रविवार, 12 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी की पुण्यतिथि 12 अप्रैल पर डॉ मक्खन मुरादाबादी का विशेष आलेख --- पीड़ा को गीत बनाने में सिद्धहस्त साधक थे रामावतार त्यागी


      आज 12 अप्रैल , 2020 की तारीख हिन्दी साहित्य के लिए बहुत अहम है।आज की ही तारीख को 1985 में आधुनिक हिंदी गीत के शिरोमणि आदरणीय रामावतार त्यागी ने पीड़ाओं को गाते - गाते इस संसार से विदा ली थी। वह मार्च 1925 में  तत्कालीन जनपद मुरादाबाद की सम्भल तहसील ( वर्तमान जनपद )के गांव कुरकावली में जन्में थे। कुरकावली सम्भल - हसनपुर मार्ग पर नौवें माइल स्टोन पर स्थित है ।
      रामावतार त्यागी की डेढ़ दर्जन से भी अधिक सृजित कृतियां हैं। देश भर में छोटी कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालय - कक्षाओं तक के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाओं ने आदर पाया है।वह दिनकर , बच्चन , नेपाली , नरेन्द्र शर्मा , शिवमंगल सिंह सुमन , बलवीर सिंह रंग , देवराज दिनेश , वीरेन्द्र मिश्र आदि की पीढ़ी के अनूठे गीतकार हैं और इन सभी से प्रदत्त अपने अनुपम और अद्भुत होने के प्रमाण -  पत्र भी उनके ललाट पर मुकुट - रूप में  शोभायमान हैं। आधुनिक हिन्दी गीत का इतिहास भी जब  कायदे से लिखा जायेगा तो हिन्दी गीत रामावतार त्यागी के नाम से ही करवट लेता हुआ दिखाई पड़ेगा।
        शिव विष पीकर उसको कंठ ही में सोखकर नीलकंठ हो जाते हैं । निराला पीड़ाओं को बिछा - ओढ़ कर महाप्राण हो जाते हैं तो रामावतार त्यागी पीड़ाओं को दुलार - पुचकार कर उनमें ही रमकर, उन्हीं को पी - जी कर आत्मसात करके उनके साथ सोकर और जागकर पीड़ा के महागायक होकर हिन्दी गीत के महानायक होकर सामने आते हैं -
     शिशुपालसिंह ' निर्धन ' जी की पंक्तियां याद आ रही हैं -
एक पुराने दु:ख ने पूछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो ।
उत्तर दिया चले मत आना मैंने वह घर बदल दिया है ।।
       लेकिन रामावतार त्यागी तो इससे भी बहुत आगे निकल गए हैं--
मैं न जन्म लेता तो शायद
रह जातीं विपदाएं  क्वारीं
मुझको याद नहीं है मैंने
सोकर कोई रात गुज़ारी
 
इतना ही नहीं । अपनी पीड़ाओं को ऐसा सादर सम्मान देने वाला हिन्दी साहित्य जगत में कहीं नहीं मिलने वाला --
सारी रात जागकर मन्दिर
कंचन को तन रहा बेचता
मैं पहुंचा जब दर्शन करने
तब दरवाजे बन्द हो गये ।
छल को मिली अटारी सुख की
मन को मिला  दर्द का  आंगन
नवयुग के लोभी पंचों ने
ऐसा ही कुछ किया विभाजन
शब्दों में अभिव्यक्ति देह की
सुनती रही शौक से दुनिया
मेरी पीड़ा अगर गा उठी
दूषित सारे छन्द हो गये ।
 
    रामावतार त्यागी पीड़ा को गीत बनाने में सिद्धहस्त साधक थे।ध्यान से देखेंगे तो भी पता नहीं लगा पायेंगे कि उन्होंने अपनी पीड़ा को गाया है या उनकी पीड़ा ने उनको गाया है।उनके गीतों में यह तत्त्व गहरे शोध का विषय है। उनके गीत - गीत को बार-बार पढ़ कर देखिए तो सही , आपको लगेगा कि उन्होंने जो कहा है वह संभवतः पहली - पहली बार कहा गया है। कविता में  यह आभास रचनाकार की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है जो उसे वास्तव में अप्रतिम बनाती है।
     मध्यम कद और सांवली सूरत वाला  अक्कखड़, तुनकमिजाज , बेपरवाह, शुष्क - शुष्क सा , घमंडी कहा जाने वाला आत्माभिमान से लबालब दो टूक अपने को प्रस्तुत करने वाला अजीबोगरीब यह आदमी बड़ों - बड़ों का और अपने श्रोताओं तथा पाठकों का कितना प्रिय होकर उभरा है,यह तो किसी की भी सोच के परे की स्थिति है। रामावतार त्यागी के सामने मैंने स्वयं अच्छों - अच्छों को पानी भरते देखा है।क्यों ? क्योंकि पीड़ा का यह गायक पीड़ाओं में से जीवन का  यह दर्शन भी निकालना जानता है --       
गजब का एक सन्नाटा, कहीं पत्ता नहीं हिलता
किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता
कहीं उन्माद हंसता है कहीं उम्मीद रोती है
यहीं से,हां यहीं से ज़िन्दगी प्रारंभ होती है।
     
     रामावतार त्यागी उस उदधि के जैसे हैं जिसकी तरंग - तरंग में पीड़ा ही पीड़ा है। तरंगों का उछाल वाष्पीकृत होकर जब बादलों में तब्दील होता है तब उससे मूसलाधार पीड़ाएं बरस कर रामावतार त्यागी का गीत हो जाती हैं।उनका गीत संसार पीड़ाओं की मूसलाधार बरसात से कमाई गई खेती है।   


✍️  डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769

1 टिप्पणी:

  1. हिन्दू कालेज मुरादाबाद में आयोजित एक कविसम्मेलन में मैंने उन्हें काव्य पाठ करते हुए सुना था । इस आयोजन में देवराज दिनेश, हरिवंश राय बच्चन जी थे । संभवतः यह आयोजन 1950 से 1952 के बीच हुआ था । कब हुआ था यह याद नहीं है ।

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