जगत में डर हँसाई का
बहुत मुझको सताता है
देखकर रीत दुनिया में
मन घबरा यह जाता है
माँ ममता का आँचल है
बहुत ही याद आता है
अपनी आँखों के आँसू -
जब-तब रोते रहते हैं
दुनिया में अपमान सभी
चुपचाप यही सहते हैं
माँ-गोदी में सोने को --
हर-पल मुझसे कहते हैं।
हृदय लगाकर अपने, माँ !
मुझको आज सहारा दो !
डूब रही जीवन-नैया ----
अपना इसे किनारा दो !
जिसमें दिख जाये हर पल
मुझको वही नज़ारा दो !!
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला, अमरोहा
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झूल रहा है टॉमी जमकर
बच्चों जैसी आदत पड़कर
कहता है हम भी तो बच्चे
कुत्ते हैं ,पर मन के सच्चे
अगर पार्क में मालिक ! आओ
हमको भी तो संग खिलाओ
छोटा भाई समझ बुला लो
जब तुम झूलो ,हमें झुला लो
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451
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गीदड़ को मिल गई बांसुरी,
लगा छेड़ने तानें,
मैं ही संगीतज्ञ बड़ा हूँ,
सभी जानवर जानें।
जो संगीत सीखना चाहे,
पास मेरे आ जाए,
ढोलक, ढपली और मंजीरा,
दिनभर खूब बजाए,
पैसा नहीं रोज़ मुर्गा ही,
फीस मेरी है जानें।
गीदड़ को-----------------
कान खोलकर सुन लो मेरी,
फीस नियम से आए,
दुबला -पतला नहीं चलेगा,
मोटा मुर्गा लाए,
गद्दारी करने की मन में,
तनिक न कोई ठानें।
गीदड़ को------------------
मैंने अपने गुरु "गधे" से,
कभी न की मनमानी,
ढेंचू - ढेंचू की तानों से,
सीखी बीन बजानी,
गुरु गुरु होता है उसकी,
महिमा को पहचानें।
गीदड़ को-------------------
सुबह दुपहरी से संध्या तक,
सबको लगा सिखाने,
मुर्गा, बत्तख, खरहा, कबूतर,
खुलकर लगा चबाने,
कहा शेर ने शोर कहाँ से
आया हम भी जानें।
गीदड़ को--------------------
पहुंच गया जंगल का राजा,
सूंघ सूंघकर राहें,
उड़ा रहा था दावत गीदड़,
सान सानकर बांहें,
देख शेर को थर-थर काँपा,
भूल गया सब तानें।
गीदड़ को---------------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
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चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।
सुंदर-सुंदर पौधे इसके,
जो दिखते हैं अब मुरझाये।
सोचो कैसा जतन करें हम,
क्यारी-क्यारी फिर मुस्काये।
ज़ात-पात से ऊपर उठ कर,
जन-जन के मन को हर्षायें।
चलो साथियो, हम मिल जुल कर,
इस बगिया को फिर महकायें।
तेरा, मेरा, इसका, उसका,
काहे का यह झगड़ा प्यारे।
ऐसी पौध लगा दें इसमें,
जिससे भीतर का तम हारे।
पग-पग ऐसी ख़ुशबू बोकर,
सब इसके माली बन जायें।
चलो साथियो, हम मिल-जुलकर,
इस बगिया को फिर महकायें।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
गीले को नीले, सूखा, हरे में डाल ।
घर और आफिस साफ रखें हम।
रोग-बिमारी फिर होंगे कम।
नाली में डेली, किरोसिन तू डाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
मक्खी-मच्छर मार गिराएं।
डेंगू-मलेरिया दूर भगाएं।
कूलर औ'र गमलों का पानी निकाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
गली-मोहल्ले,सड़कें या रोड।
कूड़ा क्यों इन पर देते हैं छोड़?
सुधरेंगे नहीं तो, होंगे बेहाल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
मास्क लगा कर मुंँह पर रखना।
हाथों को धोना, सैनेटाइज करना।
आएगा कोरोना का भी काल।
आया गाड़ी वाला, घर का कूड़ा निकाल।
✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई (संभल) उत्तर प्रदेश
मो - 9548812618
ईमेल -
deepakchirag.goswami@gmail.com
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घर में हो गयी नैक लड़ाई,
चुन्नू सिंह को रास ना आई।
चुन्नू सिंह ने उठा के झोला,
चुपके से दरवाजा खोला।
दरवाज़ा भी चुगलखोर था,
धीरे से चूं चूं चूं बोला।
दादी सोई थी आंगन में,
नींद नहीं उनकी अँखियन में।
चुन्नू कब जब जाते देखा,
दादी ने एक कुइश्चन पूछा।
कहां चले तुम चुपके चुपके,
घर में सबसे यूँ ही छिपके।
क्या कोई तेरी गर्ल फ्रेंड है,
जिसकी खातिर होता सैंड है।
बोला चुन्नू कोई नहीं है,
अब इस घर की बहुत सही है।
छोड़ रहा हूँ ये घर आंगन,
लेकिन नहीं मैं किसी का साजन।
बोली दादी दिल मत तोड़,
मत जा बेटा मुझको छोड़।
मैं भी तो कितनी एकाकी,
रोज सुनाती तेरी काकी।
या मुझको भी साथ में ले ले,
चलते दोनों साथ अकेले।
या फिर मेरी खातिर रुक जा,
मिलकर दोनों साथ में खेलें।
बोला चुन्नू तब मुस्का कर,
दादी जी को गले लगाकर।
दादी मेरी कितनी प्यारी,
लो ये रुक गयी यहीं सवारी।।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा
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मस्ती बच्चो की"
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
खेल खेल में बीता पल।
न जाने कब निकला कल।
नही कोई इनको चिंता फिक्र।
हो जाये मस्ती बस यही खबर।
लाखो में एक न्यारे होते हैं।
दिल के प्यारे होते हैं।
बच्चे सच्चे होते हैं।
दिल के अच्छे होते हैं।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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अम्मी फिर आ जाओ ना
दीदी को सबक सिखाओ ना।
सब मिलकर है मुझे सताते,
बिना बात ही मुझे रुलाते।
सबकी मार लगाओ ना, अम्मी फिर आ जाओ ना। अल्लाह मियां ने तुम्हें बुलाया,
सब लोगो को बहुत रुलाया
मेरा बुलावा क्यों न आया।
अल्लाह से बात कराओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना
अम्मी जी यह दुनिया बुरी है,
सबकी ज़बाने तेज छुरी है।
घर की अब न कोई धुरी है।
सबको आकर समझाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।
झूठी तोहमत मुझ पा लगाते,
बात बात पर मुझे चिढ़ाते।
सारा काम मुझसे कराते।
न मानूं तो बड़ा सताते।
मुझको और रुलाओ ना
अम्मी फिर आ जाओ ना।
✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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अपनी ममता प्यार लुटा कर
पाला -पोसा बड़ा किया
ज्ञान -मान का तुमको प्रतिफल
मिले,सोच अनुष्ठान किया ।
देखो विश्वास किया तुमने
उसका प्रतिफल तुम्हे मिला
प्रतिदानों में तुम भी बच्चों
माँ पापा का ध्यान रखो ।
करुण ह्रदय में विकसित होती
आशीर्वादों की ममता
ममता को झुठलाकर उनकी
कभी न तुम अभिमान करो ।
✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा
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रंग बिरंगी चंचल तितली,
मेरे मन को भातीं हैं।
जब भी उनको छूना चाहूं ,
दूर बहुत उड़ जातीं हैं।।
मन चाहे मेरा भी एक दिन,
तितली बन कर उड़ जाऊं।
नील गगन में उड़ते उड़ते,
दूर देश में हो आऊं।।
न कोई सीमा का बंधन,
न कोई मजबूरी हो।
जब जी चाहे सैर करूं मैं
चाहे कितनी दूरी हो।।
घर के बाहर की ये दुनिया
अक्सर मुझे बुलाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली,
मेरे मन को भातीं हैं।।
सारी दुनिया उड़कर घूमूं,
देश देश में जाऊं मैं।
जानू हाल सभी का उनको ,
अपना हाल सुनाऊं मैं।।
दुनिया ही अपना घर हो तो
फिर काहे घबराऊ मैं।
देश देश के सब बच्चों को ,
मिलकर दोस्त बनाऊं मैं।।
प्रेम प्यार भाईचारे की ,
बातें मुझे सुहाती हैं।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
मेरे मन को भातीं हैं।।
किसी देश की सीमाएं फिर,
मुझे रोक न पाएंगी ।
जैसे नदी पवन का झोंका,
रोज बहारें आएंगी।।
जब ईश्वर ने ये सारा जग ,
सबके लिए बनाया है।
चंदा सूरज, जल थल अंबर,
सब में वही समाया है ।।
फिर क्यो रचते पथ विनाश के,
मुझे समझ नहीं आती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
मेरे मन को भातीं हैं।।
क्यों मानव ने इस धरती को,
सीमाओं में बांट दिया।
हथियारों की होड़ लगाई,
प्रेम वृक्ष को काट दिया।।
बैर-दुश्मनी युद्ध-लड़ाई ,
बर्बादी ले आयेगा।।
यदि नहीं संभले तो एक दिन,
विश्व युद्ध छिड़ जाएगा।।
बारूदी ढेरों पर दुनिया,
मेरे होश उड़ाती है।।
रंग बिरंगी चंचल तितली ,
मेरे मन को भाती है।।
✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25541
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प्रभु हम बच्चे हैं अज्ञानी,
आपकी महिमा हमने मानी।
दे दो साहस और ज्ञान
जिससे हो सबका कल्याण,
प्रभु आप हो सर्वशक्तिमान।
हम नन्हें नन्हें बच्चे
पर मन के है सच्चे।
आपकी कृपा जो पा जायेगे
जीवन में कुछ कर जायेगे।
हम बच्चे हैं अज्ञानी
आपकी महिमा हमने जानी।।
✍️ डॉ श्वेता पूठिया,मुरादाबाद
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तन-मन स्वस्थ बनाना चाहो
जल्दी से बढ़ जाना चाहो ।
याददाश्त यदि तेज बनाना
ध्यान-योग होगा अपनाना ।।
मार पालथी बैठो ऐसे
छुए कलाई घुटनों जैसे ।
खोल हथेली ऊपर करना
कमर तनी अरु सीधी धरना ।।
अपने प्रभु का ध्यान लगाना
आंँख बंद उनमें खो जाना ।
मन पर लगाम कसनी होगी
चित्त शांत के होगे भोगी ।।
ॠषी-मुनी से बन सकते हो
दिव्य दृष्टि भी पा सकते हो ।
सरल चलाना जीवन होगा
भाव सदा ही निर्मल होगा ।।
✍️ राम किशोर वर्मा, रामपुर
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मैं कोयलिया काली काली
मेरी बोली बड़ी निराली
मधुर वचन से जग को जीतो,
कहती फिरती डाली डाली।
कटु वचन तो चुभें शूल से
मधुर वचन तो लगें फूल से
कड़वी वाणी छोड़ो बच्चों
कभी न बोलो इसे भूल से।
सबसे हम अच्छा ही बोलें
नहीं कभी भी देना गाली ।
सब रोगों की एक दवाई
नही रहेगी कहीं लड़ाई
सबको अपने गले लगाओ
जैसे रहते भाई भाई ।
श्याम वर्ण है मेरा बच्चों
प्रेम की शिक्षा देने वाली ।
✍️ डॉ प्रीति हुँकार ,मुरादाबाद
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छुक छुक छुक छुक करती रेल
बड़ी तेज है चलती रेल
नदी पहाड़़ खेत चीर कर
इनके ऊपर चढ़ती रेल ।
नानी मामी बुआ मौसी
सबके घर पहुँचाती रेल
दादा दादी चाचा चाची
सबसे है मिलवाती रेल ।
सड़क सुरंग मैदानोंं में
सरपट दौड़ी जाती रेल
चिंटू मिंटू राजू रामू
मन सभी के भाती रेल ।
✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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पर्व दशहरा का जब आया।
छोटू जी ने खेल रचाया।
सब बच्चों को पास बुलाया ।
अपने मन का प्लान बताया ।
खेल अनोखा हम खेलेंगे।
रावण का पुतला फूंकेंगे।
सबको उनका रोल बताया।
रावण का पुतला बनवाया।
कालोनी के बीच पार्क में,
दृश्य युद्ध का गया रचाया।
छोटू ने फिर तीर चलाया।
मोटू ने पुतला सुलगाया।
धूम धूम कर फटे पटाखे,
रावण जला धरा पर आया।
फिर बुराई पर अच्छाई की,
विजय पर्व का जश्न मनाया ।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नंबर 9456641400
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मादा कौए ने बड़े प्यार से
सयाने बेटे को समझाया
ये मानव भी बड़ा चतुर है
भली भाँति उसको बतलाया
यदि आदमी झुके नीचे तू
झट से तू उड़ जाना
इस दुष्ट मानव के हाथों
पत्थर कभी ना खाना
कौआ बोला "तो सुनले
अगर कहीं ऐसा हो तो
क्या फिर भी रहूँ देखता
जो लिए वो पत्थर फिरता हो
✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई
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