वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 24 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद के साहित्यकार नूरउज़्ज़मां नूर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई। यह चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले नूरउज़्ज़मां नूर ने निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत कीं---
1)
शिकस्ते ज़ात की यह आखिरी निशानी थी
मिरे वुजूद से सैराब रायगानी थी
मुझे चराग़ बनाना था अपनी मिट्टी से
बदन जला के तुम्हें रोशनी दिखानी थी
पकड़ रहा था मैं आँखों से जुगनुओं के बदन
अंधेरी रात थी ,मशअल मुझे बनानी थी
उतर रहा था फ़लक मिट्टी के कटोरे में
ज़मीं सिमटती हुई खु़द में पानी पानी थी
पलक झपकने के इस खेल में पता क्या था
मुझे नज़र किसी तस्वीर से मिलानी थी
2)
रोज़े अव्वल से किस गुमान में हूँ
अपनी छोटी सी दास्तान में हूँ
खु़द ही इम्काँ निकालता हूँ मैं
खु़द ही इम्काँ के इम्तिहान में हूँ
एक नुक़्ता भी जो नहीं भरपूर
अपनी हस्ती के उस निशान में हूँ
ढूंढने निकलूं तो कहीं भी नहीं
मैं जो मौजूद दो जहान में हूँ
बंद दरवाज़ों का भरम हूँ मैं
मुंह से चिपकी हुई ज़बान में हूँ
एक अरसे से यह भी ध्यान नहीं
एक अरसे से किसके ध्यान में हूँ
3)
तिरा गुमान ! उजालों का आसमाँ है तू
मिरा यक़ीन ! अंधेरों के दरमियाँ है तू
कोई सनद तो दे अपने कुशादा दामन की
मिरी नज़र मे तो छोटा सा आस्माँ है तू
निकलते ही नहीं ज़ेरो ज़बर के पेचो ख़म
यह किस ज़बान में तहरीर दास्ताँ है तू
मिरे मुरीद मैं सदक़े तिरी अक़ीदत के
तुझे बता दूँ, मिरी तरह रायगाँ है तू
तिरा उरूज ही दरअसल है ज़वाल तेरा
है बूंद नूर की और ख़ाक मे रवाँ है तू
4)
ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया
अपने अन्दर से निकल कर आ गया
हलचलें ठहरी रहीं दरयाऔं में
शोर पानी से उछल कर आ गया
तीरगी से तीरगी मिलती रही
दरमि्याँ से मैं निकल कर आ गया
आज़माइश धूप की पुर ज़ोर थी
रोशनी का साया जल कर आ गया
आँख से तेज़ाब की बारिश हुई
हड्डियों में जिस्म गल कर आ गया
चेहरा चेहरा जुस्तुजू इक ख़्वाब की
कितनी आँखें मैं बदल कर आ गया
5)
नये फूल खिलते हुए देखता हूँ
मैं इक ज़र्द पत्ता हरी शाख़ का हूँ
बदन के मकाँ से जो घबरा रहा हूँ
न जाने कहाँ मैं पनह चाहता हूँ
मैं शौके जुनूँ मे उड़ाते हुए ख़ाक
सफ़र दर सफ़र ख़ाक में मिल रहा हूँ
मैं अपनी ही आँखों में चुभने लगा था
सो अपने ही पैरों से कुचला गया हूँ
तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था
मैं जिस शहर में लौट कर आ रहा हूँ
मुझे भीड़ मे उसको पहचानना है
जिसे सिर्फ आवाज़ से जानता हूँ
अभी उसके बारे मे दा'वा करूँ क्या
अभी उसके बारे मे क्या जानता हूँ
6)
बन्द है कारोबारे सुख़न इन दिनों
मुझ से नाराज़ है मेरा फ़न इन दिनों
एक बे सूद कश्ती मिरे नाम की
एक दरिया में है मोजज़न इन दिनों
दाद दी है किसी ने बदन पर मिरे
रुह में है उसी की छुअन इन दिनों
फूल किसने बिछाये मिरी क़ब्र पर
ख़ाक दर ख़ाक है एक चुभन इन दिनों
चार शानो पे यारों के जाते मगर
बंद है इस सफ़र का चलन इन दिनों
लोग आते हैं थैली में लिपटे हुए
और चले जाते हैं बे कफ़न इन दिनों
हाल ये हो गया है कि बाज़ार में
बिक रही है दिलो की कुढ़न इन दिनों
7)
धोका है निगाहों का,फ़लक है न ज़मीं है
मौजूद वही है जो कि मौजूद नहीं हैं
इम्काँ के मनाज़िल से ज़रा आगे निकल कर
क्या देखता हूँ मुझ में ,गुमाँ है न यकीं है
इस ख़ाक में मैंने ही बसाये थे कई घर
इस ख़ाक में अब कोई मकाँ है न मकीं है
फिर किसके लिए तूने, बनाई है ये दुनिया
मिट्टी को वह इंसाँ तो, कहीं था न कहीं है
सजदों के निशानात तो दोनों ही तरफ़ हैं
मंज़ूरे नज़र फिर भी,ज़मीं है न जबीं है
हम लोग हैं किरदार मजाज़ी,यह हक़ीक़त
मेरे ही तईं है ,न तुम्हारे ही तईं है
8)
तुझ से जितना मुकर रहा हूँ मैं
ख़ुद में उतना बिखर रहा हूँ मैं
क्या सितम है कि फ़र्ज़ करके उसे
तुझको बांहों में भर रहा हूँ मैं
तुझ को हासिल नहीं हूँ पूरी तरह
यह बताने से डर रहा हूँ मैं
पाप करते हुए सितम यह है
एक नदी मे उतर रहा हूँ मैं
कौन ईमान लाएगा मुझ पर
अपने बुत से मुकर रहा हूँ
मुझसे आगे हैं नक़्शे पा मेरे
यह कहाँ से गुज़र रहा हूँ मैं
9)
रौशन अपना भी कुछ इम्काँ होता ।
कारे तख़्लीक़, गर आसाँ होता ॥
मैं कि आइने से होता न अयाँ ?
अक्स मे अपने जो पिंहाँ होता ॥
उसने देखा ना मुझे ख़स्ता हाल।
देख लेता तो पशेमाँ होता ??
सिर्फ होती जो मिरी हद बंदी ।
यूँ ज़माना ये परेशाँ होता ??
दरो दीवार से होता जो घर ।
क्या मकाँ मेरा बयाबाँ होता ?
कब कि माँगी थी ख़ुदाई मैंने।
बस कि इक जिस्म का सामाँ होता ॥
10)
दरे इम्कान खटखटाता है
एक उंगली से सर दबाता है
न बदल जाए रंग मट्टी का
पानियों को गले लगाता है
जिसके चेहरे पे कोई आँख नहीं
वह मुझे रोशनी दिखाता है
चाक करता है दिल ख़लाऔं का
अपने दिल का ख़ला मिटाता है
घूमता है बदन हवाऔं का
कोई बच्चा पतंग उड़ाता है
इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि ग़ज़ल में नयी कहन मुरादाबाद का नाम रौशन करेगी,यह बात बहुत ज़़ल्द सच साबित होगी। हिन्दुस्तानी फ़लसफ़े की खुली हवाओं में सांस लेती, हालात से रूबरू मुखातिब होने वाले भाई नूरुज्ज़मा को हार्दिक शुभकामनाएं।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि शायर नूरुज़्ज़मां की दस ग़ज़लों ने उनकी शायरी के जहान से वाक़िफ़ कराया। पढ़ कर अच्छा लगा। जिस सलीक़े से उन्होने अपने एहसासात और तख़य्युलात का इज़हार किया है उस से उन की फ़िक्री उड़ान का अन्दाज़ा बख़ूबी हो जाता है। उनकी शायरी ग़ज़ल के एतबार से उनकी विशिष्ट शैली के आहंग और उसलूब में जलवे बिखेरती नज़र आती है। ग़ज़लों में लय भी है सादगी भी है और शाइसतगी भी। रवाँ दवाँ और पैहम ज़िन्दगी के नित नये मसायल की तर्जुमानी में उम्दा तख़लीका़त अश्आर के रूप में ढली हैं।
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि आज जब मुरादाबाद के लिटरेरी क्लब के पोर्टल पर नूर की दस ग़ज़लें पढीं तो बहुत दिनों से ख़याल के घर में सोए हुए पंछी फड़फड़ाने लगे। इसे नूर की शायरी की ताज़गी ही कहा जाएगा कि उसे पढ़ते हुए ज़हनो दिल थकन की चादर उतारकर मज़ीद कुछ पढ़ने का तकाज़ा करने लगे।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत नूर साहब की सभी ग़ज़लें सराहनीय हैं । बड़े अदब से नूर उज़्ज़मा साहब को उनकी अदबी फिक्र औऱ क़लाम के बावत दिली मुबारकबाद।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि नूर साहब की ग़ज़लों में उनके भीतर की बेचैनी, कसमसाहट और छटपटाहट स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। वह मशअल बनाने के लिए अपनी आंखों से जुगनुओं के बदन पकड़ते हैं और मिट्टी के कटोरे में फ़लक उतारते हैं। उनकी शायरी भीड़ में उसको पहचानने की कोशिश करती है जिसको वह सिर्फ आवाज से जानते हैं। बाजार में दिलों की कुढ़न बिकते हुए देखकर वह कह उठते हैं - ज़ात का पत्थर उगल कर आ गया, अपने अंदर से निकल कर आ गया और सवाल करते हैं तो क्या मैं गया भी इसी शहर से था, मैं जिस शहर में लौट के आ रहा हूं।यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि नूर साहब की शायरी की छुअन देरतक रुह में रहती है
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि नूर भाई की शायरी की सब से बड़ी ख़ासियत है इन की फ़िक्र की वुसअत और फिर अल्फ़ाज़ से उस की बुनाई, इस तरह कि शायरी कहीं भी सपाट नहीं होने पाती। जदीदियत का रंग इन की शायरी का बुनियादी रंग है। जो सादगी इन के मिज़ाज में जगमगाती है, वही इन की शायरी को रौशन करती है। बिला-शुबह नूर भाई में एक बड़ा शायर मौजूद है। इन के पास वो टूल्स भी मौजूद हैं जिन से ये अपने फ़न के स्क्रू भली तरह कस सकते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर भाई नूर उज़्ज़मां जैसे उम्दा शायर का उभरना अर्थात् मुरादाबाद की गौरवशाली साहित्यिक परम्परा का एक और सुनहरा कदम आगे बढ़ाना।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि वाट्स एप.पर संचालित साहित्यिक समूूूह मुरादाबाद लिटरेरी क््लब पर मुरादाबाद के युवा शायर नूर साहब की सभी ग़ज़लें पढ़ी। बहुत अच्छा पढ़ने को मिल रहा है बहुत-बहुत मुबारकबाद आपको नूर साहब। युवा शायरा मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा प्रस्तुत की गईं नूर उज़्ज़मां जी की सभी ग़ज़लें बेहद उम्द़ा व ग़ज़ल की कसौटी पर खरे सोने से चमकती हुई हैं।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि अच्छी बात यह है कि यह शायरी जो कुछ सोचती है वो बयान करने में हिचकते नहीं है, यानी नूर साहसी शायर हैं जिनसे आने वाले वक़्त में हमें और बेहतर शायरी सुनने को मिलेगी। ऐसा मुझे पूरा यक़ीन है।
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ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 8755681225
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