पहले उर्दू में लिखा, फिर हिंदी में आये ।
'धनपत जी' यों ही नहीं, 'मुंशी जी' कहलाये ।।१।।
दूजों की पीड़ा तभी, भाव-विभोर लिखी थी ।
भावुक होकर जब कलम, घटना सत्य लिखी थी ।।२।।
जिसके जैसे कर्म थे, वाणी व्यंग्य चलायी ।
'प्रेम चन्द' ने प्रेम से, सबकी लोइ हटायी ।।३।।
'प्रेम चन्द' के कृत्य से, नाक जाति की ऊँची ।
हिंदी के सिरमौर हैं, पत्थर लकीर खींची ।।४।।
✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें