सोमवार, 18 मार्च 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर पर केंद्रित श्रीकृष्ण शुक्ल का संस्मरणात्मक आलेख...बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे वे



स्मृतिशेष  शिशुपाल सिंह राजपूत 'मधुकर' जी से मेरा प्रथम परिचय राजभाषा हिन्दी प्रचार समिति की काव्य गोष्ठी में हुआ था। उससे पूर्व मैंने साहित्यिक मुरादाबाद के वाट्स एप कवि सम्मेलन में श्रमिकों की स्थिति पर अपनी एक कविता शेयर की थी , उसी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने अपना परिचय दिया था। उसके बाद तो तमाम गोष्ठियों में उनसे भेंट होती रही। धीरे धीरे उनकी रचनाओं को सुनते सुनते सामाजिक संदर्भों के प्रति उनकी संवेदनशीलता का परिचय मिला। 

ऐसी ही एक मुलाकात के दौरान उन्हें मेरी सहज योग के प्रति आस्था के विषय में पता चला तो देर तक चर्चा चली। उसी चर्चा के दौरान उनकी साम्यवादी विचारधारा का परिचय मिला। कहीं सहमति और कहीं असहमति के कारण यह चर्चा लंबी चलने लगी। उसी दौरान उन्होंने साम्यवाद से संबंधित एक किताब मुझे दी । 

वह साम्यवादी दल में केवल राजनीति के लिए नहीं थे बल्कि धरातल पर शोषित पीड़ित और उपेक्षित वर्ग के हितार्थ कार्य भी करते थे। मुरादाबाद में रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों के पुनर्वास हेतु उन्होंने निरंतर आंदोलन किया था।

वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव में मुरादाबाद देहात विधानसभा क्षेत्र से उन्होंने विधायक हेतु चुनाव भी लड़ा था। 

श्री मधुकर काव्य सृजन के अतिरिक्त फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी सक्रिय थे। उनके द्वारा निर्मित दो फिल्मों के प्रीमियर पर मैं भी सम्मिलित हुआ था। एक फिल्म 'मेरा कसूर क्या था', कन्या भ्रूण हत्या तथा दूसरी फिल्म नशे की कुप्रथा के संदर्भ में निर्मित थीं। दोनों ही फिल्में दर्शकों के मन पर अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम थीं। 

इससे ज्ञात होता है कि वे बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे।

सितंबर 2022 में एक दिन अचानक उनका फोन आया, और उन्होंने बताया कि उनकी साहित्यिक संस्था 'संकेत' अपनी रजत जयंती मना रही है। उक्त अवसर पर पॉंच साहित्यकारों की रचनाओं का एक साझा काव्य संग्रह संस्था द्वारा प्रकाशित कराया जाना है, और उन साहित्यकारों में मेरा सम्मान करना निश्चित हुआ है। उक्त संदर्भ में उन्होंने मुझसे मेरी 20 रचनाएं भेजने का आग्रह किया। पहले मैंने यही कहा कि मैं तो साधारण सा लेखक हूॅं, मुरादाबाद में बहुत से श्रेष्ठ रचनाकार हैं, उनके रहते मेरा सम्मान उचित नहीं, लेकिन उन्होंने कहा, हम जानते हैं कि आपका साहित्य कैसा है, संस्था ने आपको चयनित किया है, संस्था के अध्यक्ष आदरणीय अशोक विश्नोई जी भी यही चाहते हैं। 

तत्पश्चात मैंने उनसे थोड़ा समय माॅंगा और कुछ ही दिनों में बीस रचनाएं प्रेषित कर दीं।

मैंने उनसे साझा संग्रह हेतु आर्थिक योगदान के विषय में जानकारी चाही किंतु वह टाल गये। आदरणीय अशोक विश्नोई जी से मैंने बहुत आग्रह किया तब उन्होंने योगदान हेतु सहमति दी, और योगदान देकर मुझे भी संतुष्टि मिली।

अंततः 20 नवंबर 2022 को संस्था द्वारा आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में हम पॉंच साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। हमारे अतिरिक्त अन्य साहित्यकारों, रामपुर से श्री ओंकार सिंह विवेक, धामपुर से श्री प्रेमचंद प्रेमी, मुरादाबाद की वरिष्ठ कवियित्री डा. प्रेमवती उपाध्याय और मुरादाबाद की ही मीनाक्षी ठाकुर का सम्मान उक्त कार्यक्रम में हुआ।

उसके बाद मधुकर जी से हमारे संबंध और प्रगाढ़ हो गये थे।  माह दिसंबर से मार्च तक हम सहजयोग की प्रवर्तिका माताजी श्री निर्मला देवी जी के जन्म शताब्दी महोत्सव की तैयारियों व आयोजनों में व्यस्त रहे, जिस कारण साहित्यिक गतिविधियों से सक्रिय नहीं रह पाये थे, पटल पर भी सक्रियता न्यूनतम थी।

उन्हीं दिनों अचानक 2 मार्च 2023 को आदरणीय विश्नोई जी द्वारा उनके देहावसान की खबर पटल पर दी गई । अचानक से आघात लगा, विश्वास ही न हुआ कि इतने सक्रिय और दिखने में ह्रष्ट पुष्ट व्यक्ति अचानक हमारे बीच से चला गया। बड़ी मुश्किल से मन को समझाया। नियति को जो मंजूर था वह तो घट ही चुका था।

अभी विगत 3 मार्च को उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर संकेत संस्था के बैनर तले ही, आदरणीय अशोक विश्नोई जी के संयोजन में उनकी स्मृति में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें मुरादाबाद और आस पास के साहित्यकारों द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किये और उनकी रचनाओं का वाचन किया था, उक्त कार्यक्रम में कुछ साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया।

कार्यक्रम में मधुकर जी के परिजनों द्वारा यह भी सूचित किया गया कि उनकी स्मृति में यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष होगा।

निश्चय ही समाज को समर्पित एक संवेदनशील रचनाकार, आमजन को समर्पित एक राजनेता और एक संवेदनशील फिल्म निर्माता की स्मृतियों को चिरकाल तक जीवंत रखने का यह बहुत अच्छा निर्णय है।

उनकी तमाम रचनाएं, जो न जाने हमने कितनी बार पढ़ी थीं, लेकिन उनके लेखन की आत्मा को हम तब नहीं समझ पाये थे, आज पढ़कर और मंच से अन्य साहित्यकारों से सुनकर उनके लेखन की गहराई अब समझ में आती है।

जब वह कहते हैं:

1.

मजदूरों की व्यथा-कथा तो

कहने वाले बहुत मिलेंगे

पर उनके संघर्ष में आना

यह तो बिल्कुल अलग बात है,

तब उनके मन की पीड़ा का पता चलता है।

यह पंक्तियां भी देखें:

2.

तुम कुछ भी कहो

हम चुप ही रहें

यह कैसे तुमने सोच लिया,

3.

निशाने पर रहा हूं मैं निशाने पर रहूँगा मैं 

गलत बातों से मेरी तो रही रंजिश पुरानी है ,

4.

झूठ गर सच के सांचे में ढल जाएगा

रोशनी को अंधेरा निगल जाएगा

और

5.

छोड़ दो उसकी उंगली बड़ा हो गया

ठोकरे खाते - खाते संभल जाएगा।


उनकी सभी रचनाएं सामाजिक असमानता, विद्रूपता, शोषित, पीड़ित व वंचित वर्ग की आवाज बनकर हमारे समक्ष आयी हैं। जब जब ये पढ़ी जायेंगी तब तब ये आवाज़ और ऊॅंची उठकर व्यवस्था की नींद को झकझोरेगी। यही उनके लेखन की महानता है। इन्हीं शब्दों के साथ स्मृति शेष मधुकर जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करता हूॅं।

साथ ही उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर उनकी स्मृति में यह आयोजन कराने के लिये साहित्यिक मुरादाबाद पटल के प्रशासक डा. मनोज रस्तोगी का भी ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूॅं।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल

फ्लैट नंबर T-5 / 1103

आकाश रेजीडेंसी अपार्टमेंट

आदर्श कालोनी, मधुबनी के पीछे

कांठ रोड

मुरादाबाद 244001 

उ.प्र. , भारत

मोबाइल नंबर: 9456641400


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