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बुधवार, 19 अगस्त 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 16 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों संजीव आकांक्षी, डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल, डॉ अर्चना गुप्ता, सुमित सिंह, डॉ रीता सिंह, डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, एमपी बादल जायसी, इला सागर रस्तोगी, विभांशु दुबे विदीप्त, प्रशांत मिश्र, इंदु रानी, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं ------


(1)
तुम झटकते हो
गीले गेसू
इत्र सा पानी
मुझको छू
झंकृत कर जाता है
मन वीणा के तार
देह में साँसें
बची रहतीं  हैं बस
ह्रदय धड़कता रहता है
बे बस
और कुछ क्षण के लिए
रच लेता हूँ
स्वर्ग सा सुन्दर
एक
सपनों का संसार।
(2)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
एकांत में
स्तब्ध होता हूँ
एक क्षण के
हज़ारवें हिस्से के लिए
और फिर बटोर कर
सारी हिम्मत
शौर्य से लबरेज़
खड़ा होता हूँ
तुम्हारे समक्ष
और कह देता हूँ
अपनी बातl
(3)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
किसी महफ़िल में
कुछ मिनट के लिए
स्तब्ध रह
बड़ा अपमान सह
और फिर अचानक
सजा लेता हूँ
चेहरे पर एक
बेशर्मी सी मुस्कान
पी लेता हूँ
विष सा क्रोध
पुरावृत्ति के दर से
कुछ घंटो के लिए
नहीं करता हूँ
कोई अनुरोध
फिर माफ़ कर देता हूँ
तुम्हें अपना मान
सारी बातें
तुमसे नहीं
स्वयं से कह ।

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
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आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।1

ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।2

अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।3

चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी।4

सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।5

अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की।

मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।7

हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं उठने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।8

रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।9

 डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
-------------------------------

मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
-------------------------------

अपने भारत देश परकभी
आँच नहीं आने देंगे हम।
जान चली भी जाएगी तो
हमें नहीं होगा कोई गम।
वंदे मातरम, वंदे मातरम वंदे मातरम, वंदे मातरम

भारत की पावन नदियों का,
मीठा जल जैसे हो अमृत।
और यहाँ की माटी भी तो
नहीं महकती चंदन से कम।

दुश्मन अगर उठाता है सर
उसे कुचल देते है फौरन।
भारत को ललकार सके है,
नहीं किसी में भी इतना दम।

पूजे जाते जिस भारत में,
सूरज चाँद सितारे भी हैं।
कैसे कहीं ठहर सकता है
वहाँ कभी फिर कोई भी तम।

लोकतांत्रिक देश हमारा,
इस पर गर्व हमें होता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको ही अधिकार मिले सम।

अतिथि होते देव सरीखे
सिखलाते संस्कार हमारे।
मगर सामने दुश्मन हो तो
हम भी बन जाते हैं फिर यम।

प्रत्येक क्षेत्र में हमने लोहा
 मनवाया है, मनवाएँगे।
लहराएगा सदा तिरंगा अपना
 सबसे ऊँचा परचम।

कहीं हिमालय की चोटी हैं,
कहीं बहे गंगा की धारा।
यहीं स्वर्ग कश्मीर हमारा,
छटा 'अर्चना' इसकी अनुपम।

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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पागल मन में जितनी उलझन होती है
बाहर सबसे उतनी अनबन होती है

जब-जब ग़ुस्सा, घबराहट, डर बढ़ते हैं
तब-तब सांसों में इक सिहरन होती है

जिसकी साँसें भीतर सधने लगती हैं
उससे पूछो कैसी थिरकन होती है

उस घर की दीवारें गिरने लगती हैं
जिसकी बुनियादों में सीलन होती है

रमना मतलब एक जगह घुल-मिल जाना
बेमतलब चलना तो भटकन होती है

कौन बुझा सकता है उस लौ को,बोलो
जो उसकी मर्ज़ी से रौशन होती है

यूँ डसती है उम्र फिसलकर हाथों से
जैसे इक ज़हरीली नागन होती है

चलते-चलते जब मैं थकने लगता हूँ
मेरी हिम्मत मेरा ईंधन होती है

सुमित सिंह "मीत"
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रजनी बोली , अरी बदरिया !
क्यों बाबरिया मन तेरा है
ऐसा मेरे घर में क्या है
जो दर मेरा यूँ घेरा है ।

चमके उज्जवल नभ घनेरा
जब आते चाँद सितारे हैं
टिम टिम करते मुस्काते हैं
ये लगते कितने प्यारे हैं
डाल न इन पर भीगी चूनर
ये हीरे मोती न्यारे हैं ।

चम चम चम चम चमक चाँदनी
वसुन्धरा को चमकाती है
श्वेत रजत बिखरी कण कण में
मन में उमंग उपजाती है
बिखरा नभ में बूँद कणों को
क्यों पानी सब पर फेरा है !

रजनी बोली , अरी बदरिया ......।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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आओ मिल कर कदम बढ़ाये।
देश की रक्षा में जुट जायें ॥

भारत के उन्नत ललाट को,
जग में ऊॅचा और उठायें ॥

प्राण दिये हैं  जिन वीरों ने ,
हम उनकी गाथाएँ गायें ॥

बुरी नजर जो डाले हम पर ,
हम उसको इक सबक सिखायें ॥

हर भारतवासी के मन में ,
देश प्रेम की अलख जगायें ॥

स्वतंत्रता के महापर्व को,
जन जन का हम पर्व बनायें ॥

डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।

लो दुश्मन की नाक में, कसने चला नकेल।
भारत माँ का लाडला, महाबली राफ़ेल।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे  पास।।

जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी काग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल श्रृंगार।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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न आना है न जाना है
         ये हिला है बहाना है
आशिंके तशौबर में
          इ़क शहरे तमन्ना है

         ये ख्वाब कि दुनियाँ है
क्या इ़सका ठिकाना है
         मांझी के ख्यालो में
तुफा़न का आना है
     
ये उनकी अद़ायें हैं
            या दिल का जलाना है
तू लाख सितमगर है
            हम भी तो सहमसार हैं

            इक वो भी जम़ाना था
इक ये भी जम़ाना है
        हँस्ते थे कभी हम भी बादल
अब अश्क बहाना है
     
डा एम पी बादल जायसी
      आजा़द नगर मुरादाबाद
         93 193 18 919
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स्वतंत्र हुए परातंत्रता से
अंग्रेजो की हुकूमत से,
स्वतंत्रता का उद्घोष गूंजता
स्वतंत्रता दिवस के प्रत्येक जश्न संग।

लेकिन कर क्या रहें भारतवासी
अराजकता साम्प्रदायिकता रूपी विष फैलाके,
अंग्रेजों से स्वतंत्र हों
स्वार्थ की परांतत्रता में जकड़े।

हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई
नींव सभी धर्म भारत की,
जाति पांति के बंधनों में उलझ
उलझा रहे देशवासियों के सौहार्द को।

इस पावन मिट्टी को मान सम्पदा अपनी
चूर चूर कर रहे देश की अखण्डता को,
उस देश को जिसे एकता के सूत्र में बांधा
देशप्रेमी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने।

बिसरे नागरिक, नहीं सम्पदा यह माटी उनकी
यह तो है धरोहर जो देनी अगली पीढ़ी को अपनी,
धर्म सम्प्रदायों में विभाजित कर
नफरत फैला देश का बंटाधार कर रहे।

समय अभी भी शेष है,
सावधान होने को उन चालाकों से,
जो झोंक रहे भारत की स्वतंत्रता को
स्वार्थसिद्धि, स्वार्थपूर्ति की भट्टी में।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं
जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं

भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं
पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं

कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये
कभी कमर लचाये कभी लटक जाये
आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं
देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं
जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं
राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं

पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं
कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं

निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं  ll

विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"
–----- ----------------------

हिंदुस्तान जब भी हारा है
अपने जयचन्दों से हारा है,
सीमा पर लाखों शहीद हुए
फिर भी ये कहते पाकिस्तान हमारा है

इनके नापाक इरादों की
अब तो होली जलनी होगी,
बीच चौराहा पकड़कर ठोक डालो
अब तो छाती छलनी करनी होगी

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
-----------------------------

पलना के ललना खेलाय रही
देखी  लाल मुस्काय रही होssssss
बीती दुखयारी रतिया के घरवा अब
 नंद के अंजोर भइले हो।

नंद बाबा मन मन गाय रहे
हियरा बढाय रहे होssssssss
देखी चाँद को टुकड़ो अँगनवा त
ब्रज को बुलाय रहे हो।

सातों दर झूमे घुमड़ घन
 झम झम बरसेला होssssssss
झीनी झीनी आए बरखा बदरवा
 त अपनो आशीष दिहले हो।

चम चम चमके बिजुरिया
लहर उठे सागर होsssssss
सिंधु उठी उठी पगवा पखारे के
केतना अधीर भइले हो।

झुकी झुकी डरिया झुकल जाए
 फूल बरसावेले होssssssss
रात की रानिया हो गम गम गमके त
गालियां महकावे ले हो।

इंदु रानी
मुरादाबाद
-------------------------------

देश खड़ा है रणभूमि में
दुश्मन को यह समझाना है

बस एक साथ रहकर के
अपना धर्म निभाना है

सारे विश्व में अब भारत की
जय जयकार होगी,

जब हमारी सेना शरहद के पार होगी,

बहुत हो चुकी शांति शांति,
अब क्रांति की मशाल जलानी है

अपने देश की ये ताकत
 मिलकर के हमे दिखानी है,

वीरों की कुर्बानी को हम
बेकार नही जाने देंगे,

हम भारत के सपूत हैं
खून की नदियां बहा देंगे,                 

ईशांत शर्मा "ईशु"
-------------------------------

मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सीखता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सीखता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

सोमवार, 20 जुलाई 2020

संस्कार भारती मेरठ प्रांत की ओर से रविवार 19 जुलाई 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मनोज रस्तोगी, अशोक विश्नोई, डॉ पूनम बंसल, संजीव आकांक्षी, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ मीना कौल, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ ममता सिंह, डॉ रीता सिंह, मयंक शर्मा , मीनाक्षी ठाकुर, मोनिका शर्मा मासूम, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, विभांशु दुबे विदीप्त, अभिषेक रुहेला, निवेदिता सक्सेना, मुजाहिद चौधरी, इंदु रानी, शुभम कश्यप, इला सागर रस्तोगी, पिंकेश चौहान तपन, अमित कुमार सिंह, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, नृपेंद्र शर्मा सागर, प्रशांत मिश्र, एमपी बादल जायसी और प्रवीण राही की रचनाएं------


कंक्रीट के जंगल में
 गुम हो गई हरियाली है
 आसमान में भी अब
 नहीं छाती बदरी काली है
पवन भी नहीं करती शोर
वन में नहीं नाचता है मोर
 नहीं गूंजते हैं घरों में
अब सावन के गीत
खत्म हो गई है अब
 झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत 
  नहीं होता अब हास परिहास
दिखता नहीं कहीं
सावन का उल्लास
सजनी भी भूल गई
करना सोलह श्रृंगार
औपचारिकता बनकर
 रह गए सारे त्यौहार
आइये थोड़ा सोचिए
और थोड़ा विचारिये
हम क्या थे और
अब क्या हो गए हैं
जिंदगी की भाग दौड़ में
इतना व्यस्त हो गए हैं
गीत -मल्हारों के राग भूल
 डीजे के शोर में मस्त हो गए हैं
यह एक कड़वा सच है
 परंपराओं से दूर हम
 होते जा रहे हैं
आधुनिकता की भीड़ में
 बस खोते जा रहे हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
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मैंने ,
बहुत प्रयास किया
भावनाओं की सुईं से
शब्दों की तुरपाई
कर सकूं
हाँ , मैने
शब्द-शब्द को
एक साथ रखने का
प्रयास भी किया
ताकि वे शब्द
कविता बन जायें
पर ,
मेरी अभिव्यक्ति
की तुरपाई,
हर बार उधड़ जाती है  ।
मैं भी कवि बन सकूँ,
यह अभिलाषा
दिल ही दिल में
रह जाती है ।।

  अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
-----------------------------

कभी गरजते कभी बरसते,
 रंग दिखाते हैं बादल।
संग पवन के उड़ जाते हैं,
खूब छकाते हैं बादल।।

दूर गगन से करें इशारे,
पर्वत पर आराम करें।
लुका छिपी का खेल खेलकर,
 मौसम को बदनाम करें।
विरह डगर में अगन हृदय की,
और बढ़ाते हैं बादल।।

नैनों से जब जब बरसे हैं,
 देख भिगोते यादों को।
चमका कर ये चपल दामिनी,
याद दिलाते वादों को।
सावन की रिमझिम बूंदों का,
 गीत सुनाते हैं बादल।।

कहीं कृषक की आस बने तो,
 कहीं मिलन विस्वास बने।
चातक की भी प्यास बुझाते,
कभी सकल आकाश बने।
सदियों से इस तृषित धरा का,
द्वार सजाते हैं बादल।।

 डॉ पूनम बंसल
   मुरादाबाद
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काम पूरा करो या आधा करो.
काम का शोर पर ज्यादा करो.

अच्छे लगते हो असल किरदार में.
तुम ओढ़ा न कोई लबादा करो.

मांग भर दूंगा सितारों से तेरी.
लिया न हमसे झूठा वादा करो.

सियासत खेल है शतरंजी चालों का.
बचाओ दामन और आगे प्यादा करो.

दौर परेशानी का है सम्हाल कर चलना
खान-पान, रहन-सहन अपना सादा करो.

क्योंकि तुम हाकिम और मैं अदना.
गलतियां सब मुझ ही पे लादा करो.

संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
-----------------------------

समा गया नभ में गीतों का
एक और नक्षत्र

दुनिया भर की पीड़ाओं का
पहले विष पीना
फिर उस विष को हर दिन हर पल
शब्दों में जीना
ख़त्म हो गया लगता स्वर्णिम
गीतों का वह सत्र

गीत ओढ़ना गीत बिछाना
गीतों को गाना
मुश्क़िल है, बेहद मुश्क़िल है
'नीरज' हो पाना
प्रेम पगे वे गीत मिलेंगे
कहीं नहीं अन्यत्र

गीतों की दुनिया का फक्कड़
नायक चला गया
प्रेम और दर्शन का बिरला
गायक चला गया
गीत नगर में गहन उदासी
यत्र-तत्र-सर्वत्र

- योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद
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वक्त के आगे किसी का जोर नहीं चलता
बड़े- बड़े सूरमाओं को हाथ मलते देखा है ।1

खादी पहन देश भक्त होने का दम्भ भरता,
रेशम पहने देश द्रोह की राह चलते देखा है।2

कहीं गरीब  के आँगन में चूल्हा नहीं जलता
कहीं दंगो की आग में गाँव जलते देखा है।3

उम्र भर सूखा रहने  पर शिकवा नहीं करता
भूखे बच्चे की आह से पेड़ फलते देखा है।4

हर पिता अपने अंदर बच्चे सा दिल रखता
आँच के अहसास से लोहा गलते देखा है।5

दिल के पत्थर होने का जो खुद दावा करता
हमने उसकी आँख में आँसू पलते देखा है।6

धन -वैभव ,रूप-रंग पर गर्व नहीं कभी करना
क्षण भंगुर धन की महिमा रूप ढलते देखा है।7

सावित्री सा विश्वास अगर मन में हो जो बसता
कितना भी हो चाहे सख्त वक्त टलते देखा है।8


मीना किसी के साथ भी बहुत नहीं घुलना
अपनो को अपनो के सपने छलते देखा है।9

डॉ मीना कौल
मुरादाबाद
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जब घिरी सावनी साँवली बदलियां
बज उठीं  खन खनन काँच की चूड़ियाँ

छू पवन को चुनर भी लहरने लगी
जुल्फ चेहरे पे ऐसे बिखरने लगी
लग रहा कर रही हों चुहल बाजियाँ

नैन गोरी के जैसे शराबी हुए
शर्म से गाल भी ये गुलाबी हुए
प्रीत लेने लगी मन में अँगड़ाइयाँ

मस्त बौछार में भीगने तन लगा
डूबने कल्पनाओं में ये मन लगा
गीत में भर रही है कलम  शोखियाँ

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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आज घर में कै़द हम ये सोचते हैं।
रौनके़ क्यों कर हैं कम ये सोचते हैं।।

इसमें है कुदरत की कोई बेहतरी ही,
थम गये जो हमक़दम ये सोचते हैं।।

हाल कैसा हो गया जग का ही सारे,
आँख है सबकी ही नम ये सोचते हैं।।

आदमी मगरूर था ताक़त पे अपनी,
हाय टूटा अब भरम ये सोचते हैं।।

दर्द सालों तक रहेगा याद सबको,
कैसे भूलेंगे अलम ये सोचते हैं।।

एक दिन हट जाएगी ग़म की ये बदली,
होगा उसका भी करम ये सोचते हैं।।

देख तांडव मौत का यूँ हर तरफ ही,
क्या लिखे *ममता* क़लम ये सोचते हैं।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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संबंधों की मरुथली को
नेह भरी बरसात चाहिये
शूल चुभे न कभी दुख बनकर
अपनापन सौगात चाहिये ।

पीर परायी आँसू मेरे
कुछ ऐसे अहसास चाहिये ।
महके सौरभ रेत कणों में
हरी भरी इक आस चाहिये ।

चमक दिखाती इस दुनिया में
नहीं झूठी कोई शान चाहिये
मुझको तो सबके चेहरे पर
इक सच्ची मुस्कान चाहिये ।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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तरु, नदी, गिरि पर चली तलवार को देखो,
स्वार्थ में हैं जो किए व्यवहार को देखो।

दीप्ति की उजली किरण के साथ रहता जो,
रौशनी के पार्श्व में अँधियार को देखो।

खूब ऊँची बन गईं अट्टालिकाएं ये,
मित्र इनकी नींव औ आसार को देखो।

सब भला ही लग रहा है पार इसमें तो, आँख से कह दो ज़रा उस पार को देखो।

डूबना है शर्तिया मझधार में ऐसी,
टूटती नौका घुनी तलवार को देखो।

रूठ जाता जब कभी बच्चा मनाती है,
उर लगाए मात की मनुहार को देखो।

मयंक शर्मा
मुरादाबाद
----------------------–-------

आ गया बरसात का मौसम सुहाना झूमकर,
देख लो सड़कों पे दरिया बह रहा है टूटकर ।

कह रहें सड़कों के गढ्ढे बचके रहना हमनवां,
डूब जाओगे सजनवा  बस तनिक फिसले अगर ।

लबलबाती बिजबिजाती गंदगी की क्या ख़ता,
प्रीत कूड़े ने निभाई नालियों में डूबकर

आपकी सूरत हसीं पर लग गयी कीचड़ मुई,
कार वाले की हिमाकत से लगी तुमको नज़र।

काँपते होंठो की ख्व़ाहिश पर ज़रा सा गौर हो,
चाय पीने को मिले सँग में पकौड़े हों अगर।।

मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद
-------------------------------

आंसुओं को , हंसी को तरसेंगे
लोग अब ज़िंदगी को तरसेंगे

छोड़ हमने दी वो गली लेकिन
आप अब उस गली को तरसेंगे

मोनिका "मासूम "
मुरादाबाद
------------------------------

दुबका बैठा इन दिनों, दहशत से उल्लास।
कैसे झूला डाल दूँ, अबके सावन मास।।
******
प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।
******
झूले पर अठखेलियाँ, होठों पर मृदु गान।
इन दोनों के मेल से, है सावन में जान।।
******
नापाकी खुजला रहा, चीनी को भी खाज।
दोनों का ही हिन्द से, होगा ठोस इलाज।।
******
प्यासी धरती रह गयी, लेकर अपनी पीर।
मेघा करके चल दिए, फिर झूठी तक़रीर।।
******
प्यारी कजरी-भोजली, मधुरस गीत-बहार।
करना कभी न भूलना, सावन का श्रृंगार।।
******
('कजरी' व 'भोजली' - क्रमशः पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय सावन-गीत।)

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
-------------------------------

दिल में आग लिए शब्दों की
         हर दिन कलम चलाएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
            इसको मार भगाएंगे
 खुशियों में थे साथ-साथ
         अब दुख में न घबराएंगे
ग़म के मौसम में भी हम
         खुशियों के नग़मे गाएंगे

 लगता है कोरोना दुश्मन
        अंत चाहता इस जग का
 फैल रहा दिन प्रतिदिन जग में
                आतंकी तेवर उसका
 सूझबूझ से महामारी को
               मिलकर आज हराएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
                इसको मार भगायेंगे

फैलाओ मत द्वेष हवाएं
        ‌‌      खुद इतनी ज़हरीली हैं
 क़दम क़दम पर मौत खड़ी है
               सबकी आंखें गीली हैं
 कट्टर मज़हब की दीवारें
              मिलकर आज गिराएंगे
तोड़ श्रंखला कोरोना की
               इसको मार भगायेंगे

 तेरा दुख मेरा है भाई
                मेरा दुख है आज तेरा
 हर संकट में साथ खड़े हम
                 कोई ग़ैर न कोई सगा
 झुका न पाएं दर्द अनेकों
                मिलकर प्यार लुटाएंगे
 तोड़ श्रंखला कोरोना की
                      इसको मार भगायेंगे
       
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
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श्यामल केश  मनोहर मुखारविंद, चंचल नेत्र तेज धरे हैं
कर्ण शोभित केश लता अति, कोमल होठों पे धीर मुस्कान भरे हैं

कर लेकर पुष्प कमल नैनन को कोटि कोटि प्रणाम करे है

प्रेम आनंद जिसके मुख पर भाव धरे है
उसके नेत्र तीक्ष्ण हृदय पर घाव करे है

वस्त्र ओढ़ लाल ले घट कर में
प्रियतमा सजन पर यूं वार करे है ll

विभांशु दुबे "विदीप्त"
गोविंद नगर, मुरादाबाद
9958149835
------------------------------

सितारे जमीं पे अब आने लगे हैं,
पर ज़ख्म अब भी पुराने लगे हैं।

पीछा छुड़ाकर चले जो गए थे,
अब हम उन्हें रास आने लगे हैं।

कुछ गहरे घाव दिए थे जिन्होंने,
मेरी ग़लतियाँ वो बताने लगे हैं।

अपराध करके सुरक्षित नहीं जो,
अब तो वे ख़ुद को बचाने लगे हैं।

जिन्होंने लगाई सदा आग दिल में,
वे ही ख़ुद उसे अब बुझाने लगे हैं।

इस भीड़ में हूँ मैं अब भी अकेला,
भले लोग अपना बनाने लगे हैं।

समझो मुझे चाहे कुछ भी जहां में,
बनने में ऐसा ज़माने लगे हैं।।

अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फतेहपुर विश्नोई
 मुरादाबाद
(उ०प्र)- 244504
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यह तड़प हिचकियों की बताती रही
रात तुमको मेरी याद आती रही।

 कोशिशें रात भर तुमने
 की होंगी पर
            नींद द्वारे खड़े
मुस्कुराती रही।

देख कर मेरी तस्वीर
भरी आंख से
 तुमने तकिए के नीचे
  होगी रखी
 छत से लेकर के
  कमरे की दीवारों तक
    मेरी परछाई और मै
                  ही  होगी दिखी
             हार कर बैठे तुम
  कुछ कुछ भूल कर
       आंधी यादों की तुमको हिलाती रही ।
नींद द्वारे खड़ी मुस्कुराती रही।

 यह तड़प हिचकियों की
 बताती रही ।

रात तुमको मेरी याद आती रही।।
    निवेदिता सक्सेना।।
        मुरादाबाद
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बहारें याद करती हैं हवाएं याद करती हैं ।
ये रिमझिम की फुहारें और सदाएं याद करती हैं ।।
ये आंसू याद करते हैं निगाहें याद करती हैं ।
दुआएं याद करती हैं सनाएं याद करती हैं ।।
ये बादल याद करता है,ये आंगन याद करता है ।
ये सावन याद करता है,घटाएं याद करती हैं ।।
ये चिलमन याद करता है ये दर्पन याद करता है ।
अंधेरे मुंतज़िर हैं और शमाएं याद करती हैं ।।
वो कातिल मुस्कुराहट सुर्ख लब सब याद आते हैं ।
मेरा बिस्तर,बदन,धड़कन, अदाएं याद करती हैं ।।
चमन,खुशबू,कली,शबनम, शफ़क़ सब याद करते हैं ।मुजाहिद को मोहब्बत और वफाएं याद करती हैं ।।

मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर, अमरोहा
----------------------------

नदी,पहाड़,फूल और प्यार मन को नही लुभाते
दिल दहलता देख वो सब जो मन को तड़पाते

क्या लिखूं मैं प्रीत कोई क्या गीत भला मै गाऊँ
खेत खलिहां झरने और बाग तनिक नही हर्षाते

दहक रहा है मत भेदों मे मुल्क ये मेरा सारा
गीत कजली और बरखा के बिल्कुल नही सुहाते

कुदरत भी अब हुई खफा है देख इंसानी राक्षस
नग्मे प्रीत वफाओं के जरा नही पिघलाते

 हुई है बदतर पशुओं से भी आज की युवा पीढ़ी
क्या कहिये औ क्या ना कह कर हम इनको समझाते

इन्दु रानी
अमरोहा
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लाख ख़ुशियों का  इक़्तिबास मिला ,
फिर भी दिल ग़म के आसपास मिला ।
एक शकुनि से पांच पांडव को,
छल, कपट ,अज्ञातवास मिला ।
सच की गर्दन प झूठ है अबतक ,
हक़ से हर इक ही ना-शनास मिला।
गर्द आलूद आईने है सभी ,
गर्द का जिस्म को लिबास मिला ।
उसने माथे पे है लिखी तकदीर ,
सूर जैसा ना सूरदास मिला ।
मेघदूतम का दे गया उपहार,
ऐसा विद्वान कालिदास मिला।
है समुंदर की प्यास दिल में शुभम,
फिर भी खाली हमे गिलास मिला।

शुभम कश्यप
मुरादाबाद
---------------------------

हरियाली परिपूर्ण पावन माह
श्रावण मास का होता प्रारम्भ,
बरस रहा मतवाला सावन
संग भीनी भीनी फुहार लिए।

साधना अराधना का उत्सव प्रारंभ
हरियाली समेटे हरियाली तीज प्रारंभ,
अपने सुहाग के लिए पुन: नववधु सी
सजधज कर उपासना का उत्सव प्रारंभ।

प्रकृति भी होती निरी प्रसन्न
इतरा रही कैसे ठुमक ठुमक,
ओढ़के दुशाला हरियाली रूपी
मुस्करा रही खिलते पुष्पों संग।

वृक्षों की शाखाओं पर
डल चुके कितने झूले है,
मोर नाच रहे बौछारों संग
मन चितवन सुहागनों संग।

उत्सव ये महिलाओं का
आस्था सौंदर्य प्रेम का,
हो रही बेताब नारियां
मनाने को हरियाली तीज।

रचाकर मेंहदी हाथों में
दुल्हन सी सजती सुहागिनें,
उमा महेश्वर के पूजन में
रख उपवास रमती सुहागिनें।

उत्सव है यह नारियों का
हरियाली समेटे हरियाली तीज का,
अपने प्रियतम संग सुखमय जीवन
व्यतीत करने के आशीर्वाद प्राप्ति का।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
-----------------------------

खो रही  इंसानियत  देखो किसी को क्या कहें।
बढ़ रही है बहसियत देखो किसी को क्या कहें।।

आदमी  ही  सींचते हैं आज बन काँटों  भरे।
वो रहे शैतानियत देखो किसी को क्या कहें।।

तोड़ दी  सब मर्यादायें आज सुत ने  फर्ज की।
खो गई रूहानियत देखो, किसी को क्या कहें।।

सालता  है  डर पिता को लौटती ना  घर सुता।
कब दिखे हैवानियत देखो, किसी को क्या कहें।।

फेंकते हैं  आज पत्थर  रक्षकों  पर  ही  तपन।
मर गई रुमानियत देखो किसी को क्या कहें।।

  ✍पिंकेश चौहान 'तपन'
---------------------------  -----

लगता है फिर वही गुजरा जमाना आ गया है,
उनको देखते देखते ग़ज़ल बनाना आ गया है ।

कश्तियां कभी साहिल से तूफानों में उतारी ही नहीं,
आज तूफानों से लड़कर उबर जाना आ गया है।
कितनी ही बातों के मुआफ़िक नहीं था कभी,
आज हर तदबीर को आजमाना आ गया है।
कभी गर्दिश में था सितारा-ए-मुस्तकविल अपना,
आज हर मजलिस पर छा जाना आ गया है।*
वक्त की मार से बेनूर हो जाता था कभी,
अब वक्त की हर शह को मात देना आ गया है।
उम्र बीत जाती है फ़िकर ,हिजरत और तिजारत में,
लगता है अब हर किरदार निभाना आ गया है।।

अमित कुमार सिंह
7C/61 बुद्धिविहार
मुरादाबाद
मोबाइल-9412523624
------------------------------------

जाना था जिसको जहां, वो पहुंच गया उस धाम,
यूपी की पुलिस ने, नही किया कुछ काम,

किया नही कुछ काम,कार अपनी पलटाई
कई पुलिस-नेताओं की तुमने यूँ लाज बचाई,

कह रहे लोग विकास कई 'राज' दबा गया फंसाना
जिंदा रहता तो कह जाता जाने-जाना,

यूँ ये तरीका मारने का समझ न आया,
ये करके तुमने बस नेताओ को बचाया,
ईशांत शर्मा
मुरादाबाद
-----------------------------------

 मैं भारत माँ का बेटा हूँ , अमन और चैन चाहता हूँ।
वतन है गुलिस्तां मेरा, मैं इस मे खिलना चाहता हूँ ।।
अमन और चैन के दुश्मनों की सदा मौत चाहता हूँ।
मै दंगे और फसादों को जड़ो से काटना चाहूँ।
मैं धर्मों और ईमानो को कभी न बाँटना चाहूँ ।
मैं भारत माँ का बेटा हूँ, अमन और चैन चाहता हूँ।।
वतन है गुलिस्तां मेरा , मैं इस मे खिलना चाहता हूँ।।
ना मंदिर और ना मस्जिद के लिए स्थान चाहता हूँ।
मैं सपनों से भरा हंसी हिंदुस्तान चाहता हूँ।
सभी के ख्बाब हो पुरे , सभी के दर्द हो आधे।
सभी खुशहाल हो बस यही मेरी तमन्ना है।
मैं अपने देश की खातिर जीना और मारना चाहता हूँ।।
मैं भारत माँ का बेटा हूँ, अमन और चैन चाहता हूँ।
वतन है गुलिस्तां मेरा मैं इसमें खिलना चाहता हूँ ।।

आवरण अग्रवाल " श्रेष्ठ "
मुरादाबाद
-------------------------------

सावन की झम झम झड़ी लगी, मैं पिया मिलन को जाय रही।
बैरन बिजुरी तड़ तड़ तड़ कर, पग पग पर मोहे डराय रही।
मोहे लगी लगन पिया साँवरे की, मैं पिया से प्रीत निभाय रही।
कोई और नहीं सुध रही मुझे, निज तन मन सभी भुलाये रही।
सावन मनभावन मास सखी, मुझे पिय की याद सताय रही।
बाहर की बिजली की क्या कहूँ, मेरे भीतर तड़ित समाय रही।
कोई बाधा राह ना रोक सके, मैं अविनाशी की बाँह गही।
मेरे प्रीतम जग के स्वामी हैं, मैं अंश जीव कहलाये रही।
ये जन्म मरण सब मिथ्या है, मैं मोक्ष परम पद धाय रही।
मुझे लोक लाज की कहाँ पड़ी, मैं तो निज धाम को जाय रही।
मेरे सतगुरु की हुई दया, जो पाई मैंने राह सही।
सब मोह बन्ध मेरे छूटे, मन में आनन्द मनाय रही।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
---------------------------------

ग़द्दारी का खूब हुई,
इस झूठे संसार में
अपने डण्ठल कुल्हाड़ी मारी
जब नोंक नुकीली धार ने ।।1।।

अपनों ने जब किया दगा
अपने ही परिवार  में..
मौत ने ही कफ़न ओढ़ लिया
इंसानों के बाजार में..।।2।।

जय चंद का नाम जपूँ
या जपूँ मैं माला उसकी
हर कोई लूट रहा हवा को
बता, यह कहाँ और किसकी?।।3।।

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
----------------------------------------

तुझे प्यार करने को जी चाहता है
बाहों में भरने को जी चाहता है
नहीं आज बस में है जज़्बात मेरे
हद से गुजरने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने ------------
बाहो में भरने ---------------
तेरे गेंसुओ की घटाओं में हर दम
हर पल ठहरने को दिल चाहता है
मिटा दीजिए कोष भर कि ये दूरी
तुम्हींपर बिखरने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने -----------
बाहों में भरने को ---------
सावन का महीना है बाँहो झूला है
यू ही मुखा़तिब रहों जाने  जाँ तुम
नहीं कोई सुनता मेरी यहाँ बादल
बहुँतकुछ सुनाने को जी चाहता है
तुझे प्यार करने को --------
बाँहो में भरने को -----------

डा एम पी बादल जायसी
मुरादाबाद
-----------------------------

अभी गर्दिशों से मैं हारा नहीं हूं
मैं जुगनू हूं टूटा सितारा नहीं हूं

दिया हूं करूंगा घरों में उजाला
जला दूं घरों को वो शरारा नहीं हूं

अमीरी थी जब तक तो था तुम्हारा
कंगाल हूं मैं अब तुम्हारा नहीं हूं

गलत सोच है मुझको बुजदिल समझना
हूं जख्मी मगर मै हारा नहीं हूं

मै रोकू भी तो जज़्बात कैसे किसी के
मैं दरिया का कोई किनारा नहीं हूं

ख़ामोश सागर सा है स्वभाव मेरा
बहकुं वो नदियां की धारा नहीं हूं

हसीनो से नजर मिलाऊ भी कैसे
शादीशुदा हूं  मैं कुवारा नहीं हूं

भरूंगा मै दामन में खुशियां तुम्हारे
मै रहीं गमों का पिटारा नहीं हूं

प्रवीण राही
मुरादाबाद


मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 अप्रैल 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता अशोक विद्रोही ने की । मुख्य अतिथि मनोज मनु तथा विशिष्ट अतिथि बाबा संजीव आकांक्षी थे। इस आयोजन में 21 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रुहेला , शुभम कश्यप, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, अमित कुमार सिंह, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , ईशांत शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर , रश्मि प्रभाकर, डॉ मीना कौल, मोनिका मासूम, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, डॉ अर्चना गुप्ता, राजीव प्रखर, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, अशोक विश्नोई ,श्री कृष्ण शुक्ल, बाबा संजीव आकांची, मनोज मनु और अशोक विद्रोही ने अपनी रचना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन ईशांत शर्मा ने किया।


इक आस  दबी  है  सीने  में,
कल वो दिन भी  आ जायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग लगा,
निश्चित ही वह  टल  जायेगा।

थोड़ा-सा तुम  भी  सब्र  करो,
थोड़ा-सा  हम   सन्तोष  करें।
समझा  दें  सबको  नमता  से,
कोई भी व्यक्ति  न  रोष  भरे।
तम  ने जो  डेरा  डाल  लिया,
दीपक   ही   उसे   बुझायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।

था भटक गया  मानव  पथ से,
लेकिन अब तो यह भान हुआ।
क़ुदरत को हानि  न  देना  तुम,
जिससे  वह  चिन्तावान  हुआ।
अब भवनवास  ही  जीवन  में,
नित   नया   सवेरा    लायेगा।
वसुधा पर जो  यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।।

✍️ अभिषेक रुहेला'
ग्रा०पो०- फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद (उ०प्र०)-244504
----------------------------------------------------------

ऐसा लगता है अंतकाल आया
एक कयामत लिए ये साल आया

आदमी आदमी से डरता है
खौफ का ऐसा अंतराल आया

खून इंसानियत का होता है
आसमा से ये क्या बबाल आया

लुट गया कारावाने सब्र-ओ-करार
उनको फिर भी न कुछ मलाल आया

उसने रख्खा शुभम भरम अपना
उसके जैसा न ज़ुल-जलाल आया

 ✍️ शुुभम कश्यप
बाग गुलाब राय
बाजार मुफ़्ती
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नम्बर -6396191319
--------------------------------------- 

देश ये फिर से यारों सँवर जाएगा।
जल्द ही ये करोना भी मर जाएगा।।

रौशनी हर क़दम फिर से होगी यहाँ।
तीरगी से वतन जब उभर जाएगा।।

मारना है अगर मार नफ़रत को तू।
मारकर बेगुनह को किधर जाएगा।।

नासमझ बनके जो जाल फैला रहा।
खुद उसी जाल में फँस के मर जाएगा।।

जंग ग़ुरबत से भी आज है देखलो।
हौसला रख ये पल भी गुजर जाएगा।।

बात शासन की मानों मिरे दोस्तों।
गर न मानें मरज़ ये निगर जाएगा।।

है मुझे ये शपथ आज के हाल पर।
अब न 'आनंद' कोई भी दर जाएगा।।

✍️ अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
 उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 8979216691
-----------------------------------------------

मैंने अब जीना सीख लिया है,
रोते-रोते हंसना सीख लिया है।
डसती आंखे,चुभती बातें,
मन की तड़पन, तन की ज्वाला,
इन सबको सहना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
हर गम को पीना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।

चुभती आंखों में कुछ अच्छा ढूंढ लिया है,
खुद की आँखों से खुद को पढ़ना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रास्ते के पत्थरों को भी पूजना सीख लिया है,
हर परेशानी से जूझना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।।

   
✍🏻अमित कुमार सिंह
 7 सी/61, बुद्धि विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412523624
 --------------------------------------------------------           

कोरोना से क्या रोना
जो होना है सो होना
रहो तुम घर के अंदर
रखो तुम साफ-सफाई
घर से जब बाहर जाओ
तो मास्क लगना भाई
लौट के घर मे आकर
हाथो की करो धुलाई
कुछ दिन सह लो परेशान
कि फिर दिन आये सुखदाई
कि घर में रहने में ही
हैं हम सबकी भलाई
कोरोना से क्यों रोना
जो होना है सो होना ।।

✍️ आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
मुरादाबाद 244001
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देश को अपना असली चेहरा दिखा गये,
आस्तीनों के सांप सड़कों पर आ गये,
मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

रहम नहीं था दिल मे डॉक्टर की
जान लेने पर आ गये,
जब पुलिस ने दौड़ाया तब घबरा गये,
मौका लगते ही फूल बरसाने आ गए

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

भरी प्लेटें बिरयानी की शौक से खा गये,
नाम पूरे भारत में बदनाम करा गये,
पीतल के शहर पर कालिख़ पुतवा गये,

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये

✍️ ईशांत शर्मा "ईशु"
        मुरादाबाद
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अमीरो की बीमारी ने छीन लिया
निवाला गरीबों का..
बुझ गये चूल्हे रामधन और
मुनिया के।
सोच रहे हैं.....
झोंपड़ी के तिनको को शायद सैनिटाइज़
करने की ज़रूरत तो नहीं ...।
देहातियों को हिकारत से देखने वाले
बड़े लोग...
रखे जा रहे हैं एकांतवास में..
समाज से पृथक,
क्योंकि... वो ऊँचे लोग हैं।
उन्हें प्रारम्भ से ही अकेला पन भाता
आया है। अब लौट रहे है...वतन को
विदेश से...,क्या वतन की याद आयी है..
या कुछ और है....?
वातानुकूलित कमरों में रहने वाले
अचानक ही चाहने लगे..
 तपती जेठ की दुपहरियां
गँवार लोग सहमे हैं....पूछते हैं वैद्य जी से,"ई अमीरों का खाँसी जुकाम भी कुछ
अलग होत  है का?"
खेतों में हल चलाता बुधिया पूछता है..
"ई ढोर डंगर से दूर कैसन रहत बा...?
निःशब्द समाज..!!!
नाइट क्लबों में देर रात तक जागते
युगल ...अब कहाँ है?सम्भवतः अनुशा
सन में रहेंगे कुछ देर के लिये,
जब तक महामृत्यु का तांडव चलेगा...!!
काँपती धरती...विदीर्ण होते शरीर
आज शायद प्रकृति  अपने आवरण से हटा रही है...दूषित तन और मन..सम्भवतः चाहती है करना
 स्वयं को सैनिटाइज़....!!!!

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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मचा हर ओर हाहाकार, मेरे प्रभु राम आ जाओ,
बड़ी मुश्किल में है संसार, मेरे घनश्याम आ जाओ।।

ये कैसी आपदा आयी, थमा पहिया समय का है,
हुए बेबस सभी प्राणी, और आभास भय का है,
हैं संकट में सभी घर द्वार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

हुए हैं त्रस्त विपदा से,तुम्हें सबने पुकारा है,
निकालो मुश्किलों से अब, तुम्हारा ही सहारा है,
लो अब फिर से कोई अवतार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

परिस्थितियां हुईं विकराल, संयम टूट ना जाये,
प्रभू आशाओं का दामन कहीं अब छूट ना जाये,
तुम्हीं हो आसरा सरकार, मेरे प्रभू राम आ जाओ।।

✍️ रश्मि प्रभाकर
सेक्टर10, बुद्धि विहार
मुरादाबाद
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तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण
कितने दिन हो गए
काम पे नहीं गए
भूल गए सारे सपनों को
नजरबंद हो गए
तेरे कारण
कोई कितना भी लुभाए
निकलूँगी न मैं घर से
घर में ही बैठूँगी
कमरे बदल बदल के
दरवाजे पर गई
झांक के मैं आ गई
आग लगे इस वायरस को
दूर अपने हो गए
तेरे कारण
झाडू मैं जोर जोर से
सब घर के कोने कोने
फिर याद आया
बरतन भी हैं धोने
झट रसोईघर गई
काम सब कर गई
कूकर में चावल
मिक्सी में चटनी
फिर खाली हो गई
तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण

✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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उँगलियों पर जिंदगी हमको नचाना छोङ दे
बेरहम जीने सुकूं से दे सताना छोङ दे

वक्त इतना तो मयस्सर कर संभल जाएँ  ज़रा
हर घङी कर मोङ पर ठोकर लगाना छोङ दे

या सजा ख्वाबों को दे या नींद से हमको जगा
आब का देके भरम सहरा पिलाना छोङ दे

बेबहर बिखरे हुए तकदीर के अशआर हैं
गा सूरीला गीत या फिर गुनगुनाना छोङ दे

छोङ दे ग़म खिङकियों से घर में घुसने की अदा
ऐ खुशी तू चौखटों को छू के जाना छोङ दे

कर अता नज़रें करम 'मासूम' फूलों पर ज़रा
शाख पे खारों की नाज़ुक गुल खिलाना छोङ दे

✍️ मोनिका"मासूम"
मुरादाबाद 244001
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कोरोना ने देख लो,क्या कर दीन्हा हाल।
हुस्न छिपा है मास्क में,बन्दा छोंके दाल।।
बन्दा छोंके दाल,सीन बदला है भाई।
नार करे अपलोड,मियां की साफ सफाई
घर में गूँजे गान,'सनम जी' 'बाबू' 'शोना'
रार हुई घर बंद,कि जब आया कोरोना।।
 
कुछ दोहे-------

*संकट की आये घड़ी,हो ना वक्त मुफीद*
*माँ बेटी के रूप में,नारी तब उम्मीद।।१।।*

*कब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।*
*होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।२।।*

*जब आहट हो मौत की,रही द्वार खटकाय।*
*भेदभाव हर भूल के,बढ़ें सभी  समुदाय।।३।।*

*समय कसौटी कस रहा,विपदा रूप धराय।*
*नर,दानव या देवता,मन का मुकुर दिखाय।।४।।*

 *समय कभी टिकता नहीं,हर पल बने अतीत।*
*अधरों पर रखना सखे,बस हिम्मत के गीत।।५।।*
 
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
------------------------------------------------------

कैसा यह कोरोना आया
सारे जग में ही है छाया
ठप्प कर रोजगार सभी के
जन जन घर में कैद कराया ।

दिखे विकसित देश भी हारे
हुए मजबूर सब बेचारे
एक एक कर इसने देखो
सारे जग में पैर पसारे ।

मशीनी अब विज्ञान हिला है
नहीं अभी उपचार मिला है
चीन तुम्हारे नव प्रयोग ने
दुनिया को दे दिया सिला है ।

भारतवासी तुम घर रहना
राजन का है बस यह कहना
साथ यदि है सबने दिया तो
देश धरा का होगा गहना ।

✍️ डॉ. रीता सिंह
आशियाना , मुरादाबाद ।
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*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*
******************

मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ  , उस पुस्तक का नाम
कोरोना है जिसमें रावण , मोदी जी हैं राम

राम की तरह मर्यादा का वो पालन करते हैं
पलटवार करते दुश्मन पर कभी नहीं डरते हैं
मोदी जी को भी है जनता प्राणों से भी प्यारी
धर्मनीति मानवता से करते जो हर तैयारी
शीश झुकाकर इस योगी को, करते सभी प्रणाम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम

कोरोना ने किया आक्रमण बुरा वक्त है आया
मोदी जी ने तभी देश में लोकडाउन करवाया
करते रहते हैं जनता से, अक्सर बातें मन की
रहती फिक्र हमेशा उनको भारत के जन जन की
नहीं रात दिन कभी देखते, करते रहते काम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ, उस पुस्तक का नाम

कोरोना का वध होगा देश मुक्त हो जाएगा
दीपमालिका करके फिर भारत जश्न मनाएगा
गले मिलेंगे ईद मनाएंगे खुशियों से मिलजुल कर
होली के रंगों से खेलेंगे हम आपस मे खुलकर
मोदी जी के यत्नो के आएंगे शुभ परिणाम
*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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साफ़-सफ़ाई-चौकसी, अनुशासित व्यवहार।
कोरोना से युद्ध में, यही प्रमुख हथियार।।


जब तक ढीली हो नहीं, कोरोना की पैठ।
सबसे अच्छा है यही, जमकर घर में बैठ।।

कोरोना से जंग में, एक बड़ी दरकार।
मास्क पहन कर ही करें, घर की हद को पार।।


प्राणों पर भी खेल कर, आयी सबके काम।
वर्दी तेरे शौर्य को, बारम्बार प्रणाम।।

✍️  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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,घर से बाहर  न  निकलिए  साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।

अपना घर परिवार ही है जन्नत । 
कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।

यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को  सिलिए साहिब ।।

कुछ गलती तेरी थी कुछ थी मेरी।
भुलाकर इसे अब चलिए साहिब।।

एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
 दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।

जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।

हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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मन का हर उल्लास मौन है, बड़ी विवशता है
अधरों पर मृदुहास मौन है, बड़ी विवशता है
क्या कहता है रोज़नामचा, कब तक रुकना है
आती-जाती सांस मौन है, बड़ी विवशता है

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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मास्क मुँह पर लगाइये साहिब,
भीड़ से बचकर रहिये साहिब
लापरवाही इतनी भी अच्छी नहीं,
बात अब मान भी जाइये साहिब ।

दोहा
कोरोना दिखला रहा, सबको ऐसा रंग ।
बदल गये हैं देखलो, सबके अपने ढंग ।

✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद
मोबाइल,9411809222
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चतुष्पदी

कुछ दिन तो घर की रोटी और दाल खाइए।
महफूज आप घर में हैं बाहर न जाइए।।
छुप छुप के वार करता है दुश्मन अजीब है।
छुप कर के घर में आप भी खुद को बचाइए।।

गृहणियों की गुहार


मोदीजी गृहणियों को भी राहत दिलाइए।
पुरुषों के लिये भी तो ये फरमान लाइए।।
पाबंदियां जब तक हैं ये पतियों को बोल दो।
कुछ रोज काम घर का भी कर के दिखाइए।

पति पत्नी संवाद


पाबंदियो में प्रिये मत गुस्सा दिखाइए।
कैसे मनाएं आपको खुद ही बताइए।
बाजार मॉल मल्टीप्लेक्स बंद पड़े हैं।
मजबूरियों को समझिए अब मान जाइए।
सुनकर के मेरी बात फिर बीबी ने ये कहा।
कुछ जिम्मेदारी आप भी घर की उठाइए।
पाबंदियां बाहर लगी हैं घर में तो नहीं।
पकवान जो भी खाना हो, खुद ही बनाइए।।

  ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मोबाइल : 9456641400
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तेज़ाब मुंह में भरके,
करें कुल्ला दूसरों पे।
कोरोना से कुछ ऐसे,
"जमाती" पड़े हैं झुलसे।।

✍️ बाबा संजीव आकांक्षी
 मुरादाबाद 244001
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क्यों फिरे है तू जहालत पर यूं इतराया हुआ,
कर हिफ़ाज़त जिस्म की ये नूर से पाया हुआ,,

वक्त नाज़ुक है बड़ा घर से निकल मत बावले,
इस कोरोना का क़हर है हर तरफ छाया हुआ,,
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सोचो फिर क्या होगा भाई?
अगर जान पे खुद बन आई?

फिर इसका उपचार नहीं है,
बचें  रहे बस  यही  भलाई ,,

कोरोना  से  दम  घुटता है ,
इससे  मौत  बड़ी  दुखदाई,,

एक तरीका  इसे  मात  का,
बस  बचाव  में रखो सफाई,

बहुत ज़रूरी अगर निकलना,
फॉलो  रूल  करो सब  भाई,,

जात पात ये नहीं  देखता,
थोड़ी भी मत करो ढिलाई ,,

घर के लोग भी साथ न होंगे,
हालत   गर  संदिग्ध   बताई ,,

घर से बाहर मत ही निकलो,
जिससे  खानी  पड़े  पिटाई,,

✍️  मनोज 'मनु'
मुरादाबाद 244001
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सूनी सूनी सड़के हो गईं निर्जन हैं चौराहे
कोरोना  के रूप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
पूरी दुनिया में तांडव कोरोना ने मचाया है
गये हजारों कालगाल मे  ये कैसा युग आया है
नहीं दिखाई देता फिर भी  हरदिन बढ़ता जाए
कोरोना के रुप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
जो घमंड में ऐंठ रहे थे  गलतफहमियां दूर हुईं
विकसित देशों तक   सारी शक्ति चकनाचूर हुई
बड़े बड़ों के कोरोना से होश ठिकाने आये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सत्य सनातन संस्कार ही  लौट लौट फिर आते हैं
फिर फिर धोओ हाथ स्वच्छता का ही पाठ पढ़ाते हैं
 दूर-दूर से करें नमस्ते कैसे हाथ मिलायें
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
लॉक डाउन का पालन करके ही जीवन बच सकता है
कड़ी तोड़ दो कोरोना की वायरस फिर मर सकता है
जानी दुश्मन बना चीन जो कोरोना फैलाये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सूनी सूनी सड़कें हो गई सूने हैं चौराहे
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें   

 ✍️ अशोक विद्रोही
412 ,प्रकाश नगर
मुरादाबाद 8288 2541
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      :::::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::::
   
                डॉ मनोज रस्तोगी
                8,जीलाल स्ट्रीट
                मुरादाबाद 244001
                 उत्तर प्रदेश, भारत
      मोबाइल फोन नंबर 9456687822