शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता का गीत ...…गाँव शहर जब आते हैं


गाँव शहर जब आते हैं


गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं 


खेत एकड़ों में फैले हैं 

अतिवृष्टि झुलसाती है 

तय कर मीलों की दूरी  

भूख मजूरी करवाती है 

साफ़ हवा पानी का टोटा

चालों में समय बिताते हैं 

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं


अलसाए बरगद के नीचे 

इन्होंने   सुखद निशानी छोड़ीं 

ताल तलईयों के संग जी के   

कितनी व्यथा कहानी छोड़ीं 

महंगाई का आलम है यह 

दाम सुनें  डर जाते हैं

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं

 


शहर दूर तक भरा हुआ है 

चकाचौंध से घिरा  हुआ है 

बेगानापन हावी है इतना 

गांव यहाँ पर डरा हुआ है 

कंक्रीट का जंगल जिसमें 

सारे सपने खो जाते हैं 

गाँव शहर जब आते हैं 

सिमटे सहमे सकुचाते हैं


✍️ प्रदीप गुप्ता, मुंबई

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