रविवार, 25 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता --अपने अपने रावण-


सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया

इस बार दशहरा

अलग ढंग से मनाया जायेगा

रावण का पुतला

बाहर से नहीं मंगाया जायेगा

सब अपने अंदर झांकेंगे

छिपे हुए रावण को तलाशेंगे

फिर उसका पुतला बनायेंगे

और अपनी बस्ती के

किसी बड़े मैदान में

उसे लेकर आयेंगे


दशहरा के दिन

सब अपना हुनर दिखा रहे थे

सबके हाथों में

रावण नजर आ रहे थे

झूठ को सच बनाने वाले वकील

भ्रष्टाचार की कार में सवार अधिकारी

मरीजों का खून चूसने वाले डॉक्टर

मिलावट करने वाले व्यापारी

सत्ता के तलुए चाटने वाले पत्रकार

विसंगतियों के प्रति उदासीन साहित्यकार

छात्रों को ट्यूशन के लिए

मजबूर करते शिक्षक

अश्लीलता और फूहड़पन

परोसते फिल्मकार

एक दूसरे को

छोटा दिखाने पर अड़े थे

काम क्रोध ,लोभ मोह

झूठ बेईमानी छलकपट जैसी

बुराइयों के रावण को

अपने हाथ में लिए खडे़ थे


लेकिन नेताओं की बस्ती में

अजीब सा सन्नाटा छाया था

कोई भी अपने रावण को

खुद नहीं खोज पाया था

चमचे मिलकर

नेताओं को खंगाल रहे थे

हर बार एक नया रावण

निकाल रहे थे

ये काम अनवरत चल रहा था

नेताओं को बहुत खल रहा था

अचानक नेता जी चिल्लाए

हमारे अंदर 

जो भी रावण मौजूद हैं

उन सबकी वजह से ही

हमारे अपने वजूद हैं

अब कोई भी

रावण नहीं निकालना है

जो निकल गए हैं

उनको फिर से अंदर डालना है

हम कोई भी

जोखिम नहीं उठाएंगे

दशहरा

पुराने तरीके से ही मनायेंगे

नेताजी के गर्जन से

चमचों का उत्साह फुलस्टॉप हो गया

अन्य बस्तियों में भी

कुछ अलग करने का

आइडिया फ्लॉप हो गया

कहीं से भी

किसी रावण के

मरने का समाचार नहीं आया

क्योंकि कोई भी

अपने अंदर के

राम को नहीं जगा पाया


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505,आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

1 टिप्पणी: