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रविवार, 12 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष गिरधर गोपाल व्यास के छह गीत--- ये गीत उनके काव्य संग्रह ' चांदनी का राग' से लिए गए हैं । उनकी यह कृति वर्ष 1996 में व्यास बन्धु प्रकाशन पचपेड़ा कटघर मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित की गई थी। इस कृति में उनकी 63 रचनाएं संग्रहीत हैं । इस कृति की भूमिका लिखी है प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी ने ।
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी की पुण्यतिथि 12 अप्रैल पर डॉ मक्खन मुरादाबादी का विशेष आलेख --- पीड़ा को गीत बनाने में सिद्धहस्त साधक थे रामावतार त्यागी
रामावतार त्यागी की डेढ़ दर्जन से भी अधिक सृजित कृतियां हैं। देश भर में छोटी कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालय - कक्षाओं तक के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाओं ने आदर पाया है।वह दिनकर , बच्चन , नेपाली , नरेन्द्र शर्मा , शिवमंगल सिंह सुमन , बलवीर सिंह रंग , देवराज दिनेश , वीरेन्द्र मिश्र आदि की पीढ़ी के अनूठे गीतकार हैं और इन सभी से प्रदत्त अपने अनुपम और अद्भुत होने के प्रमाण - पत्र भी उनके ललाट पर मुकुट - रूप में शोभायमान हैं। आधुनिक हिन्दी गीत का इतिहास भी जब कायदे से लिखा जायेगा तो हिन्दी गीत रामावतार त्यागी के नाम से ही करवट लेता हुआ दिखाई पड़ेगा।
शिव विष पीकर उसको कंठ ही में सोखकर नीलकंठ हो जाते हैं । निराला पीड़ाओं को बिछा - ओढ़ कर महाप्राण हो जाते हैं तो रामावतार त्यागी पीड़ाओं को दुलार - पुचकार कर उनमें ही रमकर, उन्हीं को पी - जी कर आत्मसात करके उनके साथ सोकर और जागकर पीड़ा के महागायक होकर हिन्दी गीत के महानायक होकर सामने आते हैं -
शिशुपालसिंह ' निर्धन ' जी की पंक्तियां याद आ रही हैं -
एक पुराने दु:ख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो ।
उत्तर दिया चले मत आना मैंने वह घर बदल दिया है ।।
लेकिन रामावतार त्यागी तो इससे भी बहुत आगे निकल गए हैं--
मैं न जन्म लेता तो शायद
रह जातीं विपदाएं क्वारीं
मुझको याद नहीं है मैंने
सोकर कोई रात गुज़ारी
इतना ही नहीं । अपनी पीड़ाओं को ऐसा सादर सम्मान देने वाला हिन्दी साहित्य जगत में कहीं नहीं मिलने वाला --
सारी रात जागकर मन्दिर
कंचन को तन रहा बेचता
मैं पहुंचा जब दर्शन करने
तब दरवाजे बन्द हो गये ।
छल को मिली अटारी सुख की
मन को मिला दर्द का आंगन
नवयुग के लोभी पंचों ने
ऐसा ही कुछ किया विभाजन
शब्दों में अभिव्यक्ति देह की
सुनती रही शौक से दुनिया
मेरी पीड़ा अगर गा उठी
दूषित सारे छन्द हो गये ।
रामावतार त्यागी पीड़ा को गीत बनाने में सिद्धहस्त साधक थे।ध्यान से देखेंगे तो भी पता नहीं लगा पायेंगे कि उन्होंने अपनी पीड़ा को गाया है या उनकी पीड़ा ने उनको गाया है।उनके गीतों में यह तत्त्व गहरे शोध का विषय है। उनके गीत - गीत को बार-बार पढ़ कर देखिए तो सही , आपको लगेगा कि उन्होंने जो कहा है वह संभवतः पहली - पहली बार कहा गया है। कविता में यह आभास रचनाकार की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है जो उसे वास्तव में अप्रतिम बनाती है।
मध्यम कद और सांवली सूरत वाला अक्कखड़, तुनकमिजाज , बेपरवाह, शुष्क - शुष्क सा , घमंडी कहा जाने वाला आत्माभिमान से लबालब दो टूक अपने को प्रस्तुत करने वाला अजीबोगरीब यह आदमी बड़ों - बड़ों का और अपने श्रोताओं तथा पाठकों का कितना प्रिय होकर उभरा है,यह तो किसी की भी सोच के परे की स्थिति है। रामावतार त्यागी के सामने मैंने स्वयं अच्छों - अच्छों को पानी भरते देखा है।क्यों ? क्योंकि पीड़ा का यह गायक पीड़ाओं में से जीवन का यह दर्शन भी निकालना जानता है --
गजब का एक सन्नाटा, कहीं पत्ता नहीं हिलता
किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता
कहीं उन्माद हंसता है कहीं उम्मीद रोती है
यहीं से,हां यहीं से ज़िन्दगी प्रारंभ होती है।
रामावतार त्यागी उस उदधि के जैसे हैं जिसकी तरंग - तरंग में पीड़ा ही पीड़ा है। तरंगों का उछाल वाष्पीकृत होकर जब बादलों में तब्दील होता है तब उससे मूसलाधार पीड़ाएं बरस कर रामावतार त्यागी का गीत हो जाती हैं।उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलाधार बरसात से कमाई गई खेती है।
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता - खून के आंसू बहाती मानवता पर,दया करो तरस खाओ...
परम आदरणीय कोविड 19 जी!
हमारा भी भूमि पर नाक रगड़न्तु पूंछ हिलन्तु प्रणाम स्वीकारें,
मार पछाड़ हाथापाई के बीच ही, हमारी व्यथा कथा प्रार्थना पर विचारें।
प्रातः स्मरणीय आप महाशक्तिशाली महान हो,
चलता फिरता आध्यात्मिक विश्वविद्यालय शमशान हो।
माना कि आपके चाल-चरित्र और विराट व्यक्तित्व के साथ,
भूलोकवासियों ने न्याय नहीं किया है,
तो आपने भी बड़े-बड़े तीरंदाजों का चुपके से
सूपड़ा साफ किया है।
देखो तो पूरा नाम भी सम्मान से नहीं ले रहे हैं,
काेविड 19 जी को कोरोना-कोरोना चिल्लाकर,आपके कोप का शिकार हो रहे हैं।
किंतु महोदय आपकी कार्यप्रणाली में भी
बहुत बड़ा भेद है,
लोकतांत्रिक व्यवस्था में तानाशाही का छेद है।
हमारे यहां मकान में दरवाजे खिड़कियों से पहले,तैयार बेसमेंट होता है,
आपके यहां तारीख,ना सम्मन,ना सुनवाई,ना बहस,सीधा जजमेंट होता है।
हमारे यहां घोर शत्रु को भी संभलने का भरपूर मौका देते हैं|
हमला बोलने से पहले,तैयारियों का बिगुल फूंक देते हैं|
आपके यहां तो बड़ा ही उल्टा-पुल्टा है हिसाब-किताब|
धोखे से आदमी की नाक में घुसते हैं,यह भी कोई तरीका है साहब।
आपने हमारे चिकित्सा शास्त्र की,दी पोल-पट्टी खोल,
एक डंके में ही फोड़ दिया,हमारे हवाई दावों का ढोल।
इतना सब कुछ होने के बाद भी आपकी नियत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता,
मानवता पर आपके उपकार को कभी नहीं
भुलाया जा सकता।
हमारी आंखों पर बंधी पट्टी,एक झटके में ही खोल दी|
''माया महाठगनी हम जानी''वाली बात कानों में घोल दी।
भीड़-भाड़ से निकाल कर,सिखा दिया एकांतवास|
आदमी अकेला है दुनिया में,करा दिया एहसास।
सारी शैतानियाें,मक्कारियों पर फिर गया पानी|
अहंकारियों का हो गया काम तमाम,याद आ गई नानी।
महाराज जी आप सृष्टि के अणु-अणु में,परम सत्ता का आभास हो।
कुंठित मन की उपज एक महाभारत जैसी भड़ास हो।
हानि लाभ जीवन मरण तुम हर्ष और वियोग हो,
श्रीमद्भागवतगीता की कार्यशाला,आप महाप्रयोग हो।
आपका संदेश प्राप्त हुआ,अब स्वयं विसर्जित हो जाओ,
खून के आंसू बहाती मानवता पर,दया करो तरस खाओ।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719059703
शनिवार, 11 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार श्याम सुंदर भाटिया की लघुकथा ----नि:शब्द
हिंदी के प्रो. राम नारायण त्रिपाठी को उनके सहपाठी और चेले पीठ पीछे प्रो.बक - बक त्रिपाठी कहते ... प्रो.त्रिपाठी के समृद्ध शब्दों के भंडार का कोई सानी नहीं था...लेकिन सवालों का पिटारा शब्द भंडार से भी संपन्न... कोरोना के चलते लाकडाउन तो बहाना था...बतियाने को किसी न किसी की रोज दरकार रहती... श्रीमती के इशारे पर तपाक से प्रो. त्रिपाठी मास्क लगाकर सब्जी खरीदने पहुंच गए...सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए व्हाइट सर्किल में अनुशासित मुद्रा में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे...नंबर आते ही बाबू ने सवाल दागा...क्या - क्या दे दें प्रोफेसर साहिब... सवाल पूर्ण होने से पहले ही धारा प्रवाह बोलना शुरु कर दिया... गोभी क्या रेट है...खराब तो नहीं...नहीं साहिब...बाबू ने रिस्पॉन्ड किया... प्रो. त्रिपाठी बोले,क्या गारंटी है...बताओ... टमाटर, आलू,प्याज, लौकी से लेकर बैंगन,धनिया, पुदीना होते हुए खरबूजे और तरबूज तक पहुंच गए... प्रो. आदतन दो ही सवाल करते ...क्या रेट...और क्या गारंटी...20 मिनट हो गए और व्हाइट सर्किल में कतार और लंबी हो गई तो प्रो. त्रिपाठी से बाबू ने थोड़ा रफ लहजे में कहा...आपसे भी साहिब हम एक सवाल पूछ लेता हूं...आप तो बड़ी क्लास के टीचर...पूरी दुनिया और उसके कायदे जानते हो ... हां ... हां ... बोलो ना... प्रो.साहब ने सोचा...ससुर क्या पूछेगा... कोरोना महामारी से कब मुक्ति मिलेगी...या...यूनिवर्सिटी कब खुलेगी...वगैरह...वगैरह...आप हर सब्जी और फल की गारंटी तो पूछ रहे हो... प्रो.साहिब इंसान की भी आज कोई गारंटी है क्या...यह सुनते ही प्रोफेसर त्रिपाठी नि:शब्द हो गए... आनन - फानन में एक झ्टके में थैला उठाया और घर की ओर तेज - तेज कदमों से कूच कर गए...
विभागाध्यक्ष
पत्रकारिता कॉलेज, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 7500200085
शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष राजीव सारस्वत की 8 कविताएं----- ये रचनाएं उनके काव्य संग्रह ' मेरा नमन ' से ली गई हैं । इस संग्रह का प्रकाशन उनके मुंबई के होटल ताज में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले में शहीद होने के बाद सन 2009 में हुआ था। संयोग प्रकाशन मुंबई द्वारा प्रकाशित इस संग्रह में उनकी 111 रचनाएं हैं ।
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