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बुधवार, 28 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र की सोलह बाल कविताएं । ये उनके बालगीत संग्रह "कम्प्यूटर ने खेल दिखाया" से ली गई हैं। इसका प्रकाशन चार साल पहले वर्ष 2016 में हरे कृष्ण प्रकाशन द्वारा किया गया था ।
✍️ डॉ राकेश चक्र
90 बी
शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उ.प्र . भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com
मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020
वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 29 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दीपक गोस्वामी चिराग, मीनाक्षी ठाकुर, स्वदेश सिंह, रवि प्रकाश, राम किशोर वर्मा, अशोक विद्रोही, डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार, मीनाक्षी वर्मा , श्री कृष्ण शुक्ल , डॉ राजेन्द्र सिंह विचित्र,विवेक आहूजा और शोभना कौशिक की बाल रचनाएं ------
सूट बूट में बंदर मामा,
फूले नहीं समाते हैं।
देख देख कर शीशा फिर वह,
खुद से ही शर्माते हैं।।
काला चश्मा रखे नाक पर,
देखो जी इतराते हैं।
समझ रहे वह खुद को हीरो,
खों-खों कर के गाते हैं।।
सेण्ट लगाकर खुशबू वाला,
रोज घूमने जाते हैं।
बंदरिया की ओर निहारें,
मन ही मन मुस्काते हैं।।
फिट रहने वाले ही उनको,
बच्चों मेरे भाते हैं।
इसीलिए तो बंदर मामा,
केला चना चबाते हैं।।
✍️डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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रंग बिरंगे पंख पसारे,
नृत्य कर रहा मोर,
किंग कोबरा डरके मारे,
कांप रहा घनघोर।
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भूल गया सारी फुंकारें,
निकल गई सब ऐंठ,
खड़ा रहूँगा तो मयूरकी,
चढ़ जाऊंगा भेंट,
धीरे-धीरे लगा सरकने,
वह झाड़ी की ओर।
रंग बिरंगे---------------
राह रोककर खड़ाहोगया,
उसके सम्मुख मोर,
मैं चाहूँ तो पल में तोडूं,
तेरी जीवन डोर,
छोड़ रहाहूँ नाग मुझे मत,
समझे तू कमज़ोर।
रंग बिरंगे----------------
सुन मयूर की बात सर्प ने,
झुककर किया प्रणाम,
होकर मुक्त महासंकट से,
मिला बहुत आराम,
लगा सोचने अगर ऐंठता,
देख न पाता भोर।
रंग बिरंगे-----------------
बे मतलब गुस्सा करना तो,
होता बहुत खराब,
क्षमादान का होता निश्चित,
जीवन पर प्रभाव,
यहां सेर को सबासेर भी,
मिल जाते हर ओर।
रंग बिरंगे------------------
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-- 9719275453
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दया करना प्रभो हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सब से न्यारा है।
ये दुनिया दुख का सागर है, नहीं दिखता किनारा है।
है नैया छोटी सी अपनी समय की तेज धारा है।
बचा लो झूठ से छल से, जमाने भर के पापों से।
बचा लो रोग,कष्टों से,छिपा लो शीत-तापों से।
चले हम सत्य के पथ पर, हमारा ध्येय हो सेवा।
न छूटे राह उन्नति की,कि विनती है यही देवा।
बने हम राष्ट्र के सेवक,करें हम धर्म की रक्षा।
दया की दृष्टि दृष्टि जीवों पर, यही बस दो हमें भिक्षा।
हमारे मन समा जाओ,हमें अर्चन सिखा जाओ।
नहीं हिन्दू नहीं मोमिन, सिर्फ मानव बना जाओ।
✍️-दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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बंदर मामा हैट लगाकर,
चले घूमने दिल्ली,
मिली रेल में उन्हें घूमती
एक सयानी बिल्ली।
बंदर मामा ने बिल्ली से
पूछा उसका नाम,
बिल्ली बोली, "चुपकर बंदर।"
"क्या है तुझको काम?"
मैं महारानी बड़े गाँव की!
रख लूँ तुझको चाकर,
इतना सुनकर बंदर मामा,
भागे दुम दबाकर।
✍️मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार
मुरादाबाद 7
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माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा
सुबह-सवेरे नहा-धोकर
जल्दी तैयार हो जाऊँगा
रंग- बिरंगी, सुन्दर-सुन्दर
किताबें बैग में सजाऊँगा
भरा गिलास दूध का पीकर
अपनी इम्यूनिटी बढ़ाऊँगा
अपना लंच दोस्तों के संग
खूब मस्ती से खाऊँगा
अपना होमवर्क रोजाना
मैडम से चैक कराऊँगा
मेहनत से पढ़ -लिखकर
मैं भी अफसर बन जाऊँगा
माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा
✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मामा घर रामू गया , बिना कहे इस बार
घर के बाहर मिल गया ,कुत्ता पर खूँखार
कुत्ता पर खूँखार ,जोर से भौंका झपटा
भागा रामू दौड़ ,पैर रह - रहकर रपटा
कहते रवि कविराय , फटा कुर्ता पाजामा
बोला कर दो माफ ,न फिर आऊँगा मामा
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451
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मैं गुलाब सी कोमल गुड़िया, हर मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।
आंँखों में हैं स्वप्न सुनहरे, यों मुस्काती हूंँ ।
टेडी बियर मुझे है भाता, साथ रखाती हूंँ ।।
फूलों की खुशबू सी मैं भी, महका चाहती हूंँ ।
बाल बनाकर; फूल लगाकर, मैं इठलाती हूंँ ।।
जग सारा मोहित कर सकती, वह गुण पाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।
साफ-सफाई बहु पसंद है, रोज़ नहाती हूंँ ।
फूलों वाले श्वेत वस्त्र में, परी कहाती हूंँ ।।
चढ़ पलंँग पर खड़ी होकर मैं, चित्र खिचाती हूंँ ।
खुश होते हैं देख मुझे सब, मैं खिल जाती हूंँ ।।
फ्राक पकड़ कर जब मैं चलती, सब मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
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हम सब छोटे बच्चे कब से,
पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
बीता जाये साल ?
अब तक कितने लाचारों को
लील गई बीमारी ?
बैक्सीन तो बन न पाई
सारी दुनिया हारी !!
कोरोना महामारी से तो
हाल हुआ बेहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से;
बीता जाये साल ?
सेनेटाइज हाथ करो और
मुंह पर मास्क लगाओ!
दो गज दूरी इक दूजे से;
इसको सभी निभाओ !!
वरना तांडव मौत का होगा,
और न मिटे जंजाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
पूछे यही सवाल!
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
बीता जाये साल ??
बंद पड़े स्कूल हमारे;
कैद हुए हम घर में ;
मोबाइल पर आंखें गाड़े ,
पढ़ते हैं सब डर में !!
पढ़ना लिखना कैसा अब
तो जीना हुआ मुहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
बीता जाये साल ??
ये कैसा यम है आंखों से,
नज़र नहीं जो आता है ?
निशदिन बढ़ता ही जाये,
और सदा मौत बरसाता है!
प्रभू बचाओ जग!, कोरोना-
खत्म करो तत्काल!!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
बीता जाते साल ??
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
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गुड़िया लेकर एक छड़ी
घर से अपने निकल पड़ी
लिए बिना ही वह कंडी
पहुंच गई सब्जी मंडी
जो भी दिखी सब्जी ले ली
मिली नहीं प्लास्टिक थैली
सब्जी बिना ही लौटी घर
ढूंढी कंडी इधर उधर
कंडी के कई टुकड़े हुए
कुतर गए थे चूहे मुए
मन ही मन वो हुई दुखी
और सो गई वो भूखी
✍️डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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सैर सपाटा ,खेल खिलौने,
ये बच्चों को बहुत लुभाये ।
धूँ धूँ जिसमें रावण जलता,
उस मेले की याद सताये।
भगवन फिर से खुशियाँ आयें
मिलकर बच्चे मेला जायें ।
लड्डू पेड़े चांट पकौड़ी,
देख के मुँह मे पानी आये।
दादी अम्मा चुपके चुपके,
बच्चों से रबड़ी मँगवाये।
घर में रहना अब न भाये,
कोई तो मेला लगवाये।
✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी
फूलों से रस को चुराती है
शहद उसका बनाती है
कितना मधुर कितना मीठा
रस चुनकर वो लाती है
कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी
कीट वर्ग का प्राणी मधुमक्खी
संघ बनाकर रहती है
प्रतिपल मेहनत करती हैं
प्रत्येक संघ में रानी एक
कई सौ नर और शेष श्रमिक
कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।
घोंसला मोम से बनाती हैं
मीठा शहद जमाती है
मिल कर करते है यह सब काम
तब बनता शहद गुणवान
कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।
✍️मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश
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छोटू चुप चुप रहता था।
बात न कुछ भी कहता था।
दादा जी ने गले लगाया।
गोदी में उसको बैठाया ।
तब जाकर के छोटू बोला।
राज स्वयं उसने खोला।
मम्मी पापा गंदे हैं।
मुझे परेशां करते हैं
मोबाइल से दूर रहो,
पहले तो चिल्लाते थे।
आँख वीक हो जायेंगी,
कस कर डाट लगाते थे।
अब खुद फोन थमाते हैं,
ऊपर से चिल्लाते हैं।
ऑनलाइन ही पढ़ना है
तुमको आगे बढ़ना है।
क्लास नहीं कोई छूटे,
सबसे अव्वल रहना है।
ये कैसा असमंजस है ।
मोबाइल तो वो ही है।
क्या अब खतरा नहीं रहा।
आँख हमारी वो ही है।
तब दादा जी ने समझाया ।
कोरोना का डर दिखलाया ।
घर में रहना मजबूरी है।
पढना किंतु जरूरी है।।
ऑनलाइन ही पढ़ना है।
आगे भी तो बढ़ना है।
गेम खेलना तुम छोड़ो।
मोबाइल पर खूब पढ़ो।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
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मैंने बैठे हुए
एक चौकीदार को देखा।
हाथ में था दण्ड
मस्तक पर चिन्ता की रेखा।।
लगता था जैसे वह
हर किसी को रोक रहा था।
आने जाने वाले सभी
बच्चों को वह टोक रहा था।।
इतने में कक्षों से बाहर
बच्चों का भी झुण्ड आया।
यह देख चौकीदार ने
तब अपना दण्ड उठाया।।
वह लगा दौड़ाने सब
बच्चों को इधर और उधर।
कुछ ही क्षण में कोई
बच्चा ना आया वहां नजर।।
तब सन्तोष ग्रहण कर
चौकीदार भी कुछ अलसाया।
देखकर यह सुअवसर
बच्चों ने भी फिर मौका पाया।।
तब धीरे-धीरे सब बच्चे
फिर निकले कक्ष से बाहर।
कोई गेट के नीचे था
और कोई था गेट के ऊपर।।
तब अलसायी निद्रा से
चौकीदार फिर बाहर आया।
उसकी आँखों के सामने
एक था अदभुत नजारा छाया।।
सारे ही बच्चे गेट से
वानर की भांति कूद रहे थे।
कितनी जल्दी छूटें
यहां से सब यह सोच रहे थे।।
तब हाथ में लेकर दण्ड
चौकीदार भी खड़ा होता है।
कैंसे समझाऊं इनको
फिर वह भी यह सोचता है।।
मेरा मन भी बैठे हुए
दूर से ही यह सब देखता है।
लगता है कि अब यह
चौकीदार भी सोचकर हारता है।
छोटी सी है उम्र
और नादान हैं यह सब बच्चे।
लगते हैं वानरों की भांति
उछल कूद करते हुए अच्छे।।
✍️ डॉ.राजेन्द्र सिंह 'विचित्र' रामपुर, उत्तर प्रदेश
असिस्टेंट प्रोफेसर, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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बचपन के दिन भूल ना जाना ,
रस्ते में वो चूरन खाना ,
छतों पे चढ़कर पतंग उड़ाना ,
रूठे यारों को वह मनाना ,बचपन के दिन भूल ना जाना ।
अपना था वो शाही जमाना ,
सिनेमा हॉल को भग जाना ,
दोस्तों की मंडली बनाना ,बचपन के दिन भूल न जाना ।
खेलने जाने का वो बहाना ,
पढ़ने से जी को चुराना ,
मास्टर जी से वो मार खाना, बचपन के दिन भूल ना जाना
हाथ में होते थे चार आना , ।
फितरत होती थी सेठाना ,
मुश्किल है यह याद भुलाना, बचपन के दिन भूल ना
जाना ।।
✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
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बचपन
टूटता बचपन, सिसकता बचपन
बचपन को संभालो तुम
हैं ,नये भारत के कर्ण धार ये
इनको न गर्त में डालो तुम
जीवन के अनमोल रतन ये
इनको आगे बढ़ना है
परिवर्तन की हर कठोर डगर को
इनको वश में करना है
आशा अभिलाषाओं की बगिया को
इनको महकाने दो
अपने हिस्से की खुशियों से
जीवन स्वर्ग बनाने दो
✍️ शोभना कौशिक
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार नूर उज़्ज़मां नूर की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा आनलाइन साहित्यिक चर्चा
वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 24 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद के साहित्यकार नूरउज़्ज़मां नूर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई। यह चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले नूरउज़्ज़मां नूर ने निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत कीं---
1)
शिकस्ते ज़ात की यह आखिरी निशानी थी
मिरे वुजूद से सैराब रायगानी थी
मुझे चराग़ बनाना था अपनी मिट्टी से
बदन जला के तुम्हें रोशनी दिखानी थी
पकड़ रहा था मैं आँखों से जुगनुओं के बदन
अंधेरी रात थी ,मशअल मुझे बनानी थी
उतर रहा था फ़लक मिट्टी के कटोरे में
ज़मीं सिमटती हुई खु़द में पानी पानी थी
पलक झपकने के इस खेल में पता क्या था
मुझे नज़र किसी तस्वीर से मिलानी थी
2)
रोज़े अव्वल से किस गुमान में हूँ
अपनी छोटी सी दास्तान में हूँ
खु़द ही इम्काँ निकालता हूँ मैं
खु़द ही इम्काँ के इम्तिहान में हूँ
एक नुक़्ता भी जो नहीं भरपूर
अपनी हस्ती के उस निशान में हूँ
ढूंढने निकलूं तो कहीं भी नहीं
मैं जो मौजूद दो जहान में हूँ
बंद दरवाज़ों का भरम हूँ मैं
मुंह से चिपकी हुई ज़बान में हूँ
एक अरसे से यह भी ध्यान नहीं
एक अरसे से किसके ध्यान में हूँ
3)
तिरा गुमान ! उजालों का आसमाँ है तू
मिरा यक़ीन ! अंधेरों के दरमियाँ है तू
कोई सनद तो दे अपने कुशादा दामन की
मिरी नज़र मे तो छोटा सा आस्माँ है तू
निकलते ही नहीं ज़ेरो ज़बर के पेचो ख़म
यह किस ज़बान में तहरीर दास्ताँ है तू
मिरे मुरीद मैं सदक़े तिरी अक़ीदत के
तुझे बता दूँ, मिरी तरह रायगाँ है तू
तिरा उरूज ही दरअसल है ज़वाल तेरा
है बूंद नूर की और ख़ाक मे रवाँ है तू
4)
ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया
अपने अन्दर से निकल कर आ गया
हलचलें ठहरी रहीं दरयाऔं में
शोर पानी से उछल कर आ गया
तीरगी से तीरगी मिलती रही
दरमि्याँ से मैं निकल कर आ गया
आज़माइश धूप की पुर ज़ोर थी
रोशनी का साया जल कर आ गया
आँख से तेज़ाब की बारिश हुई
हड्डियों में जिस्म गल कर आ गया
चेहरा चेहरा जुस्तुजू इक ख़्वाब की
कितनी आँखें मैं बदल कर आ गया
5)
नये फूल खिलते हुए देखता हूँ
मैं इक ज़र्द पत्ता हरी शाख़ का हूँ
बदन के मकाँ से जो घबरा रहा हूँ
न जाने कहाँ मैं पनह चाहता हूँ
मैं शौके जुनूँ मे उड़ाते हुए ख़ाक
सफ़र दर सफ़र ख़ाक में मिल रहा हूँ
मैं अपनी ही आँखों में चुभने लगा था
सो अपने ही पैरों से कुचला गया हूँ
तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था
मैं जिस शहर में लौट कर आ रहा हूँ
मुझे भीड़ मे उसको पहचानना है
जिसे सिर्फ आवाज़ से जानता हूँ
अभी उसके बारे मे दा'वा करूँ क्या
अभी उसके बारे मे क्या जानता हूँ
6)
बन्द है कारोबारे सुख़न इन दिनों
मुझ से नाराज़ है मेरा फ़न इन दिनों
एक बे सूद कश्ती मिरे नाम की
एक दरिया में है मोजज़न इन दिनों
दाद दी है किसी ने बदन पर मिरे
रुह में है उसी की छुअन इन दिनों
फूल किसने बिछाये मिरी क़ब्र पर
ख़ाक दर ख़ाक है एक चुभन इन दिनों
चार शानो पे यारों के जाते मगर
बंद है इस सफ़र का चलन इन दिनों
लोग आते हैं थैली में लिपटे हुए
और चले जाते हैं बे कफ़न इन दिनों
हाल ये हो गया है कि बाज़ार में
बिक रही है दिलो की कुढ़न इन दिनों
7)
धोका है निगाहों का,फ़लक है न ज़मीं है
मौजूद वही है जो कि मौजूद नहीं हैं
इम्काँ के मनाज़िल से ज़रा आगे निकल कर
क्या देखता हूँ मुझ में ,गुमाँ है न यकीं है
इस ख़ाक में मैंने ही बसाये थे कई घर
इस ख़ाक में अब कोई मकाँ है न मकीं है
फिर किसके लिए तूने, बनाई है ये दुनिया
मिट्टी को वह इंसाँ तो, कहीं था न कहीं है
सजदों के निशानात तो दोनों ही तरफ़ हैं
मंज़ूरे नज़र फिर भी,ज़मीं है न जबीं है
हम लोग हैं किरदार मजाज़ी,यह हक़ीक़त
मेरे ही तईं है ,न तुम्हारे ही तईं है
8)
तुझ से जितना मुकर रहा हूँ मैं
ख़ुद में उतना बिखर रहा हूँ मैं
क्या सितम है कि फ़र्ज़ करके उसे
तुझको बांहों में भर रहा हूँ मैं
तुझ को हासिल नहीं हूँ पूरी तरह
यह बताने से डर रहा हूँ मैं
पाप करते हुए सितम यह है
एक नदी मे उतर रहा हूँ मैं
कौन ईमान लाएगा मुझ पर
अपने बुत से मुकर रहा हूँ
मुझसे आगे हैं नक़्शे पा मेरे
यह कहाँ से गुज़र रहा हूँ मैं
9)
रौशन अपना भी कुछ इम्काँ होता ।
कारे तख़्लीक़, गर आसाँ होता ॥
मैं कि आइने से होता न अयाँ ?
अक्स मे अपने जो पिंहाँ होता ॥
उसने देखा ना मुझे ख़स्ता हाल।
देख लेता तो पशेमाँ होता ??
सिर्फ होती जो मिरी हद बंदी ।
यूँ ज़माना ये परेशाँ होता ??
दरो दीवार से होता जो घर ।
क्या मकाँ मेरा बयाबाँ होता ?
कब कि माँगी थी ख़ुदाई मैंने।
बस कि इक जिस्म का सामाँ होता ॥
10)
दरे इम्कान खटखटाता है
एक उंगली से सर दबाता है
न बदल जाए रंग मट्टी का
पानियों को गले लगाता है
जिसके चेहरे पे कोई आँख नहीं
वह मुझे रोशनी दिखाता है
चाक करता है दिल ख़लाऔं का
अपने दिल का ख़ला मिटाता है
घूमता है बदन हवाऔं का
कोई बच्चा पतंग उड़ाता है
इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि ग़ज़ल में नयी कहन मुरादाबाद का नाम रौशन करेगी,यह बात बहुत ज़़ल्द सच साबित होगी। हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े की खुली हवाओं में सांस लेती, हालात से रूबरू मुखातिब होने वाले भाई नूरुज्ज़मा को हार्दिक शुभकामनाएं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि शायर नूरुज़्ज़मां की दस ग़ज़लों ने उनकी शायरी के जहान से वाक़िफ़ कराया। पढ़ कर अच्छा लगा। जिस सलीक़े से उन्होने अपने एहसासात और तख़य्युलात का इज़हार किया है उस से उन की फ़िक्री उड़ान का अन्दाज़ा बख़ूबी हो जाता है। उनकी शायरी ग़ज़ल के एतबार से उनकी विशिष्ट शैली के आहंग और उसलूब में जलवे बिखेरती नज़र आती है। ग़ज़लों में लय भी है सादगी भी है और शाइसतगी भी। रवाँ दवाँ और पैहम ज़िन्दगी के नित नये मसायल की तर्जुमानी में उम्दा तख़लीका़त अश्आर के रूप में ढली हैं।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि आज जब मुरादाबाद के लिटरेरी क्लब के पोर्टल पर नूर की दस ग़ज़लें पढीं तो बहुत दिनों से ख़याल के घर में सोए हुए पंछी फड़फड़ाने लगे। इसे नूर की शायरी की ताज़गी ही कहा जाएगा कि उसे पढ़ते हुए ज़हनो दिल थकन की चादर उतारकर मज़ीद कुछ पढ़ने का तकाज़ा करने लगे।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत नूर साहब की सभी ग़ज़लें सराहनीय हैं । बड़े अदब से नूर उज़्ज़मा साहब को उनकी अदबी फिक्र औऱ क़लाम के बावत दिली मुबारकबाद।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि नूर साहब की ग़ज़लों में उनके भीतर की बेचैनी, कसमसाहट और छटपटाहट स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। वह मशअल बनाने के लिए अपनी आंखों से जुगनुओं के बदन पकड़ते हैं और मिट्टी के कटोरे में फ़लक उतारते हैं। उनकी शायरी भीड़ में उसको पहचानने की कोशिश करती है जिसको वह सिर्फ आवाज से जानते हैं। बाजार में दिलों की कुढ़न बिकते हुए देखकर वह कह उठते हैं - ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया, अपने अंदर से निकल कर आ गया और सवाल करते हैं तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था, मैं जिस शहर में लौट के आ रहा हूं।यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नूर साहब की शायरी की छुअन देरतक रुह में रहती है
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि नूर भाई की शायरी की सब से बड़ी ख़ासियत है इन की फ़िक्र की वुसअत और फिर अल्फ़ाज़ से उस की बुनाई, इस तरह कि शायरी कहीं भी सपाट नहीं होने पाती। जदीदियत का रंग इन की शायरी का बुनियादी रंग है। जो सादगी इन के मिज़ाज में जगमगाती है, वही इन की शायरी को रौशन करती है। बिला-शुबह नूर भाई में एक बड़ा शायर मौजूद है। इन के पास वो टूल्स भी मौजूद हैं जिन से ये अपने फ़न के स्क्रू भली तरह कस सकते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर भाई नूर उज़्ज़मां जैसे उम्दा शायर का उभरना अर्थात् मुरादाबाद की गौरवशाली साहित्यिक परम्परा का एक और सुनहरा कदम आगे बढ़ाना।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि वाट्स एप.पर संचालित साहित्यिक समूूूह मुरादाबाद लिटरेरी क््लब पर मुरादाबाद के युवा शायर नूर साहब की सभी ग़ज़लें पढ़ी। बहुत अच्छा पढ़ने को मिल रहा है बहुत-बहुत मुबारकबाद आपको नूर साहब। युवा शायरा मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा प्रस्तुत की गईं नूर उज़्ज़मां जी की सभी ग़ज़लें बेहद उम्द़ा व ग़ज़ल की कसौटी पर खरे सोने से चमकती हुई हैं।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि अच्छी बात यह है कि यह शायरी जो कुछ सोचती है वो बयान करने में हिचकते नहीं है, यानी नूर साहसी शायर हैं जिनसे आने वाले वक़्त में हमें और बेहतर शायरी सुनने को मिलेगी। ऐसा मुझे पूरा यक़ीन है।
:::::::प्रस्तुति ::::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 8755681225
सोमवार, 26 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना --"आई अश्वों पर सवार मैया ओढ़ चुनरी ...." प्रस्तुत करतीं लंदन गुरुकुल की छात्रा अविशा । यह रचना उन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को डॉ सुरीति रघुनन्दन मॉरीशस और सुशील सरित आगरा द्वारा संचालित विश्व बंधुत्व सेतु के ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रस्तुत की । इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों के बच्चों ने भारत के साहित्यकारों की रचनाओं का पाठ किया ।
रविवार, 25 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के 18 दोहे
विजयादशमी का बड़ा, पावन है त्यौहार। रावण रूपी दम्भ का,करता है संहार।।1
बन्धु विभीषण ने किया, गूढ़ बात जब आम।
रावण का तब हो गया , पूरा काम तमाम।।2
नाभि में था भरा अमिय, मगर न आया काम ।
बुरे काम का फल बुरा, बात बड़ी ये आम।।3
सौतेली माँ केकयी, पुत्र मोह में चूर।
किया तभी श्री राम को, राजमहल से दूर ।।4
रावण ने जब भूल का, किया न पश्चाताप।
उसके कुल ने इसलिये, सहा बड़ा संताप।।5
राम भेष में आजकल , रावण की भरमार।
देखना में सज्जन लगें, अंदर कपटाचार।।6
पुतला रावण का जला, मगर हुआ बेकार
मन के रावण का अगर, किया नहीं उपचार ।।7
अच्छाई के मार्ग पर, चलना हुआ मुहाल।
चले बुराई नित नई , बदल बदल कर चाल ।।8
खड़ा राम के सामने ,हार गया लंकेश।
अच्छाई की जीत का,मिला हमें सन्देश ।।9
गले दशहरे पर मिले,दुश्मन हों या मीत।
नफरत यूँ दिल से मिटा, आगे बढ़ती प्रीत।।10
सोने की लंका जली, रावण था हैरान।
उसे हुआ हनुमान की, तब ताकत का ज्ञान ।।11
हुआ राम लंकेश में, बड़ा घोर संग्राम।
पर रावण की हार का,तो तय था परिणाम।।12
हार बुराई की हुई, अच्छाई की जीत।
रावण जलने की तभी,चली आ रही रीत।।13
सदा सत्य की हो विजय, और झूठ की हार।
पर्व दशहरा शुभ रहे, बढ़े आपसी प्यार ।।14
जीवन मे इक बार बस, बनकर देखो राम।
निंदा तो आसान है, मुश्किल करना काम ।।15
भवसागर गहरा बहुत, भँवर भरी हर धार।
राम नाम की नाव ही, तुझे करेगी पार।।16
सीताओं का अपहरण , गली गली में आज।
कलयुग में फिर हो गया, है असुरों का राज।।17
ज्ञान समर्पण साधना, सब रावण के पास
बस इक अवगुण ने किया, उसका सत्यानाश।।18
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना -----करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो...
श्रीराम धरा पर आकर तुम,फिर से सृष्टि संचार करो,
करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो।।
संकट में आयी मानवता,चहुँ ओर अँधेरा छाया है,
बोझिल धरती का अँधकार ,हरने प्रभु फिर उपकार करो
सारंग धनुष की टंकारें,गूँजे फिर दशो दिशाओं में,
भयमुक्त करो मेरे भारत को,वीरो में तेज संचार करो।
हे मर्यादाओं के द्योतक! हे पुरुषोत्तम, हे अविनाशी,
नारी में लज्जा और नर में मर्यादा का विस्तार करो।।
श्रीराम दया के सागर हो,हे !करुणामय करुणा कर दो,
अब आर्यवर्त की धरती से बस दुष्टों का संहार करो।
लहराये तिरंगा अजर अमर ,भारत का मस्तक उठा रहे,
भाई भाई में प्रेम रहे ,ये विनती मेरी स्वीकार करो ।
हे शिव पिनाक भंजनहारी,हे कौशलनंदन,अखिलेश्वर
कलिकाल कलुष हर के रघुवर ,अविलम्ब धरा का भार हरो।।
✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता --अपने अपने रावण-
सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया
इस बार दशहरा
अलग ढंग से मनाया जायेगा
रावण का पुतला
बाहर से नहीं मंगाया जायेगा
सब अपने अंदर झांकेंगे
छिपे हुए रावण को तलाशेंगे
फिर उसका पुतला बनायेंगे
और अपनी बस्ती के
किसी बड़े मैदान में
उसे लेकर आयेंगे
दशहरा के दिन
सब अपना हुनर दिखा रहे थे
सबके हाथों में
रावण नजर आ रहे थे
झूठ को सच बनाने वाले वकील
भ्रष्टाचार की कार में सवार अधिकारी
मरीजों का खून चूसने वाले डॉक्टर
मिलावट करने वाले व्यापारी
सत्ता के तलुए चाटने वाले पत्रकार
विसंगतियों के प्रति उदासीन साहित्यकार
छात्रों को ट्यूशन के लिए
मजबूर करते शिक्षक
अश्लीलता और फूहड़पन
परोसते फिल्मकार
एक दूसरे को
छोटा दिखाने पर अड़े थे
काम क्रोध ,लोभ मोह
झूठ बेईमानी छलकपट जैसी
बुराइयों के रावण को
अपने हाथ में लिए खडे़ थे
लेकिन नेताओं की बस्ती में
अजीब सा सन्नाटा छाया था
कोई भी अपने रावण को
खुद नहीं खोज पाया था
चमचे मिलकर
नेताओं को खंगाल रहे थे
हर बार एक नया रावण
निकाल रहे थे
ये काम अनवरत चल रहा था
नेताओं को बहुत खल रहा था
अचानक नेता जी चिल्लाए
हमारे अंदर
जो भी रावण मौजूद हैं
उन सबकी वजह से ही
हमारे अपने वजूद हैं
अब कोई भी
रावण नहीं निकालना है
जो निकल गए हैं
उनको फिर से अंदर डालना है
हम कोई भी
जोखिम नहीं उठाएंगे
दशहरा
पुराने तरीके से ही मनायेंगे
नेताजी के गर्जन से
चमचों का उत्साह फुलस्टॉप हो गया
अन्य बस्तियों में भी
कुछ अलग करने का
आइडिया फ्लॉप हो गया
कहीं से भी
किसी रावण के
मरने का समाचार नहीं आया
क्योंकि कोई भी
अपने अंदर के
राम को नहीं जगा पाया
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ---देशद्रोही नेता
एक देशद्रोही नेता को
जिंदा शेर के सामने डालने
की सज़ा सुनाई गई
नेता जी घबरा गए,
उन्हें चक्कर आ गए।
जोर जोर से चिल्लाए
बोले
माई बाप मुझे क्षमा करें
अब कोई गलत काम नहीं करूंगा,
जैसा आप चाहेंगे
वैसा ही काम करूंगा।
देश के प्रति बफादार रहूंगा।
परन्तु
उसकी एक न सुनी गई
नेता जी को शेर के पिंजरे
में डाल दिया गया,
शेर दहाड़ा,
नेता जी के पास दौड़ा।
उसी क्षण वापस लौट गया,
एक ओर बैठ गया।
नेता जी की जान में जान आई,
बोले
मुझे क्यों नहीं खाया भाई।
शेर बोला,
तेरे खून से मिलावटों ,
घोटालों तथा मासूमों की
हत्याओं की बू आ रही है।
तुझको
खाने में मुझे शर्म आ रही है।
अरे,
तेरे शरीर को तो गिद्ध भी
नहीं खायेंगे।
खायेंगे तो खुद ही मर जायेंगे।
मैं तो, फिर भी जंगल
का बादशाह हूँ,
तू ,न बादशाह है न वज़ीर
बस धरती पर बोझ है
अरे,
धिक्कार है तेरे जीवन को
तूने देश को खा लिया
मैं,
तुझे क्या खाऊंगा ।
और यदि खा भी लिया तो
कैसे पचा पाऊंगा ।।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
मुरादाबाद शैली की रामलीला पर पत्रकार निमित जायसवाल का सारगर्भित आलेख
विभिन्न शैलियों में श्री रामलीला का मंचन पूरे भारतवर्ष में होता है लेकिन मुरादाबाद शैली की रामलीला का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस शैली के मंचन को 54 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।
मुरादाबाद शैली की रामलीला में मंच के सामने नीचे बैठकर रामलीला के प्रत्येक संवाद की एंकरिंग होती है और मंच पर कलाकार उस एकरिंग के अनुसार संवाद का मंचन करते है।आदर्श कला संगम के निर्देशक और केजीके इंटर कालेज के सेवानिवृत्त शिक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी डा. प्रदीप शर्मा के अनुसार मुरादाबाद शैली की रामलीला के जनक स्व. रामसिंह चित्रकार, स्व. डा. ज्ञानप्रकाश सोती और स्व. बलवीर पाठक के निर्देशन में वर्ष 1964 में मुरादाबाद के कलाकारों ने रामलीला मंचन की प्रैक्टिस प्रारंभ की थी। मुरादाबाद के कलाकारों को वर्ष 1965 में दिल्ली के परेड ग्राउंड पर मुरादाबाद शैली की रामलीला प्रस्तुत करने का अवसर मिला था लेकिन 1965 में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा पर आक्रमण कर देने के कारण मंचन का कार्यक्रम रद्द हो गया था। इसके बाद अगले वर्ष 1966 में परेड ग्राउंड पर मुरादाबाद शैली की रामलीला का प्रथम सफल मंचन हुआ । इसके बाद प्रत्येक वर्ष महानगर की विभिन्न संस्थाएं स्थानीय मंचों के अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में मुरादाबाद शैली में श्री रामलीला का सफल मंचन कर रहे हैं।
संगीत मदन मोहन का और गीत संदेश भारती के
आदर्श कला संगम के निर्देशक डा. प्रदीप शर्मा ने बताया कि मुरादाबाद शैली की रामलीला के शुरुआती दौर से लंबे समय तक रामलीला के मंचन में संगीत मदनमोहन व्यास का और गीत संदेश भारती के होते थे। गानों की ट्यून्स स्व. पंडित मदनमोहन गोस्वामी की हुआ करती थी। स्व. भारतीजी के गीत और स्व. पंडित मदनमोहन गोस्वामी की ट्यूंस आज भी रामलीला के मंचों पर प्रयोग होती है।
रस्तोगी धर्मशाला और शिव सुंदरी स्कूल में होता था पूर्वाभ्यास
आदर्श कला संगम के निर्देशक डा. प्रदीप शर्मा ने बताया कि मुरादाबाद शैली के कलाकार वर्ष 1964-1965 में रामलीला मंचन का पूर्वाभ्यास अमरोहा गेट स्थित रस्तोगी धर्मशाला और गुलजारीमल धर्मशाला रोड स्थित शिव सुंदरी मांटेसरी स्कूल (वर्तमान में साहू रमेश कुमार कन्या इंटर कालेज) में हुआ करता था। उन्होंने बताया कि उस दौर में मंचन के लिए प्रैक्टिस कई माह पूर्व शुरू हो जाती थी लेकिन वर्तमान में कलाकारों के पास समय का अभाव होता है इसलिए मंचन हेतु रिहर्सल मंचन से 20-22 दिन पहले ही शुरू हो पाती है। जब रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है तो रात्रि में जो संवाद या प्रसंग होने होते है उसकी प्रैक्टिस उसी दिन दोपहर में होती है।
मुरादाबाद की 24 संस्थाएं देशभर के प्रमुख शहरों में करती हैं मंचन
श्रीरामलीला महासंघ के महामंत्री और आकृति कला केंद्र निर्देशक प्रमोद रस्तोगी के अनुसार मुरादाबाद की 24 संस्थाएं दिल्ली के अलावा अनेक राज्यों के प्रमुख शहरों में मंचन करती है। कुछ संस्थाओं का मंचन लम्बे समय से एक ही स्थान पर हो रहा है। दिल्ली रामलीला मैदान और परेड ग्राउंड पर रामलीला मंचन के दौरान देश के प्रधानमंत्री बतौर मुख्य अतिथि पहंुचकर राम और लक्ष्मण का अभिनय कर रहे कलाकारों का तिलक करते है। प्रधानमंत्री के हाथों तिलक कराने का सौभाग्य कई बार स्थानीय कलाकारों को मिला है।
मुरादाबाद महानगर में पांच स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है। मुरादाबाद में रामलीला मैदान लाइनपार, रामलीला मैदान लाजपत नगर, रामलीला मैदान दसवां घाट बंगला गांव, कांशीराम नगर रामलीला का मंचन होता हैं।
रामलीला मंचन करने वाली मुरादाबाद की संस्थाएं व उनके निर्देशक
आदर्श कला संगम - डा. प्रदीप शर्मा व राजदीप शर्मा
श्री राम मानस मंच - राजेश रस्तोगी
शिव कला लोककल्याण समिति - नरेंद्र कुमार व आलोक राठौर
कार्तिकेय - डा. पंकज दर्पण
शिव शक्ति कला मंच - संतोष बडोला
सुरभि कला मंच - संजय सोनी एडवोकेट
श्रीराम सिंह कला मंच - योगेंद्र सिंह राजू
नूतन कला संगम - प्रदीप शंकर शर्मा व पंकज सोती
शिव कला सांस्कृतिक समिति - सतीश जोजेफ
साकेत कला मंच - श्याम मेहरा
श्रीराम युवा कला मंच - ओम प्रकाश ओम
मंगलम कला मंच - विनोद कुमार
रघुवंश सांस्कृतिक संस्था - पंडित अमितोष शर्मा
कीर्ति कला मंच - राजेंद्र गोस्वामी
श्री हरी रंग कला मंच - सुमित चैहान
अंकुर कला दर्श - राजेश सक्सेना
श्री हरि कला मंच - पंडित विकलेश शर्मा
श्री साईं कला केंद्र- पुनीत कुमार
सिया राम कला मंच- प्रदीप वर्मा
मर्यादा कला मंच - कृष्ण गोपाल यादव
रघुवंश सांस्कृतिक परिवार-नरेश सक्सेना
सूर्यवंश कला मंच-रमेश कनोजिया
शिवा अंशू कला मंच- संजय बंटी
निमित जायसवाल
रामंगगा विहार प्रथम, ईडब्ल्यूएस, मुरादाबाद, उ.प्र.।
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का संस्मरणात्मक आलेख ----" सात्विक विचारों की खुशबू बिखेरते थे रामपुर के प्रखर चिंतक प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल"
वर्ष 1986 में प्रकाशित मेरी पुस्तक "रामपुर के रत्न" में जिन 14 महापुरुषों का जीवन चरित्र लिखा गया था ,उसमें एक नाम प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल जी (जन्म 16 सितंबर 1917 - मृत्यु 29 मार्च 2014) का भी था । साहित्यकारों में आप शीर्ष पर विराजमान थे तथा एक बौद्धिक व्यक्तित्व के रूप में आपकी प्रतिष्ठा थी। आपके विचारपूर्ण लेख ,कहानियाँ और कभी - कभी व्यंग्य ,हिंदी साप्ताहिक सहकारी युग में प्रकाशित होते रहते थे । इनके विशेषांकों का एक आकर्षण आपकी लेखन सामग्री भी रहता था । सहकारी युग के संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी की प्रेस में आपका प्रायः उठना- बैठना रहता था तथा महेंद्र जी आपका उल्लेख बहुत आदर के साथ करते थे । मेरा घर तथा प्रोफेसर साहब का घर पास - पास था अर्थात ज्यादा दूर नहीं था। जब से मैंने होश संभाला प्रोफेसर साहब की साधुता का जिक्र अपने पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ से सुनता रहता था। फिर धीरे-धीरे एक लेखक के रूप में मेरा परिचय प्रोफेसर साहब को तथा प्रोफ़ेसर साहब का परिचय मुझे गहराई से मिलने लगा।
इसी बीच मुझे आपने श्री सतीश जमाली द्वारा प्रकाशित एक कहानी संग्रह "26 नए कहानीकार" जो कि ममता प्रकाशन , इलाहाबाद द्वारा अक्टूबर 1976 में प्रकाशित हुआ था ,भेंट किया ,जिसमें भारत के प्रसिद्ध कहानीकारों के साथ-साथ आपकी कहानी "अधूरा" पृष्ठ 108 से पृष्ठ 119 तक अंकित थी, भी प्रकाशित थी । कहानी क्या थी, भावनाओं का मानों झरना ही बह उठा हो । न केवल विविध गतिविधियों तथा एक-एक घटनाक्रम का विस्तार से वर्णन करना आप की कहानी -कला की विशेषता थी ,अपितु मनोवैज्ञानिक रूप से पात्रों का अंतर्मन कहानी में खोल कर रख देना इसका हुनर भी आपको आता था । इसलिए पात्र कहीं दूर के नहीं जान पड़ते थे । उनसे पाठक की आत्मीयता स्थापित हो जाती थी । आप की कहानी पढ़कर मुझे हमेशा यही लगा कि यह पात्र तो सचमुच हमारे आस-पास ही बिखरे हुए हैं। बस हम उनके हृदय की भावनाओं के ज्वार को पकड़ नहीं पाते हैं ।
प्रोफेसर साहब ने उन्हीं दिनों अपना पहला उपन्यास (1976 में प्रकाशित )"जीवन के मोड़" भी मुझे भेंट किया था तथा यह भी एक प्रकार से उनके स्वयं के जीवन का पूर्वार्ध ही था । जिस तपस्वी भाव से उन्होंने जीवन जिया ,वैसा ही शांत और अनासक्त लेखन उनके साहित्य में प्रकट हो रहा था । वह मनुष्य को उदार और उच्च भाव भूमि पर स्थापित करने वाला साहित्य था । प्रेम की परिभाषा उन्होंने स्वयं ही शायद कहीं वर्णित की है कि प्रेम बलिदान चाहता है और प्रेम में कोई लेन-देन नहीं रहता ।
एक और उपन्यास उनके जीवन के उत्तरार्ध में प्रकाशित हुआ । इसका नाम "राहें टटोलते पाँव" था, जो 1998 में प्रकाशित हुआ ।
फिर 2006 में उनका कहानी संग्रह "एहसास के दायरे" प्रकाशित हुआ और इस प्रकार उनकी बिखरी हुई कहानियों को एक जिल्द में पढ़ने का अवसर मिला ।
उनकी लेखन क्षमताओं की निरंतरता का पता इस बात से हमें चलता है कि उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दशक में अपनी आत्मकथा इस प्रकार से लिखी कि वह एक कहानी भी कही जा सकती है ,एक उपन्यास भी कहा जा सकता है तथा अपनी पोती के प्रति उनके वात्सल्य भाव का उपहार भी उसे हम कह सकते हैं । प्रोफेसर साहब ने इस लेखन को ''एक पारिवारिक कथा" का नाम दिया । "अनुभूतियाँ" नामक यह पुस्तक प्रोफेसर साहब ने मुझे 15 - 7 - 2009 को सस्नेह भेंट की थी । जब यह पुस्तक प्रकाशित हुई तब उन्होंने कहा कि मेरा पोता भी कह रहा है कि तुमने पोती के बारे में तो लिख दिया ,लेकिन पोते के बारे में नहीं लिखा । तब मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारे बारे में भी एक किताब लिखूँगा। बात आई - गई हो गई थी लेकिन प्रोफेसर साहब ने सचमुच कुछ ही समय बाद अपनी "आत्मकथा" _अर्थात_ "एक पारिवारिक कथा" को विस्तार दिया और पोते को रचना के केंद्र में रखकर एक पुस्तक लिख डाली । यह उनकी लिखने की निरंतरता का प्रमाण था।
प्रोफेसर साहब खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। रूढ़िवादिता से मुक्त थे । आपके जीवन में किसी भी प्रकार की कट्टरता अथवा विचारों की संकीर्णता का लेश - मात्र भी अंश नहीं था। आप मनुष्यता के उपासक थे । सर्वधर्म समभाव आपकी जीवनशैली थी । वसुधैव कुटुंबकम् आपका आदर्श था। भारतीय संस्कृति में जो ऊँचे दर्जे की चरित्र तथा नैतिकता की बातें कही गई हैं , वह सब आपने अपने जीवन में इस प्रकार से आत्मसात कर ली थीं कि वह आपके व्यवहार में ऐसी घुलमिल गई थी कि कभी भी अलग नहीं हो सकीं। आप भारत और भारतीयता के सच्चे प्रतिनिधि तथा प्रतीक कहे जा सकते हैं ।
रामपुर के सार्वजनिक जीवन में सात्विक विचारों की खुशबू बिखेरने वाले आप एक महापुरुष थे। प्रोफेसर साहब न केवल एक अच्छे लेखक थे बल्कि एक अच्छे वक्ता भी थे । आप चिंतनशील व्यक्तित्व होने के कारण जो भाषण देते थे ,उसमें वैचारिकता का पुट प्रभावशाली रूप से उपस्थित रहता था । इसलिए जो लोग विचारों को सुनने के लिए श्रोता- समूह में उपस्थित होते थे ,उन्हें न केवल आनंद आता था बल्कि वह लाभान्वित भी होते थे । यद्यपि कुछ लोग जो केवल मनोरंजन की दृष्टि से ही कार्यक्रमों में उपस्थित होते थे, उन्हें जरूर कुछ शुष्कता महसूस होती रही होगी। मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे अनेक बार प्रोफेसर साहब को अपने कार्यक्रमों में मंच पर आसीन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ तथा उनकी अध्यक्षता में जो कार्यक्रम हुए ,वह एक शानदार और यादगार कार्यक्रम के रूप में जाने जाएँगे ।
अक्टूबर 2008 में प्रोफेसर साहब का नाम हमने "रामप्रकाश सर्राफ लोक शिक्षा पुरस्कार" के लिए चुना और उनको पुरस्कृत किया । प्रोफेसर साहब ने कृपा करके वह पुरस्कार ग्रहण किया और हमें और भी आभारी बना दिया ।इच्छा तो यह थी कि सौ वर्ष तक हम प्रोफेसर साहब को समारोहों की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित करते रहे और वह आते रहें तथा हम सब उनके कृपा- प्रसाद से लाभान्वित होते रहें। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कुछ वर्ष पूर्व ही आकस्मिक रूप से वह इस संसार से सदा के लिए चले गए ।
प्रोफेसर साहब के निवास पर अनौपचारिक रूप से विचार गोष्ठियाँ चलती रहती थीं। इनमें डॉ ऋषि कुमार चतुर्वेदी जी , श्री महेश राही जी तथा श्री भोलानाथ गुप्त जी का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है । एक बार प्रोफ़ेसर साहब ने मुझसे भी कहा था कि मैं आ जाया करूँ। यद्यपि मेरा जाना कभी नहीं हुआ । प्रोफेसर साहब नहीं रहे लेकिन उनकी मधुर स्मृतियाँ तथा प्रेरणाएँ सदैव जीवित रहेंगी। प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल जी की पावन स्मृति को शत-शत नमन ।
अंत में प्रोफेसर साहब के पत्र - साहित्य में से एक पत्र उद्धृत करना अनुचित न होगा । यह 9 अक्टूबर 1997 को प्रोफ़ेसर साहब का लिखित पत्र है जो उन्होंने मेरे प्रकाशित उपन्यास "जीवन यात्रा" के संबंध में मुझे प्रोत्साहित करने के लिए लिखा था । पत्र इस प्रकार है :-
*दिनांक 9 - 10 - 97*
प्रिय रवि प्रकाश जी
नमस्कार। आपका उपन्यास जीवन यात्रा पढ़ा। काफी बँधा रहा । वैसे मध्य में अधिक रोचक है । समाज तो महज एक अवधारणा है अर्थात "ओन्ली ए कंसेप्ट"। वास्तव में यह व्यक्ति हैं जो सामाजिक जीवन का रिश्तों से ताना-बाना बुनते हैं । यदि व्यक्ति बुरे हैं तो समाज अच्छा हो ही नहीं सकता । किंतु व्यक्ति असंख्य हैं जो बिखरे पड़े हैं । फिर परेशानी यह है कि जिस विशाल जनसमूह से समाज बनता है उसमें अधिकांश वे हैं जिन्हें हम दैनिक बोलचाल में "आम आदमी" कहते हैं अर्थात जिनमें बुद्धि साधारण और अंधानुकरण अधिक है । जो चल पड़ा वह चल पड़ा । फिर इस पुरुष प्रधान समाज में धर्म भी पक्षपात पूर्ण रहा है । संकीर्ण चिंतन और राग - द्वेष विवेक को इतना अपंग कर देते हैं कि इंसान जिस डाल पर बैठा है उसी को काटने लगता है । इस उपन्यास का राहुल ऐसे ही समाज से टक्कर लेने में जुट जाता है किंतु हर जगह असफलता मिलती है । *एक चना भाड़ को नहीं फोड़ सकता । तो सुधार के लिए जन - आंदोलन का रूप देना होता है ।* यही महापुरुषों ने किया है । यही महात्मा गांधी ने भी किया था।
मैं चाहता हूँ आपका यह उपन्यास जन-जन के हाथों में पहुँचे और वे इस को पढ़ें । यह भी एक प्रकार का जन - आंदोलन ही होगा । मैं जानता हूँ अधिकांश साहित्य विशेष रूप से कहानी और उपन्यास विधाएं मनोरंजन का माध्यम अधिक मानी जाती रही हैं किंतु प्रस्तुत उपन्यास में कहीं व्यक्त आपके इस मत से सहमत हूँ कि कुछ न कुछ विचार - तरंगे अवचेतन में जाकर जरूर बैठती हैं जो व्यक्ति को जाने-अनजाने प्रभावित करती रहती हैं ।
साहित्य का एक महत्वपूर्ण पक्ष शिल्प भी है । कथ्य तो एक संवेदनशील मन में अपने आप रूप ले लेता है किंतु शिल्प श्रम - साध्य है । सतत अभ्यास और साहित्यिक शिल्पियों की उच्च कृतियों के अध्ययन - मनन से इसमें निखार आ सकता है। इस उपन्यास के लिए बधाई।
ईश्वर शरण सिंहल
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
(उत्तर प्रदेश)
_मोबाइल 99976 15451_