलौनों से खेलते हैं नाती पोते,

कार्टून चैनल देखते हैं 

नहीं सुनते उनकी कहानियाँ। 

आया दूध पिलाती है उन्हें 

मैले लगते हैं 

दादी के झुर्री भरे हाथ,

छू लेने पर धोते हैं डिटाॅल से।

सुनाते वक्त उभरता है 

एक स्थायी खालीपन दोनों की धुँधलाती आँखों में,

जिसके बोझ तले 

दब सा जाता है मेरा वजूद, 

मैं  दोनों हाथों से थाम लेती हूँ दरकता हिया, 

और लगा लेती हूँ

दोनों बेटों को कलेजे से 

एक हूक सी उठती है...


मेरे बच्चों! 

तुम शहर तो जाना, 

पर वहाँ रहना मत 

पढ़ कर लौट आना अपने गाँव। 

तुम सूरज के संग जगना 

तुम चंदा के संग सोना, 

तुम खेलने देना अपने बच्चों को 

धूप,धूल और ओस के संग

दौड़ने देना उन्हें गायों के बच्चों के संग, 

तुम इतने संवेदनशील होना, 

कि कहीं से आने पर 

तुम्हारी आवाज सुनकर 

रँभाने लगे आँगन की गैया,

उछलने लगे बछड़ा 

हरिया उठे सारा घर।


हाँ मेरे बच्चों! 

तुम मत बनना 

किसी करोड़पति के 

लखपति नौकर, 

तुम मालिक बनना 

अपने खेत खलिहान का 

हाँ मालिक बनना तुम .....।

✍️ रचना शास्त्री,  बिजनौर


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