रात के बाद जब दिन ही आना है
तब दूर तमस सब हो ही जाना है
साथ मे लेकर सुबह की लालिमा
फिर से दिवाकर उग ही आना है
जो उदय हुआ वह अस्त भी होगा
जो जीत गया कल पस्त भी होगा
चिर स्थायी कुछ नही रह पाना है
तो उदय अस्त से क्या घबराना है
पतझड़ आने पर पत्ते झड़ जाते
फिर भी क्या तरु व्याकुल जाते ?
आनी नई कोपलें कलिया फिर से
आशा कि हरा भरा हो ही जाना है
हम सभी यहाँ पर किराएदार हैं
नही हमारे मकान यहाँ जातीय
तुम्हें मंजिल पर बढ़ते ही जाना है
जीवन मृत्यु से नही घबराना है
✍️ दुष्यन्त बाबा, मुरादाबाद
--------------------------------
आशाओं के दीप जलाएँ
पीड़ित मन की पीर मिटाएँ
घन उदासियों के छटेंगे
ऐसी सबको धीर दिलाएँ ।
मनुज मदद को हाथ बढ़ाएँ
एक दूजे का साथ निभाएँ
फैल गया जो कोरोना से
सभी वह अंधकार मिटाएँ ।
✍️डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद
--------------------------------------
कोरोना की ये बीमारी, आपदा बनी है भारी।
पूर्ण करके तैयारी, इसको हराना है।।
ज़िंदगी रही है हार, मच रहा हाहाकार।
लाशों के लगे अम्बार, टूट नहीं जाना है।।
माना अभी है अन्धेरा, मुश्किलों ने हमें घेरा।
जल्द आयेगा सबेरा, जीत के दिखाना है।।
छोड़ो नहीं तुम आस, खुद पे रखो विश्वास।
बात सबसे ये ख़ास, ड़र को भगाना है।।
✍️ डाॅ ममता सिंह , मुरादाबाद
--------------------------------
ख़ुद पर रख विश्वास एक दिन नया सवेरा होगा,
द्वार-द्वार पर दीप जलेंगे दूर अँधेरा होगा।
धैर्य परीक्षित होता है जब समय कठिन आ जाए,
मनुज नहीं विपरीत परिस्थिति के आगे झुक जाए।
लड़ना होगा दीपक जैसे आँधी से लड़ता है,
घोर अमावस का अँधियारा भी पानी भरता है।
दुख के दिन बीतेंगे निश्चित, सुख का डेरा होगा।
द्वार-द्वार पर दीप चलेंगे दूर अंधेरा होगा।
✍️ मयंक शर्मा, मुरादाबाद
-----------------------------------
रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये,
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये।
इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम,
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये।
ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से,
मरती दुनिया को मालिक़ दवा दीजिये।
बंद कमरो में घुटने लगी साँस भी,
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये।
जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं,
कै़द से हर परिंदा छुड़ा दीजिये ।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर,मिलन विहार
मुरादाबाद
-------------------------
इस तरह ग़म के अंधेरों में उजाले रखिये
दीप छोटा सही उम्मीद का बाले रखिये
भीङ में दुनिया की रहना है दो कदम आगे
अपने अंदाज़ ज़माने से निराले रखिये
देखना छोङिये ग़ैरों के ग़रेबानों में
आप अपने बड़े किरदार संभाले रखिये
ज़ायका सफर ए मंज़िल को चखाने के लिए
ज़ख्म ताज़ा कि हरे पाँव के छाले रखिये
✍️ मोनिका "मासूम", मुरादाबाद
-------------------------------
ईश्वर का संदेश
दिनकर पुनः नव,
मैं देता हूँ तुझको।
तू पाल्य मेरा,
मैं तेरा पिता हूँ।
तू भी है आश्वस्त,
पिता से मिलेगा।
इच्छाएँ मैं भी
कुछ रख रहा हूँ।
हर बार धुंधला,
तू लौटाता रवि को,
हर प्रातः उज्जवल,
मैं तुझ पर लुटाता।
माना असीमित
मेरा कोष दिखता।
मगर सच ये है कि
अमर बस विधाता।
संभल जा संंभल जा
समय तोलता है?
जग में मिला क्या
ये क्यों बोलता है?
ये रवि खिलौना,
नहीं ऐसा वैसा।
यदि दृश्य तुझको,
ये नत मुख कैसा?
अहो!पुत्र तुम हो
बड़े भाग्यशाली।
पढो़ बस सुबह-शाम,
दिनकर की लाली।
✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
-------------------------------
मृगतृष्णा से खुद को मत छलने देना
मन कभी निराशा को मत पलने देना
अपनी हर मंजिल को पाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
है यदि दुख,कल सुख की बदरी छाएगी
राग सुरीले फिर से कोयल गाएगी
करनी हमको काँटों की परवाह नहीं
फूलों से हर चमन सजाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
अभी रात काली है सुबह मगर होगी
कृपा सुनहरी किरणों की सब पर होगी
चाल समय की सदा बदलती रहती है
साथ समय के कदम मिलाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
मार पड़े कुदरत की या हो बीमारी
चाहें टूट पहाड़ पड़ें हम पर भारी
करना होगा हमें सामना हिम्मत से
हार मानकर बैठ न जाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता , मुरादाबाद
---------------------------–--- -
(1)
माना समय बड़ा दुष्कर है,
जीवन तक खोने का डर है,,
सामाजिकता छिन्न-भिन्न है,
बीच में कोरोनाई जिन्न है,,
कुछ सटीक उपचार नहीं है,
पर खर्चे का पार नहीं है,,
औषधि को मारामारी है,
तिस पर कालाबाजारी है,,
फिर भी कुछ तो करना होगा,
यूं ही नहीं ठहरना होगा,,
वेंटिलेटर नहीं मिला तो,
सीना ही थपकाना होगा,,
आशा दीप जलाना होगा.... ,,
(2)
....आगे जाने राम.....
अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,
आड़े तिरछे क्षेत्र फलों का
मिश्रण यह जीवन,
फेल हो रहे सूत्र गणित के
सीधे साधारण,
समाकलन अवकलन सरीखे
संतुष्टि को नाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती.....
कभी ज्यामिति निर्मेय जैसी
व्यूह रचे सांसें,
पर त्रिकोणमिति सम चर
उत्तर अक्सर बांचें,
आवश्यकता रख लेती है
एक नया आयाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती....
शून्य कोरोना गुणा स्वयं से
करने अड़ा हुआ,
लॉक डाउन का बड़ा कोष्टक
घेरे हुए खड़ा,
व्यूह और आव्यूह कौन सा
कब कर जाए काम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,
✍️ मनोज मनु ,मुरादाबाद
--------------------------------
आओ आशा दीप जलाएं
---------------–------------
माना चहुँ दिशि अंधकार है।
सांसों पर निष्ठुर प्रहार है।।
आओ आशा दीप जलाएं,
दूर भगाना अंधकार है।
रात भले हो घोर अँधेरी,
उसकी भी सीमा होती है।
रवि के रथ की आहट से ही,
निशा रोज ही मिट जाती है।
आशा दीपों की उजास से,
बस करना तम पर प्रहार है।
लेकिन देखो हार न जाना।
आशा को तुम जीवित रखना।।
आशा का इक दीप जलाकर,
अंधकार से लड़ते रहना।
केवल एक दीप जलने से,
ठिठका रहता अंधकार है।
रात अंततः ढल जाएगी।
भोर अरुणिमा ले आएगी।।
सूर्य रश्मियों के प्रकाश से,
कलुष कालिमा मिट जाएगी।।
तब तक आशा दीप जलाएं,
आशा है तो दूर हार है।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
------------------------------
अब है बस कुछ देर की,दुःख भरी यह रात,
आने वाला शीघ्र ही,सुख का नवल प्रभात।
मज़बूती से थामकर , साहस की पतवार,
विपदा-बाधा का करें , आओ दरिया पार।
यह दुनिया की शांति को, किए हुए है भंग,
आओ सब मिलकर लड़ें, कोरोना से जंग।
कोविड से उपजे हुए , इस संकट में आप,
अपने- अपने इष्ट का , करते रहिए जाप।
कोरोना के ख़ौफ़ से , सहमें हैं इंसान,
मिटा दीजिए राम जी,इसका नाम-निशान।
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
--------------- ---------
चिंताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ
अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अंधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ
बिना कहे सूनी आंखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ
धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की खुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ
✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
-----------------------------
आओ सुख- दुःख से बतियाएँ
सुख से बोलें मत इतराना
दुःख से बोलें मत घबराना
जीवन है संघर्ष सरीखा
यही सभी को है समझाना
सबको जीवन- गीत सुनाएँ
बोलो दुःख कैसे जाओगे
बोलो सुख कैसे आओगे
अनगिन प्रश्न हमारे भीतर
कब तक हमको बहलाओगे
मन की हर गुत्थी सुलझाएं
काल वेदना वाला आया
घोर निराशा का तम लाया
मिलकर इसको दूर करेंगे
मन में है संकल्प जगाया
आओ आशा दीप जलाएं
✍️शिशुपाल "मधुकर ", सी - 101 हनुमान नगर, लाइन पार, मुरादाबाद Mob- 9412237422
--------------------------------
हर मन में उजियार भरेगा
यह आशा का दीप
सबके सारे कष्ट हरेगा
यह, आशा का दीप।
-----------
कबतक भटकेंगे दुनियांमें
जन - मानस बेकार
कब तक टूटेगी रूढ़ी की
घृणित यह दीवार
अंधियारों को दूर करेगा
यह, आशा का दीप।
विश्वासों का तेल भरा है
संकल्पों के साथ
दृढ़ निश्चयसे जली वर्तिका
हरने सब संताप
जीवन को हर्षित कर देगा
यह, आशा का दीप।
हाथ-हाथ को काम मिलेगा
मिट जाएगा त्रास
घर-घर में खुशियां लौटेंगी
होगा जी भर हास
खुशियां लेकर ही लौटेगा
यह, आशा का दीप।
आंखें कभी नहीं रोएंगी
मिले सभी का साथ
गिरते को बढ़कर थामेगा
जब अपनों का हाथ
अंतस में उजियार भरेगा
यह, आशा का दीप।
सबकी नैया पार लगेगी
होगा बेड़ा पार
अभिशापों का दंश मिटेगा
कहता हूँ सौबार
आशा का संचार करेगा
यह, आशा का दीप।
✍️वीरेन्द्र सिंह ,"ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र 9719275453
------------------------
घर से बाहर न निकलिए साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।
अपना घर परिवार ही है जन्नत । कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।
यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को सिलिए साहिब ।।
एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।
जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।
हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
-----------------------------
राहें भी ये पथरीली हैं गहन अँधेरा है।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।।
माना पतझर है लेकिन मौसम ये जाएगा।
मुस्काता ऋतुराज पुष्प झोली भर लाएगा।
छोड़ निराशा का आँचल मावस का फेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....
दुख के बादल बरस चुके अब क्या तरसाएंगे।
साहस की जब हवा चली तो ये उड़ जाएंगे।
सपनीली रातों में अब चंदा का डेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....
तट से टकराकर लहरें देखो इतराती हैं।
बीच भँवर में घिरी हुई ये गीत सुनाती हैं।
अवसादों से निकल जरा ये रैन बसेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....
समय बड़ा बलवान हुआ कर्मों का है मेला।
बना मदारी नचा रहा वो, है उसका सब खेला।
सदभावों से सजा इसे जो जीवन तेरा है।।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।
✍️डॉ पूनम बंसल , 10, गोकुल विहार, कांठ रोड मुरादाबाद उ प्र , मोबा 9412143525
----------------------------
जनमानस का मलिन रंग है
दुखती आंखों में उमंग है
अब कर्तव्य सभी का, हम
संदेश कर्म का दें
सफल चिकित्सक, देह निरोगी
चिन्तन में लालित्य
अश्रुधार पी जाता,मन को
बहलाता साहित्य
हों कृतज्ञ हम
सांस सांस से
भर दें ममता की
सुवास से
सूनी आंखों को सहलाता
भाव मर्म का दें
नागफनी के साथ
बबूलों का तो रिश्ता है
बेरी के कांटे सहता
जो मौन फरिश्ता है
चौराहे पर अपने
दुख का रोना छोड़ें
बना सहायक अपने
थके हाथ को मोड़ें
पर दुःख में हों मित्र चलो
संदेश धर्म का दें
गीध-वंश ही हमें
बचाता है बीमारी से
प्रकृति दंड देती उबार
देती लाचारी से
आस्तीन के सांपों को
मतलब है डसने से
दांत कुंद होंगे उनके भी
गर्दन फंसने से
आवश्यक है उनको भी
संकेत शर्म का दें
✍️डा.अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
--------------------------
रोग-व्याधियों के कुनबे
एक हो गए मिलकर
चलो! एक हम भी होलें
फटा-पुराना सिलकर
पांचों उंगली अलग-अलग
सिर्फ विवशता जीतीं
मिल बैठैं तो मिली जुली
सार शक्तियां पीतीं
सीख गलतियों से मिलती
दर्द दुखों में बिल कर
दुरुपयोग शक्तियां जियें
तो चिंता हो पुर को
भस्मासुर की अतियां ही
डहतीं भस्मासुर को
एक हुआ था, लेकिन सच
देवलोक भी हिलकर
विविध धर्म भाषाएं मिल
मानव मर्म बचाएं
महल मड़ैया घेर सभी
संजीवन हो जायें
राम हुए ज्यों पुरुषोत्तम
मर्यादा में खिलकर
✍️डॉ. मक्खन मुरादाबादी, झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद
-------------------------------------
मन में सुन्दर स्वप्न सजाएं
हर असमंजस दूर भगाएं
घोर निराशा के तम में सब
आओ !आशा दीप जलाएं
(2)
रिश्तो में अब प्यार का एहसास होना चाहिए
हर जुबां मीठी रहे विश्वास होना चाहिए
हो उदासी अलविदा,ज़िन्दगी में अब तो बस
हास होना चाहिए परिहास होना चाहिए
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
पुनः आप सभी का हार्दिक आभार व अभिनन्दन। आप सभी के सहयोग से कार्यक्रम संपन्न होता है।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
हटाएं