मंगलवार, 17 नवंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 13 अक्टूबर को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों प्रीति चौधरी, रवि प्रकाश, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, राजीव प्रखर, दीपक गोस्वामी चिराग, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ शोभना कौशिक, कमाल जैदी वफ़ा, मनोरमा शर्मा, अशोक विद्रोही, डॉ श्वेता पूठिया, रामकिशोर वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार, डॉ रीता सिंह, श्री कृष्ण शुक्ल, धर्मेंद्र सिंह राजौरा और शिवअवतार सरस की रचनाएं


जगत में डर हँसाई का 

बहुत मुझको सताता है
देखकर रीत दुनिया में
मन घबरा यह जाता है
माँ ममता का आँचल है
बहुत ही याद आता है

अपनी आँखों के आँसू -
जब-तब  रोते रहते हैं
दुनिया में अपमान सभी
चुपचाप यही सहते हैं
माँ-गोदी में सोने को --
हर-पल मुझसे कहते हैं।

हृदय लगाकर अपने, माँ !
मुझको आज सहारा दो !
डूब रही जीवन-नैया ----
अपना इसे किनारा दो !
जिसमें दिख जाये हर पल
मुझको वही नज़ारा दो !!
                   
✍️  प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा
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झूल  रहा  है  टॉमी   जमकर
बच्चों  जैसी  आदत  पड़कर

कहता  है  हम  भी  तो  बच्चे
कुत्ते  हैं ,पर   मन   के   सच्चे

अगर पार्क में मालिक ! आओ
हमको  भी  तो  संग  खिलाओ

छोटा   भाई   समझ  बुला  लो
जब  तुम  झूलो ,हमें  झुला लो

✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
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गीदड़ को  मिल  गई बांसुरी,
लगा        छेड़ने          तानें,
मैं   ही   संगीतज्ञ   बड़ा   हूँ,
सभी       जानवर       जानें।
        
जो  संगीत   सीखना   चाहे,
पास     मेरे     आ      जाए,
ढोलक, ढपली और  मंजीरा,
दिनभर       खूब      बजाए,
पैसा  नहीं   रोज़   मुर्गा   ही,
फीस     मेरी      है     जानें।
गीदड़ को-----------------

कान खोलकर सुन लो मेरी,
फीस     नियम से      आए,
दुबला -पतला  नहीं  चलेगा,
मोटा         मुर्गा         लाए,
गद्दारी  करने   की  मन   में,
तनिक    न    कोई      ठानें।
गीदड़ को------------------

मैंने  अपने   गुरु  "गधे"   से,
कभी    न     की    मनमानी,
ढेंचू - ढेंचू   की    तानों    से,
सीखी       बीन       बजानी,
गुरु  गुरु   होता   है   उसकी,
महिमा        को      पहचानें।
गीदड़ को-------------------

सुबह  दुपहरी से  संध्या तक,
सबको       लगा      सिखाने,
मुर्गा, बत्तख,  खरहा, कबूतर,
खुलकर       लगा       चबाने,
कहा  शेर  ने  शोर   कहाँ   से
आया    हम      भी       जानें।
गीदड़ को--------------------

पहुंच  गया  जंगल  का  राजा,
सूंघ           सूंघकर        राहें,
उड़ा   रहा   था  दावत  गीदड़,
सान          सानकर       बांहें,
देख  शेर  को  थर-थर   काँपा,
भूल      गया      सब      तानें।
गीदड़ को---------------------

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
  मो0-   9719275453
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चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।

सुंदर-सुंदर पौधे इसके,
जो दिखते हैं अब मुरझाये।
सोचो कैसा जतन करें हम,
क्यारी-क्यारी फिर मुस्काये।
ज़ात-पात से ऊपर उठ कर,
जन-जन के मन को  हर्षायें।
चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।

तेरा, मेरा, इसका, उसका,
काहे का यह झगड़ा प्यारे।
ऐसी पौध लगा दें इसमें,
जिससे भीतर का तम हारे।
पग-पग ऐसी ख़ुशबू बोकर,
सब इसके माली बन जायें।
चलो साथियो, हम मिल-जुलकर,
इस बगिया को  फिर महकायें।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
गीले को नीले, सूखा, हरे में डाल ।

घर और आफिस साफ रखें हम।
रोग-बिमारी फिर होंगे कम।
नाली में डेली, किरोसिन तू डाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

मक्खी-मच्छर मार गिराएं।
डेंगू-मलेरिया दूर भगाएं।
कूलर औ'र गमलों का पानी निकाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

गली-मोहल्ले,सड़कें या रोड।
कूड़ा क्यों इन पर देते हैं छोड़?
सुधरेंगे नहीं तो, होंगे बेहाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

मास्क लगा कर मुंँह पर रखना।
हाथों को धोना, सैनेटाइज करना।
आएगा कोरोना का भी काल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (संभल) उत्तर प्रदेश
मो - 9548812618
ईमेल -
deepakchirag.goswami@gmail.com
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घर में हो गयी नैक लड़ाई,
चुन्नू सिंह को रास ना आई।
चुन्नू सिंह ने उठा के झोला,
चुपके से दरवाजा खोला।
दरवाज़ा भी चुगलखोर था,
धीरे से चूं चूं चूं बोला।
दादी सोई थी आंगन में,
नींद नहीं उनकी अँखियन में।
चुन्नू कब जब जाते देखा,
दादी ने एक कुइश्चन पूछा।
कहां चले तुम चुपके चुपके,
घर में सबसे यूँ ही छिपके।
क्या कोई तेरी गर्ल फ्रेंड है,
जिसकी खातिर होता सैंड है।
बोला चुन्नू कोई नहीं है,
अब इस घर की बहुत सही है।
छोड़ रहा हूँ ये घर आंगन,
लेकिन नहीं मैं किसी का साजन।
बोली दादी दिल मत तोड़,
मत जा बेटा मुझको छोड़।
मैं भी तो कितनी एकाकी,
रोज सुनाती तेरी काकी।
या मुझको भी साथ में ले ले,
चलते दोनों साथ अकेले।
या फिर मेरी खातिर रुक जा,
मिलकर दोनों साथ में खेलें।
बोला चुन्नू तब मुस्का कर,
दादी जी को गले लगाकर।
दादी मेरी कितनी प्यारी,
लो ये रुक गयी यहीं सवारी।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा
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मस्ती बच्चो की"
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
खेल खेल में बीता पल।
न जाने कब निकला कल।
नही कोई इनको चिंता फिक्र।
हो जाये मस्ती बस यही खबर।
लाखो में एक न्यारे होते हैं।
दिल के प्यारे होते हैं।
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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अम्मी  फिर आ जाओ ना
दीदी को सबक सिखाओ ना।
सब मिलकर है मुझे सताते,
बिना बात ही मुझे रुलाते।
सबकी मार लगाओ ना,                                           अम्मी फिर आ जाओ ना।                                          अल्लाह मियां ने तुम्हें बुलाया,
सब लोगो को बहुत रुलाया
मेरा बुलावा क्यों न आया।                     
अल्लाह से बात कराओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना
अम्मी जी यह दुनिया बुरी है,
सबकी ज़बाने तेज छुरी है।
घर की अब न कोई धुरी है।
सबको आकर समझाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।
झूठी तोहमत मुझ पा लगाते,
बात बात पर मुझे चिढ़ाते।
सारा काम मुझसे  कराते।
न मानूं तो बड़ा सताते।
मुझको और रुलाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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अपनी ममता प्यार लुटा कर
पाला -पोसा बड़ा किया
ज्ञान -मान का तुमको प्रतिफल
मिले,सोच अनुष्ठान किया ।

देखो विश्वास किया तुमने
उसका प्रतिफल तुम्हे मिला
प्रतिदानों में तुम भी बच्चों
माँ पापा का ध्यान रखो ।

करुण ह्रदय में विकसित होती
आशीर्वादों की ममता
ममता को झुठलाकर उनकी
कभी न तुम अभिमान करो ।

✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा
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रंग बिरंगी चंचल तितली,
              मेरे मन को भातीं हैं।
जब भी उनको छूना चाहूं ,
             दूर बहुत उड़ जातीं हैं।।
मन चाहे मेरा भी एक दिन,
          तितली बन कर उड़ जाऊं।
नील गगन में उड़ते उड़ते,
                दूर देश में हो आऊं।।
न कोई सीमा का बंधन,
                न कोई मजबूरी हो।
जब जी चाहे सैर करूं मैं
              चाहे कितनी दूरी हो।।
घर के बाहर की ये दुनिया
          अक्सर मुझे बुलाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली,
              मेरे मन को भातीं हैं।।
सारी दुनिया उड़कर घूमूं,
            ‌‌    देश देश में जाऊं मैं।
जानू हाल सभी का उनको ,
       ‌     अपना हाल सुनाऊं मैं।।
दुनिया ही अपना घर हो  तो
            फिर काहे घबराऊ मैं।
देश देश के सब बच्चों को ,
         मिलकर दोस्त बनाऊं मैं।।
प्रेम प्यार भाईचारे की ,
            बातें मुझे सुहाती हैं।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
             मेरे मन को भातीं हैं।।
किसी देश की सीमाएं फिर,
              मुझे रोक न पाएंगी ।
जैसे नदी पवन का झोंका,
              रोज बहारें आएंगी।।
जब ईश्वर ने ये सारा जग ,
             सबके लिए बनाया है।
चंदा सूरज, जल थल अंबर,
            सब में वही समाया है ।।
फिर क्यो रचते पथ विनाश के,
           मुझे समझ नहीं आती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
     ‌          मेरे मन को भातीं हैं।।
क्यों मानव ने इस धरती को,
              सीमाओं में बांट दिया।
हथियारों की होड़ लगाई,
            प्रेम वृक्ष को काट दिया।।
बैर-दुश्मनी युद्ध-लड़ाई ,
                बर्बादी ले आयेगा‌।।
यदि नहीं संभले तो एक दिन,
           विश्व युद्ध छिड़ जाएगा।।
बारूदी ढेरों पर दुनिया,
           मेरे होश उड़ाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
         मेरे मन को भाती है।।

✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25541
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प्रभु  हम बच्चे हैं अज्ञानी,
आपकी  महिमा हमने मानी।
दे दो साहस और ज्ञान
जिससे हो सबका कल्याण,
प्रभु आप हो सर्वशक्तिमान।
हम नन्हें नन्हें बच्चे
पर मन के है सच्चे।
आपकी कृपा जो पा जायेगे
जीवन में कुछ कर जायेगे।
हम बच्चे हैं अज्ञानी
आपकी महिमा हमने जानी।।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया,मुरादाबाद
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तन-मन स्वस्थ बनाना चाहो
जल्दी से बढ़ जाना चाहो ।
याददाश्त यदि तेज बनाना
ध्यान-योग होगा अपनाना ।।

मार पालथी बैठो ऐसे
छुए कलाई घुटनों जैसे ।
खोल हथेली ऊपर करना
कमर तनी अरु सीधी धरना ।।

अपने प्रभु का ध्यान लगाना
आंँख बंद उनमें खो जाना ।
मन पर लगाम कसनी होगी
चित्त शांत के होगे भोगी ।।

ॠषी-मुनी से बन सकते हो
दिव्य दृष्टि भी पा सकते हो ।
सरल चलाना जीवन होगा
भाव सदा ही निर्मल होगा ।।
✍️ राम किशोर वर्मा,  रामपुर
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मैं कोयलिया काली काली
मेरी बोली बड़ी निराली
मधुर वचन से जग को जीतो,
कहती फिरती डाली डाली।

कटु वचन तो चुभें शूल से
मधुर वचन तो लगें फूल से
कड़वी वाणी छोड़ो बच्चों
कभी न बोलो इसे भूल से।
सबसे हम अच्छा ही बोलें
नहीं कभी भी देना गाली ।

सब रोगों की एक दवाई
नही रहेगी कहीं लड़ाई
सबको अपने गले लगाओ
जैसे रहते भाई भाई ।
श्याम वर्ण है मेरा बच्चों
प्रेम की शिक्षा देने वाली ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार ,मुरादाबाद
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छुक छुक छुक छुक करती रेल
बड़ी तेज है चलती रेल
नदी पहाड़़ खेत चीर कर
इनके ऊपर चढ़ती रेल ।

नानी मामी बुआ मौसी
सबके घर पहुँचाती रेल
दादा दादी चाचा चाची
सबसे है मिलवाती रेल ।

सड़क सुरंग मैदानोंं में
सरपट दौड़ी जाती रेल
चिंटू मिंटू राजू रामू
मन सभी के भाती रेल ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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पर्व दशहरा का जब आया।
छोटू जी ने खेल रचाया।
सब बच्चों को पास बुलाया ।
अपने मन का प्लान बताया ।
खेल अनोखा हम खेलेंगे।
रावण का पुतला फूंकेंगे।
सबको उनका रोल बताया।
रावण का पुतला बनवाया।
कालोनी के बीच पार्क में,
दृश्य युद्ध का गया रचाया।
छोटू ने फिर तीर चलाया।
मोटू ने पुतला सुलगाया।
धूम धूम कर फटे पटाखे,
रावण जला धरा पर आया।
फिर बुराई पर अच्छाई की,
विजय पर्व का जश्न मनाया ।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नंबर 9456641400
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मादा कौए ने बड़े प्यार से
सयाने बेटे को समझाया
ये मानव भी बड़ा चतुर है
भली भाँति उसको बतलाया

यदि आदमी झुके नीचे तू
झट से तू उड़ जाना
इस दुष्ट मानव के हाथों
पत्थर कभी ना खाना

कौआ बोला "तो सुनले
अगर कहीं ऐसा हो तो
क्या फिर भी रहूँ देखता
जो लिए वो पत्थर फिरता हो

✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई
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मुरादाबाद के साहित्यकारों को पुष्पेंद्र वर्णवाल जयंती समारोह में किया गया सम्मानित

 पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति न्यास मुरादाबाद के तत्वावधान में प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल की जयंती के अवसर पर 11 नवंबर 2020 को सम्मान समारोह एवं कवि गोष्ठी का आयोजन महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में किया गया।         वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास लेखन एवं साहित्य संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई,ओज कवि विवेक निर्मल तथा हिंदी सेवा व सामाजिक कार्यों के लिए अनिल कांत बंसल को 'पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया गया ।    कार्यक्रम संयोजक रवि चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। डॉ मनोज रस्तोगी ने पुष्पेंद्र वर्णवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। अति विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि हिंदी साहित्य में हर विधा पर पुष्पेंद्र वर्णवाल की लेखनी पारंगत थी। विशिष्ट अतिथि  रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल ने अनेक कृतियों की रचना कर हिंदी साहित्य भंडार में वृद्धि की है । मुख्य अतिथि महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ रस्तोगी ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल साहित्यकार होने के साथ-साथ दार्शनिक, ज्योतिषाचार्य और इतिहासकार भी थे । अध्यक्ष अशोक विश्नोई ने कहा कि उन्होंने हिंदी साहित्य में विगीत विधा को जन्म दिया ।संचालक आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने सभी सम्मानित विभूतियों का जीवन परिचय प्रस्तुत किया।

 इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा---

रागयुक्त पर विरतिमय ,जिसका जीवन गान ।

यह विमोह का आचरण है विगीत का मान 

अशोक विश्नोई ने कहा----

समकालिक लेखक पुष्पेंद्र गीतकार 

जनक हैं  विगीतों के प्रेयस सुविचार 

आजीवन कविता कर नाम यश कमाया 

हिंदी के सेवक को फक्कड़पन भाया

 डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा----

इज्जत  हो  रही  तार-तार  देश में 

हो  रहे  हैं रोज  बलात्कार  देश में             

खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी 

गहरी  नींद  में  है  पहरेदार  देश में                 

डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा-- दीप सद्भावना के जलाते रहें 

भाव संवेदनाएं जगाते रहें

 द्वेष दुर्गंध व्यापी पवन बह रही हम गुलाबों की फसलें उगाते रहे 

शिव ओम वर्मा ने कहा---

 वक्त हथौड़ा हो गया है

 मौत छेनी हो गई 

महामारी तेरी मार

 बहुत पैनी हो गई 

नजीब सुल्ताना ने कहा ---

कोई भूखा मारता है कोई खिलाकर मारता है

 यह सियासत है यहां कोई जिलाकर मारता है 

प्रशांत मिश्रा ने कहा---

 क्यों तुम मेरे पास आकर मुस्कुराकर चल दिए 

डॉ एमपी बादल जायसी ने कहा ---

सजी सजाई दुल्हन रह गई, बाबुल नीर बहाए 

माता रोती सौ आंसू, डोली लौटी जाए 

प्रवीण राही ने कहा----

 जब वह हम से नजर मिलाते हैं हम जमाने को भूल जाते हैं जिनकी औकात कुछ नहीं होती अपने बाजू वही चढ़ाते हैं। 

रवि चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त किया ।















सोमवार, 16 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नक़वी की शायरी पर केंद्रित योगेंद्र वर्मा व्योम का आलेख -------"ख़ुशबू के सफ़र की शायरा : डॉ. मीना नक़वी"

   


15 नवम्बर 2020 को सुबह-सुबह जब डॉ. मीना नक़वी जी के निधन का अत्यधिक दुखद समाचार सुना तो दिल धक से रह गया। सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन सच तो सच होता है। मीना नक़वी जी एक उत्कृष्ट रचनाकार होने के साथ साथ एक बहुत अच्छी इंसान भी थीं। उर्दू में शानदार और विशिष्ट अंदाज की शायरी करने वाली मीना जी का हिन्दी में भी महत्वपूर्ण सृजन रहा। उनकी आत्मीयता जीवनपर्यन्त शब्दातीत रही।  डॉ. मीना नक़वी के नाम से अदबी दुनिया में बखूबी पहचानी जाने वाली ज़िला बिजनौर की तहसील नगीना में 20 मई,1955 को जन्मी और वर्तमान में ज़िला मुरादाबाद के अग़वानपुर कस्बे में चिकित्सकीय वृत्ति से जुड़ी डॉ. मुनीर ज़ह्रा की शायरी के ज़र्रे-ज़र्रे में बसने वाली तहजीब और हिन्दुस्तानियत उनकी ग़ज़लों को इतिहास की ज़रूरत बनाती है। दरअस्ल उनके अश’आर में ना तो अरबी-फारसी की इज़ाफ़त वाले अल्फ़ाज़ घुसपैठ करतेे हैं और ना ही संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्द। उनकी शायरी को पढ़ने और समझने के लिए किसी शब्दकोष की ज़रूरत नहीं पड़ती। ग़ज़ल एक मुश्किल काव्य विधा है जिसमें छंद का अनुशासन भी ज़रूरी है और कहन का सलीक़ा भी। इसे इशारे की आर्ट भी कहा गया है। डॉ. मीना जी का शे’र देखें-

‘यूँ तो कुछ भी नहीं अयां मुझमें

है मगर कहक निहां मुझमें

रब्त रखते हुए ज़मीन के साथ

जज़्ब है सारा आसमां मुझमें’

ग़ज़ल की विशेषता ही यही है कि उसमें मुहब्बत की कशिश और कसक के कोमल अहसास की ज़िन्दादिली से परंपरागत अभिव्यक्ति के साथ-साथ पारिवारिक-सामाजिक सरोकार और समकालीन यथार्थ भी पूरी संवेदनशीलता से अभिव्यक्त होता रहा हैे। डॉ. मीना नक़वी की शायरी में भी इश्क, जुदाई, अना, फलसफा, मश्वरे और फ़िक्र-ओ-फ़न इस अहसास की चाशनी में पगकर अपनी विलक्षण मिठास के साथ मौजूद रहते हैं। शायद इसीलिए कराची (पाकिस्तान) के प्रसिद्ध लेखक जनाब अली मुजम्मिल डॉ. मीना नक़वी को साक्षात शायरी मानते हुए कहते हैं कि ‘उनकी शायरी के कलापक्ष और भावपक्ष दोनों ही मजबूत हैं, परम्परा में आधुनिकता का समावेश है....पाठक को हर मिसरा अपने दिल तक पहुंचता हुआ महसूस होता है।’ इन अश’आर में उनका अंदाज़-ए-बयाँ काबिल-ए-ग़ौर है-

‘बुलंदी टूट जाती है ज़रा से ज़लज़ले से ही

 ज़मीं जब आसमानों पर पलटकर वार करती है’

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‘कामना अब याचना से यातना तक आ गई

 रक्तरंजित देह को उपचार तक लाएगा कौन

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वक़्त के जलते हुए सूरज की तपती धूप में

 उसकी यादों के शज़र हैं साएबानी के लिए’

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‘तेरी वफ़ाओं पे इतना यक़ीन हो मुझको

 तू झूठ बोले  मुझे  एतबार आ  जाए’

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अच्छे अश्आर मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। डॉ. मीना नक़वी की शायरी भी अपनी ऐसी ही ख़ूबसूरत आहटों की गूँज के लिए जानी जाती है। उर्दू के मशहूर शायर निदा फाज़ली कहते हैं - ‘ग़ज़ल मीनाकारी की कला है जिसमें केवल शब्दों से ही नहीं, शब्दों में शामिल अक्षरों की ध्वनियाँ, क़ाफ़ियों की ताल, छंद की चाल के माध्यम से भी बात की जाती है। यह एक ऐसी विधा है जो ख़ामोशियों की ज़ुबान में बोलती है और फ़िक्र को जज़्बे की तराज़ू में तोलती है।’ उर्दू शायरों की लम्बी फेहरिस्त में चंद लोग ही हैं जो ग़ज़ल को कहने में इन शर्तों का निर्वहन ईमानदारी से करते हैं। डॉ. मीना नक़वी का नाम ग़ज़ल-लेखन परंपरा के ऐसे ही चंद रचनाकारों में अदबी अहमियत के साथ शुमार होता है जिन्होंने छंद के अनुशासन का निर्वाह करते हुए ख़ूबसूरत कहन के साथ ग़ज़ल को नई पहचान दी। उनकी ग़ज़लों में कथ्य की ताज़गी, ग़ज़लियत की ख़ुशबू और भाषाई मिठास एक साथ गुंथी हुई मिलती ही हैं, कहीं-कहीं प्रतिरोध का स्वर भी मुखरित होता हुआ दिखाई देता है। एक शे’र देखिए-

‘हमें ही बेवफ़ा कहकर किनारा कर लिया उसने

 हमारी ज़ात पर इससे बड़ा इल्ज़ाम क्या होगा’

डॉ. मीना नक़वी की शायरी में काव्य के विविध रंग मिलते हैं, वह कभी ज़िन्दगी का फलसफ़ा समझाती हैं और कभी प्रेम की अनुभूतियाँ। नारी-मन की व्यथा को भी उन्होंने अपनी अलग ही शैली में अभिव्यक्ति दी है। दहेज की समस्या और कन्या भ्रूण हत्या जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे नारी अस्मिता से तो जुड़े हुए हैं ही साथ ही आज के तथाकथित रूप से विकसित व शिक्षित समाज के मुंह पर एक तमाचा भी हैं, कन्या भ्रूण हत्या के संदर्भ में समाज की भूमिका पर कटाक्ष करते हुए बड़ी बेबाक़ी से वह कहती हैं-

‘यह तो अच्छा हुआ कलियों का गला घोंट दिया

 वरना  ख़ुशबू  भी हवाओं में बिखर सकती थी’

वर्तमान में समाज चाहे कितना ही विकसित क्यों ना हो गया हो लेकिन कुछ सन्दर्भों में समाज आज भी कुंठित मानसिकता और वही पुरानी दकियानूसी रूढ़िवादिताओं के चक्रव्यूह में फँसा हुआ है, उसकी सोच में बदलाव नहीं हो सका। दहेज की समस्या भी आज उसी मजबूती के साथ समाज में बनी हुई है जितनी दशकों और सदियों पहले अपने विद्रूप रूप में थी। आज भी दहेज के कारण अनेक परिवार बिखर रहे हैं, अनेक बेटियाँ दहेज-हत्या का शिकार हो रही हैं। दहेज हत्या की पीड़ा को मीना जी की संवेदनशील लेखनी कुछ इस तरह से बयां करती है-

‘बहू ज़िन्दा जला दी जाती है इस बात को सुनकर

 मेरी  मासूम  बेटी  शादी  से  इंकार  करती है’

साथ ही तथाकथित आधुनिकता का लबादा ओढे आज के समाज की स्याह मानसिकता को उजागर करते हुए एक संवेदनशील रचनाकार की अनुभूति और कडुवी सच्चाई को अपने शे’र में ढालकर वह कहती हैं-

‘तअल्लुक़ हो न हो, ज़रदार से फिर भी तअल्लुक़ है

 हो मुफ़लिस भाई  तो  रिश्ता बताना  भूल जाते हैं’

वहीं दूसरी ओर आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता सांप्रदायिक-सद्भाव की बात को वह बिल्कुल अनूठे अंदाज़ में अभिव्यक्त करती हैं-

‘है अज़ाँ अल्लाह की और आरती है राम की

 गूँज है दोनों में लेकिन प्यार के पैग़ाम की’

डॉ. मीना नक़वी के रचनाकर्म के संदर्भ में अपनी टिप्पणी के माध्यम से जहाँ एक ओर मशहूर शायर बड़े भाई श्री कृष्ण कुमार ‘नाज़’ ने उनको दर्द को थपकियाँ देकर सुलाने का हुनर जानने वाली शायरा बताया है वहीं दूसरी ओर वरिष्ठ नवगीतकार श्री माहेश्वर तिवारी उन्हें भारत की परवीन शाकिर मानते हैं। दरअस्ल डॉ. मीना नक़वी की शायरी अलग अंदाज़ की शायरी है, ख़ुशबू के सफ़र की शायरी है। ज़िन्दगी के ऊँचे-नीचे रास्तों पर चलते हुए उनकी अनुभूतियाँ अपने आप शायरी में ढलती गईं और ये शे’र यथासमय उनकी ग़ज़लों के अंग बनते गए। तीन विषयों- हिन्दी, अंग्रेज़ी और संस्कृत में परास्नातक डॉ. नक़वी की अब तक नौ कृतियाँ- ‘साएबान’, ‘बादबान’, ‘जागती आँखें’ (तीनों उर्दू में), ‘दर्द पतझड़ का’, ‘धूप-छाँव’, ‘किरचियाँ दर्द की’ (देवनागरी और उर्दू दोनों में) तथा ‘आईना’ प्रकाशित, पुरस्कृत और साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित हो चुकीं हैं। अपनेे महत्वपूर्ण कृतित्व के लिए मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, बिहार उर्दू अकादमी, बज़्मे अदब जालंधर, नज़र अकादमी मुरादाबाद, रामकिशन सिंघल ट्रस्ट शिवपुरी, साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ मुरादाबाद, क़ैफ मैमोरियल सोसाइटी मुरादाबाद, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच मुरादाबाद सहित अनेक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित तथा भारत-भर ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मुशायरों के मंचों पर अपनी बेशक़ीमती शायरी से प्रतिष्ठा पाने वाली डॉ. मीना नक़वी की महत्वपूर्ण रचनाधर्मिता अपने इंद्रधनुषी रंगों वाले कथ्यों और भावों से समृद्ध है, उनकी ग़ज़लें जहाँ मन को गहरे तक छूती हैं वहीं मस्तिष्क को झकझोरती भी हैं। गंभीररूप से अस्वस्थ रहने बाबजूद भी अपने अंतिम समय तक अपनी रचना-यात्रा को प्रवाहमान  रखने वाली शायरा डा. मीना नक़वी का समग्र सृजन उर्दू साहित्य के साथ-साथ हिन्दी साहित्य में भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ईश्वर उनके रचनाकर्म को रामकथा की आयु दे।

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’                            

मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

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