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रविवार, 13 फ़रवरी 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर'की ओर से मतदाता जागरूकता पर रविवार 12 फरवरी 2022 को वाट्सएप पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने की। मुख्य अतिथि वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी और विशिष्ट अतिथि डॉ पूनम बंसल, रहीं। संचालन राजीव प्रखर ने किया। प्रस्तुत है गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ प्रेमवती उपाध्याय, वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी", डॉ पूनम बंसल, श्रीकृष्ण शुक्ल, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ अर्चना गुप्ता, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', राजीव 'प्रखर',मनोज वर्मा 'मनु', ज़िया ज़मीर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, निवेदिता सक्सेना, मोनिका मासूम, दुष्यन्त 'बाबा', प्रशान्त मिश्र, आवरण अग्रवाल " श्रेष्ठ " और राम सिंह निशंक की रचनाएं ---


मतदान करो। मतदान करो ।

अपने मत का तुम मान करो  ।।

बिन समय गवाएं मतस्थल पर

जाकर अपना मत दान करो ।।

यह धर्म भी है कर्तव्य भी है  

निज लक्ष्य  भेद संधान करो ।।

मत की शक्ति को समझो  तुम 

कुछ घड़ियों का बलिदान करो ।।

इस प्रजातंत्र को लाने में

सिर कटे असंख्य संज्ञान करो ।।

मतदान करो मतदान करो ।।

श्रम ,बना ,साधना हो जिसका

ऐसा शासक निर्माण करो ।।

धरती को स्वर्ग बनाने हित

संकल्पित हो मतदान करो ।।

मतदान करो मतदान करो ।।

अपने मत का सम्मान करो।


✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय

 मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

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हर  मानव  को  करना होगा,

पावनतम               मतदान,

तभी   बुलंदी   पर   पहुंचेगा,

अपना        देश        महान।

         -----------------

सबको साथ में लेकर चलना,

जिसको    भी    आता    हो,

भेद-भाव  का  एक शब्द भी,

जिसे     नहीं     भाता     हो,

अपने  मन  में  उसकी सूरत,

रखें           सदा      श्रीमान।

तभी बुलंदी-----------------


जो  लालच  का  फंदा  फेंके,

झूठी         कसमें        खाए,

अपनी स्वार्थ सिद्धि  में  भैया,

सबको         गले       लगाए,

सही बटन को दाब के उसका,

करो          चूर      अभिमान।

तभी बुलंदी------------------


अपने  को छोटा मत  समझो,

समझो        केवल       दाता,

एक वोट  की  कीमत  बनती,

भारत      भाग्य       विधाता,

सच कहता हूँ, जग  में तुमसा,

नहीं          कोई        विद्वान।

तभी बुलंदी-----------------


सारे    दानों   से   बढ़कर   है,

सिर्फ         एक        मतदान,

अभी  नहीं  समझे  तो  होगा,

जन     -     मानस       हैरान,

पहले मत का दान  करो  तब,

कर          लेना      जलपान।

तभी बुलंदी----------------

        

 ✍️वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

     मुरादाबाद 244001

     उत्तर प्रदेश, भारत

     मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

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1

करें मतदान सब मिलकर ,सही सरकार चुनना है।

यही है फर्ज हम सबका ,हृदय की बात सुनना है।

मिला अधिकार है हमको ,करें अभिमान हम उसपर 

सपन हों अब सभी पूरे ,सुखद आकाश बुनना है।।


2

चुनावी है समर देखो ,चलो मतदान करते हैं।

दिया जो राष्ट्र ने हमको वही दायित्व भरते हैं।

करें चिंतन मनन अपना,तभी दें वोट जाकर हम 

जहां हो सोंच जनहित की ,किसी से वो न डरते हैं।।


3

वोट की चोट से ही संवरता वतन।

आज मिलकर करें राष्ट्र हित में जतन।

नेक नीयत रखें फिर विधायक चुनें 

कर्म पूजा बने हो सफल ये हवन।।


4

उत्सव है चुनाव एक सभी करें सत्कार ।

संविधान से है मिला हमको ये उपहार।

हमको ये उपहार इसे न व्यर्थ गवाएं 

खुद भी डालें वोट दूसरों को समझाएं ।

सही बनी सरकार सभी कुछ होगा संभव 

जाति धर्म को भूल मनाएं मिल कर उत्सव।।


✍️ डॉ पूनम बंसल 

10, गोकुल विहार 

 कांठ रोड ,मुरादाबाद 

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नम्बर 9412143525

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मौसम आया फिर चुनाव का, फिर से है सरकार बनाना।

लेकिन आलस में मत पड़ना, वोट डालने निश्चित जाना।।


नेताजी लेकर आए हैं, लोक लुभावन ढेरों वादे।

जनता भी है भोली भाली, समझ न पाती कुटिल इरादे।।

पहले इनकी चाल परखना, फिर इनका इतिहास समझना।

लेकिन आलस में मत पड़ना, वोट डालने निश्चित जाना।।


एक एक मत का महत्व है, अपने मत को व्यर्थ न करना।

बूँद बूँद से घट भरता है, बात सभी को ये समझाना।।

जात धर्म से ऊपर उठकर, अच्छे प्रत्याशी को चुनना।

लेकिन आलस में मत पड़ना, वोट डालने निश्चित जाना।।


मतगणना में भी प्रत्याशी, होते रहते आगे पीछे।

कहीं तुम्हारे एक वोट से, योग्य नहीं रह जाए पीछे।।

वो हारा तो तुम हारोगे, पाँच साल तक फिर पछताना।

गाँठ बाँध लो भैया बहिना, वोट डालने निश्चित जाना।।


✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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घर-घर में करना यह आह्वान है

हर वोटर को करना मतदान है।

         

ताकत  को अपनी  पहचानें 

वैधानिकअधिकारों को जानें                

लोकतंत्र    के   महापर्व   में

सब  शामिल होने  की ठानें 

मास्क पहनकर चलें बूथपर

बाद में ही करना जलपान है।


किसी के न  समझाने  में  आएं 

किसी के न  धमकाने  में  आएं 

वादों  के   हैं  जाल  हर  तरफ 

किसी के  न  बहकाने   में  आएं

जाति और धर्म का मोह छोड़कर

सही बटन की करना पहचान है।


सुख-दुख में जो साथ निभाए

एक आवाज़  पर  दौड़ा आए

उसे  चुनो  जो स्वयं  सदन में                  

बहुमत  की   सरकार  बनाए 

बंटवारे  की  नीति  छोड़ कर 

राष्ट्र-प्रेम  का  करना  गान है,

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com

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करें हम मन से ये ऐलान, 

करेंगें अपना हम मतदान।

मिला हमको है ये अधिकार,

चुनेंगे हम अच्छी सरकार।


हमारी ताकत अपना वोट

न देंगे उसको जिसमें खोट

रहेंगे पूरे हम तैयार

चुनेंगे हम अच्छी सरकार।


करे जो जग में हित के काम

न देखे जो अपना आराम

उसी की है हमको दरकार

चुनेंगे हम अच्छी सरकार।


करे उन्नत जो अपना देश,  

मिटाये आपस के सब द्वेष।

वही होगा हमको स्वीकार, 

चुनेंगे हम अच्छी सरकार


सदा सेवा हो जिसका धर्म, 

समझ ले जनता का जो मर्म।

उसे वोटों से देंगे प्यार,

चुनेंगे हम अच्छी सरकार।


✍️डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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गांधी जी के सपनों का

फिर हिन्दुस्तान बनाना है

नया उजाला लाना है


जानो, समझो, जागो

तुम तो सम्मानित मतदाता हो

शस्य श्यामला इस भारत के

असली भाग्यविधाता हो

दिशा देश की तय करने को

तुमको फ़र्ज़ निभाना है


बने जागरूक अब तो समझे

भारत का हर मतदाता

उसके एक वोट से सारा ही

परिदृश्य बदल जाता

उदासीनता का सबको ही

अब अंधियार मिटाना है


चलो शपथ लें लोकतंत्र का

सब मिलकर सम्मान करें

सभी ज़रूरी काम छोड़

सबसे पहले मतदान करें

जाति-धर्म से ऊपर उठकर

अब इतिहास रचाना है


✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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(1)

उठो साथी नये युग का, पुनः सन्धान करना है।

खड़ा है पर्व द्वारे पर, हमें सम्मान करना है।

उचित प्रतिनिधि मिले हमको, इसी उद्देश्य से प्यारे,

सभी को बूथ पर जाकर, महा मतदान करना है।

******

(2)

राष्ट्र की संचेतना, हर नागरिक के मान का।

दे रहा अवसर हमें फिर, आज गौरव-गान का।

है अगर अधिकार तो, कर्तव्य भी इसमें निहित,

फिर जगाने आ गया लो, पर्व यह मतदान का।


 ✍️ राजीव 'प्रखर'

 डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत

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प्रजातन्त्र का  महापर्व है ,

सब अपना अवदान करो, 

 चलो सभी मतदान करो, 

 आओ सभी मतदान करो,,

         

  अल्प काल में ढह ना पाए,

  अटल  व्यवस्था  चुननी  है, 

  ऊपर उठकर जात-पात से ,

सबल  व्यवस्था  चुननी  है,

छोटी छोटी सोच में फँसकर,

 मत  अपना  नुकसान  करो, 

 चलो  सभी  मतदान करो ।।..


  प्रजातंत्र का मतलब जनमत, 

  इससे  हटकर  मत  चूको ,

  बहुत क़ीमती होता है 'मत' 

  ऐसा  अवसर   मत  चूको,,

 सूझ-बूझ से सोच समझ कर, 

 स्वयं  राष्ट्र  निर्माण  करो,,

 चलो सभी मतदान करो।।...


 मान-मनौवल या लालच में,

 पढ़कर धोखा मत खाना,

 चिकने-चुपड़े बहलावों में, 

 कभी भूलकर मत आना,

 नायक या खलनायक चेहरा,

 इसकी भी पहचान करो,,

 चलो सभी मतदान करो।।.


देश को जिस ने किया खोखला

उन्हें पनपने मत देना,

समझ रहे जो इसे बपौती 

इसे हड़पने मत देना,

अब 'मत' का अधिकार है तुमपे

 सच्चे का संधान करो,,

 चलो सभी मतदान करो।।..


✍️ मनोज वर्मा 'मनु'

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर  6397093523

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पांच बरस के बाद हमें फिर फ़र्ज़ निभाना है

मिला जो है अधिकार उसी का क़र्ज़ चुकाना है


आने वाला कल हम सबको दोष न दे जाए

सत्ता लोभी और नाकारा जीत नहीं पाए

लोकतंत्र का परचम अपना यूं ही लहराए

पर्व है सबसे बड़ा देश का व्यर्थ नहीं जाए

मत के दिन सबसे पहले मतदान को जाना है 

पांच बरस के बाद हमें फिर फ़र्ज़ निभाना है


सबका ध्यान रखे जो उसको ही मतदान करें

बंटवारा करने वालों को हम हैरान करें

मत है दान बड़ा तो इसको व्यर्थ न दान करें

प्रतिनिधि ऐसा चुनें कि हम ख़ुद पर अभिमान करें

मतदाताओ! ख़ुद को बुध्दिमान बनाना है 

पांच बरस के बाद हमें फिर फ़र्ज़ निभाना है


मिला किसी को इससे बेहतर क्या अधिकार भला! 

देश नहीं यह अपने ऊपर है उपकार भला

जिसने वोट किया, अच्छों से वो बीमार भला

उंगली पर स्याही से अच्छा क्या श्रंगार भला! 

ख़ुद करके मतदान ये औरों को समझाना है

पांच बरस के बाद हमें फिर फ़र्ज़ निभाना है


लालच देने वाला हर नेता परेशान रहे

लोकतंत्र का ढांचा अपना आलीशान रहे

मतदानी हर इक मुख पर बिखरी मुस्कान रहे

पिकनिक का यह दिवस नहीं है - इतना ध्यान रहे

महापर्व का धूमधाम से जश्न मनाना है

पांच बरस के बाद हमें फिर फ़र्ज़ निभाना है


✍️ ज़िया ज़मीर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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चौदह तारिख निश्चित,हम बूथ पे जायेंगे

हम डाल वोट अपना कर्तव्य निभायेंगे।

सुन लो भय्या,बहना हम नहीं भुलायेंगे।

अपनी किस्मत के दीप हम आप जलायेंगे।

चौदह तारिख निश्चित......

सुन लो चाचा चाची हम कसम ये खायेंगे।

किसी ऐरे गैरे को हम नहीं जितायेंगे।

 चौदह तारिख निश्चित......

सुन लो ताऊ ताई संकल्प धरायेंगे।

मतदान किये बिन हम खाना ना खायेंगे।

चौदह तारिख निश्चित.......

सुन लो दादा दादी सबको समझायेंगे।

अवसर ऐसे फिर रोज रोज ना आयेंगे।

चौदह तारिख निश्चित......

सुन लो खाला फूफी सब गीत ये गायेंगे।

मतदान की स्याही से शुभ कल सजायेंगे।

चौदह तारिख निश्चित.....


✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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हुई अठारह की है रानी

अब वोट डालने जायेगी,

काकी काका अम्मा बाबा

सभी को बूथ पहुँचायेगी ।


असहायों की बन सहायक

मतदान उन्हें करवायेगी ,

छूट जाये न कोई दाता

मत सबका ही पड़वायेगी ।


मत प्रतिशत क्यों रहे अधूरा

जब गिन गिन मत डलवायेगी,

बहुमत की होगी विधायिका

कानून सही बनवायेगी ।।


✍️ डॉ रीता सिंह

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत

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 निज हित छोड़ राष्ट्रहित सोचे

  तभी बढ़ेगा हिंदुस्तान ।

एकमत होकर एक -मत देकर

 ही हो सकता है योगदान ।

 जितना आवश्यक होता है

 घर वार देख कन्या का दान ।

हां उतना ही आवश्यक है ,             

हम हो जागरूक करें मतदान ।।


✍️ निवेदिता सक्सेना

 मुरादाबाद

 उत्तर प्रदेश, भारत

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 ज़ुबाँ पर आजकल सबके चढ़ीं  सरकार की बातें

कलम की नोंक तक आने लगीं तलवार की बातें


जिधर देखो उधर चर्चे ही चर्चे हैं सियासत के

उठा कर देख लो चाहे किसी अखबार की बातें


न एजेंडा ही अपना है न जनता का कोई मुद्दा

दलों में हो रही है सिर्फ दावेदार  की बातें


ज़ुबानी जंग जुमलों की छिड़ी है लोकशाही में

प्रवक्ता कर रहें हैं खोखली हुंकार की बातें


सियासत में गड़े मुर्दे भी कब्रों से निकल आये

सियार औ गिद्ध ने छेड़ी जो भ्रष्टाचार की बातें


चुनावी दौर ये "मासूम" जब अंतिम चरण में हो

दबाकर इक बटन कर तू भी 'मत' अधिकार की बातें


✍️ मोनिका मासूम

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बदल निराशा को आशा में चलकर तुम मतदान करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


इतना सबल हथियार नही कोई जितना केवल वोट है

धराशायी हो गये कितने धुरंधर, गहरी इसकी चोट है

खोल दो पट अपने घूँघट के जाकर तुम मतदान करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


इनके अंदर छिपा अभिनेता चुनो वही जो सच्चा नेता

राजनीति को समझे सेवा खोजे नही कोई इसमें मेवा

लोकतंत्र सबल हो भारत का इसलिए आवाहन करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


अधिकारों की बात बताओ राजनीति उनको समझाओ

पांच वर्ष जो काम न आये उनको घर की राह दिखाओ

जाति-धर्म से ऊपर उठकर संविधान का सम्मान करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


लोकतंत्र में मताधिकार से नही कभी कोई टोटा होता

नापसन्द हो कोई प्रत्याशी उसके लिए भी  नोटा होता

बुराई करो प्रचारित सदा ही, अच्छों के  गुणगान करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


बदल निराशा को आशा में चलकर तुम मतदान करो

तुम्हें मिला अधिकार मित्रो इसका तुम अभिमान करो


✍️ दुष्यन्त 'बाबा'

पुलिस लाइन, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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पांच साल की कुर्सी को 

सुनों! कुछ दिन लगा दो जोर,

फिर मैं नेता कहलाऊंगा  

और तुम बन जाना चोर,

 

मेरे सारे वादे पक्के हैं

हम ईमान के सच्चे हैं,

सड़क नाली बनवाऊंगा 

घर-घर पैसा पहुँचाउंगा  

यही मचे... अब शोर... 

पांच साल की सत्ता को 

दोस्तों! कुछ दिन लगा दो जोर

 

गाड़ी होगी, पैसा होगा 

तुम जो चाहो वैसा होगा 

अपनी धूम मचेगी चारों ओर... 

पांच साल की गद्दी को 

भाइयों! कुछ दिन लगा दो जोर

 

घर घर जा कर वोट निकालों 

फिर मेरी कुर्सी सम्भालों 

मैं विधायक बन जाउँगा... 

तुम बनोंगे मेरे घर के ढोर 

पांच साल के ठाठ को 

मित्रों! कुछ दिन लगा दो जोर,


✍️ प्रशान्त मिश्र 

राम गंगा विहार, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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लोकतंत्र की शान बचाने

गणतन्त्र की आन बचाने

पुरा हिंदुस्तान बचाने को

मतदान जरूरी है। 1।। 

गांधी का बलिदान बचाने

सुभाष का  मान  बचाने

भगत सिंह  का अरमान

बचाने को मतदान जरूरी हैं।2। 

ऊंच-नीच का भेद  मिटाने

मजहबी फसाद मिटाने

सपनों का हिंदुस्तान सजाने 

को मतदान जरूरी है। 3। 

 ✍️ आवरण अग्रवाल " श्रेष्ठ "

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' द्वारा पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया। 

संस्था के सह संयोजक कवि राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता  करते हुए सुप्रसिद्ध  व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी  ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की - 

खेत जोत कर जब आते थे, थककर पिता हमारे। कहते! बैलों को लेजाकर पानी जरा दिखाना।

हरा मिलाकर न्यार डालना रातब खूब मिलाना।। बलिहारी थे उस जोड़ी पर हलधर पिता हमारे।।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने अपने भाव कुछ इस प्रकार प्रकट किये - 

हिमकिरीट-से हैं पिता, मां गंगा की धार। 

इनके पुण्य -प्रताप से, जग में बेड़ा पार। 

 विशिष्ट अतिथि के रुप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी - 

घर की बगिया का होता है, पिता मूल आधार। 

बच्चों के सपनों को बुनता, खुशियों का संसार। कर्तव्यों की गठरी थामें, जतन करे दिन रात,

 बरगद है वो हर आँगन का, लिए छाँव उपहार।।

  वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी। पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।। 

वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह विवेक ने अपने शेरों से यह कहते हुए महफ़िल को लूटा -  

 मेरी सभी ख़ुशियों का हैं आधार पिता जी,

 और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी। हालाँकि ज़ियादा नहीं कुछ आय के साधन, 

 फिर भी चला  ही लेते हैं परिवार पिता जी। 

 सप्ताह में हैं सातों दिवस काम पे जाते, 

 जाने नहीं क्या होता है इतवार,पिताजी। 

कवयित्री  डॉ. अर्चना गुप्ता का कहना था - 

 मेरे अंदर जो बहती है उस नदिया की धार पिता। भूल नहीं सकती जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता।उनके आदर्शों पर चलकर मेरा जीवन सुरभित है, बनी इमारत जो मैं ऊँची हैं उसके आधार पिता।।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कुछ इस प्रकार अभिव्यक्ति की - 

बहुत दूर हैं पिता किन्तु फिर भी हैं मन के पास। पथरीले पथ पर चलना मन्ज़िल को पा लेना,

 कैसे मुमकिन होता क़द को ऊँचाई देना।

 याद पिता की जगा रही है सपनों में विश्वास।। 

कार्यक्रम का संचालन  कर रहे राजीव प्रखर ने पिता की महिमा का बखान करते हुए कहा - 

दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास।

 मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।। 

चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान। 

 पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।। 

 कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने पिता की महिमा का वर्णन करते हुए कहा - 

हर बेटी के नायक पापा। 

करते हैं सब लायक पापा। 

कारज अपने सभी निभाते, 

बनें नहीं अधिनायक पापा। 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पारिवारिक मूल्यों को कुछ इस प्रकार को उकेरा - 

"करता है रात दिन, वह सुपोषित मुझे, सूर्य सी ऊर्जा लिए।

 उगता है नित्य वह, और पार करता है, अग्नि पथ मेरे लिए।" 

कवि मनोज मनु के भावाभिव्यक्ति इस प्रकार रही -  सिर पर छाँव पिता की। 

कच्ची दीवारों पर छप्पर। 

आंधी बारिश खुद पर झेले,

 हवा थपेड़े रोके, जर्जर 

 तन भी ढाल बने,

  कितने मौके-बेमौके।।

कवि दुष्यंत बाबा ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की - 

पिता  हैं  पोषक, पिता सहारा।

 ये  संतति  के  हैं  सृजन  हारा। 

 पूरे  कुल  का  जो भार उठाएं, 

 कभी न इनके दिल को दुखाएं।।

योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया । 

::::::: प्रस्तुति:::::::

 राजीव 'प्रखर'

सह संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद

मोबाइल- 8941912642

सोमवार, 24 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर ' की ओर से शनिवार 22 मई 2021 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों दुष्यंत बाबा, डॉ. रीता सिंह, डॉ. ममता सिंह, मयंक शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर, मोनिका 'मासूम', हेमा तिवारी भट्ट , राजीव 'प्रखर', डॉ. अर्चना गुप्ता, मनोज 'मनु', श्रीकृष्ण शुक्ल , ओंकार सिंह 'विवेक, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', शिशुपाल 'मधुकर', वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' , डाॅ. मनोज रस्तोगी , डाॅ. पूनम बंसल , डाॅ. अजय 'अनुपम', डाॅ. मक्खन 'मुरादाबादी' और अशोक विश्नोई द्वारा प्रस्तुत रचनाएं -------

 


रात के बाद जब दिन ही आना है

तब दूर तमस सब  हो ही जाना है
साथ मे लेकर सुबह की  लालिमा
फिर से  दिवाकर  उग ही आना है

जो उदय हुआ वह अस्त भी होगा
जो जीत गया कल पस्त भी होगा
चिर स्थायी कुछ नही  रह पाना है
तो उदय अस्त से  क्या घबराना है

पतझड़  आने  पर पत्ते झड़ जाते
फिर भी क्या तरु व्याकुल जाते ?
आनी नई कोपलें कलिया फिर से
आशा कि हरा भरा हो ही जाना है

हम  सभी  यहाँ  पर किराएदार हैं
नही  हमारे  मकान  यहाँ  जातीय
तुम्हें मंजिल पर बढ़ते ही जाना है
जीवन  मृत्यु  से  नही  घबराना है
✍️ दुष्यन्त बाबा, मुरादाबाद
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आशाओं के दीप जलाएँ
पीड़ित मन की पीर मिटाएँ
घन उदासियों के छटेंगे
ऐसी सबको धीर दिलाएँ ।
मनुज मदद को हाथ बढ़ाएँ
एक दूजे का साथ निभाएँ
फैल गया जो कोरोना से
सभी वह अंधकार मिटाएँ ।

✍️डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद
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कोरोना की ये बीमारी, आपदा बनी है भारी।
पूर्ण करके तैयारी, इसको हराना है।।

ज़िंदगी रही है हार, मच रहा हाहाकार।
लाशों के लगे अम्बार, टूट नहीं जाना है।।

माना अभी है अन्धेरा, मुश्किलों ने हमें घेरा।
जल्द आयेगा सबेरा, जीत के दिखाना है।।

छोड़ो नहीं तुम आस, खुद पे रखो विश्वास।
बात सबसे ये ख़ास, ड़र को भगाना है।।

✍️ डाॅ ममता सिंह , मुरादाबाद
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ख़ुद पर रख विश्वास एक दिन नया सवेरा होगा,
द्वार-द्वार पर दीप जलेंगे दूर अँधेरा होगा।

धैर्य परीक्षित होता है जब समय कठिन आ जाए,
मनुज नहीं विपरीत परिस्थिति के आगे झुक जाए।
लड़ना होगा दीपक जैसे आँधी से लड़ता है,
घोर अमावस का अँधियारा भी पानी भरता है।
दुख के दिन बीतेंगे निश्चित, सुख का डेरा होगा।

द्वार-द्वार पर दीप चलेंगे दूर अंधेरा होगा।
✍️  मयंक शर्मा, मुरादाबाद
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रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये,
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये।

इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम,
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये।

ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से,
मरती दुनिया को मालिक़ दवा दीजिये।

बंद कमरो में घुटने लगी साँस भी,
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये।

जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं,
कै़द से हर  परिंदा छुड़ा दीजिये ।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर,मिलन विहार
मुरादाबाद
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इस तरह ग़म के अंधेरों में  उजाले रखिये
दीप छोटा सही उम्मीद का बाले रखिये

भीङ में दुनिया की रहना है दो कदम आगे
अपने अंदाज़ ज़माने से निराले रखिये

देखना छोङिये ग़ैरों के ग़रेबानों में
आप अपने बड़े किरदार संभाले रखिये

ज़ायका सफर ए मंज़िल को चखाने के लिए
ज़ख्म ताज़ा कि हरे पाँव के छाले रखिये

✍️  मोनिका "मासूम", मुरादाबाद
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ईश्वर का संदेश

दिनकर पुनः नव,
मैं देता हूँ तुझको।
तू पाल्य मेरा,
मैं तेरा पिता हूँ।
तू भी है आश्वस्त,
पिता से मिलेगा।
इच्छाएँ मैं भी
कुछ रख रहा हूँ।
हर बार धुंधला,
तू लौटाता रवि को,
हर प्रातः उज्जवल,
मैं तुझ पर लुटाता।
माना असीमित
मेरा कोष दिखता।
मगर सच ये है कि
अमर बस विधाता।
संभल जा संंभल जा
समय तोलता है?
जग में मिला क्या
ये क्यों बोलता है?
ये रवि खिलौना,
नहीं ऐसा वैसा।
यदि दृश्य तुझको,
ये नत मुख कैसा?
अहो!पुत्र तुम हो
बड़े भाग्यशाली।
पढो़ बस सुबह-शाम,
दिनकर की लाली।
✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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मृगतृष्णा से खुद को मत छलने देना
मन कभी निराशा को मत पलने देना
अपनी हर मंजिल को पाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

है यदि दुख,कल सुख की बदरी छाएगी
राग सुरीले फिर से कोयल गाएगी
करनी हमको काँटों की परवाह नहीं
फूलों से हर चमन सजाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

अभी रात काली है सुबह मगर होगी
कृपा सुनहरी किरणों की सब पर होगी
चाल समय की सदा बदलती रहती है
साथ समय के कदम मिलाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

मार पड़े कुदरत की या हो बीमारी
चाहें टूट पहाड़ पड़ें हम पर भारी
करना होगा हमें सामना हिम्मत से
हार मानकर बैठ न जाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता ,  मुरादाबाद
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(1)
माना समय बड़ा दुष्कर है,
जीवन तक खोने का डर है,,

सामाजिकता छिन्न-भिन्न है,
बीच  में कोरोनाई जिन्न  है,,

कुछ सटीक उपचार नहीं है,
पर खर्चे का  पार  नहीं  है,,

औषधि  को  मारामारी  है,
तिस पर  कालाबाजारी है,,

फिर भी कुछ तो करना होगा,
यूं  ही  नहीं  ठहरना  होगा,,

वेंटिलेटर  नहीं  मिला  तो,
सीना  ही  थपकाना होगा,,

  आशा दीप जलाना होगा.... ,,
(2)
....आगे जाने राम.....

अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,

आड़े तिरछे क्षेत्र फलों का
मिश्रण यह जीवन,
फेल हो रहे सूत्र गणित के
सीधे साधारण,
समाकलन अवकलन सरीखे
संतुष्टि को नाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती.....

कभी ज्यामिति निर्मेय जैसी
व्यूह रचे  सांसें,
पर त्रिकोणमिति सम चर
उत्तर अक्सर बांचें,
आवश्यकता रख लेती है
एक नया आयाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती....

शून्य कोरोना गुणा स्वयं से
करने अड़ा हुआ,
लॉक डाउन का बड़ा कोष्टक
घेरे हुए खड़ा,
व्यूह और आव्यूह कौन सा
कब कर जाए काम,,

अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,

✍️  मनोज मनु ,मुरादाबाद
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आओ आशा दीप जलाएं
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माना चहुँ दिशि अंधकार है।
सांसों पर निष्ठुर प्रहार है।।
आओ आशा दीप जलाएं,
दूर भगाना अंधकार है।

रात भले हो घोर अँधेरी,
उसकी भी सीमा होती है।
रवि के रथ की आहट से ही,
निशा रोज ही मिट जाती है।
आशा दीपों की उजास से,
बस करना तम पर प्रहार है।

लेकिन देखो हार न जाना।
आशा को तुम जीवित रखना।।
आशा का इक दीप जलाकर,
अंधकार से लड़ते रहना।
केवल एक दीप जलने से,
ठिठका रहता अंधकार है।

रात अंततः ढल जाएगी।
भोर अरुणिमा ले आएगी।।
सूर्य रश्मियों के प्रकाश से,
कलुष कालिमा मिट जाएगी।।
तब तक आशा दीप जलाएं,
आशा है तो दूर हार है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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अब है बस कुछ देर की,दुःख  भरी यह रात,
आने वाला  शीघ्र ही,सुख का नवल प्रभात।

मज़बूती  से  थामकर , साहस  की पतवार,
विपदा-बाधा  का करें , आओ दरिया  पार।

यह दुनिया की शांति को, किए  हुए है भंग,
आओ  सब मिलकर लड़ें, कोरोना से जंग।

कोविड से उपजे हुए , इस संकट  में  आप,
अपने- अपने  इष्ट  का , करते रहिए जाप।

कोरोना   के  ख़ौफ़  से ,  सहमें   हैं   इंसान,
मिटा दीजिए राम जी,इसका नाम-निशान।
  
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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चिंताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अंधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आंखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की खुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
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आओ सुख- दुःख से बतियाएँ
सुख से बोलें मत इतराना
दुःख से बोलें मत घबराना
जीवन है संघर्ष  सरीखा
यही सभी को है समझाना
सबको जीवन- गीत सुनाएँ

बोलो दुःख कैसे जाओगे
बोलो सुख कैसे आओगे
अनगिन प्रश्न हमारे भीतर
कब तक हमको बहलाओगे
मन की हर गुत्थी सुलझाएं

काल वेदना वाला आया
घोर निराशा का तम लाया
मिलकर इसको दूर करेंगे
मन में है संकल्प जगाया
आओ आशा दीप जलाएं

✍️शिशुपाल "मधुकर ", सी - 101 हनुमान नगर, लाइन पार, मुरादाबाद Mob- 9412237422
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हर मन में उजियार भरेगा
यह    आशा    का    दीप     
सबके   सारे  कष्ट   हरेगा
यह,  आशा    का    दीप।
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कबतक भटकेंगे दुनियांमें
जन  -  मानस       बेकार
कब तक टूटेगी  रूढ़ी  की
घृणित      यह       दीवार
अंधियारों  को  दूर  करेगा
यह,   आशा    का    दीप।

विश्वासों  का  तेल  भरा है
संकल्पों        के      साथ
दृढ़ निश्चयसे जली वर्तिका
हरने        सब       संताप
जीवन को हर्षित कर देगा
यह,   आशा    का    दीप।

हाथ-हाथ को काम मिलेगा
मिट       जाएगा       त्रास
घर-घर में  खुशियां लौटेंगी
होगा       जी भर      हास
खुशियां लेकर  ही  लौटेगा
यह,   आशा    का    दीप।

आंखें  कभी   नहीं  रोएंगी
मिले    सभी    का    साथ
गिरते को  बढ़कर  थामेगा
जब   अपनों    का    हाथ
अंतस में  उजियार  भरेगा
यह,    आशा    का    दीप।

सबकी  नैया  पार  लगेगी
होगा        बेड़ा         पार
अभिशापों का दंश मिटेगा
कहता       हूँ        सौबार
आशा  का  संचार   करेगा
यह,   आशा    का    दीप।
        
             
✍️वीरेन्द्र सिंह ,"ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र 9719275453
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घर से बाहर  न  निकलिए  साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।

अपना घर परिवार ही है जन्नत ।                      कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।

यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को  सिलिए साहिब ।।

एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।

जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।

हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।

✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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राहें भी ये पथरीली हैं गहन अँधेरा है।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।।

माना पतझर है लेकिन मौसम ये जाएगा।
मुस्काता ऋतुराज पुष्प झोली भर लाएगा।
छोड़ निराशा का आँचल मावस का फेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

दुख के बादल बरस चुके अब क्या तरसाएंगे।
साहस की जब हवा चली तो ये उड़ जाएंगे।
सपनीली रातों में अब चंदा का डेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

तट से टकराकर लहरें देखो इतराती हैं।
बीच भँवर में घिरी हुई ये गीत सुनाती हैं।
अवसादों से निकल जरा ये रैन बसेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

समय बड़ा बलवान हुआ कर्मों का है मेला।
बना मदारी नचा रहा वो, है उसका सब खेला।
सदभावों से सजा इसे जो जीवन तेरा है।।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।

           
✍️डॉ पूनम बंसल , 10, गोकुल विहार, कांठ रोड  मुरादाबाद उ प्र , मोबा 9412143525
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जनमानस का मलिन रंग है
दुखती आंखों में उमंग है
अब कर्तव्य सभी का, हम
संदेश कर्म का दें

सफल चिकित्सक, देह निरोगी
चिन्तन में लालित्य
अश्रुधार पी जाता,मन को
बहलाता साहित्य
हों कृतज्ञ हम
सांस सांस से
भर दें ममता की
सुवास से
सूनी आंखों को सहलाता
भाव मर्म का दें

नागफनी के साथ
बबूलों का तो रिश्ता है
बेरी के कांटे सहता
जो मौन फरिश्ता है
चौराहे पर अपने
दुख का रोना छोड़ें
बना सहायक अपने
थके हाथ को मोड़ें
पर दुःख में हों मित्र चलो
संदेश धर्म का दें

गीध-वंश ही हमें
बचाता है बीमारी से
प्रकृति दंड देती उबार
देती लाचारी से
आस्तीन के सांपों को
मतलब है डसने से
दांत कुंद होंगे उनके भी
गर्दन फंसने से
आवश्यक है उनको भी
संकेत शर्म का दें
✍️डा.अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
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रोग-व्याधियों के कुनबे
एक हो गए मिलकर
चलो! एक हम भी होलें
फटा-पुराना सिलकर

पांचों उंगली अलग-अलग
सिर्फ विवशता जीतीं
मिल बैठैं तो मिली जुली
सार शक्तियां पीतीं
सीख गलतियों से मिलती
दर्द दुखों में बिल कर

दुरुपयोग शक्तियां जियें
तो चिंता हो पुर को
भस्मासुर की अतियां ही
डहतीं भस्मासुर को
एक हुआ था, लेकिन सच
देवलोक भी हिलकर

विविध धर्म भाषाएं मिल
मानव मर्म बचाएं
महल मड़ैया घेर सभी
संजीवन हो जायें
राम हुए ज्यों पुरुषोत्तम
मर्यादा में खिलकर

✍️डॉ. मक्खन मुरादाबादी, झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद
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मन में  सुन्दर स्वप्न सजाएं
हर  असमंजस  दूर भगाएं
घोर निराशा के तम में सब
आओ !आशा दीप जलाएं
(2)
रिश्तो में अब प्यार का एहसास होना चाहिए
हर जुबां मीठी रहे विश्वास होना चाहिए
हो उदासी  अलविदा,ज़िन्दगी में अब तो बस
हास होना चाहिए परिहास होना चाहिए

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

शनिवार, 20 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से 20 मार्च 2021 को होली के उपलक्ष्य में ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ पूनम बंसल, श्रीकृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह विवेक, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, जिया जमीर, हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा मासूम, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, दुष्यन्त बाबा और निवेदिता सक्सेना द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ......


मन में थी उठती रही,

रह रह कर जो हूक।
हुरियारे मन सोचते,
अबकी रहे न चूक।।

मन में उठती हूक की
पिय तक गई तरंग।
मुखड़े से पहले खिला
नयनों-नयनों रंग।।

सूखे मौसम को मिली
सरस रंग सौगात।
बूढ़ी बूढ़ी कनखियां
बातों की बरसात।।

रंगों से ठंडी करें,
मद्धम मद्धम आग।
जो सबको निर्मल करे,
आओ खेलें फाग।।

✍️ डॉ. अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
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होली मन से खेल ली
खिलकर आया खेल।
ऊपर हैं सकुचाहटें,
भीतर चलती रेल।।1।।

तन-मन होली खेलते,
निकले इतनी दूर।
वापस मन लौटा नहीं,
कोशिश की भरपूर।।2।।

खेल-खेल सब लौटते,
अपने-अपने द्वार।
सोचें तो, है दीखता,
हुआ प्रेम विस्तार।।3।।

मठरी,बर्फी,सेब की,
रही न तब औकात।
गुझिया जब करने लगी,
मथे दही से बात।।4।।

होली रस्ता प्रेम का,
रखता नहीं विभेद।
इसपर चल होता नहीं,
कभी किसी को खेद।।5।।

होली है त्योहार भी,
जीने का भी मंत्र।
बचे नहीं यदि प्रेम तो,
भटका सारा तंत्र।।6।।

मन से सबने रंग लिए,
हुए उमंगित गात।
तुम भीतर भुनते रहे,
दिन से बोली रात।।7।।

रंगों से तर हो लिए,
लगे पुलकने गात।
कौन कुलांचे मारता,
करने को दो बात।।8।।

हाथों के सौभाग्य ने,
मसले रंग-गुलाल।
अधर फड़कते रह गए,
लगी न उनकी ताल।।9।।

रंग चढ़ों के सामने,
फीके सब पकवान।
रिश्तों की सब गालियां,
होली का मिष्ठान।।10।।

होली की ये मस्तियां,
अद्भुत इनके सीन।
मीठी-मीठी भाभियां,
दीख रहीं नमकीन।।11।।

भाभी के हों भाव या,
फिर देवर के राग।
होली रंग पवित्र हैं,
नहीं छोड़ते दाग।।12।।

सब कुछ जग में प्रेम है,
होली का संदेश।
छोड़ो इसमें देखना,
जाति,धर्म, परिवेश।।13।।

होली पर यूं बोलता,
पानी पीकर रेत।
पकने को गेहूं चले,
हुए सुनहरे खेत।।14।।

होली ने मन कर दिया,
फुलवारी से बाग।
जमकर भीगे तर हुए,
बुझी न मन की आग।।15।।

ब्याहे गये अनेक थे,
क्वारे भी कुछ रंग।
सबमें उठे तरंग थी,
बिना पिये ही भंग।।16।।

प्रदूषण भी आये ले,
औने-पौने रंग।
बैठी मिली पवित्रता,
मचा नहीं हुड़दंग।।17।।

✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी, मुरादाबाद
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कान्हा बरसाने मति अइयो,
ऐसी     लठामार   होरी  में,
ऐसी    लठामार   होरी   में,
जा   ब्रज   की  बरजोरी में।
        ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे    संग     खेलिबे    होरी,
बरसाने    के    छोरा - छोरी,
लै-लै लट्ठ खड़ी सजधज के,
बन हुरियारिन ब्रजकी  गोरी,
मेरौ कह्यौ मानि मतिबनियो,
कलाकार        होरी       में।

रंगै  न कोरी चटक चुनरिया,
कंगन झूमर लहंगा  फरिया,
हाथ  न  आवै   हुरियारे  के,
काहू  की  चोली   घांघरिया,
रह-रह   लट्ठ  चलावें   गोरी,
लगातार        होरी        में।

टूटै  ढाल फूटि जाए हड़िया,
परै  लट्ठ ग्वारिन कौ बढ़िया,
भाजें  छोड़ि  छोड़ि हुरियारे,
रंग   भरी  मटुकी  गागरिया ,
पीपी भंग  भूलि जाएं सगरौ,
सदाचार       होरी          में।

तेरे  बिना  रंग  नाहि   भावै,
पर कान्हा तू इत मति आवै,
लै-लै लट्ठ कहें सब  ग्वारिन,
घेर लेउ  जब  कान्हा  आवै,
मेरौ    मन  घवरावै  कान्हा,
बार - बार      होरी       में।

तेरे   बिना   कौन   है   मेरौ,
फीकौ - फीकौ  लगै  सवेरौ,
कोटिक रंग  निछावर  तोपै,
मैं  राधा  तू   कान्हा    मेरौ,
कहूँ न  घायल  होय हमारौ,
महा      प्यार   होरी     में।
कान्हा  बरसाने मति,,,,,,,,
✍️ वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद,उ,प्रदेश
  मोबाइल फोन 09719275453
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रंग उड़ाती स्वप्न सजाती लो फिर आई है होली।
छिटक रही चहुँ ओर चाँदनी पूनम जाई है होली।।

फागुन का त्यौहार प्रेम का मन में है विश्वास लिए।
रूठों को हम आज मनाएं एक मिलन की आस लिए।
यादों में भी खूब भिगोती ये हरजाई है होली।।

गोरी की गालों पर लगकर रंग बड़े इतराते हैं।
नीला पीला हरा हुआ है मिल जुल कर बतियाते हैं।।
दिल से दिल की बात कराती अवसर लाई है होली।।

भीग रही है चूनर चोली बुरा न मानो होली है।
देवर भाभी जीजा साली सबने करी ठिठोली है।
रिश्तों की इस बरजोरी से लो शरमाई है होली।।

फूल खिले हैं टेसू के ये सरसों पीली फूल रही।
गन्ने पर गेहूं की बाली इठलाती सी झूल रही।
नफ़रत की जब जले होलिका तब मुस्काई है होली।। 

✍️ डॉ पूनम बंसल , मुरादाबाद ,मोबाइल 9412143525

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घनाक्षरी:

बरसाने की ये होली, करें जी कैसे  ठिठोली, सभी दिखें एक से ही, करें बरजोरी है।
केश कटी नारियां हैं, नर मूंछ मुंडे हुए,
कैसे जानें लट्ठ लिये, खड़ी कहाँ गोरी है।
जींस टाप धारे हुए, लिपे पुते मुख लिये, ये भी तो पता न चले, छोरा है या छोरी है।
कृष्ण ढूँढते ही रहे,  गोपियों ने रंग दिये, मल मल गाल कहें, होरी है जी होरी है।।
हैप्पी होली

गीतिका: बरसाने की होली

बरसाने में गए देखने, होली का हुड़दंग।
जम कर झूमे नाचे, गाये हुरियारों के संग।।

मादकता सी आज भर रहा, होली का ये रंग।
पाँव स्वतः ही लगे थिरकने, मानो पी हो भंग।।

रहे बजाते खूब साथ में, ढोलक और मृदंग।
कृष्ण बने बच्चों में बच्चे, किया खूब हुड़दंग।

छोरा समझ लगाया हमने, कस के जिसको रंग।
जींस टॉप में रही पड़ोसन, हुआ रंग में भंग।।

हुरियारिन के बीच दिखी जब बीबी थामे लट्ठ।
झटपट भगे छोड़कर चप्पल उतर गई सब भंग।।

जोगीया सा रा रा रा रा।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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दीवाली   के   दीप  हों  , या   होली   के   रंग,
इनका आकर्षण तभी ,जब हों प्रियतम संग।

रस्म  निभाने  को  गले , मिलते  थे  जो  यार,
अपनेपन  से  वे  मिले ,  होली  अबकी  बार।

होली  का  त्योहार  है , हो  कुछ  तो  हुड़दंग,
हमसे   यह   कहने   लगे ,  नीले - पीले  रंग।

महँगाई  ने  जेब  को ,जब  से  किया उदास,
गुझिया की जाती रही,तब से सखे  मिठास।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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होली  के   पावन  पर्व पर,
आओ मिल सब गीत गाएं।
भेदभाव  छुआछूत भूलकर,
एक  सूत्र में सब बंध जाएं ।
प्रेम भाव से  सब होली खेलें,
रंग  अबीर गुलाल बरसाएं ।
आपस के सब झगड़े भूल,
आज गले से सब लग जाएं।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नंबर 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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मनके सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद ।
पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद ।।

रिश्तो की शालीनता, के टूटे तटबंध ।
फागुन ने जब जब लिखा, मस्ती भरा निबंध ।।

गुझिया से कचरी लड़े, होगी किसकी जीत ।
एक कह रही है ग़ज़ल, एक लिख रही गीत ।।

सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम ।
अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम ।।

तन मन में उल्लास के, फूटे अंकुर देख ।
सबने पढ़े गुलाल के, गंध पगे आलेख ।।

हर चेहरे से हो गई, सभी उदासी दूर ।
मन के भीतर जब बजा, फागुन का संतूर ।।

मस्ती और उमंग वो, आई जब जब याद ।
रंग सारे करने लगे, होली का अनुवाद ।।

फिर से भरने के लिए, रिश्तो में एहसास ।
रंगो की अठखेलियां, जगा रही विश्वास ।।

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
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मुक्तक
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स्नेह-प्रेम-सद्भाव के, सीख सुहाने ढंग।
सच्चे मन से फिर लगा, वही पुराने रंग।
दूर हटा त्योहार से, सभी बैर-विद्वेष,
मर्यादित रहकर मचा, होली का हुड़दंग।।
------------
दोहे
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आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।

ऐसी भटकी राह से, रंगों की बौछार।
लुकता-छिपता फिर रहा, अब है शिष्टाचार।।

फागुन लेकर आ गया, फिर अपना मृदुगान।
बैर-भाव अब बाँध ले, तू अपना सामान।।

बदल गई संवेदना, बदल गए सब ढंग।
पहले जैसे अब कहाँ, होली के हुड़दंग।।

गुझिया-पारे-पापड़ी, बड़े-समोसे-भात।
सबने जाकर पेट में, मचा दिया उत्पात।।

अपने फ़न में आज भी, प्यारे इतनी धार।
चुपके-चुपके जेब से, कर दें गुझिया पार।।

मरते-मरते भी रहे, मुख पर तेरा नाम।
ऐसी होली खेल जा, मुझसे ओ घन-श्याम।।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
मो. 8941912642
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क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है
अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है

वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में
उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है

अपनी छज्जे से पलट रंग का पानी उस पर
तेरा दीवाना है, दहलीज़ पे आया हुआ है

अगली होली पे तुझे रंग लगाएंगे ज़रूर
पिछली होली से यही ख़्वाब दिखाया हुआ है

अब के होली पे लगा रंग उतरता ही नहीं
किस ने इस बार हमें रंग लगाया हुआ है

यह करिश्मा भी तो होली ने दिखाया है हमें
वो जो रुठा था गले मिलने को आया हुआ है

✍️ ज़िया ज़मीर, मुरादाबाद
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सभी आओ,चलो गाएँ,सुअवसर आज होली है।
छबीली है,रसीली है,असरकर आज होली है।

कहीं भीगी,कहीं सूखी,सजे रंगीन होकर के।
किशोरी हों कि वृद्धा हों, हुईं तर आज होली है।

"अरे जीजा,बुझे लट्टू",सलज ने जाके छेड़ा है।
चिढ़े जीजा,रंगें साली,रगड़कर आज होली है।

खड़े देवर रचे तिगड़म,लगाना रंग भाभी पर,
मगर भाभी,सयानी है,'नहीं घर' आज होली है।

बड़े दिन बाद आयें हैं,पिया जिसके विलायत से,
बहक चलती,मटक हंसती,संवरकर आज होली है

रहे क्यों कैद कमरों में,खिले सब रंग हैं बाहर।
चलो देखो,मशीनों से निकलकर आज होली है

न कोई हो,अलग मुझ से,अलग मैं क्यों दिखाई दूँ।
खिले सब रंग रंगोली,निखरकर आज होली है।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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फाल्गुन पर ऐसा चढ़ा, रंग सियासी यार
सत्ता को लेकर हुई, फूलों में तकरार

लगाने रंग दुनिया को , है निकला चांद पूनम का
नहाकर दूध से निखरा ये उजला चांद पूनम का
किये शिंगार सोलह चांदनी ने दिल लुभाने को
कि  बैरी चांदनी के दिल से खेला चांद पूनम का

✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद
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आँखों में गुलाबी डोर,गाल लाल -लाल भए,
होलिया में गोरी देखो,भंग पिलाय रही।

दीखै नाहिं मोहे कछु,जबसे है आयी होली।
भर पिचकारी मोहे,रंग वो लगाय रही ,

नैनन में डूब तेरे ,भीग गये अंग-अंग
फिर काहे डार रंग,तन को भिगोय रही।

होली का खुमार छाया,लाल पीला रंग भाया
देख-देख मुखड़े को ,गोरी शर्माय रही।

खड़ा रह दूर -दूर, पास नहीं आना मेरे
दूँगी तुझे गारी आज ,यही बतलाय रही।

बरसाने की मैं नार,अजब ही चाल मेरी
रंगने से पहले ही, लट्ठ भी बजाय रही।

बरसाय भर -भर ,कोई पिचकारी रंग
भीग गयी चूनर तो ,काहे भन्नाय रही।

फाग में मचल जाये ,मन का मयूर देखो
होलिया में गोरिया ,जिया  भरमाय रही।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद ,
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होली आयी होली आयी
गुझिया पापड़ कचरी लायी
आलू चिप्स व मूँग बरी की
देखो घर - घर में है छायी ।
होली आयी......

गरम- कचौड़ी और पकौड़ी
सबने बहुत चाव से खायी
दही बड़े में चटनी मीठी
मुन्नी - मुन्ना को भी भायी ।
होली आयी.....

हरा - गुलाबी नीला - पीला
भर पिचकारी खूब चलायी
पास - पड़ोसी जो रूठे थे
हुई सभी की मेल मिलायी ।
होली आयी.....

✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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इस होली साजन आ जाते,
दिल के मैल मिटा लेती मैं।।
उनको अपने रंग रंग लेती ,
या उनके रंग में रंग जाती मैं।।

कैसे विरह की रतिया कटती,
पिया बिना न सुहागिन लगती।
अरे! सखी मांग में सिंदूर लगाते,
उम्र भरको उनकी हो जाती मैं।।

उनके नाम का सुमरिन करती,
मीरा सी गलियों में मारी फिरती।।
अरे! सखी विष प्याला दे जाते,
अमृत समझ उसे पी जाती मैं।।

मैं नलिनी हिम पात की मारी,
विरह अग्नि जल हो गई कारी।
अरे! सखी सिर आंचल दे जाते,
फिर कली बन खिल जाती मैं।।

हीरे-मोती मैं कभी नही माँगी,
कभी न महल-दुमहला चाही।
अरे! सखी कुछ मांग तो करते
जान न्योछावर कर जाती मैं।।
✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद
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✍️निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद