मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 29 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दीपक गोस्वामी चिराग, मीनाक्षी ठाकुर, स्वदेश सिंह, रवि प्रकाश, राम किशोर वर्मा, अशोक विद्रोही, डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार, मीनाक्षी वर्मा , श्री कृष्ण शुक्ल , डॉ राजेन्द्र सिंह विचित्र,विवेक आहूजा और शोभना कौशिक की बाल रचनाएं ------

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह,
खुद से ही शर्माते हैं।।

काला चश्मा रखे नाक पर,
देखो जी इतराते हैं।
समझ रहे  वह खुद को हीरो,
खों-खों कर के गाते हैं।।

सेण्ट लगाकर खुशबू वाला,
रोज घूमने जाते हैं।
बंदरिया की ओर निहारें,
मन ही मन मुस्काते हैं।।

फिट रहने वाले ही उनको,
बच्चों मेरे भाते हैं।
इसीलिए तो बंदर मामा,
केला चना चबाते हैं।।

✍️डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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     रंग  बिरंगे  पंख  पसारे,
     नृत्य   कर   रहा    मोर,
     किंग कोबरा डरके मारे,
     कांप     रहा     घनघोर।
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     भूल गया  सारी  फुंकारें,
      निकल  गई   सब   ऐंठ,
      खड़ा रहूँगा तो मयूरकी,
      चढ़     जाऊंगा      भेंट,
      धीरे-धीरे  लगा  सरकने,
      वह   झाड़ी   की   ओर।
      रंग बिरंगे---------------

     राह रोककर खड़ाहोगया,
     उसके     सम्मुख     मोर,
     मैं  चाहूँ  तो पल में  तोडूं,
     तेरी        जीवन      डोर,
     छोड़ रहाहूँ नाग मुझे मत,
     समझे       तू    कमज़ोर।
     रंग बिरंगे----------------

     सुन मयूर की बात सर्प ने,
     झुककर    किया   प्रणाम,
     होकर मुक्त महासंकट  से,
     मिला      बहुत     आराम,
     लगा सोचने  अगर  ऐंठता,
     देख     न     पाता     भोर।
     रंग बिरंगे-----------------

      बे मतलब गुस्सा करना तो,
      होता       बहुत      खराब,
      क्षमादान का होता निश्चित,
      जीवन      पर        प्रभाव,
      यहां सेर  को  सबासेर  भी,
      मिल    जाते     हर    ओर।
      रंग बिरंगे------------------
            
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0-- 9719275453
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दया करना प्रभो हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सब से न्यारा है।
ये दुनिया दुख का सागर है, नहीं दिखता किनारा है।
है नैया छोटी सी अपनी समय की तेज धारा है।

बचा लो झूठ से छल से, जमाने भर के पापों से।
बचा लो रोग,कष्टों से,छिपा लो शीत-तापों से।
चले हम सत्य के पथ पर, हमारा ध्येय हो सेवा।
न छूटे राह उन्नति की,कि विनती है यही  देवा।

बने हम राष्ट्र के सेवक,करें हम धर्म की रक्षा।
दया की दृष्टि दृष्टि जीवों पर, यही बस दो हमें भिक्षा।
हमारे मन समा जाओ,हमें अर्चन सिखा जाओ।
नहीं हिन्दू नहीं मोमिन, सिर्फ मानव बना जाओ।

✍️-दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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बंदर मामा हैट लगाकर,
चले घूमने दिल्ली,
मिली रेल में उन्हें घूमती
एक सयानी बिल्ली।

बंदर मामा ने बिल्ली से
पूछा उसका नाम,
बिल्ली बोली, "चुपकर बंदर।"
"क्या है तुझको काम?"

मैं महारानी बड़े गाँव की!
रख लूँ तुझको चाकर,
इतना सुनकर बंदर मामा,
भागे दुम दबाकर।

✍️मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार
मुरादाबाद 7
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माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा

सुबह-सवेरे नहा-धोकर
जल्दी तैयार हो जाऊँगा

रंग- बिरंगी, सुन्दर-सुन्दर
किताबें बैग में सजाऊँगा

भरा गिलास दूध का पीकर
अपनी इम्यूनिटी बढ़ाऊँगा

अपना लंच दोस्तों के संग
खूब  मस्ती से खाऊँगा

अपना होमवर्क रोजाना
मैडम से चैक कराऊँगा

मेहनत से पढ़ -लिखकर
मैं भी अफसर बन जाऊँगा

माँ मेरा नाम लिखा दो
मैं भी स्कूल जाऊँगा

✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मामा  घर  रामू  गया , बिना  कहे  इस बार
घर  के  बाहर मिल गया ,कुत्ता  पर खूँखार
कुत्ता  पर  खूँखार ,जोर  से  भौंका  झपटा
भागा   रामू   दौड़ ,पैर  रह - रहकर   रपटा
कहते  रवि  कविराय , फटा  कुर्ता पाजामा
बोला  कर  दो माफ ,न फिर आऊँगा मामा

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999761 5451
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मैं गुलाब सी कोमल गुड़िया, हर मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।

आंँखों में हैं स्वप्न सुनहरे, यों मुस्काती हूंँ ।
टेडी बियर मुझे है भाता, साथ रखाती हूंँ ।।
फूलों की खुशबू सी मैं भी, महका चाहती हूंँ ।
बाल बनाकर; फूल लगाकर, मैं इठलाती हूंँ ।।
जग सारा मोहित कर सकती, वह गुण पाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।

साफ-सफाई बहु पसंद है, रोज़ नहाती हूंँ ।
फूलों वाले श्वेत वस्त्र में, परी कहाती हूंँ ।।
चढ़ पलंँग पर खड़ी होकर मैं, चित्र खिचाती हूंँ ।
खुश होते हैं देख मुझे सब, मैं खिल जाती हूंँ ।।
फ्राक पकड़ कर जब मैं चलती, सब मन भाती हूंँ ।
कांँटों संँग गुलाब की डाली, यह बतलाती हूंँ ।।
  
✍️ राम किशोर वर्मा
  रामपुर
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हम सब छोटे बच्चे कब से,
             पूछें  यही  सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
             बीता जाये  साल ?
अब तक कितने लाचारों को
              लील गई बीमारी ?
बैक्सीन तो बन न पाई
           सारी दुनिया हारी !!
कोरोना महामारी से तो
        हाल हुआ बेहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
           पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से;
         बीता जाये साल ?
सेनेटाइज हाथ करो और
        मुंह पर मास्क लगाओ!
दो गज दूरी इक दूजे से;
         इसको सभी निभाओ !!
वरना तांडव मौत का होगा,
         और न मिटे जंजाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
                 पूछे यही सवाल!
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
            बीता जाये साल ??
बंद पड़े स्कूल हमारे;
            कैद हुए हम घर में ;
मोबाइल पर आंखें गाड़े ,
         पढ़ते हैं सब डर में !!
पढ़ना लिखना कैसा अब
     तो जीना हुआ मुहाल !!
हम सब छोटे बच्चे कबसे
            पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
          बीता जाये साल ??
ये कैसा यम है आंखों से,
         नज़र नहीं जो आता है ?
निशदिन बढ़ता ही जाये,
      और सदा मौत बरसाता है!
प्रभू बचाओ जग!, कोरोना-
            खत्म करो तत्काल!!
हम सब छोटे बच्चे कबसे,
             पूछें यही सवाल !
मुक्ति मिले कब कोरोना से,
            बीता जाते साल ??

✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
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गुड़िया लेकर एक छड़ी
घर से अपने निकल पड़ी

लिए बिना ही वह कंडी
पहुंच गई सब्जी मंडी

जो भी दिखी सब्जी ले ली
मिली नहीं प्लास्टिक थैली

सब्जी बिना ही लौटी घर
ढूंढी कंडी  इधर उधर

कंडी के कई टुकड़े हुए
कुतर गए थे चूहे मुए

मन ही मन वो हुई दुखी
और सो गई  वो भूखी 

✍️डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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सैर सपाटा ,खेल खिलौने,
ये बच्चों को बहुत लुभाये ।
धूँ धूँ जिसमें रावण जलता,
उस मेले की याद सताये।
भगवन फिर से खुशियाँ आयें
मिलकर बच्चे मेला जायें ।

लड्डू पेड़े चांट पकौड़ी,
देख के मुँह मे पानी आये।
दादी अम्मा चुपके चुपके,
बच्चों से रबड़ी मँगवाये।
घर में रहना अब न भाये,
कोई तो मेला लगवाये।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी

फूलों से रस को चुराती है
शहद उसका बनाती है
कितना मधुर कितना मीठा
रस चुनकर वो लाती है

कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी

कीट वर्ग का प्राणी मधुमक्खी
संघ बनाकर रहती है
  प्रतिपल मेहनत करती हैं
प्रत्येक संघ में रानी एक
कई सौ नर और शेष श्रमिक

कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।

घोंसला मोम से बनाती हैं
मीठा शहद जमाती है
मिल कर  करते है यह सब काम
तब बनता शहद गुणवान

  कितनी प्यारी कितनी अच्छी
मधुमक्खी मधुमक्खी।

✍️मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश
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छोटू चुप चुप रहता था।
बात न कुछ भी कहता था।
दादा जी ने गले लगाया।
गोदी में उसको बैठाया ।

तब जाकर के छोटू बोला।
राज स्वयं उसने खोला।
मम्मी पापा गंदे हैं।
मुझे परेशां करते हैं

मोबाइल से दूर रहो,
पहले तो चिल्लाते थे।
आँख वीक हो जायेंगी,
कस कर डाट लगाते थे।

अब खुद फोन थमाते हैं,
ऊपर से चिल्लाते हैं।
ऑनलाइन ही पढ़ना है
तुमको आगे बढ़ना है।
क्लास नहीं कोई छूटे,
सबसे अव्वल रहना है।

ये कैसा असमंजस है ।
मोबाइल तो वो ही है।
क्या अब खतरा नहीं रहा।
आँख हमारी वो ही है।

तब दादा जी ने समझाया ।
कोरोना का डर दिखलाया ।
घर में रहना मजबूरी है।
पढना किंतु जरूरी है।।

ऑनलाइन ही पढ़ना है।
आगे भी तो बढ़ना है।
गेम खेलना तुम छोड़ो।
मोबाइल पर खूब पढ़ो।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर  9456641400
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मैंने बैठे हुए
एक चौकीदार को देखा।
हाथ में था दण्ड
मस्तक पर चिन्ता की रेखा।।
लगता था जैसे वह
हर किसी को रोक रहा था।
आने जाने वाले सभी
बच्चों को वह टोक रहा था।।
इतने में कक्षों से बाहर
बच्चों का भी झुण्ड आया।
यह देख चौकीदार ने
तब  अपना दण्ड उठाया।।
वह लगा दौड़ाने सब
बच्चों को इधर और उधर।
कुछ ही क्षण में कोई
बच्चा ना आया वहां नजर।।
तब सन्तोष ग्रहण कर
चौकीदार भी कुछ अलसाया।
देखकर यह सुअवसर
बच्चों ने भी फिर मौका पाया।।
तब धीरे-धीरे सब बच्चे
फिर निकले कक्ष से बाहर।
कोई गेट के नीचे था
और कोई था गेट के ऊपर।।
तब अलसायी निद्रा से
चौकीदार फिर बाहर आया।
उसकी आँखों के सामने
एक था अदभुत नजारा छाया।।
सारे ही बच्चे गेट से
वानर की  भांति कूद रहे थे।
कितनी जल्दी छूटें
यहां से सब यह सोच रहे थे।।
तब हाथ में लेकर दण्ड
चौकीदार भी खड़ा होता है।
कैंसे समझाऊं इनको
फिर वह भी यह सोचता है।।
मेरा मन भी बैठे हुए
दूर से ही यह सब देखता है।
लगता है कि अब यह
चौकीदार भी सोचकर हारता है।
छोटी सी है उम्र
और नादान हैं यह सब बच्चे।
लगते हैं वानरों की भांति
उछल कूद करते हुए  अच्छे।।

✍️ डॉ.राजेन्द्र सिंह 'विचित्र' रामपुर, उत्तर प्रदेश
असिस्टेंट प्रोफेसर, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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बचपन के दिन भूल ना जाना ,
रस्ते में वो चूरन खाना ,
छतों पे चढ़कर पतंग उड़ाना ,
रूठे यारों को वह मनाना ,बचपन के दिन भूल ना जाना ।
अपना था वो शाही जमाना ,
सिनेमा हॉल को भग जाना ,
दोस्तों की मंडली बनाना ,बचपन के दिन भूल न जाना ।
खेलने जाने का वो बहाना ,
पढ़ने से जी को चुराना ,
मास्टर जी से वो मार खाना, बचपन के दिन भूल ना जाना
हाथ में होते थे चार आना , ।
फितरत होती थी सेठाना ,
मुश्किल है यह याद  भुलाना, बचपन के दिन भूल ना
जाना ।।

✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
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बचपन
टूटता बचपन, सिसकता बचपन
बचपन को संभालो तुम
हैं ,नये भारत के कर्ण धार ये
इनको न गर्त में डालो तुम
जीवन के अनमोल रतन ये
इनको आगे बढ़ना है
परिवर्तन की हर कठोर डगर को
इनको वश में करना है
आशा अभिलाषाओं की बगिया को
इनको महकाने दो
अपने हिस्से की खुशियों से
जीवन स्वर्ग बनाने दो

✍️ शोभना कौशिक
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

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