सोमवार, 19 मई 2025

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य सदन' की ओर से 17 मई 2025 को डॉक्टर अजय अनुपम की कृति यजुर्वेद काव्यानुवाद भाग-1 का लोकार्पण एवं ग़ाज़ियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज का सम्मान समारोह का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य सदन' के तत्वावधान में श्रीराम विहार कालोनी कचहरी स्थित 'विश्रान्ति' भवन में शनिवार 17 मई 2025 को लोकार्पण एवं सम्मान-समारोह का आयोजन किया गया जिसमें संस्था के प्रबंधक डॉ. अजय अनुपम की कृति 'यजुर्वेद काव्यानुवाद भाग-1' का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर गाजियाबाद के नवगीतकार जगदीश पंकज को अंगवस्त्र पहनाकर सम्मानित भी किया गया।

     गायत्री मंत्र के वाचन से आरंभ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने काव्य पाठ करते हुए कहा ...

सोशल मीडिया की दुकानों पर, 

आभासी दुनिया के मकानों पर, 

दो दूनी पांच का करते हुए योग, 

काठ के लोग

 मुख्य अतिथि नवगीतकार जगदीश पंकज ने गीत पढ़ा- 

कितना बोध ,

अबोध कह दिया, 

युगसागर तट पर लहरों ने

     कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. अजय अनुपम ने मुक्तक पढ़ा- 

फल के पीछे कर्म हुआ करते हैं, 

दिल के छाले नर्म हुआ करते हैं, 

प्रीति दीप मन में जलता इस कारण, 

सबके आंसू गर्म हुआ करते हैं।

   गजलकार डा. कृष्णकुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की- 

ये जो रिश्ते हैं, ये लगते तो हैं जीवन की तरह, 

कैफ़ियत इनकी है लेकिन किसी बंधन की तरह, 

तुम अगर चाहो, तो इक तुलसी का पौधा बन जाओ, 

मेरे अहसास महक उट्ठेंगे आँगन की तरह

      डॉ मनोज रस्तोगी ने सुनाया- 

गोलों के बीच, 

तोपों के बीच, 

दब गई आवाज 

चीखों के बीच, 

घुटता है दम अब 

बारूदी झोंको के बीच।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने नवगीत सुनाया- 

निराकार मन की होती ज्यों, 

कोई थाह नहीं, 

अन्तहीन नभ में वैसे ही, 

निश्चित राह नहीं, 

नन्हीं चिड़िया ने उड़ने को 

पर फैलाए हैं, 

नयनों ने मन के द्वारे पर, 

स्वप्न सजाए हैं

   शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की- 

ये जो शिद्दत से गले मुझको लगाया हुआ है, 

उसने माहौल बिछड़ने का बनाया हुआ है, 

क्यूं न इस बात पे हो जाएं ये आंखें पागल, 

नींद भी उतरी हुई ख़्वाब भी आया हुआ है। 

   राजीव 'प्रखर' ने सुनाया- 

रण को जाऊं जब मैं माता, नैनों से नीर सुखा देना। 

आशीष विजयश्री का देकर, माटी का क़र्ज़ चुका देना। 

मुन्नी-मुन्नू सो जाने को, जब छिपें तुम्हारे आंचल में। 

मीठी लोरी के बदले फिर, बलिदानी गीत सुना देना

    दुष्यंत बाबा ने सुनाया- 

हम भारत के शूर समर में, 

भीषण विध्वंस मचाते हैं, 

आँख उठे भारत माता पर, 

हम अपना शौर्य दिखाते हैं

इस अवसर पर राहुल शर्मा और पर्यावरण मित्र समिति के डा. के के गुप्ता की विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम संयोजिका डा. कौशल कुमारी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति प्रस्तुत की गई। 

























1 टिप्पणी: