हम सब हैं सूरज के वंशज
तम से कैसे हार मान लें
अभी ऊंचाई छुई कहाँ रे
कैसे तेरी बात मान लें।।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
आँखें जब से खोलीं हमने
अंधकार भयभीत हुआ है
लक्ष्य उजालों को फैलाना
कैसे मन निराश मान लें ।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
बढ़ते जाना ठान लिया है
नहीं रुकेंगे मान लिया है।
जीवन तो है बहती नदिया
कैसे फिर ठहराव मान लें ।
हम सब हैं सूरज के वंशज ....
चादर तम की हटेगी प्यारे
बस थोड़ा विश्वास चाहिये।
रश्मिपथ पर पग बढ़े अब
समग्र बस, उल्लास मान लें ।।
हम सब हैं सूरज के वंशज .....
सूर्यकांत द्विवेदी
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