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बुधवार, 8 अप्रैल 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर की रचना -- मचा हर ओर हाहाकार, मेरे प्रभु राम आ जाओ ......
🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 7 अप्रैल 2020 को आयोजित गोष्ठी में प्रस्तुत की गईं राजीव प्रखर, श्रीकृष्ण शुक्ल , जितेंद्र कमल आनन्द, अतुल कुमार शर्मा ,प्रीति अग्रवाल , इंदु रानी , स्वदेश सिंह , नृपेंद्र शर्मा सागर , डॉ रीता सिंह और मनोरमा शर्मा की रचनाएं ....
बच्चों ने ये प्रश्न उठाया।
एक एक ग्यारह सुनकर के,
सर जी अपना सर चकराया।
पढ़ा आज तक यही गणित में,
एक एक दो ही होते हैं।
आज आपने हमें पढ़ाया,
एक एक ग्यारह होते हैं।
अब दिमाग का हुआ दही है।
कौन गलत है कौन सही है।
छोटू बोला अध्यापक से,
सर जी आपस में तय कर लो।
और अगर कुछ कन्फ्यूजन है,
तो चलकर सिक्का उछाल लो।
लेकिन उत्तर एक बताओ।
बच्चों को अब मत भरमाओ।
*** श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
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आओ रामू, आओ राजू !
बात पते की तुम्हें बतायें !!
क्षरित न हो जो,वह अक्षर है
पढ़े-लिखे जो, वह साक्षर है
बिना पढ़े कहलाय निरक्षर
पढ़ा-लिखा चंदन आखर है
रहना स्वच्छ सभी को होगा
बाल गीत यह तुम्हें सुनाये !!
सबमें हो प्यारा याराना ,
कोरोना को आज हराना ।
घर -भीतर ही रहना होगा,
चले न कोई कभी बहाना।
आओ गप्पू- आओ पप्पू!
बात पते की तुम्हें बतायें।।
***जितेन्द्र कमल आनंद
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
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आओ प्यारे बच्चों तुमको,
बचपन की बात बताता हूँ,
खुशियों भरी जिंदगी वैसी,
कहीं नहीं अब पाता हूँ।
अपने घर की माटी हमको,
सुकून मन में देती थी,
खुशबू हल्की बारिश में,
चिंता सब हर लेती थी।
गौरैया प्यारी आंगन में,
पूरा साथ निभाती थी,
भर चोंच में थोड़े तिनके,
छप्पर में रख जाती थी।
पढ़ा था मैंने 'ह' से हल,
मगर कहीं ना दिखता है,
रंगीन बर्फ गर्मियों में,
अब कहीं ना बिकता है।
कलम-दवात के प्यारे किस्से,
बाबा मुझे सुनाते थे,
पत्थर के छोटे टुकड़ों से,
गिनती मुझे सिखाते थे।
चना-साग और मक्का-रोटी,
अनोखा रंग जमाते थे,
बाबा कहकर ऐसे किस्से,
सबका मन ललचाते थे।
खुरचनी की खातिर अम्मा,
अपने पास बुलाती थी,
धर मलाई हथेली पर,
सारा प्यार लुटाती थी।
ताई,माखन-मट्ठा देती,
दही-गुड़ भी खाते थे।
पानी वाली रोटी का,
पूरा आनन्द उठाते थे।
हुईं गायब ये चीजें सारी,
अब केवल ठेले दिखते हैं,
मसालेदार पिज्जा-बर्गर,
चाउमीन ही बिकते हैं।
छोड़ विषैला भोजन सारा,
खाना घर का खाना तुम,
बचपन मेरे जैसा पाकर,
सुंदर भविष्य बनाना तुम।
***अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
बरेली सराय
संभल
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल नं ८२७३०११७४२
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पापा घर मे हैं नहीं ,मां करुणा की द्वार।
दोनों की बाहों में होता बच्चों का संसार।
बच्चों का संसार हाय, निष्ठुर महामारी।
देख दूर से ही आँखों में,भर आती करुणा सारी।
कोरोना संघर्षित जन के,घर की यही कहानी।
एक अनजाने भय में रहती, मन की अति भावुक वाणी।
सोचा न था दौर कभी, ऐसे दिन भी दिखलायेगा।
बालक अपने मात पिता से गले भी न मिल पाएगा।
हे प्रभु अब तो दया करो,लो उबार सारा संसार।
क्षमा करो मानव की भूलें,
करो कृपा हे तारनहार।
*** प्रीति सौरभ अग्रवाल
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पापा तुम पर होत है, अब तो हमको नाज।
कर्म राह पे तुम डटे ,छोड़ सभी निज काज।।
घर मे छुपा पडा जहां,तुम राह मे अकड़े।
भले क्रोना हौआ हो, कौन तुमको जकड़े।।
***इन्दु रानी
अमरोहा
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मै हूँ धूप ,मै हूँ धूप
मेरा नही है कोई रूप
गर्मी में खूब हूँ आती
सर्दी में नखरे दिखाती
जाड़े में सब मुझे बुलाएं
गर्मी में सब दूर भगाएं
बच्चों को खूब लुभाती
आइसक्रीम, कुल्फी लेकर आती
ए सी, कूलर, पंखा, फ्रिज
सबकी हूँ शान बढ़ाती
मेरी तो हर बात निराली
साथ में भाती रसमलाई की प्याली
***स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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ओ भाई कोरोना,
अब तो पीछा छोडोना।
तुम कर दिए हमसे दूर
सब अपना खेल खिलौना।।
हम छोटे-छोटे बच्चे,
क्या कैद में लगते अच्छे।
मेरा देश छोडकर जाओ,
हमें खुलकर है खेलना।।
ओ भाई कोरोना,
अब तो पीछा छोड़ोना।
सब दुनिया तूने रुलाई,
करी सबकी बन्द कमाई।।
ओ भाई कोरोना,
अब तो पीछा छोड़ोना।
हमे नही है छिपकर रहना,
है देश की खातिर पढ़ना।
हम मेहनत रोज करेंगे,
तभी तो मजबूत बनेंगे।
तूने बन्द कर दिया घर मे,
हम कैसे खेलें आंगन में।।
ओ भाई कोरोना,
अब तो पीछा छोड़ोना।
हम सब बच्चे हैं भोले।
अब नहीं चाहते सोना।।
***नृपेंद्र शर्मा "सागर"
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हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
कोरोना से करो लड़ाई ।
खुद बचो सबको बचाओ ,
संकट तभी मिटेगा भाई ।।
दादी दादा बाहर न जाना
बच्चों के संग समय बिताना
गिनती पहाड़े और कविता
मुन्नी मुन्ना को है सिखाना ।
तुम भी राजू पार्क न जाना
घर में रहकर ड्राइंग बनाना
पढ़ना ऑनलाइन ही सब कुछ
जब तक भाग न जाये करोना ।
***डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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मम्मी जी हम बोर हो गए घर में रहते -रहते
नहा धो लिए दूध पी लिया
खूब मिक्स करके बोर्नबीटा
गरमागरम परांठा खाया
साथ चटपटी भिन्डी
दाल चावल संग खीरा ककड़ी ,
हो गया पौष्टिक भोजन
वाशरूम जाने पर अब
मजे बहुत हैं आते
साबुन के संग झाग निकाल निकाल
अपनाते ट्वन्टी सैकेन्ड का फन्डा
अब बहुत हो गया चिंकी पिंकी
थोड़ापढ़ लो फिर करना आराम
मैं भी बहुत थक गयी हूँ करते करते काम
दिन भर मचती धमा चौकड़ी
नही मिलता आराम
लाॅक डाउन के चलते घर बन
गया खेल -मैदान
अजी सुनते हो तुम भी कुछ
कर लो बहुत हुआ आराम
मोबाइल पर चैटिंग करते
होती नही जरा थकान
इस कोरोना वायरस के चलते
मैं हो गयी हलकान
वाशिंग मशीन में पड़े हैं कपड़े
ड्रायर कर फैला दो
और बच्चों के होमवर्क में थोड़ा
हाथ बटा दो
नही पापा मेरे संग खेलो एक
लूडो की बाजी
मैं भी बहुत थक गया हूँ
डायग्राम बनाकर
मेरा प्रोजेक्ट बनाकर ही
करना आप आराम ।
*** मनोरमा शर्मा
अमरोहा
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल ( वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचना --- हम सब हैं सूरज के वंशज
हम सब हैं सूरज के वंशज
तम से कैसे हार मान लें
अभी ऊंचाई छुई कहाँ रे
कैसे तेरी बात मान लें।।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
आँखें जब से खोलीं हमने
अंधकार भयभीत हुआ है
लक्ष्य उजालों को फैलाना
कैसे मन निराश मान लें ।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
बढ़ते जाना ठान लिया है
नहीं रुकेंगे मान लिया है।
जीवन तो है बहती नदिया
कैसे फिर ठहराव मान लें ।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
चादर तम की हटेगी प्यारे
बस थोड़ा विश्वास चाहिये।
रश्मिपथ पर पग बढ़े अब
समग्र बस, उल्लास मान लें ।।
हम सब हैं सूरज के वंशज .....
सूर्यकांत द्विवेदी
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शंकर दत्त पांडे के छह गीत --- ये गीत अशोक विश्नोई द्वारा संपादित काव्य संकलन ' उपासना ' से लिए गए हैं । यह कृति 29 साल पहले सन् 1991 में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित हुई थी। इस कृति में मुरादाबाद के 11 कवियों की रचनाएं संकलित हैं इस कृति की भूमिका डॉ रामानंद शर्मा ने लिखी है ।
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --- खोल लो मन में कुछ ज्ञान की खिड़कियाँ धर्म के नाम पर जलजला मत करो
अपने घर में रहो, ज़िद किया मत करो
बेवजह मुश्किलों को बड़ा मत करो
खोल लो मन में कुछ ज्ञान की खिड़कियाँ
धर्म के नाम पर जलजला मत करो
दिल से दिल का मिलाना ही देखो बहुत
अब किसी से गले तुम मिला मत करो
जान भी अपनी तो अपने ही हाथ अब
मैले होने इन्हें तुम दिया मत करो
फैल जाती हैं अफवाह इनसे बड़ी
बात कोई बढ़ाकर कहा मत करो
रूठ तुमसे न जाए तुम्हारा ही दिल
खुद से यूँ गुमशुदा तुम रहा मत करो
‘अर्चना’ दौर मुश्किल गुज़र जाएगा
बस गलत राह पर तुम चला मत करो
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456032268
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की गजल --- जाने क्यों गूँगे बन बैठे, शोर मचाने वाले लफ़्ज़ ख़ूब चहकते थे पहले तो, ये अपनी चतुराई में
ख़ूब मिलीं सौग़ातें हमको, अपनी लापरवाई में
उँगली घायल कर बैठे हम, ज़ख़्मों की तुरपाई में
इक छोटा-सा कमरा दिल का, यादों के झूमर रंगीन
पूरा वक़्त गुज़र जाता है, इनकी साफ़-सफ़ाई में
किसको वो आवाज़ लगाए, किससे दिल की बात कहे
इक दीवाना सोच रहा है, जंगल की तनहाई में
जाने क्यों गूँगे बन बैठे, शोर मचाने वाले लफ़्ज़
ख़ूब चहकते थे पहले तो, ये अपनी चतुराई में
उस बदसूरत-सी लड़की की, शादी तो हो जाने दो
कितने ही तोहफ़े आएँगे, उसकी मुँह दिखलाई में
जिसने जीने की ख़्वाहिश में अपनी जान गँवा दी 'नाज़'
ढूँढ रहा हूँ उस दरिया को, सागर की गहराई में
**डॉ कृष्णकुमार 'नाज़'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा ( वर्तमान में मुंबई निवासी) के साहित्यकार महेंद्र नाथ नरहरि की 6 ग़ज़लें ---- ये ली गई हैं उनके वर्ष 2015 में प्रकाशित गजल संग्रह 'फ़जा कुछ और है' से । यह कृति असीमा प्रकाशन मुंबई से प्रकाशित हुई है....
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 945668782
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष सर्वेश्वर सरन सर्वे की दो रचनाएँ ----- ये ली गईं हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता --- नौ मिनट में ...
एक - एक
दीया क्या जला ,
बहुतों को
बहुत ही खला ।
माथे पर
पड़ बल गये,
आह्वान के
क्षण से ही
होने लगी थी
जलन
जला तो ,
सिर से
पांव तक जल गये ।
कोई उनसे
कुछ पूछता है तो
उसी को झिड़क देते हैं,
कहते हैं,
हम आपसे
बात नहीं करेंगे
आप बातों - बातों में
हमारे जले पर
नमक छिड़क देते हैं ।
हमारे पास
करने को
छोड़ा ही क्या है
न हिन्दू छोड़ा,न मुसलमान ,
न तीन सौ सत्तर का
सदाबहार भवन आलीशान ।
न नमस्ते छोड़ी है
न ही छोड़ी राम-राम है ,
तुम्ही बताओ
हमारे पास
जलने के अलावा अब
बचा हुआ
कौन सा काम है ।
हमारी
हर उम्मीद पर
पानी फेर कर रख दिया
हमारी हर कोशिश
दीये जलवाकर
नौ मिनट में धू-धू करवा दी ,
बची - बचाई
बस जमात थी
उसकी भी थू-थू करवा दी ।
*** डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता ---कोरोना से शिक्षक की मुलाकात
अजीबोगरीब आकृति देखकर,
मैं भीतर तक हिल गया,
यूँ ही चलते-फिरते मुझे,
कोरोना वायरस मिल गया।
औपचारिकतावश,
मैंने अपना परिचय,एक शिक्षक के रूप में दिया,
उसने मुझे तिरछी नजरों से देखा और मुंह टेढ़ा किया।
मैंने डरने का ढोंग किया और बनावटी हंसी हंसने लगा।
अब उल्टे कोरोना ही,मेरे जाल में फंसने लगा।
मुझसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा,
मेरे सामने बुरी तरह,अपना सिर पटकने लगा।
प्रदर्शन अपनी शक्ति का,मुझे दिखाने लगा,
खांसी जुकाम करने का जोर आजमाने लगा।
रह रहकर वो वार पर वार करने पर अड़ा था,
और मैं शक्तिमान-सा,सीना ताने खड़ा था।
मैंने शिक्षक प्रजाति की शक्तियों को जताया,
लड़े गए युद्धों का वर्णन,सूक्ष्म रूप में बताया।
कहा-हम योद्धा बन समरक्षेत्र में,
वर्षों से लड़ते आए हैं,
पत्थर की मूर्ति बनकर,
ताउम्र पत्थर खाए हैं।
कोरोना धैर्य से तू,
हमारी शक्तियों का वृतांत सुनना,
तब कहीं जाकर अपना,
एकांत में सिर धुनना।
मिड डे मील बनाते-बनाते,
हम बावर्ची बन जाते हैं।
छुट्टी होने तक तो,
आधी सांसो से काम चलाते हैं।
कलम का सच्चा सिपाही,
शिक्षक ही अकेला है।
देशहित के खातिर ही,
हर संकट को झेला है।
हम बुराइयों के चक्र को,
यूं ही तोड़ देते हैं,
बच्चों के तूफानी रुख को,
सत्मार्ग पर मोड़ देते हैं।
इसलिए घमंड अपना,
तू चकनाचूर कर।
अपनी सारी गलतफहमियां,
झटपट दूर कर।
जल्द ही अपनी हार को,
तुझे स्वीकारना होगा।
मेरे समूचे देश से,
दुम दबाकर भागना होगा।
वरना तू पछताएगा,
बुरी तरह पछताएगा।
मेरा हर देशवासी,
तुझ पर पत्थर बरसाएगा।
कोरोना डरा,सहमा,और खामोश हो गया,
ठंडा उसकी तीरंदाजी का,सारा जोश हो गया।
घुटनों के बल आकर,
गिड़गिड़ाने लगा कोरोना,
मैंने कहा,जा निकल चुपचाप,
बंद कर अब रोना-धोना।
और सुन!
एक शिक्षक के सामने,
कभी तू टिक नहीं पाएगा,
हमारे तूफानी कदमों को भी,
तू रोक नहीं पाएगा।
अपनी इज्जत को अब,और तार-तार मत कर,
विनाश का रास्ता छोड़ दे,समय वर्वाद मत कर।
*** अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता ---दियों की लौ में कोरोना जलाना है ---------
मोहब्बतों के गुलाब,शांति के कबूतरों,
खून से लहूलुहान,एकता के चबूतरों।
उल्लूओं के वंशजों,भेड़ों बकरे-बकरियों,
बरसात में कंपकंपाती,टूटी फूटी छतरिओं।
थूको,जी भर कर थूको,फिर चाटो,
निर्वस्त्र घूमो,पत्थर फेंको,आफत काटो।
कोई मौका मत चूको,कोहराम मचाने का,
अपनी शैतानियत से इंसानियत को सताने का।
फिर देखना!
देश-दुनिया क्या,तीनों लोकों में,तुम्हारा ही राज चलेगा,
ऊपर वाला खाली बैठेगा,सिर धुनेगा,हाथ मलेगा।
महामारियों का जन्मदाता भी सोचेगा,गुमसुम हो,
सौ कोरोना से भी घातक बीमारी,तुम हो।
अरे भाई सुनो!
मैं भी अनजाने में,जाने क्या-क्या बढ़बढ़ाता हूँ?
कहां निकलता हूँ,कहां पहुंच जाता हूँ?
आज तो हमें दीवाली मनानी है,घर जगमगाना है,
दियों की लौ में कोरोना जलाना है।
***त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर-9719059703
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