रचकर सत्साहित्य से , किया प्रेम बलिदान।
प्रेमचंद की साधना, थी अनमोल महान।।1
प्रेमचंद से हम करें, मन से पावन नेह।
निर्धन के ही हित लड़े, बरसा करुणा मेह।। 2
रात-रात भर जागकर, सेवा करी अटूट।
सदा ऋणी हिंदी जगत, थे भारत के पूत।। 3
खेत और खलिहान की, बातें करीं अनन्त।
उर से पूजन कर रहा, सृजनोपासक संत।। 4
प्रेमचंद की थी अमर,सारे जग में धाक।
ईश्वर का उपहार थे, बढ़ी हिन्द की साख।। 5
भाव सजाऊँ प्रेम के, चित निर्मल हो जाय।
प्रेमचंद की साधना, नैनन नीर बहाय।। 6
गबन और सेवासदन, और लिखा गोदान।
कथा निरी उर में बसीं, कफन और वरदान।। 7
प्रेमचंद से सीख लूँ , हिंदी का गुणगान।
प्रेम, पीर है बाँसुरी , परहित करूँ बखान।। 8
आडम्बर पर की सदा,गहरी तीखी चोट।
प्रबल रही थी लेखनी, कभी न चाहे नोट।। 9
गोरों से लड़ते रहे, सहे न अत्याचार।
किया लेखनी से सदा, अनाचार पर वार।। 10
✍️डॉ राकेश चक्र
90 बी, शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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