सोमवार, 5 अगस्त 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच की ओर से चार अगस्त 2024 को आयोजित साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई के अमृत महोत्सव ग्रंथ के लोकार्पण समारोह में साहित्यकार हुए सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अन्तरराष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई के अमृत महोत्सव ग्रंथ के लोकार्पण समारोह का आयोजन रविवार चार अगस्त 2024 को कंपनी बाग स्थित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन में किया गया। समारोह की अध्यक्षता आई.बी. के पूर्व निदेशक एस.पी. सिंह ने की। मुख्य अतिथि, पूर्व हिंदी आचार्य, अध्यक्ष एवं डीन, कला संकाय, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र प्रो. बाबूराम रहे।अति विशिष्ट अतिथि-प्रो. संजीव कुमार पूर्व हिंदी आचार्य और अध्यक्ष महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक, विशिष्ट अतिथि धवल दीक्षित, डॉ. सरोज दहिया रहे। संचालन डॉ. रामगोपाल भारतीय (मेरठ) ने किया तथा संयोजन डॉ. महेश 'दिवाकर' ने किया। मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन और डॉ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ समारोह में मंच के संरक्षक मनोज कुमार अग्रवाल, एडवोकेट, चाँदपुर ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। संस्थापक अध्यक्ष साहित्य भूषण डॉ. महेश 'दिवाकर' ने मंच की आख्या प्रस्तुत करते हुए सभी अतिथियों का परिचय दिया और कार्यक्रम के उद्देश्य पर संक्षिप्त प्रकाश डाला। मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई के 90वें वर्ष में प्रविष्ट होने पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित डॉ. महेश दिवाकर के संपादन में प्रकाशित 'अमृत महोत्सव ग्रंथ' का लोकार्पण मंचासीन अतिथियों ने किया। इसके अतिरिक्त हरियाणा से पधारी लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार डॉ. सरोज दहिया के दोहा संग्रह 'वर्णवेणी' और एम पी कमल स्मृति ग्रंथ का लोकार्पण भी किया गया। मुरादाबाद की सभी साहित्यिक संस्थाओं ने साहित्यकार योगेन्द्रपाल सिंह विश्नोई का अभिनन्दन किया। मंच की ओर से उन्हें शाल, सम्मान पत्र और रूद्राक्ष की माला सम्मान स्वरूप दी गयी। सम्मान पत्र का वाचन धामपुर से पधारे साहित्यकार अनिल शर्मा अनिल ने किया। दुष्यंत बाबा ने ग्रंथ की समीक्षा प्रस्तुत की। इस अवसर पर मंच की ओर से साहित्यकारों, रघुराज सिंह 'निश्चल', डॉ. स्वदेश भटनागर वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी',ओंकार सिंह 'ओंकार' डॉ. राम गोपाल भारतीय, डॉ. ईश्वरचन्द 'गम्भीर', महेश राघव, चन्द्रशेखर 'मयूर', डॉ. महेश 'मधुकर', विवेक 'निर्मल', ठा.रामप्रकाश सिंह 'ओज', इन्दु रानी, डॉ. राकेश 'चक्र', जितेन्द्र कुमार जौली, राजीव 'प्रखर', डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल', शिवकुमार 'चन्दन', डॉ. योगेन्द्र प्रसाद, चन्द्रहास कुमार 'हर्ष', डॉ. शीनुलइस्लाम मलिक, डॉ. कृष्णकुमार 'नाज', डॉ. सीमा अग्रवाल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, अवधेशकुमार सिंह, अशोक 'विद्रोही', डॉ. अभय कुमार, डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. बाबूराम, नरेन्द्र 'गरल', डॉ. संजीव कुमार, उदय प्रकाश सक्सेना 'उदय', डॉ. सरोज दहिया, डॉ. वीरेन्द्र कुमार 'चन्द्रसखी', दुष्यंत बाबा,डॉ. एस.पी. सिंह, रामसिंह 'निशंक', मनोज कुमार अग्रवाल, हेमा तिवारी भट्ट, धवल दीक्षित, राजीव सक्सेना,सत्यपाल 'सत्यम', डॉ प्रीति हुंकार और रामदत्त द्विवेदी को सम्मानित किया गया। सभी को सम्मान स्वरूप रूद्राक्ष की माला, सम्मान पत्र और शाल प्रदान की गयी। इस अवसर पर उपस्थित कवियों ने रचना पाठ भी किया। आभार अभिव्यक्ति संजय विश्नोई (मेरठ) ने की।
























































शनिवार, 3 अगस्त 2024

शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता का गीत ...…गाँव शहर जब आते हैं


गाँव शहर जब आते हैं


गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं 


खेत एकड़ों में फैले हैं 

अतिवृष्टि झुलसाती है 

तय कर मीलों की दूरी  

भूख मजूरी करवाती है 

साफ़ हवा पानी का टोटा

चालों में समय बिताते हैं 

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं


अलसाए बरगद के नीचे 

इन्होंने   सुखद निशानी छोड़ीं 

ताल तलईयों के संग जी के   

कितनी व्यथा कहानी छोड़ीं 

महंगाई का आलम है यह 

दाम सुनें  डर जाते हैं

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं

 


शहर दूर तक भरा हुआ है 

चकाचौंध से घिरा  हुआ है 

बेगानापन हावी है इतना 

गांव यहाँ पर डरा हुआ है 

कंक्रीट का जंगल जिसमें 

सारे सपने खो जाते हैं 

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं


✍️ प्रदीप गुप्ता, मुंबई

गुरुवार, 1 अगस्त 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र का नुक्कड़ नाटक...... भ्रष्टाचार पर चोट


   पात्र

बालक–बालिका   संख्या 6

लाला का पुत्र

लाला         

(समवेत स्वर में सभी बाल पात्र नुक्कड पथ पर चक्कर लगा कर,कोरस गाते हुए आते हैं और घेरा बना कर ताल के साथ तालियां बजाते हैं। एक पात्र ढ़पली बजाते हुए गाता है बाकी सब उसको दोहराते हैं। )

 एक दो तीन।

 पैसों की मशीन ।

 थोडा़ झूठ,थोडी लूट

 विज्ञापन की सजावट,

 नकली माल, खूब मिलावट ,

 फुला के पेट,

 हंसता मोटा सेठ ,

 मकान बनाए ,खेत बढ़ाए,

 खूब खरीदी जमीन,

 एक दो तीन।

 पैसों की मशीन।

 पैसों की मशीन भैया पैसों की मशीन।

 पैसों की मशीन भैया पैसों की मशीन।

 बालक (1) -  सुनो सुनो सुनो - ध्यान से सुनो।

                   इस शहर का नामी लाला ।

 बालक(2) - कभी सड़क किनारे था खोखा डाला।

                  सेठ बन गया लाला, मोटी तोंद वाला ।

 बालक (3) -एक नहीं कई धंधे बदले।

                  कब क्या करता? कैसे करता? 

 बालक(5) - कोई न जाने। कोई न समझे।

                   गड़बड़झाला। गड़बड़झाला।

 बालक (2)- यह-मिलावटखोर लाला।

                   यह-काला बाजारी लाला।

 बालक (4)- घूस खोर और रिश्वतखोरी ।

                   लाला अपनी भरे तिजोरी।

बालिका(1) - नं० 2 के सब काले धंधे।

                    रिश्वत लेते, अफसर अंधे

                   इसे मिली हुई हर छूट।

                   लाला करे जनता से लूट ।

                   सरकारी राशन की चौरी,

                   लाला भरे अपनी तिजोरी

                   काले कारोबार अनेक।

                    काम न करता कोई नेक।।

बालक (4) -  मीना,शानू कुक्कू,चुन्नू 

                    मैं भी नाटक खेलुंगा,

                    मेरा रोल मुझे बताओ.

                    मुझे भी कोई पात्र बनाओ। 

सब बालक-    नहीं नहीं -कभी नहीं।

                     तुम तो लाला के लड़के।

                     झूठ फरेब में पले बडे।

                     नाटक में तुम्हें न लेंगे। 

                     दूर हो जाओ अलग खडे ।  

बालक ( 1 ) -  जन-जन का दुख-दर्द,

                     अब हम दिखाने आऐ हैं।

                     काला बाजारी,मुनाफाख़ोरी

                     सबसे बडे समाज के दुश्मन।

                     नेता ,व्यापारी और अधिकारी

                     गंदा गोरखधंधा,गंदा गठबंधन

                     समाज के हैं यह कोढ़ 

                     इसको देंगे अब हम तोड़

                     मिलावटखोर अजगर से

                     सब को बचाने आए हैं।

                     जन-जन का दुख-दर्द,

                     हम सबको दिखाने आए हैं।

                     

( लाला का पुत्र के रूप में एक बालक के चारों तरफ घेरा बना कर सभी बालक संवाद को बार-बार द़हराते हैं। लाला का पुत्र बालक जमीन पर अपना सर नीचे कर बैठ जाता है। बाकी सब पात्र पीछे एक पंक्ति बना कर खडे़ हो जाते हैं।)

बालक  5  - (अपने हाथ की ऊंगली लाला के पुत्र की ओर दिखाते हुए )  

                     पिता तुम्हारा भ्रष्टाचारी।

  बालक   6  - खूब करे मिलावटखोरी।

  बालक- 1   - हल्दी में - जहरीला रंग।

  बालक  2  - मसालों में -घोडे़ की लीद ।

  बालक  3 -  दालों में - कंकड़ और पत्थर।

  बालक  1 -   शराब में-  मिले ज़हर ।

  बालक  2 - चर्बी मिले घी तेल के अंदर।

  बालक   5 -मिठाई में मिलाते - कैमीकल।  

  बालक   3 -नकली अंडा , नकली चावल।

                   जनता को समझें यह अंधा,

                   एक्सपायरी का करता धंधा।              

  लाला का पुत्र -लेकिन मेरा इसमें क्या है दोष।

                   तुम जैसा हूं मैं बालक, 

                   मैं हूं बिल्कुल निर्दोष।

( सब मिल कर बोलते हैं ) 

                    नहीं नहीं कभी नहीं 

                    तुम-

                    भ्रष्टाचार में पले बढ़े।

                    भ्रष्टाचार में रचे-बसे।

                    भ्रष्टाचार में लिप्त रहे।

                    भ्रष्टाचार से सने हुऐ।

लाला का पुत्र  -(रोते हुए जाता है) 

                    मेरे पिता को अपमानित करते,

                    मुझको भी करते अपमानित,

                    खुले आम इल्ज़ाम लगाते,

                     

    ( लाला का पुत्र नाटक घेरे से बाहर चला जाता है । बाकी सब पात्र मिल कर गाते हैं)

                   

                    अब न और मिलावट हो।

                    अब न किसी का स्वास्थ्य बिगडे़,

                    अब न किसी का बच्चा बिछुडे़,

                    मरे न कोई ज़हरीली शराब से,

                    अब किसी का घर न उजडे़,

                    इसका विरोध हो,

                    गली-गली हो, गांव गांव हो

                    शहर-शहर हो।

                    अब न और मिलावट हो।

                    

    (सब ताली बजाते हैं । एक साथ घेरा बना कर गाते है।)

    

                      अब मिलावट - होने न देंगे ।

                      गली-गली - नुक्कड़-नुक्कड़

                      'नुक्कड़ नाटक'हम खेलेंगे ।

                      जन-जन जागृति फैलायेंगे 

                      मिलावटखोर को- 

                      बेनकाब कर डालेंगे।

                      कोई कितना बलशाली हो,

                      कितना भी प्रभावशाली हो,

                      जन-जीवन से-

                      खेल न अब होने देंगे।  

                  (गुस्से में लाल-पीले हुए लाला का अपने रोते हुए बेटे के साथ प्रवेश)

    बालक    1 -वो देखो भ्रष्टाचारी लाला।

    बालक    2 -महा मिलावटखोर यह लाला।

    लाला     - पढ़ने लिखने की उम्र तुम्हारी

                   गली नुक्कड़ हुडदंग मचाते।

                   मुझ जैसे इज्जतदारों की

                   खुली सड़क पर टोपी उछालते।

                   रपट पुलिस मैं लिखवा दूंगा।

                   सबको जेल में डलवा दूंगा।

बालक -   1  अब पापों का घडा़ फूटेगा

                   जनमत हमारे साथ चलेगा।

                   होंगे प्रदर्शन गली व नुक्कड़

                   करेंगे काले धंधे उजागर।

                   मानेंगे अब जांच करा कर।

                   पड़ेंगे जब गालों पर चांटे

                   उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।

लाला -         देखूं तो मैं कौन है ऐसा

                   जो लेगा मुझसे पंगा।

                   मेरी पहुंच है राजनीति में

                   सबको देता हूं मैं चंदा।

                    बडे़-बडे़ आला अफसर

                    नेताओं का हूं मैं बंदा ।

                    क्या मवाली क्या हो गुण्डा

                    चलता मुझ से सबका धंधा।

                    बच्चे हो तुम-हमसे जीत न पाओगे।

                    उल्टा नुकसान उठाओगे।

                    

बालक  -       तोडे़गे यह भ्रष्ट कुचक्र।

                    यही हमारा है संकल्प

                    काली कमाई के रस्ते बंद

                    नहीं मिलेगा कोई विकल्प।

                    गली-गली में होंगे प्रदर्शन।

                    फूंकेगे भ्रष्टाचार के पुतले

                    अधिकारी,लाला ,गुण्डे

                    बेनकाब होंगे सब चेहरे         

      (सब लाला को पकड़ कर उसका घिराव करते है ।उसके चारों तरफ घेरा बना कर गाते है। लय में ढ़पली और ताली बजाते हैं। )

    

 बालक    3- इसको पकडो़ । इसको जकडो।

 बालक    5- इसका सब घेराव करो।

    

बालक    6- नकली दवा दे- बुधिया को मारा।

बालक    2- नकली दारु से - घर बर्बाद किये।

बालक    3- बिगाडा़ स्वास्थ मिलावट से-

                  नकली घी मसालों से-

बालक    1- मिलावटखोरी का- जाल बिछाया।

                      इसको पकडो-इसको पकडो़।

                      सब इसका घेराव करो।

                      

 सभी बालक    नहीं छोडे़गा यह काले धंधे,

                      गली-गली में पुतला फूंको ।

                      इसको पकडो़-इसको पकडो़।

                      सब इसका घेराव करो।

                      अफसर के दफ्तर पर 

                      नेताओं की कोठी घर पर

                      भरे बाजारों में-चौराहे चौराहों पर

                      विधानसभा और संसद पर

                      हम अब बिल्कुल नहीं रुकेंगे

                      नुक्कड़-नुक्कड़-नाटक करेंगें।

                      नुक्कड़-नुक्कड़-नाटक करेंगें।

 (लाला मुंह छिपाता है। हाथ जोड़ता है। माफी मांगता है।)

लाला    - माफ कर दो। माफ कर दो।।

              अब कभी न करुं मिलावट,

              नकली का सब चक्कर छोडूं।

              भ्रष्टाचार से कर ली तौबा .

              सामने सबके कान मैं पकडूं।

              खाकर कसम यह प्रण करता,

              जन-जीवन से कभी न खेलूं।

              खोल के रख दीं मेरी आंखे,

              यह उपकार कभी न भूलूं।।

              

              एक आखिरी मौका दे दो। 

              माफ कर दो। माफ कर दो।।

              मुझको बच्चों माफ कर दो-

                

नोट-  इस 'नुक्कड नाटक' के मंचन करने अथवा किसी भी प्रकार का उपयोग करने से पूर्व। लेखक की स्वीकृति लेना आवश्यक है। 


✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

श्री कृष्ण कालौनी 

 गली 1/5, चन्द्र नगर,

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित मोहन भारद्वाज द्वारा लिखित मां सरावती वंदना उन्हीं की सुपुत्री वाणी भारद्वाज के स्वर में


बुधवार, 31 जुलाई 2024

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा के मुक्तामणि छंद



पहले उर्दू में लिखा, फिर हिंदी में आये ।

'धनपत जी' यों ही नहीं, 'मुंशी जी' कहलाये ।।१।।


दूजों की पीड़ा तभी, भाव-विभोर लिखी थी ।

भावुक होकर जब कलम, घटना सत्य लिखी थी ।।२।।


जिसके जैसे कर्म थे, वाणी व्यंग्य चलायी ।

'प्रेम चन्द' ने प्रेम से, सबकी लोइ हटायी ।।३।।


'प्रेम चन्द' के कृत्य से, नाक जाति की ऊँची ।

हिंदी के सिरमौर हैं, पत्थर लकीर खींची ।।४।।

   ✍️राम किशोर वर्मा

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र के दस दोहे


रचकर सत्साहित्य से , किया प्रेम बलिदान।

प्रेमचंद की साधना, थी अनमोल महान।।1


प्रेमचंद से हम करें, मन से पावन नेह।

निर्धन के ही हित लड़े, बरसा करुणा मेह।। 2


रात-रात भर जागकर, सेवा करी अटूट।

सदा ऋणी हिंदी जगत, थे भारत के पूत।। 3


खेत और खलिहान की, बातें करीं अनन्त।

उर से पूजन कर रहा, सृजनोपासक  संत।। 4

 

प्रेमचंद की थी अमर,सारे जग में धाक।

ईश्वर का उपहार थे, बढ़ी हिन्द की साख।। 5


भाव सजाऊँ प्रेम के, चित निर्मल हो जाय।

प्रेमचंद की साधना, नैनन नीर बहाय।। 6


गबन और सेवासदन, और  लिखा गोदान।

कथा निरी उर में बसीं, कफन और वरदान।। 7


प्रेमचंद से सीख लूँ , हिंदी का गुणगान। 

प्रेम, पीर है बाँसुरी , परहित करूँ बखान।। 8


आडम्बर पर की सदा,गहरी तीखी चोट।

प्रबल रही थी लेखनी, कभी न चाहे नोट।। 9


गोरों से लड़ते रहे, सहे न अत्याचार।

किया लेखनी से सदा, अनाचार पर वार।। 10


✍️डॉ राकेश चक्र 

90 बी, शिवपुरी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456201857

Rakeshchakra00@gmail.com



मंगलवार, 30 जुलाई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की बाल कविता ....यह मुंह और मसूर की दाल


 یہ منہ اور مسور کی دا

यह मुंह और मसूर की दाल


 پیارے بچو اک بلی تھی،

 کہلاتی تھی شیر کی موسی

प्यारे बच्चों इक बिल्ली थी,

कहलाती थी शेर की मौसी।


پڑھ کے نصیحت کی کچھ باتیں،

 کرتی پھرتی تھی تقریریں

पढ़  के नसीहत की कुछ बातें,

करती फिरती थी तक़रीरें।


اتنا چیختی تھی مائک پر،

اٹھ جاتے تھے بچے ڈر کر ۔

इतना चीख़ती  थी माइक पर,

उठ जाते थे बच्चे डर कर।


گھڑتی تھی ولیوں کی کہانی،

جھوٹی کی تھی جھوٹی نانی۔

घड़ती थी वलियों की कहानी ,

झूठी  की  थी  झूठी  नानी ।


یوں ہی چالاکی کی بدولت 

کھانے لگ گئی گھر گھر دعوت

यूं ही चालाकी की बदौलत,

खाने लग गई घर-घर दावत।


خوب اڑانے لگی وہ بھائی،

 دودھ ملائی چکن فرائی

ख़ूब उड़ाने लगी वह भाई,

दूध मलाई चिकन फ्राई ।


اک دن بولی بھائی بہنو،

 سادہ کھاؤ سادہ پہنو

इक दिन बोली,' भाई बहनो'

सदा खाओ सदा पहनो'


کھایا کرو تم دال مسور کی،

 ملا کرے گی بے حد نیکی

खाया कीजे दाल मसूर की

मिला  करेगी बेएहद नेकी ।


اس دن اس کی باتیں سن کر,

 اثر  ہوا  سننے  والوں  پر

उस दिन उसकी बातें सुनकर,

असर हुआ सुनने वालों पर।


 جہاں ملے تھا چکن فرائی،

 انہوں نے اس دن دال بنائی۔

जहां मिले था चिकन फ्रा़ई,उ

उन्होंने उस दिन दाल बनाई।


دال کو دیکھ کے بولی، 'بھائی 

 آج کہاں ہے چکن فرائی ؟'

दाल को देखके बोली,' भाई!

आज कहां है चिकन फ्रा़ई?'


اس پر گھر کا مالک بولا،

 موسی تم نے ہی تو کہا تھا

इस पर घर का मालिक बोला,

मौसी तुम ने ही तो कहा था ۔۔


 اسے ملے گی بے حد نیکی،

 جو کھائے گا دال مسور کی

मिलेगी उसको बेहद नेकी,

जो खाएगा दाल मसूर की


 بولی  بلی  تم   بُدھو  ہو،

 یہ تو نصیحت تھی اوروں کو

बोली बिल्ली,' तुम बुद्धू हो,

यह तो नसीहत थी औरों को।


میں بھی اگر کھاؤں گی دالیں،

 کیا لوں گی کر کے تقریریں

मैं भी अगर खाऊंगी दालें, 

क्या लूंगी करके तक़रीरें ?


 مرے   لیے   تو   لاؤ   مال،

' یہ منہ اور مسور کی دال!

मिरे लिए तो लाओ माल,

यह मुंह और मसूर की दाल ।

✍️ज़मीर दरवेश

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत